भारतीय संविधान की
प्रस्तावना (Preamble) देश के मूलभूत सिद्धांतों और
उद्देश्यों का सार प्रस्तुत करती है। इसमें वर्णित शब्द 'लोकतांत्रिक'
(Democratic) भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को प्रतिबिंबित करता है।
संविधान के अनुसार, भारत को "संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न,
समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य" घोषित किया गया है। लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ
है कि भारत में शासन जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता का
होगा। भारतीय लोकतंत्र का आधार जनता की इच्छा और उसकी भागीदारी है, जिसमें सभी नागरिकों को बराबर अवसर और अधिकार मिलते हैं।
लोकतांत्रिक का
अर्थ और व्याख्या
लोकतंत्र (Democracy)
का मूल अर्थ 'जनता का शासन' है। यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों 'Demos' (जनता) और 'Kratos'
(शासन) से मिलकर बना है। लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है, जहां शासन की शक्ति जनता में निहित होती है। इसमें नागरिकों को अपने
प्रतिनिधियों का चयन करने और शासन में भागीदारी का अधिकार होता है। भारतीय संदर्भ
में लोकतंत्र का तात्पर्य केवल चुनाव और बहुमत शासन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नागरिक स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय और कानून के शासन की परिकल्पना करता है।
भारतीय लोकतंत्र के
प्रमुख तत्व
भारत में लोकतंत्र
के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं –
1. जनता की संप्रभुता:
संविधान की प्रस्तावना के प्रारंभिक शब्द "हम भारत के लोग..." यह स्पष्ट करते हैं कि भारत की संप्रभुता जनता में निहित है। भारत में जनता ही सर्वोच्च सत्ता है और शासकों को जनता की इच्छा का पालन करना होता है।2. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise):
भारत में प्रत्येक नागरिक को, जो 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का हो, चुनाव में मतदान करने का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार जाति, धर्म, लिंग, भाषा या आर्थिक स्थिति के भेदभाव के बिना सभी नागरिकों को समान रूप से दिया गया है।
3. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव:
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है। भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र अधिकार दिए गए हैं।
4. बहुलतावादी समाज और विविधता:
भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती उसकी विविधता में है। विभिन्न धर्म, भाषा, जाति और संस्कृति के लोग एक साथ रहकर लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं। भारत में अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा का विशेष प्रावधान है।
5. कानून का शासन (Rule of Law):
भारतीय लोकतंत्र का आधार 'कानून का शासन' है। इसका अर्थ है कि कानून सभी नागरिकों के लिए समान है और किसी को भी कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता।
6. मौलिक अधिकारों की गारंटी:
लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्रदान किए गए हैं। इनमें स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार और जीवन के अधिकार जैसे अधिकार शामिल हैं।
7. बहुदलीय प्रणाली और विपक्ष की भूमिका:
भारत में बहुदलीय लोकतंत्र की व्यवस्था है, जहां विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव में भाग लेते हैं और जनता के बीच प्रतिस्पर्धा होती है। विपक्ष को भी लोकतंत्र में उतना ही महत्व दिया जाता है, जितना सत्ताधारी दल को।
भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक तत्व
भारतीय संविधान में
लोकतांत्रिक तत्वों को विभिन्न अनुच्छेदों और प्रावधानों में व्यक्त किया गया है –
अनुच्छेद 324:
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन के लिए चुनाव आयोग
का गठन किया गया है। यह अनुच्छेद लोकतंत्र को बनाए रखने और जनता की इच्छा को मूर्त
रूप देने में सहायक है।
अनुच्छेद 326:
इस
अनुच्छेद के तहत 18 वर्ष से अधिक आयु के
प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार प्राप्त है। यह अनुच्छेद जनता की संप्रभुता और
लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करता है।
अनुच्छेद 19:
यह अनुच्छेद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विचारों
की अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण ढंग से सभा करने का अधिकार प्रदान करता है। ये अधिकार
लोकतांत्रिक मूल्यों को सुरक्षित रखते हैं।
अनुच्छेद 21:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है। यह
अनुच्छेद प्रत्येक नागरिक को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार प्रदान करता
है।
अनुच्छेद 74
और 75:
इन
अनुच्छेदों में मंत्रिपरिषद की सामूहिक उत्तरदायित्व की व्यवस्था की गई है,
जो लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुरूप है।
लोकतंत्र के प्रकार – भारतीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में
लोकतंत्र (Democracy)
एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें जनता शासन में
भागीदारी करती है और अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार रखती है। लोकतंत्र को
इसके संचालन, संरचना और विशेषताओं के आधार पर विभिन्न
प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।
1. प्रत्यक्ष
लोकतंत्र (Direct Democracy)
परिभाषा:
प्रत्यक्ष लोकतंत्र वह प्रणाली है, जिसमें
जनता सीधे शासन में भाग लेती है और नीतिगत निर्णय स्वयं लेती है। इस व्यवस्था में
जनता कानूनों, नीतियों और अन्य सरकारी निर्णयों पर सीधे
मतदान करती है।
विशेषताएं:
- जनता को सीधे विधायी निर्णय लेने
का अधिकार।
- प्रतिनिधियों की आवश्यकता नहीं।
- जनता की व्यापक भागीदारी।
उदाहरण:
- स्विट्जरलैंड:
यहां कई मुद्दों पर जनमत संग्रह (Referendum) और पहल (Initiatives) के माध्यम से प्रत्यक्ष
लोकतंत्र का प्रयोग किया जाता है।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र
(Direct
Democracy) के प्रकार
प्रत्यक्ष लोकतंत्र
(Direct
Democracy) वह प्रणाली है, जिसमें जनता सीधे
नीतिगत निर्णयों, कानूनों और शासन में भाग लेती है। इस
प्रणाली में जनता का सीधा हस्तक्षेप होता है और वे सीधे शासन प्रक्रिया में शामिल
होते हैं। प्रत्यक्ष लोकतंत्र मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है –
1. जनमत संग्रह (Referendum)
परिभाषा:
जनमत संग्रह वह प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत किसी
महत्वपूर्ण मुद्दे, नीति या संवैधानिक संशोधन पर जनता द्वारा
सीधा मतदान कराया जाता है। इसमें जनता 'हां' या 'नहीं' में अपना मत देकर
निर्णय करती है।
विशेषताएं:
- संवैधानिक संशोधन,
नीतिगत बदलाव और जनहित के मुद्दों पर मतदान।
- जनता का प्रत्यक्ष निर्णय।
- सरकार या संसद द्वारा प्रस्तावित
प्रश्नों पर अंतिम निर्णय।
उदाहरण:
- स्विट्जरलैंड:
यहां अक्सर जनमत संग्रह कराया जाता है।
- ब्रिटेन:
2016 में ब्रिटेन में यूरोपीय संघ से बाहर होने (Brexit)
पर जनमत संग्रह हुआ।
2. जन पहल (Initiative)
परिभाषा:
जन पहल एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें जनता स्वयं
किसी नए कानून, नीति या संशोधन का प्रस्ताव रखती है और इसे
लागू करने के लिए मतदान कराती है। यदि जनता का बहुमत उस प्रस्ताव को स्वीकार कर ले,
तो वह कानून बन जाता है।
विशेषताएं:
- नागरिक स्वयं प्रस्ताव प्रस्तुत
कर सकते हैं।
- निर्धारित संख्या में हस्ताक्षर
प्राप्त होने पर मतदान कराया जाता है।
- जनता को सीधा विधायी अधिकार मिलता
है।
उदाहरण:
- स्विट्जरलैंड:
यहां जन पहल के जरिए कई बार कानून बनाए गए हैं।
- अमेरिका:
कई अमेरिकी राज्यों में भी जन पहल की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
3. पुनर्विचार जनमत (Recall)
परिभाषा:
पुनर्विचार जनमत या 'रिकॉल' वह प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत जनता द्वारा चुने गए
किसी प्रतिनिधि को कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही पद से हटाने का अधिकार प्राप्त
होता है। यदि जनता को लगता है कि निर्वाचित प्रतिनिधि अपने कार्य में विफल हो रहा
है, तो उसे वापस बुलाया जा सकता है।
विशेषताएं:
- जनता को अपने प्रतिनिधि को हटाने
का अधिकार।
- निर्धारित संख्या में हस्ताक्षर
या समर्थन प्राप्त होने पर प्रक्रिया शुरू होती है।
- मतदान के जरिए प्रतिनिधि को पद से
हटाने का निर्णय।
उदाहरण:
- अमेरिका:
कैलिफोर्निया में गवर्नर को हटाने के लिए रिकॉल प्रक्रिया अपनाई गई।
- वेनेजुएला:
2004 में राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ के खिलाफ रिकॉल जनमत कराया
गया था।
4. जन वीटो (Plebiscite or Popular Veto)
परिभाषा:
जन वीटो वह प्रक्रिया है, जिसमें जनता द्वारा सरकार
द्वारा पारित किसी कानून या नीति को अस्वीकार करने का अधिकार प्राप्त होता है। यदि
जनता को लगता है कि कोई कानून जनहित में नहीं है, तो इसे
अस्वीकार करने के लिए मतदान कराया जा सकता है।
विशेषताएं:
- सरकार द्वारा पारित कानून पर
पुनर्विचार।
- जनता का असहमति जताने का अधिकार।
- बहुमत द्वारा अस्वीकार किए गए
कानून को रद्द किया जा सकता है।
उदाहरण:
- स्विट्जरलैंड:
यहां जनता को जन वीटो का अधिकार प्राप्त है।
- इटली:
कई बार जन वीटो की प्रक्रिया का उपयोग हुआ है।
“प्रत्यक्ष
लोकतंत्र जनता को सीधे शासन प्रक्रिया में शामिल करने का अवसर देता है और उन्हें
विधायी निर्णयों में भागीदारी का अधिकार प्रदान करता है। जनमत संग्रह,
जन पहल, पुनर्विचार जनमत और जन वीटो
– ये सभी प्रक्रियाएं लोकतंत्र को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाती
हैं। हालांकि, प्रत्यक्ष लोकतंत्र का व्यापक रूप से प्रयोग
केवल कुछ देशों में ही होता है, क्योंकि बड़े और
विविधतापूर्ण देशों में इसे लागू करना व्यावहारिक रूप से कठिन होता है।“
2. अप्रत्यक्ष
लोकतंत्र (Indirect Democracy) / प्रतिनिधि लोकतंत्र (Representative
Democracy)
परिभाषा:
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है,
जो उनके लिए नीतियां और कानून बनाते हैं। यह प्रणाली व्यापक
जनसंख्या वाले देशों में अधिक व्यावहारिक होती है।
विशेषताएं:
- जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि
शासन करते हैं।
- प्रतिनिधि जनता के प्रति
उत्तरदायी होते हैं।
- विधायिका,
कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन।
उदाहरण:
- भारत:
भारत में संसदीय लोकतंत्र की प्रणाली है, जहां
संसद और विधानसभा के सदस्यों को जनता चुनती है।
- अमेरिका:
राष्ट्रपति प्रणाली के अंतर्गत अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।
अप्रत्यक्ष
लोकतंत्र (Indirect Democracy) / प्रतिनिधि
लोकतंत्र (Representative Democracy) के प्रकार
अप्रत्यक्ष
लोकतंत्र मुख्यतः तीन प्रकार का होता है:
1. संसदीय
लोकतंत्र (Parliamentary Democracy)
परिभाषा:
संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका (Executive) को
विधायिका (Legislature) से जनादेश प्राप्त होता है और वह
विधायिका को उत्तरदायी होती है। इसमें प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल को संसद का
विश्वास प्राप्त होना आवश्यक होता है।
विशेषताएं:
- कार्यपालिका विधायिका के प्रति
जवाबदेह होती है।
- प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल का
चयन संसद के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- राष्ट्रपति (या सम्राट) केवल
नाममात्र का प्रमुख होता है और वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के पास होती है।
- संसद भंग होने की स्थिति में नए
चुनाव कराए जाते हैं।
उदाहरण:
- भारत:
भारत में संसदीय लोकतंत्र है, जहां
प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है।
- ब्रिटेन:
ब्रिटेन का संसदीय लोकतंत्र पूरी दुनिया में सबसे पुराना है।
2. राष्ट्रपति
प्रणाली (Presidential Democracy)
परिभाषा:
राष्ट्रपति प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।
राष्ट्रपति जनता द्वारा सीधे चुना जाता है और कार्यपालिका का प्रमुख होता है।
राष्ट्रपति की सत्ता विधायिका से अलग होती है और वह स्वतंत्र रूप से निर्णय ले
सकता है।
विशेषताएं:
- कार्यपालिका और विधायिका में
स्पष्ट पृथक्करण (Separation of Powers)।
- राष्ट्रपति का कार्यकाल निश्चित
होता है।
- राष्ट्रपति विधायिका के प्रति
उत्तरदायी नहीं होता है, लेकिन उसे
संवैधानिक दायित्वों का पालन करना होता है।
- राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल का
चयन स्वतंत्र रूप से करता है।
उदाहरण:
- अमेरिका:
अमेरिका में राष्ट्रपति प्रणाली अपनाई गई है, जहां राष्ट्रपति कार्यपालिका का प्रमुख होता है।
- ब्राज़ील:
ब्राज़ील में भी राष्ट्रपति प्रणाली प्रचलित है।
3. अर्ध-राष्ट्रपति
प्रणाली (Semi-Presidential Democracy)
परिभाषा:
अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों की भूमिका
महत्वपूर्ण होती है। कार्यपालिका में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों शामिल होते
हैं और इनमें शक्तियों का बंटवारा होता है। राष्ट्रपति आमतौर पर विदेश नीति और
रक्षा मामलों को देखता है, जबकि प्रधानमंत्री आंतरिक
मामलों का प्रबंधन करता है।
विशेषताएं:
- राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों
की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- राष्ट्रपति और संसद दोनों
कार्यपालिका में हिस्सेदार होते हैं।
- सरकार दोहरी कार्यप्रणाली से
संचालित होती है।
- प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल संसद
के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
उदाहरण:
- फ्रांस:
फ्रांस में अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली अपनाई गई है।
- रूस:
रूस भी इस प्रणाली का पालन करता है।
“अप्रत्यक्ष
लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन का संचालन करते हैं। संसदीय
लोकतंत्र, राष्ट्रपति प्रणाली और अर्ध-राष्ट्रपति
प्रणाली – ये तीनों प्रकार की प्रणालियां अलग-अलग देशों
में उनकी आवश्यकताओं और संवैधानिक ढांचे के अनुरूप अपनाई जाती हैं। प्रत्येक
प्रणाली के अपने लाभ और चुनौतियां हैं, लेकिन इनका मुख्य
उद्देश्य जनता की इच्छाओं और अपेक्षाओं के अनुरूप शासन सुनिश्चित करना है।“
25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में डॉ. बी.आर. अंबेडकर का लोकतंत्र पर भाषण
25 नवंबर 1949
को भारतीय संविधान सभा में दिए गए अपने ऐतिहासिक भाषण में डॉ.
भीमराव अंबेडकर ने राजनीतिक लोकतंत्र और सामाजिक लोकतंत्र के महत्व
पर गहन विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत एक राजनीतिक
लोकतंत्र की स्थापना कर रहा है, लेकिन इसके साथ-साथ सामाजिक
और आर्थिक लोकतंत्र को भी मजबूत करना आवश्यक है।
डॉ. अंबेडकर ने
चेतावनी दी कि "राजनीतिक
लोकतंत्र" तब तक अस्थिर रहेगा जब तक कि इसे सामाजिक और आर्थिक न्याय का
समर्थन नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि भारत में
यदि हम राजनीतिक लोकतंत्र को बनाए रखना चाहते हैं, तो
हमें सामाजिक लोकतंत्र को भी मजबूत करना होगा। सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ उन्होंने
एक ऐसी प्रणाली के रूप में किया, जिसमें स्वतंत्रता,
समानता और बंधुत्व को एक साथ संतुलित रखा
जाए।
डॉ. अंबेडकर ने
संविधान के महत्व पर जोर देते हुए कहा:
"हम आज
एक ऐसा संविधान अपना रहे हैं जो भारत को राजनीतिक रूप से स्वतंत्र बनाता है। लेकिन
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि असमानता और अन्याय से भरा हुआ समाज राजनीतिक लोकतंत्र
को लंबे समय तक बनाए नहीं रख सकता।"
उन्होंने संविधान
सभा के सदस्यों को यह भी याद दिलाया कि "राजनीतिक
लोकतंत्र का अर्थ केवल सार्वभौमिक मताधिकार तक सीमित नहीं है। इसका वास्तविक अर्थ
यह है कि समाज में कोई भी वर्ग या व्यक्ति अन्य वर्गों पर शासन नहीं करे।"
डॉ. अंबेडकर ने
अपने भाषण में "नायक पूजा" (Hero
Worship) के खतरों से भी सावधान किया। उन्होंने
आगाह करते हुए कहा कि भारत में नायक पूजा की प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए एक बड़ा
खतरा हो सकती है। उन्होंने कहा:
"लोकतंत्र
में नायक पूजा का स्थान नहीं होना चाहिए। किसी भी देश में जब नायक पूजा चरम पर
पहुंच जाती है, तो लोकतंत्र का पतन अवश्यंभावी हो जाता
है।"
उन्होंने संविधान
को अपनाने की ऐतिहासिक घड़ी पर यह भी कहा कि हमें इस संविधान को केवल एक दस्तावेज
के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे "सामाजिक परिवर्तन का माध्यम" बनाना चाहिए।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर
की अंतिम चेतावनी:
डॉ. अंबेडकर ने
संविधान सभा को यह चेतावनी भी दी कि यदि भारतीय समाज में सामाजिक और आर्थिक
समानता स्थापित नहीं की गई, तो राजनीतिक लोकतंत्र
की नींव हिल सकती है। उन्होंने कहा:
"यदि
हम सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को समाप्त करने में असफल रहते हैं, तो हमारे द्वारा अपनाया गया यह लोकतंत्र केवल नाममात्र का लोकतंत्र रह
जाएगा और इससे समाज में असंतोष और विद्रोह पैदा होगा।"
डॉ. अंबेडकर का यह
भाषण भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है और आज भी सामाजिक न्याय,
समानता और बंधुत्व के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को प्रेरित करता है।
उनका यह संदेश था कि "राजनीतिक लोकतंत्र तभी सफल
होगा जब सामाजिक और आर्थिक समानता को वास्तविक रूप में लागू किया जाएगा।"
उच्चतम न्यायालय का
1997
में लोकतांत्रिक व्यवस्था पर महत्वपूर्ण निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय
ने 1997
में 'विनीत नारायण बनाम भारत संघ'
(Vineet Narain v. Union of India, AIR 1998 SC 889) मामले में एक
ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने भारत में लोकतांत्रिक
व्यवस्था और न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत किया। यह मामला "हवाला घोटाला" से संबंधित था, जिसमें उच्च पदस्थ राजनेताओं और नौकरशाहों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
लगे थे।
आइए जानते है की मामला क्या था?
हवाला कांड 1990
के दशक में सामने आया था, जिसमें कई नेताओं और
सरकारी अधिकारियों पर हवाला के जरिए अवैध धन प्राप्त करने के आरोप लगे थे। इस
मामले की जांच में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की
निष्क्रियता और राजनीतिक दबाव के कारण ढिलाई सामने आई।
विनीत नारायण और
अन्य याचिकाकर्ताओं ने जनहित याचिका (PIL) दायर
कर सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि वे इस मामले में हस्तक्षेप कर भ्रष्टाचार के
मामलों की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करें।
सुप्रीम कोर्ट का
निर्णय और लोकतंत्र पर प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने
अपने दिसंबर 1997 के फैसले
में लोकतंत्र, न्यायिक सक्रियता और सुशासन को मजबूत
करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए।
1. सीबीआई और ईडी की स्वायत्तता:
न्यायालय ने कहा कि सीबीआई और ईडी को पूरी तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से कार्य करना चाहिए। अदालत ने निर्देश दिया कि ये संस्थान किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप या दबाव से मुक्त रहकर भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करें।
2. लोकतंत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता:
न्यायालय ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता अनिवार्य है। लोकतंत्र की सफलता तभी संभव है जब सरकारी एजेंसियां निष्पक्षता से कार्य करें और जनता के प्रति जवाबदेह हों।
3. न्यायिक समीक्षा और लोकतंत्र की रक्षा:
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के जरिए यह स्पष्ट किया कि "कानून का शासन" (Rule of Law) लोकतंत्र का मूल आधार है और न्यायपालिका को इस सिद्धांत की रक्षा करनी होगी। अदालत ने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को भ्रष्टाचार और अनैतिक कार्यों से बचाने के लिए न्यायिक समीक्षा आवश्यक है।4. कानून के समक्ष समानता:
सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं और लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब सभी नागरिकों को समान अवसर और न्याय मिले।
लोकतंत्र और सुशासन पर प्रभाव
इस फैसले ने भारतीय
लोकतंत्र में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) को एक नया आयाम दिया। यह निर्णय लोकतंत्र में कार्यपालिका की जवाबदेही
और न्यायपालिका की निगरानी को सुदृढ़ करने में मील का पत्थर साबित हुआ।
1. लोकतंत्र में पारदर्शिता:
इस फैसले के बाद भ्रष्टाचार विरोधी जांच एजेंसियों की कार्यशैली में सुधार हुआ और लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को बल मिला।
2. न्यायपालिका की भूमिका:
न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका अनिवार्य है और यह सत्ता के अन्य अंगों पर संतुलन बनाए रखने का कार्य करती है।
3. संवैधानिक नैतिकता:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवैधानिक नैतिकता का पालन करना आवश्यक है और सरकारी संस्थानों को संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करना चाहिए।
विनीत नारायण बनाम
भारत संघ (1997) का
फैसला भारत में लोकतंत्र, न्याय और सुशासन को सुदृढ़ करने वाला एक ऐतिहासिक निर्णय है। इस निर्णय ने लोकतंत्र में
जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रशासनिक निष्पक्षता की अवधारणा को
सुदृढ़ किया और यह सुनिश्चित किया कि लोकतंत्र में सत्ता का दुरुपयोग न हो और
न्याय का शासन बना रहे।
भारतीय न्यायपालिका ने लोकतंत्र की व्याख्या कई ऐतिहासिक निर्णयों द्वारा की जिनमे कुछ निम्नलिखित है।
1. केशवानंद भारती
बनाम केरल राज्य (1973):
इस
ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतंत्र को संविधान के मूल ढांचे (Basic
Structure) का हिस्सा माना। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि लोकतांत्रिक
ढांचे को किसी भी संशोधन द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता।
2. इंदिरा गांधी
बनाम राजनारायण (1975):
इस
मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतांत्रिक सिद्धांतों और चुनाव की शुचिता को
बरकरार रखा। यह फैसला लोकतंत्र की आत्मा को सुरक्षित रखने में मील का पत्थर साबित
हुआ।
3. एस.आर. बोम्मई
बनाम भारत संघ (1994):
इस
फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र संविधान के मूल
ढांचे का अभिन्न हिस्सा हैं।
4. मिनर्वा मिल्स
बनाम भारत संघ (1980):
इस
फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतंत्र को संविधान के मूल ढांचे में शामिल करते
हुए स्पष्ट किया कि किसी भी संशोधन द्वारा लोकतंत्र को कमजोर नहीं किया जा सकता।
42वें संविधान संशोधन और लोकतांत्रिक तत्व का पुनर्पुष्टि
42वें
संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष'
शब्द जोड़े गए। हालांकि 'लोकतांत्रिक' शब्द प्रारंभ से ही प्रस्तावना का हिस्सा था, लेकिन
इस संशोधन ने लोकतंत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को और अधिक स्पष्ट किया।
लोकतंत्र के उद्देश्य और महत्व
भारतीय लोकतंत्र का
उद्देश्य केवल जनता को शासन में भागीदारी का अधिकार देना नहीं है,
बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता और मानव गरिमा
को भी बढ़ावा देता है। इसके प्रमुख उद्देश्य हैं –
- नागरिकों को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करना।
- कानून के शासन को बनाए रखना।
- सभी वर्गों और समुदायों को समान अवसर देना।
- सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देना।
भारत में लोकतंत्र की वर्तमान प्रासंगिकता
भारत में लोकतंत्र
न केवल चुनावों तक सीमित है, बल्कि यह नागरिक
अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के शासन को भी
सुनिश्चित करता है। हालांकि, वर्तमान समय में लोकतंत्र की
कुछ चुनौतियां भी हैं, जैसे –
- धनबल और बाहुबल का प्रभाव।
- चुनावी भ्रष्टाचार।
- मीडिया का पक्षपात।
इन चुनौतियों के
बावजूद,
भारतीय लोकतंत्र अपनी विविधता, सहिष्णुता और
समावेशिता के कारण विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए
है।
निष्कर्ष: लोकतंत्र – भारतीय संविधान की आत्मा
भारतीय संविधान की
प्रस्तावना में 'लोकतांत्रिक' शब्द केवल एक औपचारिक घोषणा नहीं है, बल्कि यह भारत
की जनता की आकांक्षाओं और विश्वास का प्रतिबिंब है। लोकतंत्र भारत को एक ऐसा समाज
बनाने की प्रेरणा देता है जहां सभी को समान अवसर, स्वतंत्रता
और न्याय प्राप्त हो। लोकतंत्र का संरक्षण और संवर्धन केवल सरकार की जिम्मेदारी
नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। लोकतांत्रिक
मूल्यों की रक्षा करना और उन्हें आगे बढ़ाना भारतीय गणराज्य की स्थिरता और विकास
के लिए आवश्यक है।
भारतीय संविधान की
प्रस्तावना में 'लोकतांत्रिक' शब्द का महत्व - FAQs
प्रश्न 1:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'लोकतांत्रिक'
शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'लोकतांत्रिक'
(Democratic) शब्द का तात्पर्य है कि भारत में शासन जनता द्वारा,
जनता के लिए और जनता का होगा। इसका अर्थ है कि भारत में नागरिकों को
अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार है और सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती
है।
प्रश्न 2:
'लोकतंत्र' शब्द की व्युत्पत्ति कहां से हुई
है?
उत्तर:
'लोकतंत्र' (Democracy) शब्द ग्रीक भाषा के दो
शब्दों 'Demos' (जनता) और 'Kratos' (शासन)
से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है 'जनता
का शासन'।
प्रश्न 3:
भारतीय लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर:
भारतीय लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- जनता की संप्रभुता (Sovereignty
of the People)
- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal
Adult Franchise)
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव (Free
and Fair Elections)
- कानून का शासन (Rule
of Law)
- मौलिक अधिकारों की गारंटी (Fundamental
Rights)
- बहुलतावादी समाज और विविधता (Pluralistic
Society)
प्रश्न 4:
भारत में लोकतंत्र के कौन-कौन से प्रकार प्रचलित हैं?
उत्तर:
भारत में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र (Indirect
Democracy) या प्रतिनिधि लोकतंत्र (Representative
Democracy) लागू है, जहां जनता अपने
प्रतिनिधियों को चुनती है और वे उनके लिए नीतियां और कानून बनाते हैं।
प्रश्न 5:
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कौन-सी
संस्था जिम्मेदार है?
उत्तर:
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन
आयोग (Election Commission of India) जिम्मेदार
है, जिसे अनुच्छेद 324 के तहत शक्तियां
प्रदान की गई हैं।
प्रश्न 6:
भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक तत्वों को किन अनुच्छेदों में
व्यक्त किया गया है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक तत्वों को निम्नलिखित अनुच्छेदों
में व्यक्त किया गया है:
- अनुच्छेद 326:
वयस्क मताधिकार का अधिकार।
- अनुच्छेद 324:
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के संचालन के लिए चुनाव आयोग का
गठन।
- अनुच्छेद 19:
अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 21:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
प्रश्न 7:
भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र (Direct Democracy) क्यों लागू नहीं है?
उत्तर:
भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है
क्योंकि:
- जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा है।
- विविधता और बहुलतावाद के कारण सभी
नीतिगत निर्णयों पर प्रत्यक्ष भागीदारी कठिन है।
- बड़े और विविध समाज में सीधी
भागीदारी संभव नहीं होती।
प्रश्न 8:
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र (Indirect Democracy) के
प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:
1. संसदीय
लोकतंत्र (Parliamentary Democracy): कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है।
2. राष्ट्रपति
प्रणाली (Presidential Democracy): कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।
3. अर्ध-राष्ट्रपति
प्रणाली (Semi-Presidential Democracy): राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 9:
भारत में संसदीय लोकतंत्र की क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर:
भारत में संसदीय लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं हैं:
- कार्यपालिका विधायिका के प्रति
उत्तरदायी होती है।
- प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद को
संसद का विश्वास प्राप्त करना आवश्यक होता है।
- राष्ट्रपति नाममात्र का प्रमुख
होता है और वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के पास होती है।
प्रश्न 10:
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने लोकतंत्र पर क्या विचार प्रस्तुत किए थे?
उत्तर:
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान सभा में 25 नवंबर
1949 को दिए अपने ऐतिहासिक भाषण में कहा:
- "राजनीतिक लोकतंत्र
तभी स्थायी हो सकता है जब सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को सुनिश्चित किया
जाए।"
- उन्होंने नायक पूजा (Hero
Worship) के खतरों से भी आगाह
किया और लोकतंत्र को सुरक्षित रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रश्न 11:
भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष की क्या भूमिका होती है?
उत्तर:
भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष:
- सरकार की नीतियों पर निगरानी रखता
है।
- सरकार को जनता के प्रति उत्तरदायी
बनाता है।
- लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखने
में सहायता करता है।
प्रश्न 12:
1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए कौन-सा
महत्वपूर्ण निर्णय दिया था?
उत्तर:
विनीत नारायण बनाम भारत संघ (Vineet Narain v. Union of
India, 1997) में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतंत्र की रक्षा के
लिए सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों को स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने
के निर्देश दिए।
प्रश्न 13:
भारतीय लोकतंत्र में 'कानून का शासन' का क्या महत्व है?
उत्तर:
'कानून का शासन' का अर्थ है कि:
- कानून सभी नागरिकों के लिए समान
है।
- कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून
से ऊपर नहीं है।
- सभी सरकारी कार्य संविधान और
कानून के अनुसार होने चाहिए।
प्रश्न 14:
भारत में लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए मौलिक अधिकारों की क्या
भूमिका है?
उत्तर:
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights):
- नागरिकों को स्वतंत्रता,
समानता और न्याय की गारंटी देते हैं।
- सरकार के निरंकुश आचरण पर रोक
लगाते हैं।
- लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाते हैं।
प्रश्न 15:
भारत में बहुदलीय प्रणाली लोकतंत्र को कैसे मजबूत करती है?
उत्तर:
बहुदलीय प्रणाली लोकतंत्र को मजबूत करती है:
- विभिन्न विचारधाराओं और नीतियों
को प्रतिनिधित्व मिलता है।
- सत्ता परिवर्तन और प्रतिस्पर्धा
से लोकतांत्रिक प्रक्रिया गतिशील रहती है।
- जनता के पास विभिन्न विकल्प होते
हैं।
“भारतीय लोकतंत्र
जनता की भागीदारी, समानता और कानून के शासन पर
आधारित है। संविधान में दिए गए प्रावधान लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने और भारत
को एक समावेशी और सशक्त लोकतंत्र बनाने में सहायक हैं।“