सिविल प्रक्रिया
संहिता,
1908 (CPC, 1908) का अध्याय 1 प्रारंभिक
प्रावधानों को प्रस्तुत करता है, जो भारतीय सिविल न्यायिक
प्रणाली की नींव हैं। इसमें धारा 1 से धारा 8
तक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रियाओं और उनके
दायरे को परिभाषित किया गया है। नीचे इन धाराओं का विस्तृत विश्लेषण किया जा रहा
है:
धारा 1
- संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार और प्रारंभ (Short
Title, Extent, and Commencement)
(1) संक्षिप्त शीर्षक (Short Title):
- इसे "सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908" (The Code of Civil
Procedure, 1908) कहा जाता है।
- यह नाम पूरे भारत में इस अधिनियम
को मान्यता और पहचान प्रदान करता है।
(2) विस्तार (Extent):
- यह संहिता पूरे भारत में
लागू होती है।
- जम्मू और कश्मीर:
अनुच्छेद 370 हटने से पहले CPC यहां लागू नहीं होती थी, लेकिन 5 अगस्त 2019 के बाद, CPC जम्मू
और कश्मीर तथा लद्दाख पर भी लागू हो गई।
- अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्र:
संविधान के अनुच्छेद 244 और छठी अनुसूची के
तहत आदिवासी क्षेत्रों में CPC के कुछ प्रावधान लागू
नहीं होते हैं।
(3) प्रारंभ (Commencement):
- इस अधिनियम को 21
मार्च, 1908 को
ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया और यह 1 जनवरी, 1909 से प्रभावी हुआ।
धारा 2
- परिभाषाएं (Definitions)
धारा 2 में सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रयुक्त विभिन्न शब्दों और पदों की
परिभाषाएं दी गई हैं, जो इस अधिनियम को समझने में सहायक
होती हैं।
प्रमुख परिभाषाएं:
- (1) वादी (Plaintiff):
वह व्यक्ति जो किसी न्यायालय में अपने अधिकारों की सुरक्षा
हेतु वाद दायर करता है।
- (2) प्रतिवादी (Defendant):
वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध वाद दायर किया गया हो।
- (3) न्यायालय (Court):
वह संस्थान जो न्यायिक शक्ति का प्रयोग करता है और वाद का
निपटारा करता है।
- (4) निर्णय (Decree):
न्यायालय द्वारा किसी वाद में अधिकारों का अंतिम निर्धारण।
- (5) आदेश (Order):
न्यायालय द्वारा मुकदमे के दौरान पारित किसी निर्देश को आदेश
कहा जाता है।
- (6) निष्पादन (Execution):
न्यायालय द्वारा पारित आदेशों और निर्णयों को लागू करने की
प्रक्रिया।
धारा 3
- उच्च न्यायालयों के लिए विशेष प्रावधान (Provision for
High Courts)
- यह धारा उच्च न्यायालयों (High
Courts) को सिविल मामलों में विशेष
प्रावधानों का अधिकार देती है।
- विशेष अधिकार:
- उच्च न्यायालयों को सिविल
प्रक्रिया के संचालन के संबंध में नियम और दिशा-निर्देश बनाने की स्वतंत्रता
दी गई है।
- यदि किसी उच्च न्यायालय ने अपने
क्षेत्राधिकार में किसी विशेष नियम को मान्यता दी हो,
तो वह नियम CPC के प्रावधानों को
प्रभावित नहीं करेगा।
धारा 4
- स्थानीय और विशेष कानूनों का प्रभाव (Savings of Special
and Local Laws)
- इस धारा के तहत,
स्थानीय और विशेष कानूनों का
प्रभाव बनाए रखा गया है।
- स्थानीय कानूनों की बाध्यता:
- यदि किसी क्षेत्र में कोई विशेष
या स्थानीय कानून लागू है, तो वह प्रभावी
रहेगा, जब तक कि वह CPC के
प्रावधानों के विपरीत न हो।
- यदि कोई कानून CPC
से असंगत नहीं है, तो स्थानीय कानूनों
का पालन करना अनिवार्य है।
- उदाहरण: आदिवासी क्षेत्रों में
पारंपरिक न्याय प्रणाली को इस धारा के तहत संरक्षित किया गया है।
धारा 5
- अधिनियम की बाध्यता (Application of the Code to Revenue
Courts and Cases Exempted)
- इस धारा के अनुसार,
जहां विशेष या स्थानीय कानून लागू हैं, वहां CPC के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
- अपवाद:
- यदि किसी विशेष या स्थानीय
अधिनियम में CPC की स्पष्ट रूप से
आवश्यकता हो, तो वह संहिता लागू होगी।
- राजस्व न्यायालयों (Revenue
Courts): CPC तब तक राजस्व
न्यायालयों पर लागू नहीं होगी, जब तक कि विशेष रूप से
ऐसा उल्लेख न किया गया हो।
- उदाहरण: यदि कोई भूमि विवाद
राजस्व न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आता है, तो CPC के प्रावधान स्वतः लागू नहीं होंगे।
धारा 6
- न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र (Pecuniary Jurisdiction of
Courts)
- यह धारा न्यायालयों को वित्तीय
क्षेत्राधिकार (Pecuniary Jurisdiction)
के आधार पर विभाजित करती है।
- न्यायालयों की वित्तीय सीमा:
- प्रत्येक न्यायालय को वित्तीय
सीमा (Monetary Limit)
के आधार पर सिविल वादों की सुनवाई का अधिकार दिया गया है।
- उदाहरण:
- जिला न्यायालय को बड़ी राशि के
वादों को सुनने का अधिकार हो सकता है।
- निचली अदालतें छोटी राशि के
वादों तक सीमित हो सकती हैं।
- महत्व:
इस प्रावधान से यह सुनिश्चित होता है कि न्यायालयों को उनकी वित्तीय सीमा के
अनुरूप वाद सौंपे जाएं।
धारा 7
- प्रांतीय लघु करण न्यायालय अधिनियम का अपवाद (Savings of
Provincial Small Cause Courts Act)
- इस धारा में प्रांतीय लघु करण
न्यायालय अधिनियम, 1887 (Provincial Small Cause
Courts Act, 1887) को CPC के प्रभाव से अपवाद दिया गया है।
- अपवाद:
- यदि किसी मामले में लघु करण
न्यायालय (Small Cause Court)
का क्षेत्राधिकार है, तो वह वाद CPC
के प्रावधानों के तहत नहीं आएगा।
- लघु कारण न्यायालय में मुकदमों
की प्रक्रिया त्वरित और सरल होती है।
धारा 8
- प्रांतीय लघु कारण न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction
of Provincial Small Cause Courts)
- प्रांतीय लघु कारण न्यायालयों
को विशेष प्रकार के वादों को सुनने का अधिकार दिया गया है।
- सीमा और अधिकार:
- लघु कारण न्यायालय केवल उन वादों
को सुन सकते हैं, जो विशेष रूप से
अधिनियम में निर्दिष्ट किए गए हैं।
- लघु कारण न्यायालयों को संपत्ति
विवाद या बड़े वित्तीय वादों की सुनवाई का अधिकार नहीं दिया गया है।
निष्कर्ष (Conclusion)
सिविल प्रक्रिया
संहिता,
1908 का अध्याय 1 (Preliminary Chapter) भारतीय सिविल न्याय व्यवस्था की नींव रखता है।
- धारा 1
से धारा 8 तक
में CPC का नाम, विस्तार,
परिभाषाएं, उच्च न्यायालयों के अधिकार,
स्थानीय और विशेष कानूनों का प्रभाव, राजस्व
न्यायालयों की बाध्यता, न्यायालयों का वित्तीय
क्षेत्राधिकार और लघु कारण न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र जैसे महत्वपूर्ण
प्रावधान शामिल हैं।
- ये प्रावधान सिविल न्यायिक
प्रक्रिया में पारदर्शिता, समानता
और न्यायसंगत समाधान सुनिश्चित करते हैं।
- इन धाराओं का अनुपालन विवादों
के त्वरित और प्रभावी निपटारे को सुगम बनाता है।
FAQs: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) - अध्याय 1 (Preliminary Provisions)
1. सिविल
प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) का संक्षिप्त शीर्षक क्या है?
उत्तर:
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 को "The
Code of Civil Procedure, 1908" कहा जाता है।
2. सिविल
प्रक्रिया संहिता (CPC) का विस्तार किन क्षेत्रों में होता
है?
उत्तर:
- यह पूरे भारत में लागू
होती है।
- जम्मू और कश्मीर
में 5 अगस्त 2019 के
बाद यह संहिता लागू हो गई।
- अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों
में संविधान के अनुच्छेद 244 और छठी अनुसूची
के तहत CPC के कुछ प्रावधान लागू नहीं होते हैं।
3. CPC, 1908 की प्रभावी तिथि क्या है?
उत्तर:
यह अधिनियम 21 मार्च, 1908 को पारित हुआ और 1 जनवरी, 1909 से लागू हुआ।
4. धारा 2
में किन महत्वपूर्ण परिभाषाओं का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
धारा 2
में मुख्यतः निम्न परिभाषाएं दी गई हैं:
- वादी (Plaintiff):
वाद दायर करने वाला व्यक्ति।
- प्रतिवादी (Defendant):
जिसके खिलाफ वाद दायर किया गया हो।
- न्यायालय (Court):
वाद का निपटारा करने वाली संस्था।
- निर्णय (Decree):
वाद में अधिकारों का अंतिम निर्धारण।
- आदेश (Order):
मुकदमे के दौरान न्यायालय द्वारा पारित निर्देश।
- निष्पादन (Execution):
न्यायालय के आदेशों और निर्णयों को लागू करने की प्रक्रिया।
5. धारा 3
के तहत उच्च न्यायालयों के लिए कौन से विशेष प्रावधान दिए गए हैं?
उत्तर:
- उच्च न्यायालयों को सिविल मामलों
में विशेष प्रावधानों का अधिकार प्राप्त है।
- उन्हें सिविल प्रक्रिया के
संचालन के लिए नियम और दिशा-निर्देश बनाने की स्वतंत्रता है।
- यदि किसी उच्च न्यायालय ने किसी
विशेष नियम को मान्यता दी हो, तो
वह CPC के प्रावधानों को प्रभावित नहीं करेगा।
6. धारा 4
के तहत स्थानीय और विशेष कानूनों का क्या प्रभाव है?
उत्तर:
- यदि किसी क्षेत्र में विशेष या
स्थानीय कानून लागू हैं, तो वे प्रभावी
रहेंगे, जब तक कि वे CPC के
विपरीत न हों।
- आदिवासी क्षेत्रों की पारंपरिक
न्याय प्रणाली इस धारा के तहत संरक्षित है।
7. धारा 5
में अधिनियम की बाध्यता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
- जहां विशेष या स्थानीय कानून
लागू हैं, वहां CPC के
प्रावधान लागू नहीं होंगे।
- यदि किसी अधिनियम में CPC
की स्पष्ट रूप से आवश्यकता हो, तो वह
संहिता लागू होगी।
- राजस्व न्यायालयों
पर CPC
तब तक लागू नहीं होगी, जब तक कि विशेष
रूप से ऐसा उल्लेख न हो।
8. धारा 6
के तहत न्यायालयों का वित्तीय अधिकार क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
- न्यायालयों को वित्तीय सीमा (Pecuniary
Jurisdiction) के आधार पर वादों की
सुनवाई का अधिकार दिया गया है।
- उदाहरण:
- जिला न्यायालयों को बड़ी राशि के
वादों की सुनवाई का अधिकार हो सकता है।
- निचली अदालतें छोटी राशि के
वादों तक सीमित हो सकती हैं।
9. धारा 7
में प्रांतीय लघु कारण न्यायालय अधिनियम, 1887 का अपवाद क्या है?
उत्तर:
- प्रांतीय लघु कारण न्यायालय
अधिनियम, 1887 (Provincial Small Cause Courts
Act, 1887) को CPC से अपवाद दिया गया है।
- यदि किसी मामले में लघु कारण
न्यायालय का क्षेत्राधिकार है, तो
वह वाद CPC के प्रावधानों के तहत नहीं आएगा।
10. धारा 8
के तहत प्रांतीय लघु कारण न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
- प्रांतीय लघु कारण न्यायालय
केवल उन वादों को सुन सकते हैं, जो
विशेष रूप से अधिनियम में निर्दिष्ट हैं।
- वे संपत्ति विवाद या बड़े
वित्तीय वादों की सुनवाई नहीं कर सकते।
11. क्या CPC,
1908 राजस्व न्यायालयों पर लागू होती है?
उत्तर:
- CPC, 1908 राजस्व
न्यायालयों पर तब तक लागू नहीं होती जब तक कि विशेष
रूप से ऐसा उल्लेख न किया गया हो।
- यदि कोई भूमि विवाद राजस्व
न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है, तो CPC
स्वतः लागू नहीं होती।
12. उच्च
न्यायालयों को CPC के तहत किस प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त
है?
उत्तर:
- उच्च न्यायालयों को अपने
क्षेत्राधिकार में नियम और दिशानिर्देश बनाने की स्वतंत्रता है।
- विशेष परिस्थितियों में उच्च
न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार में CPC के
कुछ प्रावधानों को संशोधित कर सकते हैं।
13. CPC के
प्रारंभिक प्रावधान क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
- CPC के प्रारंभिक
प्रावधान सिविल न्याय व्यवस्था की नींव रखते हैं।
- ये प्रावधान न्यायालयों की
अधिकारिता, वाद प्रक्रिया,
और आदेशों के निष्पादन
को सुनिश्चित करते हैं।
14. लघु
कारण न्यायालयों की प्रक्रिया किस प्रकार भिन्न होती है?
उत्तर:
- लघु कारण न्यायालयों में मुकदमों
की प्रक्रिया त्वरित और सरल होती है।
- वे केवल उन्हीं वादों को सुन सकते
हैं,
जो विशेष रूप से अधिनियम में निर्दिष्ट हैं।
15. CPC के
प्रारंभिक प्रावधानों का पालन क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
- CPC के प्रारंभिक
प्रावधानों का पालन सिविल मामलों के त्वरित और प्रभावी निपटारे को
सुनिश्चित करता है।
- यह न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता,
समानता और न्यायसंगत समाधान
प्रदान करता है।
“CPC, 1908 का
अध्याय 1 (Preliminary Chapter) भारतीय सिविल
न्याय व्यवस्था की नींव रखता है। इसमें CPC के नाम, विस्तार, परिभाषाएं, उच्च
न्यायालयों के अधिकार, स्थानीय और विशेष कानूनों का प्रभाव,
न्यायालयों का वित्तीय अधिकार क्षेत्र और लघु कारण न्यायालयों की
प्रक्रिया जैसे महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल हैं।“
“इन
प्रावधानों का अनुपालन न्यायिक प्रणाली में निष्पक्षता और कुशलता सुनिश्चित
करता है।“