सुप्रीम
कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे परिवार को बड़ी राहत दी है,
जो भारत में रह रहा था और उसे पाकिस्तान भेजने की प्रक्रिया शुरू हो
गई थी। इस परिवार का दावा है कि उनके पास वैध भारतीय पासपोर्ट, आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज हैं, जो यह साबित करते
हैं कि वे भारतीय नागरिक हैं। आइए, इस मामले को विस्तार से
समझते हैं।
क्या
है मामला?
- पृष्ठभूमि:
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के
पहलगाम में एक आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 लोग मारे गए। इस हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों के
लिए सख्त कदम उठाए। सरकार ने सभी पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए और
उन्हें देश छोड़ने का आदेश दिया। 27 अप्रैल तक सामान्य
वीजा और 29 अप्रैल तक मेडिकल वीजा वालों को भारत छोड़ना
था।
- परिवार की स्थिति:
इस मामले में एक परिवार, जिसका नेतृत्व
अहमद तारिक बट्ट नाम के व्यक्ति ने किया, ने सुप्रीम
कोर्ट में याचिका दायर की। यह परिवार बेंगलुरु में रहता है और इसमें छह सदस्य
हैं: अहमद तारिक बट्ट, उनके माता-पिता (तारिक मशकूर
बट्ट और नुसरत बट्ट), बहन (आयशा तारिक), और दो भाई (अबुबकर तारिक और उमर तारिक)।
- परिवार का दावा:
परिवार का कहना है कि वे भारतीय नागरिक हैं। उनके पास भारतीय
पासपोर्ट, आधार कार्ड, पैन कार्ड
और अन्य वैध दस्तावेज हैं। अहमद तारिक बट्ट ने बताया कि वह बेंगलुरु में एक
आईटी कंपनी में काम करते हैं और उन्होंने केरल के आईआईएम कोझिकोड से पढ़ाई की
है। परिवार का कहना है कि उन्हें गलत तरीके से पाकिस्तानी नागरिक मानकर वाघा
बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान भेजने की कोशिश की जा रही है।
- गिरफ्तारी और कार्रवाई:
परिवार का आरोप है कि 29 अप्रैल 2025
को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उनके माता-पिता, बहन और छोटे भाई को अवैध रूप से हिरासत में लिया। इसके बाद,
30 अप्रैल को उन्हें वाघा बॉर्डर ले जाया गया, जहां से उन्हें पाकिस्तान भेजने की तैयारी थी।
सुप्रीम
कोर्ट ने क्या किया?
- याचिका पर सुनवाई:
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर
सिंह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। परिवार ने कोर्ट से गुहार लगाई कि
उनके दस्तावेज वैध हैं और उन्हें गलत तरीके से पाकिस्तान भेजा जा रहा है।
सुप्रीम
कोर्ट का आदेश:
1. निर्वासन
पर रोक: सुप्रीम कोर्ट ने परिवार को पाकिस्तान
भेजने की प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा कि जब तक परिवार के
दस्तावेजों की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनके खिलाफ कोई
सख्त कदम (जैसे निर्वासन) नहीं उठाया जाएगा।
2. दस्तावेजों
की जांच: कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश
दिया कि वे परिवार के भारतीय पासपोर्ट, आधार कार्ड और अन्य
दस्तावेजों की सत्यता की जांच करें। यह जांच यह तय करेगी कि परिवार वाकई भारतीय
नागरिक है या नहीं।
3. मानवीय
दृष्टिकोण: कोर्ट ने कहा कि यह मामला मानवीय पहलुओं
से जुड़ा है। इसलिए, बिना जांच के किसी को देश से बाहर नहीं
भेजा जा सकता।
4. हाई
कोर्ट का विकल्प: कोर्ट ने परिवार को सलाह दी
कि अगर दस्तावेजों की जांच के बाद भी कोई समस्या रहती है, तो
वे जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।
परिवार
की कहानी
- पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता अहमद तारिक बट्ट के पिता तारिक मशकूर बट्ट मूल रूप
से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के मीरपुर के निवासी
हैं, जबकि उनकी मां नुसरत बट्ट श्रीनगर में पैदा हुई
हैं। परिवार का कहना है कि वे 2000 में सीमा पार करके
श्रीनगर आए और तब से भारत में रह रहे हैं।
- वर्तमान स्थिति:
अहमद तारिक बट्ट कई सालों से बेंगलुरु में रह रहे हैं और एक
आईटी कंपनी में नौकरी करते हैं। उनके पास भारतीय पासपोर्ट है, जिसमें जन्म स्थान श्रीनगर दर्ज है। परिवार का कहना है कि वे भारत
में पूरी तरह से बसे हुए हैं और उनके पास सभी वैध दस्तावेज हैं।
क्यों
उठा यह विवाद?
- पहलगाम हमले का असर:
पहलगाम हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया। भारत
सरकार ने सुरक्षा कारणों से सभी पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश
दिया। इस दौरान कई लोगों को, जिनके पास भारतीय दस्तावेज
थे, भी नोटिस जारी किए गए।
- दस्तावेजों पर सवाल:
सरकार का कहना है कि कुछ लोग वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी
भारत में रह रहे हैं। हालांकि, इस परिवार का दावा है कि
उनके पास वीजा नहीं, बल्कि भारतीय नागरिकता के दस्तावेज
हैं, इसलिए उन्हें भेजना गलत है।
- सॉलिसिटर जनरल की दलील:
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला
वीजा उल्लंघन से जुड़ा हो सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि परिवार को संबंधित
अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए। लेकिन परिवार के वकील ने कहा कि उन्हें
बिना उचित जांच के हिरासत में लिया गया, जो गलत है।
क्या
है खास?
- मानवीय पहलू:
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सिर्फ कानूनी नजरिए से नहीं,
बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी देखा। कोर्ट ने कहा कि नागरिकता
जैसे संवेदनशील मामले में जल्दबाजी नहीं की जा सकती।
- दस्तावेजों की जांच:
यह मामला इस बात पर निर्भर करता है कि परिवार के दस्तावेज
(पासपोर्ट, आधार आदि) कितने वैध हैं। अगर जांच में ये
दस्तावेज सही पाए गए, तो परिवार को भारत में रहने की
अनुमति मिल सकती है।
- अन्य मामलों के लिए नजीर नहीं:
कोर्ट ने साफ किया कि यह आदेश सिर्फ इस परिवार के लिए है और
इसे अन्य मामलों के लिए उदाहरण के रूप में नहीं लिया जाएगा।
आगे
क्या होगा?
- जांच का इंतजार:
अब संबंधित अधिकारी (जैसे गृह मंत्रालय या पासपोर्ट कार्यालय)
परिवार के दस्तावेजों की जांच करेंगे। इसमें यह देखा जाएगा कि उनके पासपोर्ट
और अन्य दस्तावेज असली हैं या नहीं।
- हाई कोर्ट का रास्ता:
अगर जांच के बाद परिवार को कोई शिकायत रहती है, तो वे जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट जा सकते हैं।
- सरकार का रुख:
सरकार ने पहलगाम हमले के बाद सख्ती दिखाई है, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद उसे इस मामले में सावधानी बरतनी होगी।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट का यह फैसला उन लोगों के लिए राहत की खबर है, जो
भारत में रह रहे हैं और अपने भारतीय नागरिक होने का दावा कर रहे हैं। यह मामला
दिखाता है कि कानून और मानवीयता के बीच संतुलन बनाना कितना जरूरी है। परिवार को
अभी पूरी तरह से राहत नहीं मिली है, क्योंकि दस्तावेजों की
जांच बाकी है। लेकिन कोर्ट के इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि बिना उचित जांच
के किसी को देश से बाहर नहीं भेजा जाएगा।