मुख्य बिन्दु
- यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट
द्वारा सुने गए एक हालिया मामले से संबंधित है, जिसमें एक 27 वर्षीय महिला को अपनी पसंद के
व्यक्ति से विवाह करने के लिए संरक्षण प्रदान किया गया।
- कोर्ट ने परिवार की आपत्ति को
"निंदनीय" करार दिया और कहा कि वयस्कों को संविधान के अनुच्छेद 21
के तहत जीवनसाथी चुनने का अधिकार है।
- परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी
पर रोक लगाई गई, जिन्होंने महिला
द्वारा दर्ज कराए गए मुकदमे को रद्द करने की याचिका दाखिल की थी।
- अगली सुनवाई 18
जुलाई, 2025 को निर्धारित है, और यह मामला संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक मानदंडों के बीच के अंतर
को उजागर करता है।
मामला का संक्षिप्त विवरण
इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने एक 27 वर्षीय महिला को संरक्षण
प्रदान किया, जो अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के कारण
अपहरण की धमकी से डर रही थी। कोर्ट ने परिवार की आपत्ति को निंदनीय करार देते हुए
कहा कि वयस्कों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवनसाथी
चुनने का अधिकार है। कोर्ट ने परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई,
जिन्होंने मुकदमे को रद्द करने की याचिका दाखिल की थी, और उन्हें महिला के जीवन में हस्तक्षेप करने से मना किया। अगली सुनवाई 18
जुलाई, 2025 को होगी।
पूरा मामला क्या है?
यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सुने गए एक हालिया मामले की जानकारी प्रदान करता है, जिसमें एक 27 वर्षीय महिला को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के लिए संरक्षण प्रदान किया गया। यह मामला संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक मानदंडों के बीच के अंतर को उजागर करता है, और कोर्ट ने परिवार की आपत्ति को "निंदनीय" करार दिया।
मामला की पृष्ठभूमि
यह
मामला मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश से संबंधित है,
जहां एक 27 वर्षीय महिला ने अपनी पसंद के युवक
से विवाह करने का निर्णय लिया। उसने अपने परिवार और तीन अन्य व्यक्तियों पर अपहरण
की धमकी देने का आरोप लगाते हुए चिल्ह थाने में मुकदमा दर्ज कराया। परिवार के
सदस्यों, विशेष रूप से उसके पिता और भाई, ने इस मुकदमे को रद्द करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
कोर्ट का निर्णय
इलाहाबाद
हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जेजे
मुनीर और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि शामिल थे, ने इस
मामले को 17 जून, 2025 को सुना। कोर्ट
ने निम्नलिखित निर्णय लिए:
- महिला को संरक्षण:
कोर्ट ने महिला को संरक्षण प्रदान किया, क्योंकि
वह अपहरण की धमकी से डर रही थी।
- परिवार की आपत्ति की निंदा:
कोर्ट ने परिवार की आपत्ति को "निंदनीय" करार दिया
और कहा कि वयस्कों को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत
जीवनसाथी चुनने का अधिकार है।
- गिरफ्तारी पर रोक:
परिवार के सदस्यों (याचिकाकर्ताओं) की गिरफ्तारी पर अगले आदेश
तक रोक लगा दी गई, जिन्होंने मुकदमे को रद्द करने की
याचिका दाखिल की थी।
- हस्तक्षेप पर प्रतिबंध:
कोर्ट ने परिवार को महिला के जीवन में किसी भी प्रकार के
हस्तक्षेप से सख्ती से मना किया और निर्देश दिया कि वे सीधे या किसी माध्यम
से उससे संपर्क न करें।
- नोटिस और अगली सुनवाई: राज्य सरकार और अन्य प्राधिकारियों को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया। मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई, 2025 को निर्धारित है।
कानूनी आधार
कोर्ट
ने अपने निर्णय में संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला
दिया, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी
देता है। इस अधिकार के तहत वयस्कों को अपनी पसंद के जीवनसाथी के साथ रहने और विवाह
करने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि सामाजिक मानदंड संविधान के
अधिकारों के खिलाफ नहीं हो सकते, और इस "मूल्य
अंतर" को उजागर किया, जो संवैधानिक और सामाजिक
मानदंडों के बीच मौजूद है।
अतिरिक्त कथन
यह
मामला उन कई मामलों में से एक है, जहां इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने वयस्कों के जीवनसाथी चुनने के अधिकार की रक्षा की है। यह अधिकार विशेष
रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण हो जाता है, जहां परिवार या
समाज की आपत्ति के कारण खतरा उत्पन्न होता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि संविधान
व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है, और सामाजिक मानदंड
इस अधिकार को सीमित नहीं कर सकते।