फर्जी या झूठे मामले दर्ज करना भारतीय कानून के तहत एक गंभीर अपराध है, जो न्याय प्रणाली को प्रभावित करता है और निर्दोष व्यक्तियों को मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाता है। भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 में फर्जी मामलों से संबंधित कई प्रावधान हैं, जो झूठे आरोप लगाने वालों पर सख्त कार्रवाई का आदेश देते हैं। इसके अलावा, भारतीय न्यायालयों ने कई मामलों में झूठे मामलों की गंभीरता को समझते हुए कड़े निर्णय दिए हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्याय प्रणाली का दुरुपयोग सहन नहीं किया जाएगा।
फर्जी मामला दर्ज करने का अर्थ
फर्जी या झूठे
मामले दर्ज करने का तात्पर्य उन परिस्थितियों से है, जब
कोई व्यक्ति जानबूझकर ऐसे आरोप लगाता है जो वास्तविकता से दूर हों। इस प्रकार की
कार्रवाई में शामिल व्यक्ति का उद्देश्य किसी निर्दोष व्यक्ति को परेशान करना,
आर्थिक लाभ उठाना या प्रतिशोध की भावना से कानूनी प्रक्रिया का
दुरुपयोग करना हो सकता है।
भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 में प्रावधान
1. धारा 217 BNS - झूठी सूचना देना
- यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को
ऐसी जानकारी देता है, जो वह जानता है कि
झूठी है और जिससे लोक सेवक को गलत कार्यवाही करने के लिए प्रेरित किया जा
सकता है, तो उसे एक वर्ष तक की कारावास या
दस हजार रु० जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- उदाहरण:
पुलिस स्टेशन में झूठी रिपोर्ट दर्ज कराना।
2. धारा 248 BNS - झूठे आरोप लगाना
- यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य
व्यक्ति पर जानबूझकर झूठे आरोप लगाता है और उस पर आपराधिक कार्यवाही शुरू
करवाता है, तो उस व्यक्ति को पाँच वर्ष तक
की सजा या 2 लाख रु० तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- नोट:
यदि आरोप हत्या या बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के लिए लगाया गया हो,
तो सजा और भी कठोर हो सकती है।
3. धारा 356(1) BNS और 356(2) BNS - मानहानि का मुकदमा
- यदि किसी व्यक्ति द्वारा झूठे
आरोपों से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है,
तो मानहानि का मुकदमा दायर किया जा सकता है।
- सजा:
दो वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या
दोनों।
4. धारा 61(2) BNS - आपराधिक षड्यंत्र
- यदि दो या दो से अधिक व्यक्ति
मिलकर किसी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ फर्जी मामला दर्ज कराने की साजिश करते
हैं,
तो उन्हें आपराधिक षड्यंत्र के तहत दंडित किया जा सकता
है।
- सजा:
इस धारा के अंतर्गत संबंधित अपराध की गंभीरता के अनुसार सजा दी जाती है।
फर्जी मामला दर्ज करने की सजा:
1. आपराधिक दंड:
- झूठी गवाही:
यदि कोई व्यक्ति शपथ लेकर झूठे बयान देता है, तो उसे धारा 227 और 229 BNS
के तहत कारावास और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।
- धारा 229:
झूठी गवाही देने पर 7 वर्ष तक की सजा और दस हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- झूठी रिपोर्टिंग:
पुलिस को झूठी रिपोर्ट दर्ज कराना धारा 217
और 248 BNS
के अंतर्गत अपराध है, जिसके लिए एक
वर्ष से पाँच वर्ष तक की सजा और दो लाख रु० तक का जुर्माना हो सकता
है या दोनों से दंडित किया जा सकता है
- धोखाधड़ी:
यदि झूठे मामले के पीछे धोखाधड़ी का उद्देश्य हो,
तो आरोपी को धारा 318 BNS के
तहत सजा मिल सकती है।
2. सिविल दंड
- क्षति का मुआवजा:
झूठे मामले में फंसे व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक
और सामाजिक नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा दिया जा सकता है।
- कानूनी लागत:
झूठे मामले के जवाब में हुए कानूनी खर्चों की भरपाई का आदेश न्यायालय द्वारा
दिया जा सकता है।
3. न्यायालय की अवमानना
- न्यायालय झूठे मामलों के संबंध
में अवमानना की कार्यवाही कर सकता है, जिससे
कारावास और आर्थिक दंड हो सकता है।
- सजा:
अवमानना के आरोप में 6 महीने तक की सजा
और जुर्माना।
4. मानहानि का दावा:
- झूठे आरोपों के कारण यदि किसी
व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान होता है,
तो वह मानहानि का दावा कर सकता है।
- सजा:
2 वर्ष तक का कारावास और हर्जाने का भुगतान।
5. व्यावसायिक अनुशासन:
- यदि किसी वकील,
पुलिस अधिकारी या सरकारी कर्मचारी द्वारा झूठा मामला दर्ज
कराया जाता है, तो उनके निलंबन या बर्खास्तगी का
आदेश दिया जा सकता है।
- न्यायिक मिसाल:
ऐसे मामलों में संबंधित बार काउंसिल अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है।
महत्वपूर्ण भारतीय न्यायिक निर्णय
1. केस: State
of Haryana vs Bhajan Lal, 1992
- निष्कर्ष:
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि पुलिस या प्रशासनिक
अधिकारियों द्वारा फर्जी या झूठे मामले दर्ज कराए जाते हैं,
तो उच्च न्यायालय को धारा 528 BNSS के तहत ऐसे मामलों को रद्द करने का अधिकार है।
2. केस: K.K.
Bhaskaran vs State of Tamil Nadu, 2011
- निष्कर्ष:
अदालत ने कहा कि झूठे मामलों में दोषी पाए गए व्यक्तियों पर मानहानि और
क्षतिपूर्ति के दावे किए जा सकते हैं और झूठी शिकायतकर्ता को कानूनी
हर्जाना देना होगा।
3. केस: Zandu
Pharmaceutical Works Ltd. vs Mohd. Sharaful Haque, 2005
- निष्कर्ष:
अदालत ने कहा कि झूठे मामले दर्ज कराना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है,
और ऐसे मामलों में दोषियों को आपराधिक और सिविल दंड का
सामना करना पड़ सकता है।
संविधानिक अनुच्छेद से संबंधित जानकारी
अनुच्छेद 21
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
- महत्व:
अनुच्छेद 21 भारतीय नागरिकों को जीवन और
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। झूठे मामले दर्ज करना इस
अनुच्छेद का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह निर्दोष
व्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है।
अनुच्छेद 226
- उच्च न्यायालय का अधिकार
- महत्व:
यदि कोई व्यक्ति झूठे मामले में फंसाया गया हो, तो वह अनुच्छेद 226 के तहत उच्च
न्यायालय में याचिका दायर कर न्यायिक राहत प्राप्त कर सकता है।
निष्कर्ष
फर्जी या झूठे
मामले दर्ज कराना भारतीय कानून के तहत गंभीर अपराध है,
जो न्याय व्यवस्था को प्रभावित करता है और निर्दोष नागरिकों को
नुकसान पहुंचाता है। इसके लिए भारतीय दंड संहिता में कड़े प्रावधान हैं, जिससे दोषियों को कारावास, जुर्माना और क्षतिपूर्ति
का दंड दिया जाता है। भारतीय न्यायालयों ने भी समय-समय पर झूठे मामलों के खिलाफ
सख्त कदम उठाए हैं, ताकि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका
जा सके और निर्दोष नागरिकों को सुरक्षा मिल सके।
फर्जी मामला दर्ज
करने की सजा से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. फर्जी
मामला दर्ज करने पर अधिकतम सजा कितनी हो सकती है?
उत्तर:
फर्जी मामला दर्ज करने पर धारा 248 BNS, 2023 के तहत अधिकतम 5 वर्ष तक की सजा या 2 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
यदि मामला हत्या या बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों से संबंधित हो, तो सजा और कठोर हो सकती है।
2. यदि किसी
व्यक्ति ने पुलिस में झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई हो, तो उस पर
कौन सी धारा लगाई जाएगी?
उत्तर:
यदि किसी व्यक्ति ने पुलिस में झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई हो, तो धारा 217 BNS, 2023 के तहत मामला
दर्ज होगा। इसमें दोषी पाए जाने पर 1 वर्ष तक की सजा या 10,000
रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते
हैं।
3. क्या
झूठे आरोप लगाने पर मानहानि का मुकदमा दायर किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को झूठे
आरोपों से नुकसान पहुँचता है, तो धारा 356(1)
और 356(2) BNS, 2023 के तहत मानहानि का
मुकदमा दायर किया जा सकता है। दोषी पाए जाने पर 2 वर्ष
तक की सजा और जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
4. यदि कोई व्यक्ति झूठे आरोपों
से बचना चाहता है, तो उसे क्या करना चाहिए?
उत्तर:
यदि कोई व्यक्ति झूठे आरोपों का सामना कर रहा है, तो वह अनुच्छेद 226 के तहत उच्च
न्यायालय में रिट याचिका दायर कर सकता है। इसके अलावा, धारा 528 BNSS के तहत उच्च न्यायालय को फर्जी
मामलों को निरस्त करने का अधिकार है।
5. क्या
झूठे मामले में फंसे व्यक्ति को मुआवजा मिल सकता है?
उत्तर:
हाँ, झूठे मामले में फंसे व्यक्ति को मानसिक,
आर्थिक और सामाजिक नुकसान की भरपाई के लिए सिविल दंड के तहत
मुआवजा मिल सकता है। न्यायालय झूठे आरोप लगाने वाले व्यक्ति को कानूनी खर्चों
और हुए नुकसान का भुगतान करने का आदेश दे सकता है।
6. क्या
फर्जी मामला दर्ज कराने वाले सरकारी अधिकारी को दंडित किया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि कोई पुलिस अधिकारी,
वकील या सरकारी कर्मचारी जानबूझकर झूठा
मामला दर्ज कराता है, तो उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई
की जा सकती है। बार काउंसिल या संबंधित विभाग द्वारा ऐसे व्यक्ति का निलंबन
या बर्खास्तगी का आदेश दिया जा सकता है।
7. झूठे
आरोप लगाने वाले व्यक्ति पर कौन सी धारा लागू होती है?
उत्तर:
झूठे आरोप लगाने वाले व्यक्ति पर धारा 248 BNS,
2023 लागू होती है। इसके तहत दोषी व्यक्ति को 5 वर्ष तक की सजा या 2 लाख रुपये तक का जुर्माना या
दोनों हो सकते हैं।
8. क्या
न्यायालय झूठे मामले को स्वतः संज्ञान में ले सकता है?
उत्तर:
हाँ, न्यायालय झूठे मामले को धारा 528
BNSS के तहत स्वतः संज्ञान में लेकर ऐसे मामलों को रद्द
करने का अधिकार रखता है। इसके अलावा, न्यायालय अवमानना
की कार्यवाही भी कर सकता है।
9. झूठे
मामले में साजिश करने पर कौन सी धारा लगती है?
उत्तर:
यदि दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर झूठे मामले की साजिश करते हैं,
तो धारा 61(2) BNS, 2023 के तहत
आपराधिक षड्यंत्र का मामला दर्ज किया जा सकता है। इसके तहत साजिश की
गंभीरता के अनुसार सजा का प्रावधान है।
10. क्या
झूठे मामले में दोषी पाए जाने पर अपील की जा सकती है?
उत्तर:
हाँ, झूठे मामले में दोषी पाए जाने के बाद सत्र
न्यायालय या उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। दोषी व्यक्ति अपनी सजा
को चुनौती देकर न्यायिक राहत प्राप्त कर सकता है।
11. क्या
झूठे आरोपों पर न्यायालय द्वारा क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, न्यायालय झूठे आरोपों से हुए आर्थिक
और मानसिक नुकसान की भरपाई के लिए क्षतिपूर्ति का आदेश दे सकता है।
क्षतिपूर्ति की राशि मामले की गंभीरता और हुए नुकसान के आधार पर तय की जाती है।
12. यदि
किसी व्यक्ति ने जानबूझकर फर्जी मामला दर्ज कराया हो, तो
क्या पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है?
उत्तर:
हाँ, यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर फर्जी मामला
दर्ज कराता है, तो पुलिस धारा 217 और 248 BNS, 2023 के तहत उसे गिरफ्तार कर
सकती है और उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू कर सकती है।
13. क्या
उच्च न्यायालय झूठे मामले को रद्द कर सकता है?
उत्तर:
हाँ, उच्च न्यायालय को धारा 528 BNSS के तहत झूठे मामलों
को रद्द करने का अधिकार प्राप्त है। उच्च न्यायालय मामलों की सत्यता की
जांच कर, फर्जी मामलों को समाप्त कर सकता है।
14. झूठे
मामले में फंसाए गए व्यक्ति को न्याय कैसे मिल सकता है?
उत्तर:
झूठे मामले में फंसे व्यक्ति को अनुच्छेद 21 और 226 के तहत संवैधानिक सुरक्षा मिलती
है। व्यक्ति उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर न्यायिक राहत प्राप्त कर
सकता है और मुआवजे की मांग भी कर सकता है।
15. क्या
झूठे मामले में शामिल व्यक्ति पर आपराधिक षड्यंत्र का आरोप लगाया जा सकता है?
उत्तर:
हाँ, यदि कोई व्यक्ति झूठे मामले में शामिल
होकर आपराधिक षड्यंत्र करता है, तो उसे धारा 61(2)
BNS, 2023 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है और उसकी साजिश
की गंभीरता के अनुसार दंड दिया जा सकता है।