सुप्रीम कोर्ट ने
सोमवार को एक अहम टिप्पणी में कहा कि उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह
कमजोर पड़ गया है। अदालत ने यह टिप्पणी एक दीवानी (सिविल) विवाद को आपराधिक
मामले में बदलने पर की, जिस पर पुलिस ने एफआईआर
दर्ज कर दी थी।
क्या कहा सुप्रीम
कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने
साफ कहा कि कोई दीवानी विवाद अगर पूरी तरह सिविल प्रकृति का है,
तो उसे आपराधिक मामला बनाना कानूनन गलत है। अदालत ने उत्तर
प्रदेश पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि जब मामला पूरी तरह दीवानी था,
तो पुलिस ने एफआईआर कैसे दर्ज कर दी?
किन अधिकारियों से
जवाब मांगा?
शीर्ष अदालत ने इस
मामले में उत्तर प्रदेश के डीजीपी और नोएडा के सेक्टर-39
थाने के जांच अधिकारी (आईओ) को
दो हफ्ते के भीतर हलफनामा (शपथपत्र) देकर जवाब देने को कहा है। अदालत ने
पूछा है कि ऐसे मामले में एफआईआर दर्ज करने का आधार क्या था।
अदालत की स्पष्ट बात
न्यायमूर्ति संजीव
खन्ना,
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की पीठ ने
कहा:
"केवल
इसलिए कि कोई दीवानी विवाद है और उसमें वकील लगे हैं, इसका
यह मतलब नहीं कि आप उस पर आपराधिक केस दर्ज कर दें।"
क्या है पूरा मामला?
दीपक सिंह नामक
व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर पूरी
तरह गलत और बिना आधार के है। यह केवल एक सिविल विवाद है,
जिसे जान-बूझकर धोखाधड़ी, धमकी और
आपराधिक षड्यंत्र जैसी धाराओं में बदला गया है।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने की उनकी मांग
ठुकरा दी थी, जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख
किया।
कौन-कौन सी धाराएं
लगाई गई थीं?
नोएडा के सेक्टर-39
थाने में याचिकाकर्ता पर धारा 406 (विश्वासघात),
धारा 506 (आपराधिक धमकी), और धारा 120B (आपराधिक साजिश) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने
यह साफ कर दिया कि दीवानी विवादों को आपराधिक रंग देकर बदले की भावना से कानून
का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। यह निर्णय पुलिस की जवाबदेही और कानून के
नियमों के पालन की आवश्यकता को उजागर करता है।