क्या न्यायालय के आदेश के बाद भरण-पोषण राशि में संशोधन किया जा सकता है?
हाँ,
कोर्ट द्वारा तय की गई गुजारा भत्ते की राशि को बाद में बदला जा
सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियाँ होनी चाहिए।
यह बदलाव पति या पत्नी – दोनों में से कोई भी मांग सकता है, अगर परिस्थितियाँ पहले जैसी नहीं रहीं।
ऐसी कौन-सी
परिस्थितियाँ हैं, जिनमें भरण-पोषण की राशि
बदली जा सकती है?
1. आमदनी में बदलाव
- यदि देने वाले पति/पत्नी की नौकरी चली जाए या आय कम हो जाए, तो वह भरण-पोषण की राशि घटाने की मांग कर सकता है।
- अगर लेने वाले की आय बढ़ जाए (जैसे नौकरी लग जाए), तो भी भुगतान कम किया जा सकता है।
2. स्वास्थ्य में गंभीर बदलाव
- अगर किसी को गंभीर बीमारी हो जाए जिससे उसकी कमाई पर असर पड़े, तो भत्ता बढ़ाने या घटाने की मांग हो सकती है।
3. पुनर्विवाह या लिव-इन रिलेशनशिप
- अगर गुजारा भत्ता पाने वाला व्यक्ति किसी और से शादी कर ले या साथ रहने लगे, तो भत्ता देने वाले व्यक्ति को कोर्ट से राहत मिल सकती है। क्योंकि अब उस व्यक्ति की आर्थिक ज़रूरतें नए साथी से पूरी हो रही होंगी।
4. ज़रूरतों में बदलाव
- जैसे बच्चों की पढ़ाई का खर्च बढ़ जाना या जीवन यापन के अन्य खर्चों में वृद्धि।
5. समय सीमा पूरी हो जाना
- अगर भरण-पोषण किसी तय समय तक देना था और उस दौरान हालात बदल जाएं, तो भी कोर्ट से राशि या समय सीमा में बदलाव की मांग की जा सकती है।
कानूनी प्रक्रिया
क्या है?
- जिस कोर्ट ने मूल आदेश दिया था,
उसी में संशोधन याचिका (Modification
Petition) दाखिल करनी होती है।
- याचिका के साथ आपको सबूत देना
होगा – जैसे आय प्रमाण, बीमारी के
दस्तावेज़, खर्चों का विवरण आदि।
- कोर्ट यह देखेगा कि हालात में
बदलाव वाकई जरूरी और असली हैं या नहीं।
महत्वपूर्ण धाराएँ व केस:
धारा 144 (BNSS)
- यह धारा महिलाओं, बच्चों और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण का प्रावधान करती है।
- इसमें स्पष्ट कहा गया है कि अगर हालात बदलते हैं, तो अदालत आदेश में बदलाव कर सकती है।
धारा 146
(BNSS)
धारा 146
(BNSS) के तहत, किसी व्यक्ति की
परिस्थितियों में बदलाव होने पर, भरण-पोषण या अंतरिम
भरण-पोषण की रकम में बदलाव किया जा सकता है.
प्रावधान:
- अगर किसी व्यक्ति की स्थिति में
बदलाव आता है, तो मजिस्ट्रेट
भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण की रकम में बदलाव कर सकते हैं।
- अगर किसी व्यक्ति की आर्थिक
स्थिति खराब हो जाती है, तो वह मजिस्ट्रेट
के न्यायालय मे साक्ष्य के साथ पेश होकर अपनी बात रख सकता है।
- मजिस्ट्रेट,
बदली हुई आर्थिक स्थिति को देखते हुए भरण-पोषण की रकम में
बदलाव कर सकते हैं।
Kalyan Dey Chowdhury v. Rita Dey Chowdhury (2017, SC)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता तय करते समय पति की वर्तमान आमदनी को ध्यान में रखना जरूरी है।
- कोर्ट ने पहले से तय गुजारा भत्ता घटा दिया क्योंकि पति की कमाई कम हो गई थी।
Mamta Jaiswal v. Rajesh Jaiswal (2000, MP HC)
- कोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी पढ़ी-लिखी और योग्य है, तो वह आजीवन भरण-पोषण की हकदार नहीं मानी जा सकती।
उदाहरण
रवि को कोर्ट ने आदेश दिया कि वह अपनी पूर्व पत्नी को ₹10,000 हर महीने गुजारा भत्ते के तौर पर दे। लेकिन कुछ वर्षों बाद उसकी नौकरी चली गई और नई नौकरी में उसे आधी तनख्वाह मिलने लगी।
रवि ने कोर्ट में याचिका दायर की कि वह अब ₹10,000 नहीं दे सकता। कोर्ट ने रवि की नई आमदनी और पत्नी की ज़रूरतों को देखा और
गुजारा भत्ता ₹6,000 कर दिया।
निष्कर्ष
भरण-पोषण से जुड़ा
आदेश एक स्थायी स्थिति नहीं होता, बल्कि यह पति-पत्नी की
बदलती परिस्थितियों के अनुसार बदला जा सकता है। यदि किसी की आमदनी घट जाए, स्वास्थ्य खराब हो जाए, या प्राप्तकर्ता की आर्थिक
स्थिति सुधर जाए — तो ऐसे मामलों में न्यायालय में संशोधन की मांग की जा सकती है।
न्यायालय का
उद्देश्य किसी एक पक्ष को न तो अनुचित लाभ देना होता है और न ही दूसरे पक्ष पर
अनावश्यक बोझ डालना। इसलिए, परिस्थितियों में वास्तविक
और महत्वपूर्ण बदलाव होने पर, कानून यह अधिकार देता है कि
भरण-पोषण की राशि में कमी या बढ़ोतरी की जा सकती है।
लेकिन यह बदलाव
मनमाने ढंग से नहीं किया जा सकता — इसके लिए उचित कानूनी प्रक्रिया अपनानी होती है
और ठोस प्रमाण पेश करने होते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न्याय निष्पक्ष हो,
और दोनों पक्षों के अधिकारों तथा ज़रूरतों की सही तरह से रक्षा की
जा सके।
अतः यह समझना
ज़रूरी है कि न्यायालय का आदेश अंतिम होते हुए भी स्थायी नहीं होता — अगर जीवन में
हालात बदलते हैं, तो न्यायालय के दरवाज़े फिर
से खटखटाए जा सकते हैं।
FAQs
1. क्या
न्यायालय के आदेश के बाद भरण-पोषण की राशि में बदलाव हो सकता है?
उत्तर:
हाँ, न्यायालय द्वारा पहले से तय की गई
भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) राशि को बदला जा सकता है, लेकिन
इसके लिए कुछ विशेष परिस्थितियाँ होनी चाहिए। अगर किसी भी पक्ष की वित्तीय स्थिति,
स्वास्थ्य, पारिवारिक संरचना या
जीवन-स्थितियों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव आता है, तो वह पक्ष
अदालत में संशोधन याचिका दायर कर सकता है। यह परिवर्तन न्यायालय की अनुमति
से ही मान्य होगा।
2. किन
परिस्थितियों में गुजारा भत्ता बढ़ाया या घटाया जा सकता है?
उत्तर:
गुजारा भत्ते में बदलाव निम्नलिखित परिस्थितियों में संभव है:
- आमदनी में परिवर्तन
– अगर देने वाले की आय घटे या लेने वाले की आय बढ़े।
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ
– गंभीर बीमारी या अक्षमता से कमाई प्रभावित हो।
- पुनर्विवाह या लिव-इन रिलेशन
– जिससे प्राप्तकर्ता की आर्थिक निर्भरता घटे।
- बच्चों या अन्य ज़रूरतों के
खर्चों में वृद्धि।
- समयसीमा का पूरा होना
– तय समय बाद परिस्थितियों की समीक्षा जरूरी हो सकती है।
इन सभी मामलों में याचिकाकर्ता को प्रमाण प्रस्तुत करने होते हैं।
3. क्या
भरण-पोषण की राशि घटाने के लिए पति कोर्ट में याचिका दे सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि पति की आमदनी में कमी आई है, जैसे नौकरी छूट जाना, व्यवसाय में घाटा होना या
गंभीर बीमारी की वजह से काम न कर पाने की स्थिति, तो वह
कोर्ट में याचिका देकर गुजारा भत्ते की राशि घटाने की मांग कर सकता है।
कोर्ट इस याचिका पर विचार करने से पहले उसकी आर्थिक स्थिति और पत्नी
की आवश्यकताओं की समीक्षा करेगा। अगर बदलाव उचित पाया गया, तो
भत्ता घटाया जा सकता है।
4. क्या
पुनर्विवाह या लिव-इन रिलेशनशिप पर भरण-पोषण बंद किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि भरण-पोषण प्राप्त कर रही पत्नी ने
पुनर्विवाह कर लिया है या किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह
रही है, तो यह दिखाता है कि अब उसकी कुछ वित्तीय आवश्यकताएँ
उस नए साथी से पूरी हो रही हैं।
ऐसी स्थिति में पति कोर्ट से अनुरोध कर सकता है कि भरण-पोषण बंद कर
दिया जाए या कम कर दिया जाए। कई अदालतों ने ऐसी स्थितियों में गुजारा भत्ता समाप्त
करने के आदेश दिए हैं।
5. भरण-पोषण
की राशि में बदलाव के लिए कानूनी प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:
भरण-पोषण आदेश में बदलाव के लिए निम्न प्रक्रिया अपनाई जाती है:
- संबंधित पक्ष को उसी न्यायालय में
संशोधन याचिका (Modification Petition)
दायर करनी होती है जिसने मूल आदेश पारित किया था।
- याचिका में बदलाव के कारण स्पष्ट
रूप से बताने होते हैं।
- साथ में उपयुक्त साक्ष्य (जैसे आय
प्रमाण, मेडिकल रिपोर्ट, खर्चों की रसीदें) भी लगानी होती हैं।
- न्यायालय इन तथ्यों का परीक्षण कर
यह तय करता है कि क्या परिस्थितियाँ वास्तव में बदल गई हैं और क्या बदलाव
न्यायोचित है।