प्रथम सूचना रिपोर्ट
(एफआईआर) खारिज होने या पंजीकृत न होने के सामान्य कारण क्या हैं?
🔷 भारत में एफआईआर (First Information Report) अपराध की जांच और न्याय प्रक्रिया की पहली और सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है। जब कोई व्यक्ति पुलिस के पास जाकर अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराना चाहता है, तो पुलिस को भारतीय नगरिल सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 173 के तहत एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होता है।
हालांकि,
कुछ मामलों में पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर सकती है या पहले
से दर्ज एफआईआर को खारिज (Cancel) या निरस्त (Quash)
किया जा सकता है। यह विभिन्न कानूनी,
प्रक्रियात्मक और न्यायिक कारणों से हो सकता है।
इस लेख में हम
विस्तार से समझेंगे कि कौन-कौन से कारण एफआईआर को दर्ज न करने या खारिज करने के
पीछे होते हैं, और यदि कोई व्यक्ति इससे
प्रभावित होता है तो उसके क्या कानूनी विकल्प हैं।
अपराध के प्रकार
➡ भारतीय कानून के तहत
अपराध दो प्रकार के होते हैं:
✔ संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) – जिनमें पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के सीधे जांच कर सकती है।
✔ असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offense) – जिनमें पुलिस को जांच शुरू करने के लिए पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी पड़ती है।
➡ यदि कोई अपराध असंज्ञेय
अपराध की श्रेणी में आता है, तो पुलिस एफआईआर दर्ज करने से
मना कर सकती है और शिकायतकर्ता को मजिस्ट्रेट के पास भेज सकती है।
न्यायिक दृष्टिकोण
➡ ललिता
कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [(2013) 7 SCC 1] मामले
में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि अपराध संज्ञेय है, तो पुलिस को एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होगा।
गलत पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने का प्रयास
अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction)
का अभाव
➡ एफआईआर उसी
पुलिस स्टेशन में दर्ज होनी चाहिए, जिसके अधिकार
क्षेत्र (Jurisdiction) में अपराध हुआ हो।
➡ यदि कोई व्यक्ति
गलत पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज कराने का प्रयास करता है, तो
पुलिस उसे सही स्थान पर जाने का निर्देश दे सकती है।
कानूनी प्रावधान
✔ BNSS की
धारा 197 – अपराध की सुनवाई उसी क्षेत्र में होगी,
जहां अपराध हुआ है।
✔ BNSS की
धारा 173(4) – यदि पुलिस गलत क्षेत्राधिकार का बहाना
बनाकर एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है, तो मजिस्ट्रेट से शिकायत
की जा सकती है।
अधूरी या अपर्याप्त जानकारी
एफआईआर दर्ज करने के लिए आवश्यक जानकारी
➡ एफआईआर में
निम्नलिखित विवरण आवश्यक होते हैं:
✔ घटना की
तिथि और समय
✔ अपराध का
स्थान
✔ अपराध का
संक्षिप्त विवरण
✔ आरोपी का
नाम (यदि ज्ञात हो)
✔ गवाहों की
जानकारी (यदि कोई हों)
➡ यदि एफआईआर में महत्वपूर्ण
जानकारी अधूरी होगी, तो पुलिस उसे दर्ज करने से इनकार कर
सकती है।
न्यायिक निर्णय
➡ राजू बनाम मध्य प्रदेश
राज्य [(2007) 3 SCC 441] – कोर्ट ने कहा कि एफआईआर
में सही और पर्याप्त विवरण आवश्यक है, ताकि जांच
प्रभावी हो सके।
प्रथम दृष्टया कोई साक्ष्य न मिलना
क्या होता है प्रथम दृष्टया साक्ष्य?
➡ यदि पुलिस को ऐसा प्रतीत
होता है कि शिकायतकर्ता के आरोप प्रथम दृष्टया झूठे या प्रमाणिकता से रहित हैं,
तो वह एफआईआर दर्ज करने से मना कर सकती है।
उदाहरण
✔
झूठे आरोप लगाकर किसी को फंसाने का प्रयास
✔ अपराध का
कोई साक्ष्य न मिलना
न्यायिक दृष्टिकोण
➡ भजनलाल
केस [(1992) AIR 604 SC] – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि
आरोप पूरी तरह झूठे या दुर्भावनापूर्ण हैं, तो एफआईआर
दर्ज नहीं की जानी चाहिए।
झूठी या
दुर्भावनापूर्ण (Malicious) शिकायत
झूठी शिकायत के मामले
➡
यदि पुलिस को लगता है कि शिकायत झूठी, भ्रामक या दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों से प्रेरित है, तो वह एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर सकती है।
कानूनी प्रावधान
✔ BNS धारा 217
– झूठी जानकारी देने पर दंड का प्रावधान।
✔ BNS धारा 248
– झूठे आरोप लगाने पर सजा।
न्यायिक निर्णय
➡ प्रदीप
सरकार बनाम भारत संघ [(2018) 2 SCC 281] – कोर्ट ने कहा
कि झूठी एफआईआर दर्ज कराना एक गंभीर अपराध है और इसके खिलाफ कार्रवाई होनी
चाहिए।
सिविल विवाद को आपराधिक मामला बनाना
सिविल विवाद क्या है?
➡ यदि मामला आपराधिक अपराध के बजाय सिविल विवाद है (जैसे संपत्ति विवाद, अनुबंध उल्लंघन), तो पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर सकती है।न्यायिक दृष्टिकोण
➡ के.
रामकृष्णन बनाम तमिलनाडु राज्य [(2014) 3 SCC 573] – कोर्ट
ने कहा कि सिविल विवादों में पुलिस को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
मामूली अपराध (Trivial
Issues)
➡ यदि अपराध बहुत ही मामूली
(Trivial) है, तो पुलिस
एफआईआर दर्ज करने के बजाय शिकायतकर्ता को कानूनी परामर्श (Legal
Advice) लेने की सलाह दे सकती है।
उदाहरण
✔ छोटी-मोटी
कहासुनी
✔ गली-मोहल्ले
के झगड़े
न्यायिक फैसला
➡ सुब्रमण्यम
स्वामी बनाम भारत संघ [(2016) 7 SCC 615] – सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से बोझिल नहीं बनाना चाहिए।
एफआईआर वापस लेने
का अनुरोध
➡ यदि शिकायतकर्ता खुद एफआईआर
दर्ज करने के बाद उसे वापस लेना चाहता है, तो पुलिस एफआईआर
दर्ज न करने का विकल्प चुन सकती है।
कानूनी स्थिति
✔ संज्ञेय अपराधों में एफआईआर
वापस लेना अदालत की अनुमति से ही संभव है।
✔ असंज्ञेय
मामलों में शिकायतकर्ता एफआईआर दर्ज होने से पहले ही उसे वापस ले सकता है।
निष्कर्ष
✅ एफआईआर दर्ज न होने या खारिज
होने के पीछे कई कानूनी और प्रक्रियात्मक कारण हो सकते हैं।
✅ यदि
पुलिस बिना कारण एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है, तो शिकायतकर्ता
मजिस्ट्रेट के पास जा सकता है (BNSS धारा 173(4))।
✅ झूठी
एफआईआर दर्ज कराना अपराध है (BNS धारा 217, 228)।
✅ न्यायालयों
ने स्पष्ट किया है कि यदि अपराध संज्ञेय है, तो पुलिस
को एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।
"न्याय
पाना हर नागरिक का अधिकार है, और एफआईआर इसका पहला कदम
है।"
एफआईआर खारिज होने
या पंजीकृत न होने से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. एफआईआर
दर्ज नहीं होने के मुख्य कारण क्या हैं?
✅ एफआईआर दर्ज न होने के पीछे
कई कारण हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं:
✔ असंज्ञेय
अपराध – पुलिस को बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के जांच
करने का अधिकार नहीं होता।
✔ अधिकार
क्षेत्र का अभाव – अपराध गलत पुलिस स्टेशन के अधिकार
क्षेत्र में हो सकता है।
✔ अपर्याप्त
विवरण – एफआईआर में पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई हो।
✔ सिविल
मामला – यदि मामला सिविल विवाद (जैसे संपत्ति विवाद) से
संबंधित हो।
✔ प्रथम
दृष्टया कोई साक्ष्य न मिलना – यदि अपराध का कोई
प्राथमिक साक्ष्य मौजूद नहीं है।
✔ झूठी या
दुर्भावनापूर्ण शिकायत – यदि पुलिस को संदेह है कि
एफआईआर झूठी है।
2. असंज्ञेय
अपराध क्या होते हैं, और ऐसे मामलों में एफआईआर क्यों नहीं
दर्ज होती?
✅ असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable
Offense) वे अपराध होते हैं, जिनमें पुलिस
को जांच करने या गिरफ्तारी करने के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी पड़ती है।
✔ उदाहरण:
मानहानि (BNS धारा 356(2)), साधारण
गाली-गलौज (BNS धारा 352)
✔ ऐसे मामलों में पुलिस केवल
शिकायत दर्ज कर सकती है, लेकिन एफआईआर तभी दर्ज होगी जब
मजिस्ट्रेट अनुमति देगा।
3. यदि
पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना कर दे तो क्या करें?
✅ यदि पुलिस एफआईआर दर्ज करने
से इनकार कर रही है, तो आप निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं:
✔ जिले के
एसपी (Superintendent of Police) से शिकायत करें।
✔ BNSS धारा
173(4) के तहत मजिस्ट्रेट से आदेश लेकर एफआईआर दर्ज
कराएं।
✔ सूचना
का अधिकार (RTI) के तहत जानकारी मांगें कि एफआईआर क्यों दर्ज
नहीं की गई।
✔ हाई
कोर्ट में रिट याचिका दायर करें।
4. क्या
एफआईआर को खारिज किया जा सकता है?
✅ हां, एफआईआर
को विभिन्न आधारों पर खारिज किया जा सकता है, जैसे:
✔ यदि
एफआईआर झूठी पाई जाती है।
✔ यदि
मामला पूरी तरह सिविल प्रकृति का हो और कोई आपराधिक पहलू न हो।
✔ यदि
आरोपों के समर्थन में कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य न मिले।
5. एफआईआर
को रद्द (Quash) करने की प्रक्रिया क्या है?
✅ यदि किसी को लगता है कि
एफआईआर गलत तरीके से दर्ज की गई है, तो वह BNSS की धारा 528 के तहत हाई कोर्ट में एफआईआर रद्द
करने की याचिका दायर कर सकता है।
✔ हाई
कोर्ट मामले की जांच करेगा और यदि एफआईआर में कोई ठोस आधार नहीं मिलेगा, तो उसे रद्द किया जा सकता है।
6. क्या
पुलिस किसी भी मामले में एफआईआर दर्ज करने से मना कर सकती है?
✅ नहीं, अगर मामला संज्ञेय अपराध का है, तो पुलिस को
अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करनी होगी।
✔ ललिता
कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [(2013) 7 SCC 1] – सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस के लिए एफआईआर दर्ज
करना अनिवार्य है।
7. क्या
किसी एक ही मामले में एक से अधिक एफआईआर दर्ज हो सकती हैं?
✅ नहीं, एक
ही घटना के लिए एक से अधिक एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती।
✔ टी.टी.
एंटनी बनाम भारत सरकार [(2001) 6 SCC 181] – सुप्रीम
कोर्ट ने फैसला दिया कि एक ही अपराध के लिए दूसरी एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती।
8. क्या
पुलिस बिना किसी कारण के एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर सकती है?
✅ नहीं, BNSS की धारा 173(1) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की शिकायत संज्ञेय अपराध से संबंधित है, तो पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी होगी।
✔ यदि पुलिस
बिना किसी ठोस कारण के इनकार करती है, तो व्यक्ति एसपी या
मजिस्ट्रेट के पास जा सकता है।
9. क्या कोई
व्यक्ति एफआईआर वापस ले सकता है?
✅ संज्ञेय अपराधों में एफआईआर दर्ज होने के बाद उसे वापस लेना आसान नहीं होता और
इसके लिए अदालत की अनुमति आवश्यक होती है।
✅ असंज्ञेय
अपराधों में शिकायतकर्ता एफआईआर वापस ले सकता है,
यदि मामला अदालत तक नहीं पहुंचा हो।
10. क्या
झूठी एफआईआर दर्ज कराना अपराध है?
✅ हां, झूठी
एफआईआर दर्ज कराना दंडनीय अपराध है।
✔ BNS धारा
217 – झूठी सूचना देने पर एक वर्ष की जेल या जुर्माना
10 हजार रुपये या दोनों हो सकते हैं।
✔ BNS धारा
248 – झूठे आपराधिक मामले दर्ज कराने पर 5 साल तक की जेल तथा
2 लाख रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है ।
11. क्या
पुलिस एक बार दर्ज की गई एफआईआर को खुद खारिज कर सकती है?
✅ नहीं, पुलिस
एफआईआर को खुद से खारिज नहीं कर सकती।
✔ यदि जांच
में कोई अपराध नहीं पाया जाता, तो पुलिस फाइनल रिपोर्ट (Closure
Report) दाखिल कर सकती है, लेकिन इसे
मजिस्ट्रेट की स्वीकृति चाहिए होती है।
12. यदि
एफआईआर गलत तरीके से दर्ज की गई हो तो उसे कैसे चुनौती दी जा सकती है?
✅ यदि एफआईआर झूठी है, तो व्यक्ति हाई कोर्ट में BNSS धारा 528
के तहत एफआईआर रद्द करने की याचिका दायर कर सकता है।
13. क्या
कोई एफआईआर केवल मौखिक रूप से दर्ज कराई जा सकती है?
✅ नहीं, एफआईआर को लिखित रूप में दर्ज किया जाना आवश्यक है।
✔ BNSS धारा
173 (2) के तहत शिकायतकर्ता को एफआईआर की एक प्रमाणित
कॉपी निःशुल्क दी जानी चाहिए।
14. एफआईआर
खारिज करने से जुड़े महत्वपूर्ण अदालती फैसले कौन-कौन से हैं?
✅ ललिता कुमारी बनाम उत्तर
प्रदेश राज्य (2013) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संज्ञेय
अपराध की सूचना मिलने पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।
✅ टी.टी.
एंटनी बनाम भारत सरकार (2001) – एक ही अपराध के लिए
दूसरी एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती।
✅ भजनलाल
केस (1992) – यदि आरोप प्रथम दृष्टया झूठे हैं,
तो एफआईआर दर्ज नहीं की जानी चाहिए।
15. क्या
एफआईआर दर्ज न होने पर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है?
✅ हां, यदि
कोई पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार करती है, तो व्यक्ति हाई
कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है।
✔ संविधान
के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट और संविधान के
अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका
दायर की जा सकती है।
विशेष तथ्य
✅ एफआईआर दर्ज न होने या खारिज
होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन यदि मामला
संज्ञेय अपराध से संबंधित है, तो पुलिस को इसे दर्ज
करना ही होगा।
✅ यदि कोई
पुलिस अधिकारी अन्यायपूर्ण तरीके से एफआईआर दर्ज करने से इनकार करता है,
तो मजिस्ट्रेट, एसपी, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से न्याय पाने के लिए संपर्क किया जा सकता है।
✅ झूठी
एफआईआर दर्ज कराना स्वयं एक अपराध है, और इसके लिए कठोर
दंड का प्रावधान है।
"कानून
का सही उपयोग न्याय को सुनिश्चित करता है, और एफआईआर इसका
पहला कदम है।"