मशहूर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा को मद्रास हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर 17 अप्रैल तक के लिए अंतरिम रोक लगा दी है। यह रोक उन्हें उन धमकियों के चलते मिली है, जो उन्होंने एक कॉमेडी शो के बाद मिलने की बात कही थी।
क्या था मामला?
कुणाल कामरा ने
मुंबई के हैबिटेट स्टूडियो में एक कॉमेडी शो किया था,
जिसमें उन्होंने फिल्म दिल तो पागल है के गाने 'भोली सी सूरत' की पैरोडी गाकर महाराष्ट्र के
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर कटाक्ष किया। इसके बाद कई लोगों ने इसे
आपत्तिजनक मानते हुए FIR दर्ज करवाईं और धमकियां देना शुरू कर दिया।
यहां तक कि शिंदे
की पार्टी शिवसेना की युवा शाखा ने उस वेन्यू पर तोड़फोड़ की,
जहां शो फिल्माया गया था।
कामरा ने माफी से किया इनकार
कुणाल कामरा ने साफ
कहा कि वह अपने मजाक के लिए माफी नहीं मांगेंगे। उन्होंने कहा—
"मैंने
कोई कानून नहीं तोड़ा है। नेताओं पर मजाक उड़ाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
हिस्सा है। किसी भी पार्टी को यह अधिकार नहीं है कि वे यह तय करें कि मैं क्या
बोलूं।"
"अगर आपको बटर चिकन पसंद नहीं आया, तो
आप टमाटर वाले ट्रक को पलट नहीं सकते। ठीक उसी तरह, किसी
कॉमेडियन के शो से नाराज़ होकर वेन्यू पर हमला करना बेतुका है।"
क्या कहा हाई कोर्ट
में?
कामरा ने FIR
रद्द करने की याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर की है,
जिसमें कहा गया है कि—
- उनके खिलाफ दर्ज FIR
संविधान के अनुच्छेद 19 और 21
का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 19:
बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है।
- अनुच्छेद 21:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
कामरा के वकील ने
कहा कि उनका शो "नया भारत" एक व्यंग्यात्मक प्रदर्शन है,
जिसे संवैधानिक संरक्षण मिला है और इसे आपराधिक मामला
नहीं बनाया जा सकता।
आगे क्या?
अब इस मामले की
सुनवाई बॉम्बे हाई कोर्ट में मंगलवार को होगी। कोर्ट यह तय करेगा कि क्या
कॉमेडी एक्ट के कारण की गई FIR वैधानिक है या नहीं।
क्या कह रहे हैं
कामरा?
कुणाल ने अपने बयान
में कहा—
"हमारी
अभिव्यक्ति की आज़ादी सिर्फ अमीर और ताकतवर लोगों की तारीफ करने के लिए नहीं है।
नेताओं की आलोचना करना कानून के खिलाफ नहीं है।"
कुणाल कामरा का
मामला एक बार फिर इस सवाल को उठाता है कि क्या कॉमेडी और व्यंग्य की सीमा तय की
जा सकती है, और राजनीतिक आलोचना को अपराध मानना
कहां तक जायज है। हाई कोर्ट का अगला फैसला इस पर बड़ी मिसाल साबित हो सकता है।
कुणाल कामरा बनाम
राज्य — कॉमेडी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
और कानून
स्टैंड-अप कॉमेडियन
कुणाल कामरा के खिलाफ दर्ज एफआईआर और हाई कोर्ट में चल रही कानूनी
कार्यवाही सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी या अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है,
बल्कि यह मामला भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों, आपराधिक कानून, और राजनीतिक आलोचना की सीमाओं
को लेकर अहम बहस खड़ा करता है।
संवैधानिक अधिकारों
की रक्षा (अनुच्छेद 19 और 21)
- अनुच्छेद 19(1)(a)
भारतीय नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का
अधिकार देता है।
- कुणाल कामरा ने इसी अधिकार का
उपयोग करते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी की थी,
जिसे उन्होंने एक कॉमेडी एक्ट के तौर पर प्रस्तुत किया।
- कामरा की याचिका का मुख्य आधार
यही है कि उनकी कॉमेडी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आती है और
उनके खिलाफ दर्ज FIR अनुचित और
असंवैधानिक है।
न्यायिक दृष्टिकोण:
सुप्रीम
कोर्ट ने श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार (2015) मामले में कहा था कि व्यक्तिगत आलोचना, राजनीतिक
व्यंग्य और व्यक्तिगत राय बोलने की स्वतंत्रता का
हिस्सा हैं, जब तक कि वे सार्वजनिक व्यवस्था को भंग न
करें।
FIR का औचित्य और आपराधिकता की सीमा
- कामरा के खिलाफ दर्ज FIR
में संभवतः धारा 295A (धार्मिक
भावनाओं को ठेस पहुंचाना), धारा 153A (समाज में वैमनस्य फैलाना) जैसी धाराएं लगाई
गई हैं।
- लेकिन कामरा का दावा है कि
उन्होंने किसी भी धर्म, समुदाय या हिंसा
को बढ़ावा देने वाली बात नहीं की, बल्कि यह एक राजनीतिक
कटाक्ष था।
- उन्होंने किसी नेता विशेष पर
टिप्पणी की थी, जो कि भारतीय लोकतंत्र
में आलोचना का हिस्सा माना जाता है।
न्यायिक दृष्टिकोण:
कुसुम शर्मा बनाम भारत सरकार जैसे कई
मामलों में कोर्ट ने कहा है कि केवल आलोचना या असहमति पर आपराधिक मामला नहीं
बनता, जब तक कि वह स्पष्ट रूप से हिंसा को उकसाती या
कानून-व्यवस्था को बाधित करती न हो।
वेन्यू और आयोजकों की ज़िम्मेदारी
- हाई कोर्ट में यह भी सवाल उठा कि
क्या हैबिटेट स्टूडियो, जहां
यह शो हुआ, भी जिम्मेदार है?
- कामरा का कहना है कि वेन्यू सिर्फ
एक प्लेटफॉर्म है, और आयोजक यह तय नहीं
करते कि कॉमेडियन क्या बोलेगा।
यह दलील तर्कसंगत
और न्यायोचित है क्योंकि आयोजक केवल मंच प्रदान करते हैं,
कंटेंट पर उनका नियंत्रण नहीं होता।
गिरफ्तारी पर रोक और अंतरिम राहत का औचित्य
- मद्रास हाई कोर्ट ने कामरा की
गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगाते हुए यह माना कि गिरफ्तारी की कोई तात्कालिक
आवश्यकता नहीं है।
- FIR दर्ज होना ही
गिरफ्तारी का कारण नहीं होता, यह
सिद्धांत बार-बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट किया गया है (अरनेश कुमार
बनाम बिहार राज्य, 2014)।
“कुणाल कामरा का
मामला व्यक्तिगत अभिव्यक्ति, लोकतांत्रिक
आलोचना, और राजनीतिक सहिष्णुता के बीच संतुलन की
परीक्षा है।“
“यह तय करेगा कि क्या एक कॉमेडियन की टिप्पणी को आपराधिक रंग
दिया जा सकता है या उसे लोकतंत्र में विचार और हास्य की स्वतंत्रता के तहत
स्वीकार किया जाएगा।“