7 मई 2025
सुप्रीम कोर्ट ने
एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि किसी अन्य धर्म के अनुष्ठान में भाग लेना
या उसका पालन करना यह नहीं दर्शाता कि व्यक्ति ने अपना मूल धर्म त्याग दिया है। इस
टिप्पणी के साथ कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया,
जिसमें सीपीआई (एम) विधायक ए. राजा का 2021 का
विधानसभा चुनाव रद्द कर दिया गया था।
मामला और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जस्टिस ए.एस. ओका
और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने ए. राजा की अपील पर सुनवाई करते
हुए केरल हाईकोर्ट के 23 मार्च 2023 के फैसले को पलट दिया। केरल हाईकोर्ट ने राजा के चुनाव को इस आधार पर रद्द
किया था कि वह केरल में 'हिंदू पारायण' समुदाय का सदस्य नहीं है और इसलिए हिंदुओं में अनुसूचित जाति के लिए
आरक्षित देवीकुलम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने
प्रतिवादी के इस दावे को खारिज कर दिया कि राजा ने बपतिस्मा लेकर ईसाई धर्म अपना
लिया था। कोर्ट ने पाया कि बपतिस्मा का दावा करने वाले व्यक्ति की उम्र उस समय
मात्र 14
वर्ष थी, और बपतिस्मा रजिस्टर की प्रविष्टियां
अस्पष्ट व अविश्वसनीय थीं। कोर्ट ने कहा कि किसी अन्य धर्म के अनुष्ठान में भाग
लेने का मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति उस धर्म को मानने लगा है।
कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस अहसानुद्दीन
अमानुल्लाह ने फैसले में लिखा, "किसी धर्म के
अनुष्ठान का पालन करने से यह स्वतः नहीं माना जा सकता कि व्यक्ति उस धर्म को मानता
है। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 में 'मानता' शब्द का उपयोग इस बात को दर्शाता है कि
व्यक्ति को दूसरे धर्म के सिद्धांतों को अपनी जीवनशैली और विश्वास का आधार बनाना
होगा। बिना स्पष्ट इरादे के किसी अनुष्ठान में भाग लेना मूल धर्म को त्यागने के
बराबर नहीं है।"
हिंदू पारायण जाति का मुद्दा
कोर्ट ने यह भी
जांचा कि क्या राजा केरल में हिंदू पारायण जाति से संबंधित हैं और क्या वह संविधान
(अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के तहत पात्र हैं।
इसके लिए दो शर्तें निर्धारित की गईं:
1. हिंदू
पारायण जाति से संबंधित होना।
2. 1950
के आदेश की तिथि पर स्वयं या पूर्वजों के माध्यम से केरल का स्थायी
निवासी होना।
कोर्ट ने पाया कि
राजा के दादा-दादी त्रावणकोर-कोचीन (वर्तमान केरल) में हिंदू पारायण जाति के थे,
जो 1950 से पहले तमिलनाडु से आए थे। इसके
अलावा, राजा के पक्ष में जारी जाति प्रमाण-पत्र आज भी वैध है
और इसे न तो हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी और न ही प्राधिकारी द्वारा रद्द किया
गया था।
साक्ष्य और तर्क
कोर्ट ने प्रतिवादी
द्वारा पेश किए गए फोटोग्राफ और कुछ अनुष्ठानों को अपर्याप्त सबूत माना। कोर्ट ने
कहा कि राजा के बच्चों के स्कूल रिकॉर्ड में भी उनकी हिंदू पारायण जाति दर्ज है।
आज के सोशल मीडिया युग में, जहां सार्वजनिक हस्तियों की
हर गतिविधि पर नजर रहती है, किसी का धर्म या जाति छिपाना
मुश्किल है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जब जाति प्रमाण-पत्र की वैधता पर कोई
विवाद नहीं था, तो हाईकोर्ट ने चुनाव को कैसे रद्द किया।
फैसले का महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने
अपील को स्वीकार करते हुए राजा का चुनाव बहाल कर दिया। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि
जाति प्रमाण-पत्र जारी करने वाले प्राधिकारी की जांच चुनाव याचिका में नहीं की गई
थी। यह फैसला धर्म, जाति, और अनुष्ठानों की कानूनी व्याख्या के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट
करता है कि किसी अन्य धर्म के अनुष्ठान में भाग लेना स्वतः धर्म परिवर्तन का सबूत
नहीं है, और जाति प्रमाण-पत्र जैसे ठोस साक्ष्य को नजरअंदाज
नहीं किया जा सकता।
केस शीर्षक:
ए. राजा बनाम डी. कुमार | सी.ए. संख्या 2758/2023