जब कोई सैनिक युद्ध के मैदान में दुश्मन के हाथों पकड़ा जाता है,
तो उसे युद्ध बंदी (Prisoner of War - POW) माना
जाता है। इस स्थिति में, अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून,
विशेष रूप से जिनेवा कन्वेंशन, युद्ध बंदियों
के साथ मानवीय और सम्मानजनक व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश
प्रदान करता है। भारत, एक जिम्मेदार वैश्विक राष्ट्र के रूप
में, इन अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करता है और अपने
सैनिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इस लेख में, हम विस्तार से समझेंगे कि युद्ध बंदी के रूप में पकड़े गए सैनिक के लिए
क्या प्रोटोकॉल हैं और भारतीय संदर्भ में इनका क्या महत्व है।
युद्ध बंदी के साथ व्यवहार के अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल
जिनेवा कन्वेंशन (1949) युद्ध बंदियों के उपचार के लिए आधारभूत ढांचा प्रदान करता है। ये प्रोटोकॉल सुनिश्चित करते हैं कि युद्ध के दौरान पकड़े गए सैनिकों के साथ मानवता और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाए। आइए, इन प्रोटोकॉल को विस्तार से देखें:1. मानवीय
व्यवहार (जिनेवा कन्वेंशन, अनुच्छेद 3) 
सिद्धांत:
युद्ध बंदियों के साथ हर समय मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए। इसमें
हिंसा, यातना, अपमान, या सार्वजनिक प्रदर्शन से उनकी सुरक्षा शामिल है।
व्यवहार में:
पकड़े गए सैनिक को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया जा
सकता। उन्हें बिना मुकदमे के सजा नहीं दी जा सकती, और उनकी
गरिमा का सम्मान करना अनिवार्य है।
2. तत्काल
पंजीकरण (जिनेवा कन्वेंशन III, अनुच्छेद 70) 
सिद्धांत:
पकड़ने वाली शक्ति को युद्ध बंदी का पंजीकरण तुरंत करना होगा और
उन्हें उनके अधिकारों की जानकारी देनी होगी।
व्यवहार में:
सैनिक का नाम, रैंक, सैन्य
इकाई, और पकड़े जाने की तारीख जैसे विवरण दर्ज किए जाते हैं।
यह जानकारी अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस (ICRC) को दी जाती है,
ताकि सैनिक का पता लगाया जा सके और उनकी स्थिति की निगरानी हो सके।
3. संचार का
अधिकार (जिनेवा कन्वेंशन III, अनुच्छेद 71) 
सिद्धांत:
युद्ध बंदियों को अपने परिवार के साथ पत्राचार करने और समाचार
प्राप्त करने का अधिकार है।
व्यवहार में:
पकड़ने वाली शक्ति को पत्र भेजने और प्राप्त करने की व्यवस्था करनी
होती है। हालांकि, सुरक्षा कारणों से कुछ प्रतिबंध लागू हो
सकते हैं।
4. आवश्यक
सुविधाएं (जिनेवा कन्वेंशन III, अनुच्छेद 25) 
सिद्धांत:
युद्ध बंदियों को पर्याप्त भोजन, आश्रय,
स्वच्छता, और चिकित्सा देखभाल प्रदान की जानी
चाहिए।
व्यवहार में:
पकड़ने वाला पक्ष सैनिक की भलाई के लिए जिम्मेदार है। उन्हें स्वच्छ
रहने की जगह, पौष्टिक भोजन, और
चिकित्सा सुविधाएं दी जानी चाहिए, जो पकड़ने वाले देश के
सैनिकों को दी जाने वाली सुविधाओं से कमतर नहीं होनी चाहिए।
5. श्रम और
कार्य (जिनेवा कन्वेंशन III, अनुच्छेद 49) 
सिद्धांत:
युद्ध बंदियों से काम कराया जा सकता है, लेकिन
यह खतरनाक, अपमानजनक, या युद्ध
प्रयासों से सीधे संबंधित नहीं होना चाहिए।
व्यवहार में:
सैनिकों को शिविर के रखरखाव जैसे कार्यों में लगाया जा सकता है,
लेकिन उन्हें हथियार निर्माण या युद्ध से संबंधित कार्यों के लिए
मजबूर नहीं किया जा सकता।
6. रिहाई और
प्रत्यावर्तन (जिनेवा कन्वेंशन III, अनुच्छेद 118) 
सिद्धांत:
शत्रुता समाप्त होने के बाद, युद्ध बंदियों को
बिना देरी के रिहा कर उनके देश वापस भेजा जाना चाहिए।
व्यवहार में: युद्ध समाप्त होने पर, शांतिपूर्ण समझौते के बाद, सैनिकों को उनके देश लौटाया जाता है।
भारतीय संदर्भ में युद्ध बंदियों के अधिकार
भारत ने जिनेवा कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं और इनका पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारतीय सैनिकों के लिए युद्ध बंदी के रूप में पकड़े जाने की स्थिति में निम्नलिखित प्रावधान लागू होते हैं:1- भारत का
कानूनी ढांचा 
·       
जिनेवा कन्वेंशन अधिनियम,
1960, भारत में इन अंतरराष्ट्रीय नियमों को लागू करता है।
·       
युद्ध बंदियों के साथ
अमानवीय व्यवहार या उनके अधिकारों का उल्लंघन भारतीय न्याय संहिता (BNS)
के तहत युद्ध अपराध माना जाता है।
2- भारतीय
सैनिकों की सुरक्षा 
1.    यदि
कोई भारतीय सैनिक युद्ध बंदी बनता है, तो भारत
सरकार राजनयिक चैनलों, जैसे अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस,
के माध्यम से यह सुनिश्चित करती है कि उनके साथ मानवीय व्यवहार हो।
2.    रक्षा
मंत्रालय और भारतीय सेना युद्ध बंदियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय रूप से
काम करते हैं।
3-कानूनी और
कूटनीतिक कार्रवाई 
·       
यदि किसी देश या पक्ष
द्वारा भारतीय युद्ध बंदियों के अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है,
तो भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कानूनी कार्रवाई या कूटनीतिक
हस्तक्षेप कर सकता है।
युद्ध अपराध के मामले में क्या होता है?
यदि किसी युद्ध बंदी पर युद्ध अपराध का आरोप लगता है, तो निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:निष्पक्ष मुकदमा:
युद्ध बंदी को निष्पक्ष और पारदर्शी सुनवाई का अधिकार है। जिनेवा
कन्वेंशन यह सुनिश्चित करता है कि सैनिक को पक्षपातपूर्ण या अनुचित मुकदमे का
सामना न करना पड़े।
कानूनी सुरक्षा:
सैनिक को कानूनी प्रतिनिधित्व और दोषी सिद्ध होने तक निर्दोष माने
जाने का अधिकार है।
मानवीय व्यवहार:
जांच या मुकदमे के दौरान भी सैनिक के साथ मानवीय व्यवहार करना
अनिवार्य है।
वास्तविक उदाहरण
मान लीजिए, एक भारतीय सैनिक शांति स्थापना मिशन के दौरान दुश्मन सेना द्वारा पकड़ा जाता है। इस स्थिति में:1.    सैनिक
का पंजीकरण तुरंत किया जाता है, और उनकी जानकारी ICRC
को भेजी जाती है।
2.    उन्हें
पर्याप्त भोजन, आश्रय, और
चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
3.    सैनिक
को अपने परिवार के साथ पत्राचार की अनुमति दी जाती है।
4.    शत्रुता
समाप्त होने पर, सैनिक को भारत वापस भेजा जाता है।
यदि सैनिक पर युद्ध
अपराध का आरोप लगता है, तो पकड़ने वाला पक्ष यह
सुनिश्चित करता है कि जांच और सुनवाई अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो।
निष्कर्ष
युद्ध बंदी के रूप में पकड़े गए सैनिकों के साथ व्यवहार अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून और जिनेवा कन्वेंशन द्वारा सख्ती से नियंत्रित होता है। ये प्रोटोकॉल सुनिश्चित करते हैं कि सैनिकों को मानवीय व्यवहार, संचार की सुविधा, और अंततः उनकी रिहाई और प्रत्यावर्तन का अधिकार मिले। भारत, जिनेवा कन्वेंशन का पालन करने वाले राष्ट्र के रूप में, अपने सैनिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। युद्ध बंदियों के साथ अमानवीय व्यवहार न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह युद्ध अपराध भी माना जाता है, जिसके लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत सजा का प्रावधान है।युद्ध के समय में,
ये प्रोटोकॉल मानवता की रक्षा करते हैं और यह याद दिलाते हैं कि
सबसे कठिन परिस्थितियों में भी, मानवाधिकारों का सम्मान
सर्वोपरि है।

