भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 35 एक ऐसा प्रावधान है,
जो मौलिक अधिकारों को लागू करने और उनकी रक्षा करने के लिए संसद को
विशेष शक्तियां देता है। यह अनुच्छेद संविधान के भाग III (मौलिक
अधिकार) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करता
है कि मौलिक अधिकार सिर्फ कागजी वादे न रहें, बल्कि वास्तव
में लागू हों और उनकी व्याख्या सही ढंग से हो। यह संसद को कुछ खास मामलों में
कानून बनाने का अधिकार देता है, ताकि नागरिकों के अधिकारों
की रक्षा हो और संविधान की भावना बनी रहे।
अनुच्छेद
35
के मुख्य बिंदु:
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35
को समझना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह मौलिक
अधिकारों को जमीन पर उतारने का रास्ता बनाता है। आइए, इसके
प्रमुख बिंदुओं को सरल और सहज तरीके से देखें:
संसद को विशेष
विधायी शक्ति
अनुच्छेद 35 संसद को कुछ खास मामलों में कानून
बनाने का अधिकार देता है, जो संविधान के अनुच्छेद 16(3),
32(3), 33 और 34 से जुड़े हैं। ये अनुच्छेद
क्रमशः निम्नलिखित विषयों से संबंधित हैं:
·
अनुच्छेद 16(3):
सरकारी नौकरियों में स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता देने के लिए
कानून।
·
अनुच्छेद 32(3):
उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए।
·
अनुच्छेद 33:
सशस्त्र बलों या पुलिस जैसे संगठनों में मौलिक अधिकारों को सीमित
करने के लिए।
·
अनुच्छेद 34:
आपातकाल या मार्शल लॉ के दौरान मौलिक अधिकारों पर अस्थायी रोक लगाने
के लिए।
यह प्रावधान संसद को लचीलापन देता है, ताकि वह
देश की जरूरतों के हिसाब से कानून बना सके, खासकर तब जब
मौलिक अधिकारों को संतुलित करने की जरूरत हो।
अपराधों के लिए दंड
निर्धारण
अनुच्छेद 35 संसद को यह शक्ति देता है कि वह
उन कृत्यों के लिए दंड तय करे, जो संविधान के भाग III
(मौलिक अधिकारों) के तहत अपराध माने जाते हैं। उदाहरण के लिए,
अगर कोई कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो संसद यह तय कर सकती है कि उस उल्लंघन की सजा क्या होगी। यह प्रावधान
मौलिक अधिकारों को वास्तविक सुरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि
बिना दंड के अधिकारों की रक्षा अधूरी रहती।
संविधान-पूर्व
कानूनों की वैधता
अनुच्छेद 35(बी) कहता है कि वे कानून, जो संविधान लागू होने से पहले (26 जनवरी 1950
से पहले) अस्तित्व में थे, तब तक वैध रहेंगे,
जब तक कि संसद उन्हें बदल न दे या खत्म न कर दे। यह प्रावधान पुराने
कानूनों को एक तरह की निरंतरता देता है, ताकि संविधान लागू
होने के बाद कानूनी शून्यता न पैदा हो। यह एक व्यावहारिक कदम था, जिसने नए भारत के लिए कानूनी ढांचे को स्थिर रखा।
मौलिक अधिकारों का प्रभावी क्रियान्वयन
अनुच्छेद 35 का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह संसद को मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए जरूरी कानून बनाने की शक्ति देता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई मौलिक अधिकार (जैसे समानता का अधिकार या स्वतंत्रता का अधिकार) प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पा रहा, तो संसद कानून बनाकर उसे मजबूत कर सकती है। यह अनुच्छेद मौलिक अधिकारों को जीवंत और कार्यशील बनाता है।
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का महत्व: क्यों है यह खास?
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को संविधान का एक "रक्षक" कहा जा सकता है, क्योंकि यह मौलिक अधिकारों को न केवल कागज पर, बल्कि
व्यवहार में भी लागू करने का रास्ता बनाता है। इसके महत्व को इन बिंदुओं से समझा
जा सकता है:
- मौलिक अधिकारों की रक्षा:
यह सुनिश्चित करता है कि मौलिक अधिकार सिर्फ सिद्धांत न रहें,
बल्कि उनके उल्लंघन पर ठोस कार्रवाई हो। उदाहरण के लिए,
संसद ऐसे कानून बना सकती है, जो भेदभाव
या अन्याय को रोकें।
- संसद की शक्ति का विस्तार:
यह संसद को लचीलापन देता है कि वह बदलते समय और समाज की
जरूरतों के हिसाब से कानून बनाए। यह खासकर तब जरूरी होता है, जब मौलिक अधिकारों को विशिष्ट परिस्थितियों (जैसे आपातकाल या सैन्य
सेवाओं) में संतुलित करना हो।
- न्यायिक और विधायी संतुलन:
अनुच्छेद 35 यह सुनिश्चित करता है कि
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और लागू करने में संसद और न्यायपालिका के बीच
संतुलन बना रहे। संसद कानून बनाती है, और न्यायपालिका
उसकी संवैधानिकता की जांच करती है।
- ऐतिहासिक निरंतरता:
संविधान-पूर्व कानूनों को वैधता देकर इसने भारत के कानूनी
ढांचे को स्थिरता दी, जिससे नई व्यवस्था में अराजकता
नहीं फैली।
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का असर
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सिर्फ एक कानूनी प्रावधान नहीं है; यह उस सपने
का हिस्सा है, जो संविधान निर्माताओं ने देखा था—एक
ऐसा भारत, जहां हर नागरिक के अधिकार सुरक्षित
हों। कल्पना करें: एक व्यक्ति को भेदभाव का सामना
करना पड़ रहा है, या उसकी स्वतंत्रता छीनी जा रही है।
अनुच्छेद 35 संसद को यह ताकत देता है कि वह ऐसा कानून बनाए,
जो उस व्यक्ति को न्याय दिलाए। यह उन सैनिकों के लिए भी जरूरी है,
जो देश की सेवा करते हैं, और जिनके लिए कुछ
मौलिक अधिकारों को सीमित करना पड़ता है। यह अनुच्छेद एक पुल की तरह है, जो संविधान के आदर्शों को वास्तविकता से जोड़ता है।
निष्कर्ष
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भारतीय संविधान का एक मजबूत स्तंभ है, जो
मौलिक अधिकारों को लागू करने और उनकी रक्षा करने के लिए संसद को शक्ति देता है। यह
संसद को कानून बनाने, दंड तय करने, और
पुराने कानूनों को वैधता देने का अधिकार देता है, ताकि
संविधान की भावना जीवित रहे। यह अनुच्छेद हर नागरिक के लिए एक आश्वासन है कि उनके
अधिकार सिर्फ कागज पर नहीं, बल्कि व्यवहार में भी सुरक्षित
हैं। यह संविधान का एक ऐसा हिस्सा है, जो कानून और न्याय के
बीच संतुलन बनाता है, और भारत को एक मजबूत लोकतंत्र बनाए
रखने में मदद करता है।