भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का अध्याय-1 प्रारम्भिक (Preliminary): धारा 3- निर्देशों का अर्थ लगाना (construction of References)
भारतीय नागरिक
सुरक्षा संहिता, 2023: धारा 3- निर्देशों का अर्थ लगाना (Construction of References)
(1)
जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, किसी विधि
में किसी मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट या द्वितीय वर्ग
मजिस्ट्रेट के प्रति किसी निर्देश को, किसी क्षेत्र के संबंध
में, ऐसे क्षेत्र में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले,
यथास्थिति, प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या
द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश के रूप में समझा जाएगा।
(2)
जहां इस संहिता के अलावा किसी अन्य कानून के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा किए जाने वाले
कार्य निम्नलिखित मामलों से संबंधित हैं,?
(क)
जिसमें साक्ष्य का मूल्यांकन या स्थानांतरण या किसी ऐसे निर्णय का निर्माण शामिल
है जो किसी व्यक्ति को किसी दंड या दंड के लिए उजागर करता है या जांच,
जांच या परीक्षण लंबित हिरासत में रखता है या उसे किसी न्यायालय के
समक्ष परीक्षण के लिए भेजने का प्रभाव पड़ता है, वे इस
संहिता के प्रावधानों के अधीन, न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा
प्रयोक्तव्य होंगे; या
(ख)
जो प्रकृति में प्रशासनिक या कार्यकारी हैं, जैसे
लाइसेंस प्रदान करना, लाइसेंस का निलंबन या रद्द करना,
अभियोजन को मंजूरी देना या अभियोजन से वापस लेना, वे खंड 'क' के प्रावधानों के अधीन एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा
प्रयोग किए जा सकेंगे।
संक्षिप्त विवरण
धारा 3
कानूनी ढांचे के भीतर मजिस्ट्रेटों के संदर्भों के निर्माण को संबोधित करती है। यह
स्पष्ट करता है कि, जब तक अन्यथा न कहा जाए,
कानून में मजिस्ट्रेटों के संदर्भ न्यायिक मजिस्ट्रेटों से संबंधित
हैं। यह उनके द्वारा संभाले जाने वाले मामलों की प्रकृति के आधार पर न्यायिक और
कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के कार्यों के बीच अंतर भी करता है।
उदाहरण
उदाहरण के लिए,
अगर किसी मामले में यह तय करना शामिल है कि किसी व्यक्ति को ट्रायल
के लिए हिरासत में लिया जाना चाहिए या नहीं, तो यह न्यायिक
मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसके विपरीत, अगर
कोई मामला व्यवसाय लाइसेंस के निलंबन से संबंधित है, तो इसे
कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा निपटाया जाएगा।
सारांश
भारतीय नागरिक
सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 3 स्पष्ट करती है कि कानून
में मजिस्ट्रेट के संदर्भों की व्याख्या कैसे की जानी चाहिए। यह न्यायिक और
कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को सौंपे गए विशिष्ट कार्यों को रेखांकित करता है, जिससे कानूनी कार्यवाही और प्रशासनिक कार्यों में स्पष्टता सुनिश्चित होती
है।
अक्सर पूछे जाने
वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 3 क्या कहती है?
उत्तर:
धारा 3
यह स्पष्ट करती है कि जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,
किसी विधि में "मजिस्ट्रेट" का संदर्भ उस क्षेत्र में
अधिकारिता रखने वाले प्रथम या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में
समझा जाएगा।
2. न्यायिक
मजिस्ट्रेट के क्या कार्य होते हैं?
उत्तर:
धारा 3(2)(क) के अनुसार, न्यायिक मजिस्ट्रेट साक्ष्य का
मूल्यांकन, निर्णय निर्माण, अभियुक्त
को दंडित करने या हिरासत में रखने, तथा परीक्षण के लिए
संदर्भित करने जैसे कार्यों को संभालते हैं।
3. कार्यकारी
मजिस्ट्रेट किन मामलों को संभालता है?
उत्तर:
धारा 3(2)(ख) के अनुसार, कार्यकारी मजिस्ट्रेट प्रशासनिक और
कार्यकारी कार्यों को संभालता है, जैसे लाइसेंस जारी करना,
निलंबन या रद्द करना, अभियोजन को मंजूरी देना
या अभियोजन से वापस लेना।
4. न्यायिक
और कार्यकारी मजिस्ट्रेट के बीच अंतर क्या है?
उत्तर:
न्यायिक मजिस्ट्रेट आपराधिक मामलों की सुनवाई और साक्ष्यों के मूल्यांकन से
संबंधित होते हैं, जबकि कार्यकारी मजिस्ट्रेट
प्रशासनिक निर्णय लेते हैं, जैसे लाइसेंस जारी करना या
अभियोजन को अनुमति देना।
5. धारा 3
का कानूनी प्रणाली में क्या महत्व है?
उत्तर:
यह धारा स्पष्टता प्रदान करती है कि कानून में "मजिस्ट्रेट" शब्द का
क्या अर्थ है और इससे न्यायिक एवं कार्यकारी मजिस्ट्रेटों के कर्तव्यों का स्पष्ट
विभाजन होता है, जिससे प्रशासनिक और न्यायिक प्रक्रियाओं
में कोई भ्रम न रहे।