6 मई 2025 को कोलकाता हाईकोर्ट ने पश्चिम
बंगाल सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की
पहचान के लिए किए जा रहे नए सर्वेक्षण के तरीके पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि
सरकार इस सर्वे को ठीक तरह से नहीं कर रही है और इसमें कई खामियां हैं।
पृष्ठभूमि:
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पुराना फैसला:
मई 2024 में कोलकाता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल
में 2010 के बाद जारी किए गए सभी OBC सर्टिफिकेट
रद्द कर दिए थे। कोर्ट ने कहा था कि ये सर्टिफिकेट गलत तरीके से जारी किए गए थे,
खासकर 77 समुदायों (जिनमें ज्यादातर मुस्लिम
थे) को OBC सूची में शामिल करने में धर्म को आधार बनाया गया
था।
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सुप्रीम कोर्ट में अपील:
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील
की। 18 मार्च 2025 को सरकार ने सुप्रीम
कोर्ट को वादा किया कि वह तीन महीने के अंदर OBC की
पहचान के लिए नया सर्वेक्षण करेगी।
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नई याचिका:
लेकिन इसके बाद कोलकाता हाईकोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई,
जिसमें सरकार के नए सर्वेक्षण के तरीके पर सवाल उठाए गए।
याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार केवल उन 113 OBC समुदायों से आवेदन ले रही है, जिनके सर्टिफिकेट पहले रद्द
किए गए थे। इससे नए और योग्य समुदायों को मौका नहीं मिल रहा।
कोलकाता हाईकोर्ट में सुनवाई:
6 मई 2025
को जस्टिस तपोब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की डिवीजन बेंच
ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने सरकार के सर्वेक्षण के तरीके पर ये सवाल उठाए:
1. प्रचार
की कमी:
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कोर्ट ने पूछा कि सरकार ने
इस नए सर्वेक्षण का ठीक से प्रचार क्यों नहीं किया?
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अगर लोगों को सर्वे की
जानकारी ही नहीं होगी, तो योग्य लोग OBC सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कैसे करेंगे?
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कोर्ट ने कहा कि प्रचार की
कमी से योग्य लोगों का हक छिन सकता है, और सर्वे
का मकसद ही खत्म हो जाएगा।
2. केवल
पुराने समुदायों पर ध्यान:
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याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया
कि सरकार सिर्फ उन 113 समुदायों से आवेदन ले रही
है, जिनके सर्टिफिकेट 2024 में रद्द
हुए थे।
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कोर्ट ने इस पर सवाल उठाया
कि सरकार नए समुदायों को मौका क्यों नहीं दे रही?
कोर्ट के आदेश:
हाईकोर्ट ने सरकार
को निम्नलिखित निर्देश दिए:
1. प्रचार
बढ़ाएं:
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सरकार को सर्वेक्षण का
व्यापक प्रचार करना होगा, ताकि आम लोग इसके बारे में
जान सकें।
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इसके लिए ग्राम पंचायत
स्तर से लेकर हर जगह विज्ञापन जारी करने होंगे।
2. हलफनामा
दाखिल करें:
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सरकार और पश्चिम बंगाल
पिछड़ा वर्ग विकास निगम को 15 जून 2025 तक कोर्ट में एक हलफनामा (शपथ पत्र) जमा करना होगा।
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इस हलफनामे में सर्वेक्षण
की प्रक्रिया और प्रचार के बारे में पूरी जानकारी देनी होगी।
3. अगली
सुनवाई:
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मामले की अगली सुनवाई 15
जून 2025 को होगी।
कोर्ट की टिप्पणी:
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कोर्ट ने कहा कि अगर योग्य
लोग सर्वे की जानकारी से वंचित रह गए, तो उनका कानूनी
हक छिन जाएगा।
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सर्वे का मकसद है कि सभी
पिछड़े समुदायों को OBC सूची में शामिल करने का
मौका मिले, लेकिन प्रचार की कमी से यह मकसद पूरा नहीं हो
पाएगा।
क्यों महत्वपूर्ण
है यह मामला?
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OBC आरक्षण का मुद्दा:
पश्चिम बंगाल में OBC आरक्षण एक संवेदनशील और
राजनीतिक मुद्दा है। 2010 के बाद 77 समुदायों
(ज्यादातर मुस्लिम) को OBC सूची में शामिल करने पर विवाद हुआ
था। कोलकाता हाईकोर्ट ने इसे रद्द करते हुए कहा था कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं
दिया जा सकता।
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नया सर्वे:
सरकार का नया सर्वेक्षण इस बात को तय करेगा कि कौन से समुदाय OBC
सूची में शामिल होंगे। लेकिन अगर सर्वे में पारदर्शिता और
निष्पक्षता नहीं होगी, तो यह फिर से विवाद का कारण बन सकता
है।
· राजनीतिक प्रभाव: विपक्षी नेता, जैसे BJP के सुवेंदु अधिकारी, ने इस सर्वे को "असंवैधानिक" और "वोटबैंक की राजनीति" बताया है। उनका कहना है कि सरकार केवल एक खास समुदाय को फायदा पहुंचाने के लिए सर्वे कर रही है।
निष्कर्ष:
कोलकाता हाईकोर्ट
ने पश्चिम बंगाल सरकार को नए OBC सर्वेक्षण को
निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाने को कहा है। कोर्ट का जोर है कि सर्वे
की जानकारी हर योग्य व्यक्ति तक पहुंचे, ताकि कोई भी अपने
अधिकार से वंचित न रहे। यह मामला जून 2025 में फिर से कोर्ट
में आएगा, और तब तक सरकार को अपने सर्वे के तरीके में सुधार
करना होगा।