सुप्रीम कोर्ट ने एक 32 साल पुराने मामले में 10
साल की बच्ची से बलात्कार के आरोपी को 10 साल
की जेल की सजा सुनाई है। यह मामला गुजरात का है, जहां 1991
में निचली अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया था। लेकिन 30 साल बाद गुजरात हाईकोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया, और
अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए आरोपी को जेल भेजने
का आदेश दिया है। कोर्ट ने निचली अदालत के जज के फैसले पर सवाल उठाया और उसे
"बेअकल" कहा।
क्या है पूरा मामला?
- घटना:
यह मामला 1990 का है, जब गुजरात में एक 21 साल के व्यक्ति ने खेत में
10 साल की नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया।
- प्रक्रिया:
- घटना के बाद पीड़िता को अस्पताल
ले जाया गया, जहां मेडिकल जांच में
बलात्कार की पुष्टि हुई।
- गाँव के सरपंच की मदद से पुलिस
में FIR दर्ज की गई।
- लेकिन 1991
में अहमदाबाद ग्रामीण की निचली अदालत (अडिशनल सेशन जज) ने
आरोपी को बरी कर दिया।
- आरोपी की उम्र:
घटना के समय आरोपी 21 साल का था, और अब वह 54 साल का है।
क्या हुआ इसके बाद?
- गुजरात हाईकोर्ट का फैसला:
- लगभग 30
साल बाद, 2024 में गुजरात हाईकोर्ट ने
निचली अदालत के फैसले को गलत ठहराया और उसे रद्द कर दिया।
- हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे अपराधी
को छोड़ देना समाज के लिए गलत संदेश देता है, खासकर जब पीड़िता सिर्फ 10 साल की थी।
- हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषी
ठहराया और सजा सुनाई।
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला (2
मई 2025):
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के
फैसले को बरकरार रखा और आरोपी को 10 साल
की जेल की सजा दी।
- कोर्ट ने आरोपी को एक हफ्ते के
अंदर आत्मसमर्पण (सरेंडर) करने का आदेश दिया।
- जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन
कोटिश्वर सिंह ने इस मामले में निचली अदालत के जज के फैसले पर कड़ा सवाल
उठाया।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या कहा?
1. निचली
अदालत की आलोचना:
o सुप्रीम
कोर्ट ने निचली अदालत के जज के फैसले को "बेअकल" बताया।
o कोर्ट
ने कहा कि फोरेंसिक साइंस लैब की रिपोर्ट, मेडिकल
जांच, और पीड़िता के बयान जैसे पक्के सबूत होने के बावजूद
आरोपी को बरी करना गलत था।
o कोर्ट
ने सवाल उठाया कि आखिर इतने सबूतों को नजरअंदाज कैसे किया गया।
2. न्याय
में देरी:
o कोर्ट
ने इस बात को स्वीकार किया कि इस मामले में न्याय मिलने में 32
साल की देरी हुई, लेकिन यह भी कहा कि
"भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं।"
o इसका
मतलब है कि भले ही समय लगे, लेकिन कानून अपना काम करता
है।
3. समाज
पर प्रभाव:
o सुप्रीम
कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस टिप्पणी से सहमति जताई कि अगर ऐसे अपराधियों को छोड़ दिया
जाए,
तो समाज में गलत संदेश जाता है।
o खासकर
जब मामला एक छोटी बच्ची से जुड़ा हो, तो अपराधी
को सजा देना जरूरी है।
इस फैसले का क्या
महत्व है?
1. न्याय
में देरी, लेकिन जीत:
o यह
मामला दिखाता है कि भले ही कानूनी प्रक्रिया में समय लगे,
लेकिन पीड़ित को न्याय मिल सकता है। 32 साल
बाद भी पीड़िता के पक्ष में फैसला आया।
2. निचली
अदालतों पर सवाल:
o सुप्रीम
कोर्ट ने निचली अदालत के गलत फैसले की आलोचना की, जो
भविष्य में जजों को और सावधानी से फैसले लेने के लिए प्रेरित करेगा।
o यह
सुनिश्चित करता है कि सबूतों को नजरअंदाज न किया जाए।
3. बच्चियों
के खिलाफ अपराध पर सख्ती: 10 साल की बच्ची के
साथ हुए अपराध को कोर्ट ने बहुत गंभीरता से लिया, जिससे
भविष्य में ऐसे मामलों में और सख्ती बरती जाएगी।
4. पीड़िता
के बयान और सबूतों का महत्व:
o कोर्ट
ने फिर से साबित किया कि पीड़िता का बयान और मेडिकल सबूत बहुत महत्वपूर्ण हैं।
इनके आधार पर ही आरोपी को दोषी ठहराया गया।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का
यह फैसला एक मिसाल है कि कानून समय ले सकता है, लेकिन
अपराधी को सजा जरूर मिलती है। 32 साल बाद भी पीड़िता को
न्याय मिला, और निचली अदालत के गलत फैसले को सुधारा गया। यह
फैसला समाज को यह संदेश देता है कि कोई भी अपराधी कानून से बच नहीं सकता, खासकर जब मामला बच्चों के खिलाफ अपराध का हो। साथ ही, यह निचली अदालतों को सावधानी से फैसले लेने की चेतावनी भी देता है।