सुप्रीम
कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर कोई अभ्यर्थी भर्ती विज्ञापन में बताए गए
विशिष्ट प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं करता,
तो वह आरक्षण का लाभ लेने का दावा नहीं कर सकता। यह फैसला उत्तर
प्रदेश पुलिस भर्ती में एक अभ्यर्थी के मामले में आया, जिसने
गलत प्रारूप में OBC जाति प्रमाण-पत्र जमा किया था। सुप्रीम
कोर्ट ने इस मामले में अभ्यर्थी की अपील खारिज कर दी और इलाहाबाद हाईकोर्ट के
फैसले को सही ठहराया।
मामला क्या है ?
उत्तर
प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड (UPPRPB) ने
कुछ पदों के लिए भर्ती विज्ञापन जारी किया था। विज्ञापन में साफ लिखा था कि OBC
श्रेणी के अभ्यर्थियों को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित
प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र जमा करना होगा। ऐसा न करने पर अभ्यर्थी को अनारक्षित
(जनरल) श्रेणी में माना जाएगा।
मोहित
कुमार नाम के एक अभ्यर्थी ने इस भर्ती के लिए आवेदन किया। उसने OBC
जाति प्रमाण-पत्र तो जमा किया, लेकिन वह
केंद्र सरकार की नौकरियों के लिए मान्य प्रारूप में था, न कि
राज्य सरकार के निर्धारित प्रारूप में। इस वजह से UPPRPB ने
उसका आवेदन OBC श्रेणी के तहत स्वीकार नहीं किया और उसे
अनारक्षित श्रेणी में माना। इससे नाराज अभ्यर्थी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट
याचिका दायर की, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे राहत देने से इनकार
कर दिया। इसके बाद अभ्यर्थी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जस्टिस
दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने अभ्यर्थी की अपील को खारिज करते हुए
कहा कि भर्ती विज्ञापन की शर्तों का पालन करना अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि अगर
अभ्यर्थी विज्ञापन में बताए गए प्रारूप में जाति प्रमाण-पत्र जमा नहीं करता,
तो भर्ती प्राधिकारी (UPPRPB) उसके आरक्षण के
दावे को ठुकरा सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ यह कहना कि अभ्यर्थी
किसी विशेष जाति से है, उसे गलत प्रारूप में प्रमाण-पत्र जमा
करने की छूट नहीं देता।
सुप्रीम
कोर्ट ने अपने फैसले में एक पुराने मामले, रजिस्ट्रार
जनरल, कलकत्ता हाईकोर्ट बनाम श्रीनिवास प्रसाद शाह (2013),
का हवाला दिया। इस मामले में भी कहा गया था कि प्रमाण-पत्र विज्ञापन
में बताए गए प्रारूप में और सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी होना चाहिए। अगर ऐसा
नहीं होता, तो अभ्यर्थी की उम्मीदवारी पर नकारात्मक असर पड़
सकता है।
कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद अदालतें आमतौर पर इसमें
हस्तक्षेप नहीं करतीं, क्योंकि भर्ती प्राधिकारी
ही प्रक्रिया का सबसे अच्छा निर्णायक होता है। कोर्ट ने अभ्यर्थियों को सलाह दी कि
वे भर्ती विज्ञापन को ध्यान से पढ़ें और उसकी सभी शर्तों का पालन करें। अगर
अभ्यर्थी ऐसा नहीं करता और अपनी समझ के आधार पर गलत दस्तावेज जमा करता है, तो बाद में वह चयन प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे सकता।
कोर्ट
ने यह भी कहा कि अभ्यर्थी को प्रमाण-पत्र के प्रारूप को लेकर कोई संदेह नहीं होना
चाहिए। अगर कोई संदेह था, तो उसे सही प्रारूप में
प्रमाण-पत्र लेने के लिए संबंधित प्राधिकारी से संपर्क करना चाहिए था। कोर्ट ने
अभ्यर्थी की इस दलील को खारिज कर दिया कि गलत प्रारूप में प्रमाण-पत्र जमा करना
सिर्फ तकनीकी गलती थी। कोर्ट ने कहा कि यह कोई छोटी-मोटी औपचारिकता नहीं है,
बल्कि भर्ती प्रक्रिया की महत्वपूर्ण शर्त है।
फैसले
का निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट ने मोहित कुमार और एक अन्य अभ्यर्थी किरण की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट
ने कहा कि UPPRPB ने सही प्रारूप में प्रमाण-पत्र
मांगकर कोई गलती नहीं की। चूंकि अभ्यर्थियों ने गलत प्रारूप में प्रमाण-पत्र जमा
किया, इसलिए उन्हें OBC श्रेणी में
आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता। कोर्ट ने उनकी अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के
फैसले को बरकरार रखा।
इस
फैसले का महत्व
यह
फैसला भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और नियमों के पालन को मजबूत करता है। यह
अभ्यर्थियों को सिखाता है कि वे भर्ती विज्ञापन की शर्तों को गंभीरता से लें और
सभी आवश्यक दस्तावेज सही प्रारूप में जमा करें। साथ ही,
यह भर्ती प्राधिकारियों को यह अधिकार देता है कि वे नियमों का पालन
न करने वाले अभ्यर्थियों के दावों को ठुकरा सकें। यह फैसला भविष्य में ऐसी भर्ती
प्रक्रियाओं में विवादों को कम करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष:
सुप्रीम
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भर्ती विज्ञापन में निर्धारित प्रारूप में जाति
प्रमाण-पत्र जमा करना अनिवार्य है। गलत प्रारूप में प्रमाण-पत्र जमा करने वाले
अभ्यर्थी आरक्षण का दावा नहीं कर सकते। यह फैसला भर्ती प्रक्रिया में नियमों के
सख्ती से पालन और निष्पक्षता को बढ़ावा देता है।
केस
टाइटल: मोहित कुमार बनाम उत्तर
प्रदेश राज्य और अन्य (और संबंधित मामला)