सशस्त्र बलों में
हथियारों का संचालन एक अत्यंत संवेदनशील और जिम्मेदारी भरा कार्य है,
जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के साथ-साथ सैन्य अनुशासन
द्वारा कड़ाई से नियंत्रित होता है। भारत में, यह प्रक्रिया
भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1959 और शस्त्र नियम, 1962 के तहत संचालित होती है, जो हथियारों के अधिग्रहण,
कब्जे, उपयोग, और परिवहन
के लिए व्यापक दिशानिर्देश प्रदान करते हैं। सशस्त्र बलों के लिए, ये कानून विशेष प्रावधानों के साथ लागू होते हैं जो उनकी परिचालन
आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हैं। इसके अतिरिक्त, सैन्य
नियम और मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs) हथियारों के
सुरक्षित और जिम्मेदार उपयोग को सुनिश्चित करती हैं। यह लेख सशस्त्र बलों में
हथियारों को संभालने की कानूनी प्रक्रियाओं की संक्षिप्त व्याख्या करता है, जिसमें कानूनी ढांचा, सैन्य प्रक्रियाएं, और जवाबदेही के पहलू शामिल हैं।
कानूनी ढांचा
सशस्त्र बलों में
हथियारों का संचालन कई कानूनी प्रावधानों द्वारा नियंत्रित होता है,
जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू होते हैं। निम्नलिखित
प्रमुख कानूनी ढांचे हैं:
1. भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1959
भारतीय शस्त्र
अधिनियम,
1959 भारत में हथियारों और गोला-बारूद के कब्जे, उपयोग, और हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाला
प्राथमिक कानून है। यह अधिनियम नागरिकों और सैन्य कर्मियों दोनों पर लागू होता है,
लेकिन सशस्त्र बलों के लिए विशेष छूट प्रदान करता है।
प्रमुख प्रावधान:
सैन्य कर्मियों को
परिचालन प्रयोजनों के लिए हथियार रखने की अनुमति है, लेकिन
इसके लिए औपचारिक लाइसेंस और प्राधिकरण आवश्यक है।
अनुच्छेद 45(b)(ii):
सशस्त्र बलों के सदस्य, जब अपने आधिकारिक
कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे होते हैं, तो हथियारों के
अधिग्रहण, कब्जे, ले जाने, निर्माण, मरम्मत, परिवर्तन,
परीक्षण, बिक्री, हस्तांतरण,
आयात, निर्यात, या
परिवहन पर अधिनियम के प्रतिबंधों से मुक्त होते हैं।
अनुच्छेद 3(2):
शस्त्र (संशोधन) अधिनियम, 2019 के अनुसार,
यदि सैन्य कर्मी के पास दो से अधिक हथियार हैं, तो उन्हें एक वर्ष के भीतर अधिशेष हथियार निकटतम पुलिस स्टेशन, लाइसेंस प्राप्त डीलर, या इकाई शस्त्रागार में जमा
करना होगा। इस अवधि के 90 दिनों बाद, अधिशेष
हथियारों का लाइसेंस रद्द हो जाता है।
अनुच्छेद 21(1):
यदि हथियारों या गोला-बारूद का कब्जा अवैध हो जाता है (उदाहरण के
लिए, लाइसेंस की समाप्ति, निलंबन,
या रद्दीकरण के कारण), तो सैन्य कर्मी को इसे
तुरंत इकाई शस्त्रागार (नौसेना जहाज या स्थापना शस्त्रागार सहित) में जमा करना
होगा।
2. भारतीय न्याय
संहिता (BNS) और सैन्य कानून
हथियारों के अवैध
उपयोग या कब्जे को भारतीय न्याय संहिता की धारा 189(4) और अन्य
प्रावधानों के तहत अपराध माना जाता है। सैन्य कर्मियों के लिए, भारतीय सेना अधिनियम, 1950, नौसेना अधिनियम,
1957, और वायु सेना अधिनियम, 1950 हथियारों के
संचालन के लिए विशिष्ट प्रक्रियाएं निर्धारित करते हैं।
प्रमुख प्रावधान:
- सैन्य कर्मियों को
अपने कर्तव्यों के दौरान हथियारों का उपयोग करने की अनुमति है,
लेकिन दुरुपआत्मरक्षा में उपयोग: सैन्य कर्मी
आत्मरक्षा के लिए हथियारों का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन
अत्यधिक या अनुपातहीन बल का उपयोग निषिद्ध है और इसके लिए कानूनी कार्रवाई हो सकती
है।
- हथियारों के
दुरुपयोग,
जैसे कदाचार या लापरवाही, के लिए कोर्ट मार्शल,
निलंबन, या सेवा से बर्खास्तगी जैसे गंभीर
परिणाम हो सकते हैं।
3. जिनेवा
कन्वेंशन और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL)
जिनेवा कन्वेंशन और
अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून युद्ध में हथियारों के उपयोग को विनियमित करते हैं।
प्रमुख प्रावधान:
- कुछ हथियारों,
जैसे रासायनिक हथियार, का उपयोग पूरी तरह
प्रतिबंधित है।
- हथियारों का उपयोग केवल वैध सैन्य लक्ष्यों के खिलाफ और नागरिकों को नुकसान कम करने के लिए किया जा सकता है।
- युद्धबंदियों और संरक्षित व्यक्तियों के खिलाफ हथियारों का उपयोग निषिद्ध है।
4. रक्षा
खरीद प्रक्रिया (DPP)
रक्षा मंत्रालय की
रक्षा खरीद प्रक्रिया हथियारों की खरीद, वितरण,
और प्रबंधन को नियंत्रित करती है।
- हथियारों को सख्त प्रक्रियात्मक
दिशानिर्देशों के अनुसार प्राप्त, संग्रहीत,
और बनाए रखा जाता है।
- यह सुनिश्चित किया जाता है कि
हथियार परिचालन के लिए तैयार हों और सुरक्षित रूप से संभाले जाएं।
सशस्त्र बलों में हथियारों को संभालने की प्रक्रियाएं
सैन्य नियमों और SOPs
हथियारों के संचालन को सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत प्रक्रियाएं
प्रदान करते हैं। ये प्रक्रियाएं अनुशासन, सुरक्षा, और परिचालन तत्परता को बढ़ावा देती हैं।
1. 1. हथियारों का प्राधिकरण और
जारी करना
प्रक्रिया |
विवरण |
जारी
करने का प्रोटोकॉल |
हथियार
सैनिकों को उनकी भूमिका, परिचालन आवश्यकताओं,
और रैंक के आधार पर कमांडिंग ऑफिसर या नामित कर्मी द्वारा जारी
किए जाते हैं। प्रत्येक हथियार का रिकॉर्ड रखा जाता है। |
हथियार
पंजीकरण |
प्रत्येक
हथियार का सीरियल नंबर पंजीकृत होता है, और
कर्मियों को इसके संचालन, रखरखाव, और
उपयोग का प्रशिक्षण दिया जाता है। |
अभिगम
नियंत्रण |
केवल
अधिकृत हथियारों का उपयोग संभव है, और
युद्ध या प्रशिक्षण के लिए स्पष्ट प्राधिकरण आवश्यक है। |
2. प्रशिक्षण और सुरक्षा प्रोटोकॉल
- अनिवार्य प्रशिक्षण:
सभी सैन्य कर्मियों को हथियारों के सुरक्षित उपयोग, भंडारण, और रखरखाव का प्रशिक्षण दिया जाता है।
यह प्रशिक्षण तकनीकी और कानूनी पहलुओं को कवर करता है।
- सुरक्षा उपाय:
हथियारों को अनलोड, सुरक्षित, और कार्यशील स्थिति में रखा जाता है।
3. युद्ध
में हथियारों का उपयोग
- संलग्नता के नियम (ROE):
ये नियम यह निर्धारित करते हैं कि हथियारों का उपयोग कब,
कैसे, और क्यों किया जा सकता है। ROE
अंतरराष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय नीतियों पर आधारित होते हैं।
- आत्मरक्षा:
सैनिक आत्मरक्षा में हथियारों का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन अत्यधिक बल का उपयोग निषिद्ध है।
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4. हथियारों
का रखरखाव और जवाबदेही
प्रक्रिया |
विवरण |
नियमित
निरीक्षण |
हथियारों
की नियमित जांच और रखरखाव सुनिश्चित करता है कि वे कार्यशील हैं। निरीक्षणों का
दस्तावेजीकरण किया जाता है। |
हथियार
भंडारण |
उपयोग
न होने पर, हथियार सुरक्षित शस्त्रागार में रखे
जाते हैं, और केवल अधिकृत कर्मियों को पहुंच होती है। |
5. दुरुपयोग और उल्लंघन
- कानूनी कार्रवाई:
हथियारों का अनधिकृत उपयोग या लापरवाही सैन्य कानून के तहत
कोर्ट मार्शल, निलंबन, या
बर्खास्तगी का कारण बन सकता है।
- आपराधिक दायित्व:
गंभीर उल्लंघन, जैसे युद्ध अपराध, BNS या अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मुकदमे का कारण बन सकते
हैं।
उदाहरण
मान लीजिए,
एक भारतीय सैनिक को परिचालन ड्यूटी के लिए एक असॉल्ट राइफल दी जाती
है। प्रक्रिया इस प्रकार होगी:
1. प्राधिकरण:
कमांडिंग ऑफिसर राइफल जारी करता है और इसका सीरियल नंबर पंजीकृत
करता है।
2. प्रशिक्षण:
सैनिक को राइफल के सुरक्षित संचालन, लोडिंग,
और अनलोडिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है।
3. युद्ध
में उपयोग: मिशन के दौरान, सैनिक
ROE के तहत राइफल का उपयोग करता है, केवल
आत्मरक्षा या अंतिम उपाय के रूप में।
4. भंडारण:
उपयोग न होने पर, राइफल सुरक्षित शस्त्रागार
में रखी जाती है।
5. निरीक्षण
और जवाबदेही: राइफल की नियमित जांच होती
है, और दुरुपयोग की स्थिति में सैनिक को कोर्ट मार्शल का
सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष
सशस्त्र बलों में
हथियारों को संभालने की कानूनी प्रक्रियाएं भारतीय शस्त्र अधिनियम,
1959, सैन्य कानूनों, और अंतरराष्ट्रीय मानवीय
कानून द्वारा सख्ती से विनियमित होती हैं। ये प्रक्रियाएं जवाबदेही, सुरक्षा, और जिम्मेदारी पर जोर देती हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि हथियारों का उपयोग केवल सैन्य नियमों और कानून
की सीमाओं के भीतर हो। सैन्य कर्मियों को व्यापक प्रशिक्षण और सख्त प्रोटोकॉल के
माध्यम से हथियारों के सुरक्षित और प्रभावी उपयोग के लिए तैयार किया जाता है।
हथियारों के दुरुपयोग से गंभीर कानूनी और अनुशासनात्मक परिणाम हो सकते हैं,
जो सशस्त्र बलों में अनुशासन और नैतिकता के उच्च मानकों को बनाए
रखते हैं।