12 अप्रैल 2025
सुप्रीम कोर्ट की जज बीवी नागरत्ना ने कहा है कि भारत के परिवार अब
एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह बदलाव सिर्फ परिवारों
की बनावट और तरीके में नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था पर भी असर
डाल रहा है।
जस्टिस
नागरत्ना ने कहा कि शिक्षा का बढ़ना, शहरों की
ओर बढ़ता रुख, लोगों की निजी इच्छाएं, और
महिलाओं की नौकरी करने की आज़ादी जैसे कई कारण इस बदलाव के पीछे हैं। उन्होंने
माना कि कानूनों ने भी इस बदलाव में मदद की है।
बेंगलुरु
में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि परिवार भारतीय समाज की नींव है और इसे एक
मजबूत संस्था की तरह माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज महिलाएं पढ़-लिखकर नौकरी
कर रही हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। समाज
को चाहिए कि वह महिलाओं की इस भूमिका को सम्मान दे और उन्हें आगे बढ़ने का मौका दे,
क्योंकि वे देश और परिवार दोनों के लिए फायदेमंद हैं।
जस्टिस
नागरत्ना ने यह भी कहा कि आज अदालतों में बहुत से पारिवारिक झगड़े लंबित हैं,
लेकिन अगर पति-पत्नी एक-दूसरे को समझें और इज़्ज़त दें, तो अधिकतर झगड़े सुलझ सकते हैं। उन्होंने कहा, "पहला कदम है एक-दूसरे के प्रति समझ और सम्मान रखना, और
दूसरा कदम है खुद के प्रति जागरूकता।"
उन्होंने
समझाया कि अगर एक साथी कुछ ऐसा करता है जिससे दूसरा दुखी होता है,
तो उसे प्यार से बात करके सुलझाना चाहिए। तभी परिवार मजबूत और
खुशहाल बन सकता है।
भारतीय
परिवार – बदलाव के दौर में
भारतीय
समाज में "परिवार" एक ऐसी संस्था है जो हमारी संस्कृति,
परंपराओं और सामाजिक मूल्यों की नींव मानी जाती है। लेकिन वर्तमान
समय में यह संस्था तेजी से बदलाव के दौर से गुजर रही है। यह बदलाव न केवल परिवारों
की संरचना और कार्यशैली में देखा जा रहा है, बल्कि इसका
प्रभाव हमारी कानूनी व्यवस्था और सामाजिक सोच पर भी पड़ रहा है।
सुप्रीम
कोर्ट की न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना के अनुसार, यह
परिवर्तन कई कारणों से प्रेरित है। इनमें आम शिक्षा तक बढ़ती पहुँच, शहरीकरण, व्यक्ति की आकांक्षाओं में वृद्धि और
महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता प्रमुख हैं। महिलाएं अब शिक्षा प्राप्त कर
कार्यक्षेत्र में सक्रिय हो रही हैं, जिससे न केवल उनके
आत्मविश्वास और स्वतंत्रता में वृद्धि हुई है, बल्कि वे
परिवार और राष्ट्र दोनों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
परिवारों
में आ रहे इन परिवर्तनों के कारण पारंपरिक सोच भी बदल रही है। पहले जहां पति-पत्नी
के रिश्ते में एकतरफा भूमिका देखी जाती थी, वहीं अब
आपसी समझ, सम्मान और सहभागिता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि यदि पति-पत्नी एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों का
सम्मान करें और समझदारी से संवाद करें, तो अधिकांश पारिवारिक
विवादों से बचा जा सकता है।
इस
आधुनिक परिवेश में यह आवश्यक है कि समाज महिलाओं की भूमिका को सकारात्मक दृष्टि से
देखे और उन्हें प्रोत्साहित करे। ऐसे परिवर्तन न केवल व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर
पर लाभकारी हैं, बल्कि देश की प्रगति में भी सहायक सिद्ध
होते हैं।
निष्कर्षतः, भारतीय
परिवार एक बदलाव के मोड़ पर खड़े हैं। यदि इस परिवर्तन को सही दिशा और दृष्टिकोण
के साथ अपनाया जाए, तो यह न केवल मजबूत
परिवारों का निर्माण करेगा, बल्कि एक सशक्त समाज और राष्ट्र
की नींव भी रखेगा।