सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि गैंगरेप के
मामले में अगर यह साबित हो जाता है कि सभी आरोपियों का इरादा एक ही था (साझा मंशा),
तो भले ही बलात्कार का कृत्य केवल एक व्यक्ति ने किया हो, सभी आरोपी गैंगरेप के लिए दोषी माने जाएंगे। इसका मतलब है कि अपराध में
शामिल हर व्यक्ति को सजा मिलेगी, चाहे उसने खुद बलात्कार
किया हो या नहीं। यह फैसला 1 मई 2025 को
मध्य प्रदेश के एक पुराने गैंगरेप मामले में सुनाया गया।
क्या है पूरा मामला?
- घटना:
जून 2004 में मध्य प्रदेश में एक महिला
के साथ अपहरण और गैंगरेप की घटना हुई। पीड़िता एक शादी समारोह से लौट रही थी,
तभी उसका अपहरण कर लिया गया और उसे कई जगहों पर गलत तरीके से
रखा गया।
- आरोप:
पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि दो लोगों, जलंधर कोल और राजू, ने उसके साथ बलात्कार किया।
- मुकदमा:
पुलिस ने 13 गवाहों के बयान लिए, जिनमें पीड़िता, उसके पिता और जांच अधिकारी
शामिल थे। निचली अदालत ने दोनों आरोपियों को गैंगरेप, अपहरण
और गैरकानूनी तरीके से बंदी बनाने के लिए दोषी ठहराया।
- जलंधर कोल को 10
साल की सजा मिली।
- राजू को आजीवन कारावास की सजा
सुनाई गई।
- हाईकोर्ट का फैसला:
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया।
जलंधर कोल ने इस फैसले को चुनौती नहीं दी, लेकिन राजू
ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने
अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बातें कही:
1. साझा
मंशा का नियम:
o कोर्ट
ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(g)
के तहत, अगर एक से ज्यादा लोग मिलकर अपराध
करते हैं और उनका इरादा एक जैसा है, तो यह जरूरी नहीं कि हर
व्यक्ति ने बलात्कार किया हो।
o अगर
एक व्यक्ति ने बलात्कार किया और बाकी लोग उसका साथ दे रहे थे,
तो भी सभी गैंगरेप के लिए दोषी होंगे।
o इस
मामले में, भले ही FIR में
सिर्फ जलंधर कोल का नाम बलात्कारी के तौर पर था, लेकिन
पीड़िता ने कोर्ट में कहा कि राजू ने भी बलात्कार किया। कोर्ट ने कहा कि अगर यह
मान भी लिया जाए कि राजू ने बलात्कार नहीं किया, तब भी वह
अपराध में शामिल था, इसलिए दोषी है।
2. पुराने
फैसले का हवाला:
o कोर्ट
ने 1989
के एक मामले (प्रमोद महतो बनाम बिहार राज्य) का उदाहरण दिया। उसमें
भी कहा गया था कि गैंगरेप में यह जरूरी नहीं कि हर आरोपी ने बलात्कार किया हो। अगर
सभी ने मिलकर अपराध की योजना बनाई और उसमें हिस्सा लिया, तो
सभी दोषी होंगे।
3. पीड़िता
की गवाही पर भरोसा:
o कोर्ट
ने कहा कि पीड़िता के बयान में कुछ छोटी-मोटी असमानताएं हो सकती हैं,
लेकिन उसकी पूरी गवाही पर भरोसा किया जा सकता है।
o कोर्ट
ने यह भी कहा कि पीड़िता के बयान को साबित करने के लिए अतिरिक्त सबूतों की जरूरत
नहीं होती, अगर उसका बयान विश्वसनीय हो।
4. "टू-फिंगर टेस्ट" की आलोचना:
o कोर्ट
ने इस मामले में "टू-फिंगर टेस्ट" (जांच के लिए पीड़िता के शरीर की जांच
का एक पुराना तरीका) के इस्तेमाल पर नाराजगी जताई। इसे "अमानवीय" और
"अपमानजनक" बताया।
o कोर्ट
ने कहा कि किसी महिला का यौन इतिहास अपराध के मामले से कोई लेना-देना नहीं है। यह
सोच गलत है कि यौन रूप से सक्रिय महिला की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
5. SC/ST
एक्ट में राहत:
o राजू
पर SC/ST
एक्ट के तहत भी आरोप था, लेकिन कोर्ट ने इसे
हटा दिया। कारण यह था कि यह साबित नहीं हुआ कि अपराध पीड़िता की जाति की वजह से
किया गया था।
o कोर्ट
ने कहा कि SC/ST एक्ट तभी लागू होता है, जब अपराध और पीड़िता की जाति के बीच सीधा संबंध हो।
6. सजा
में बदलाव:
o कोर्ट
ने राजू की आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 10 साल की
सजा कर दिया, क्योंकि सह-आरोपी जलंधर कोल को भी 10 साल की सजा मिली थी।
o बाकी
सभी IPC
धाराओं (गैंगरेप, अपहरण आदि) में राजू की
दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया।
इस फैसले का क्या
महत्व है?
1. साझा
मंशा पर जोर:
o यह
फैसला गैंगरेप के मामलों में "साझा मंशा" को और मजबूत करता है। अगर कोई
व्यक्ति अपराध में शामिल है, भले ही उसने सीधे
बलात्कार न किया हो, वह उतना ही दोषी होगा।
2. पीड़िता
की गवाही को तवज्जो:
o कोर्ट
ने फिर से यह साफ किया कि बलात्कार के मामलों में पीड़िता की गवाही सबसे
महत्वपूर्ण है। छोटी-मोटी असमानताएं उसकी विश्वसनीयता को कम नहीं करतीं।
3. टू-फिंगर
टेस्ट पर रोक:
o कोर्ट
ने एक बार फिर इस अमानवीय प्रथा की निंदा की, जो
पीड़िता के सम्मान को ठेस पहुंचाती है। यह भविष्य में ऐसी प्रथाओं पर रोक लगाने
में मदद करेगा।
4. SC/ST
एक्ट का सही इस्तेमाल:
o कोर्ट
ने यह साफ किया कि SC/ST एक्ट का इस्तेमाल तभी
हो सकता है, जब अपराध और जाति के बीच स्पष्ट संबंध हो। यह
गलत तरीके से इस कानून के दुरुपयोग को रोकेगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का
यह फैसला गैंगरेप के मामलों में कानूनी दृष्टिकोण को और स्पष्ट करता है। यह
सुनिश्चित करता है कि अपराध में शामिल सभी लोग, चाहे उनकी
भूमिका कितनी भी छोटी हो, सजा से नहीं बच सकते। साथ ही,
यह पीड़िता की गवाही को मजबूती देता है और अमानवीय जांच प्रथाओं की
आलोचना करता है। इस फैसले से भविष्य में ऐसे मामलों में न्याय मिलने की प्रक्रिया
और मजबूत होगी।