7 मई 2025:
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत अपराध है, भले ही यह धारा 376 (दुष्कर्म) के दायरे में न आए। कोर्ट ने यह भी कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामले में ऐसी हरकत को क्रूरता माना जाएगा और इसके लिए दहेज की विशेष मांग का आरोप होना जरूरी नहीं है।
न्यायमूर्ति अरुण
कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने यह टिप्पणी इमरान खान उर्फ अशोक रत्न की याचिका पर
सुनवाई के दौरान की। याचिका में आरोपी ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द
करने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर
दिया और आरोपी को नियमानुसार जमानत अर्जी दाखिल करने का निर्देश दिया।
मामले का विवरण
पीड़िता ने
प्रयागराज के शिवकुटी थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी,
जिसमें उसने अपने पति पर दहेज उत्पीड़न और अप्राकृतिक यौन संबंध
बनाने का आरोप लगाया था। याचिका में आरोपी का तर्क था कि चूंकि वह और शिकायतकर्ता
पति-पत्नी हैं, इसलिए धारा 377 के तहत
अपराध नहीं बनता। साथ ही, दहेज की कोई विशेष मांग नहीं होने
का दावा किया गया।
कोर्ट का निर्णय और तर्क
हाई कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट के नवतेज सिंह जोहर मामले (2018) सहित
अन्य फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सहमति के साथ दो बालिग व्यक्तियों के बीच
अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध नहीं है। हालांकि, बिना सहमति के
अप्राकृतिक यौन संबंध, चाहे वह पत्नी के साथ हो, नाबालिग के साथ हो, या जानवर के साथ, धारा 377 के तहत अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने स्पष्ट
किया कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को केवल सहमति आधारित
अप्राकृतिक यौन संबंधों के लिए असंवैधानिक घोषित किया है, लेकिन
बिना सहमति के मामलों में यह लागू रहता है।
कोर्ट ने यह भी कहा
कि मेडिकल जांच से इनकार करना किसी मामले को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता।
पीड़िता के बयान में बताई गई क्रूरता ही दहेज उत्पीड़न के लिए पर्याप्त है,
और इसके लिए दहेज की विशेष मांग का सबूत जरूरी नहीं है।
सेक्स की परिभाषा पर कोर्ट की टिप्पणी
हाई कोर्ट ने सेक्स
की परिभाषा पर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि स्त्री-पुरुष के बीच यौन
संबंध को नैसर्गिक माना जाता है, जबकि अन्य तरीके
नैसर्गिक नहीं हैं। हालांकि, कानून में बदलाव के बाद
समलैंगिक यौन संबंधों को भी सहमति के आधार पर नैसर्गिक माना गया है। कोर्ट ने यह
भी जोड़ा कि भारत सहित विश्व ने सेक्स की नई परिभाषा को स्वीकार किया है, जिसमें सहमति एक महत्वपूर्ण कारक है।
याचिका खारिज,
जमानत का रास्ता
कोर्ट ने याची के
तर्कों को भ्रामक करार देते हुए उसके खिलाफ दर्ज मामले में हस्तक्षेप करने से
इनकार कर दिया। साथ ही, आरोपी को जमानत के लिए उचित
कानूनी प्रक्रिया अपनाने का निर्देश दिया।
मामले का महत्व
यह फैसला वैवाहिक
रिश्तों में सहमति की अहमियत को रेखांकित करता है और यह स्पष्ट करता है कि
पति-पत्नी का रिश्ता होने के बावजूद, बिना
सहमति के अप्राकृतिक यौन संबंध कानूनन अपराध है। यह निर्णय दहेज उत्पीड़न और
वैवाहिक क्रूरता के मामलों में पीड़ित महिलाओं को कानूनी संरक्षण प्रदान करने की
दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।