11 अप्रैल 2025
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि आयकर विभाग अपनी ऑनलाइन प्रणाली (utility) में बदलाव करके करदाता (assessee) को धारा 87A के तहत टैक्स छूट का दावा करने से नहीं रोक सकता, जब तक कि आयकर अधिनियम, 1961 में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान न हो। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह करदाताओं के न्याय प्राप्ति के अधिकार का भी उल्लंघन है।
मामले की पृष्ठभूमि
'The
Chamber of Tax Consultants' नामक संस्था ने यह याचिका दायर की
थी। यह संस्था टैक्स कानूनों और अकाउंटेंसी जैसे विषयों में जागरूकता फैलाने के
उद्देश्य से कार्यरत है।
विवाद
की शुरुआत जुलाई 2024 में तब
हुई जब आयकर विभाग की ऑनलाइन रिटर्न फाइलिंग प्रणाली में ऐसा बदलाव किया गया जिससे
करदाता धारा 87A के तहत टैक्स छूट का दावा ही नहीं कर सकते थे।
इससे
पहले तक (5 जुलाई 2024 तक),
करदाता इस छूट का ऑनलाइन दावा कर सकते थे, लेकिन
उस तारीख के बाद यह विकल्प यूटिलिटी से हटा दिया गया।
हाईकोर्ट का स्पष्ट मत
हाईकोर्ट
की न्यायमूर्ति एम. एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेन्द्र जैन की
खंडपीठ ने कहा:
- यदि कोई छूट/दावा पहले उपलब्ध था,
तो उसे केवल इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता कि विभागीय
अधिकारी उसे अनुचित मानते हैं।
- विभाग किसी दावे को रोके या
वर्जित करे, ऐसा अधिकार न तो आयकर
अधिनियम देता है और न ही उसे यह अधिकार संविधान से मिलता है।
- “Utility (ऑनलाइन
फॉर्म)” केवल कर प्रक्रिया को सरल बनाने का माध्यम है, यह
यह निर्णय नहीं ले सकता कि करदाता कौन-सा दावा करे या न करे।”
तकनीक को कानून से ऊपर नहीं रखा जा सकता
हाईकोर्ट
ने यह भी स्पष्ट किया कि:
“तकनीकी बदलाव कर प्रक्रिया को आसान और फेसलेस (जैसे धारा 144B) बनाने के लिए किए गए हैं, न कि करदाताओं को उनके वैध
अधिकारों से वंचित करने के लिए।”
इसलिए
रिटर्न दाखिल करते समय करदाता को यह अधिकार है कि वह अपनी समझ के अनुसार आय और
टैक्स की गणना करे और उचित दावा करे – भले ही वह विभाग की व्याख्या से अलग हो।
धारा
87A
और विवाद का मुद्दा क्या है?
धारा
87A
के तहत कुछ करदाताओं को आयकर में छूट मिलती है। विवाद यह था कि क्या
यह छूट केवल धारा 115BAC (नई टैक्स प्रणाली)
के अंतर्गत दी जा सकती है, या अन्य टैक्स दरों (Chapter
XII के तहत) पर भी लागू होती है।
हाईकोर्ट
ने माना कि यह एक बहस योग्य कानूनी मुद्दा है,
और इसे विभाग द्वारा यूटिलिटी में बदलाव करके एकतरफा रूप से नहीं
नकारा जा सकता।
निष्कर्ष
बॉम्बे
हाईकोर्ट का यह निर्णय करदाताओं के अधिकारों की संरक्षा की दिशा में एक अहम कदम
है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि:
“प्रशासनिक सुविधा के नाम पर तकनीकी प्रणाली में किया गया कोई भी ऐसा बदलाव,
जो करदाता के वैध दावे को रोके – न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि
असंवैधानिक भी है।”
इस
निर्णय से न केवल करदाताओं को राहत मिली है, बल्कि
भविष्य में आयकर विभाग की प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही को भी मजबूती
मिलेगी।