भारतीय
न्यायिक प्रणाली में आपराधिक मामलों के विचारण के लिए दंड प्रक्रिया संहिता,
1973 (CrPC) एक महत्वपूर्ण कानून है,
जो आपराधिक मुकदमों की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। इसकी धारा
242 अभियोजन के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने की
प्रक्रिया को निर्धारित करती है। दूसरी ओर, भारतीय नागरिक
सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS), जो CrPC का स्थान लेने के लिए प्रस्तावित है, अपनी धारा 265
में समान प्रावधानों को शामिल करती है, लेकिन
कुछ आधुनिक सुधारों के साथ। इस लेख में, हम दोनों धाराओं का
विस्तृत विश्लेषण करेंगे, उनकी समानताओं और अंतरों पर चर्चा
करेंगे, और एक न्यायालयीन उदाहरण के माध्यम से उनके
व्यावहारिक अनुप्रयोग को समझेगे।
दंड
प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 242: अभियोजन के लिए साक्ष्य
धारा
242 उन परिस्थितियों को संबोधित करती है जहां मजिस्ट्रेट अभियोजन पक्ष के
साक्ष्यों को दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू करता है। इस धारा के तीन उप-खंड हैं,
जो निम्नलिखित हैं:
उप-खंड
(1):
साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करना
यदि
अभियुक्त:
- अभिवचन (plea
of guilty) देने से इंकार कर देता है,
- कोई अभिवचन नहीं करता है,
- विचारण (trial)
की मांग करता है,
- या मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 241
(दोषी अभिवचन पर दोषसिद्धि) के तहत दोषी नहीं ठहराता है,
तो
मजिस्ट्रेट साक्षियों की परीक्षा के लिए एक तारीख नियत करेगा। इसके अतिरिक्त,
2008 के संशोधन अधिनियम के तहत यह प्रावधान जोड़ा गया कि मजिस्ट्रेट
को पुलिस द्वारा जांच के दौरान दर्ज किए गए गवाहों के बयान अभियुक्त को अग्रिम रूप
से उपलब्ध कराने होंगे। यह प्रावधान निष्पक्ष विचारण के सिद्धांत को मजबूत करता है,
क्योंकि अभियुक्त को अभियोजन के साक्ष्यों की जानकारी पहले से
प्राप्त हो जाती है।
उप-खंड
(2):
गवाहों को सम्मन जारी करना
मजिस्ट्रेट
अभियोजन पक्ष के आवेदन पर किसी भी गवाह को सम्मन जारी कर सकता है। इस सम्मन में
गवाह को:
- व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने,
- कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने,
- या कोई अन्य वस्तु पेश करने,
का
निर्देश दिया जा सकता है। यह उप-खंड अभियोजन को अपने मामले को प्रभावी ढंग से
प्रस्तुत करने में सहायता करता है।
उप-खंड
(3):
साक्ष्य दर्ज करना और जिरह
नियत
तारीख पर,
मजिस्ट्रेट अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सभी साक्ष्यों को दर्ज
करने की प्रक्रिया शुरू करता है। हालांकि, मजिस्ट्रेट को यह
अधिकार है कि:
- किसी साक्षी की जिरह (cross-examination)
को स्थगित कर सकता है, यदि अन्य
साक्षियों की परीक्षा पूरी नहीं हुई हो,
- या किसी साक्षी को बाद में जिरह
के लिए वापस बुला सकता है।
यह
लचीलापन सुनिश्चित करता है कि विचारण व्यवस्थित और निष्पक्ष तरीके से हो।
भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 265:
अभियोजन के लिए साक्ष्य
BNSS
की धारा 265 CrPC की
धारा 242 के समान है, लेकिन इसमें कुछ
आधुनिक और तकनीकी सुधार शामिल किए गए हैं। आइए इसके प्रावधानों को देखें:
उप-खंड
(1):
तारीख नियत करना और बयान उपलब्ध कराना
CrPC
की तरह, यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इंकार
करता है, कोई अभिवचन नहीं करता, विचारण
की मांग करता है, या मजिस्ट्रेट उसे धारा 264 (दोषी अभिवचन पर दोषसिद्धि) के तहत दोषी नहीं ठहराता, तो मजिस्ट्रेट साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा। पुलिस
द्वारा दर्ज गवाहों के बयान अभियुक्त को पहले से उपलब्ध कराने का प्रावधान भी यहां
शामिल है।
उप-खंड
(2):
सम्मन जारी करना
यह
उप-खंड CrPC
के उप-खंड (2) के समान है। मजिस्ट्रेट अभियोजन
के आवेदन पर गवाहों को उपस्थित होने, दस्तावेज या अन्य
सामग्री प्रस्तुत करने के लिए सम्मन जारी कर सकता है।
उप-खंड
(3):
साक्ष्य दर्ज करना और तकनीकी सुधार
यह
उप-खंड भी CrPC के उप-खंड (3) के
समान है, जिसमें मजिस्ट्रेट अभियोजन के साक्ष्यों को दर्ज
करता है और जिरह को स्थगित करने या साक्षी को वापस बुलाने का अधिकार रखता है।
हालांकि, BNSS में एक अतिरिक्त प्रावधान जोड़ा गया है कि साक्षी
की परीक्षा श्रव्य-दृश्य (audio-visual) इलेक्ट्रॉनिक
माध्यमों से की जा सकती है, बशर्ते यह राज्य सरकार
द्वारा अधिसूचित स्थान पर हो। यह प्रावधान तकनीकी प्रगति को दर्शाता है और दूरस्थ
गवाही को संभव बनाता है, जो विशेष रूप से महामारी या अन्य
आपातकालीन परिस्थितियों में उपयोगी हो सकता है।
प्रमुख
अंतर:
BNSS
में तकनीकी प्रगति को शामिल करते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग जैसे
आधुनिक तरीकों से साक्ष्य दर्ज करने की अनुमति दी गई है। यह न केवल समय और
संसाधनों की बचत करता है, बल्कि साक्षियों की सुरक्षा और
सुविधा को भी बढ़ाता है।
न्यायालयीन उदाहरण
आइए
एक काल्पनिक मामले के माध्यम से इन धाराओं के व्यावहारिक अनुप्रयोग को समझें:
मामला:
अकरम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 379 (चोरी) के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने जांच पूरी कर ली और चार
गवाहों के बयान दर्ज किए। अकरम ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दोषी होने से इंकार किया और
विचारण की मांग की।
1. CrPC
धारा 242 के तहत प्रक्रिया:
o मजिस्ट्रेट
ने धारा 242(1)
के तहत साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत की।
o पुलिस
द्वारा दर्ज गवाहों के बयान अकरम को उपलब्ध कराए गए।
o अभियोजन
पक्ष ने दो गवाहों को बुलाने के लिए आवेदन किया, और
मजिस्ट्रेट ने धारा 242(2) के तहत सम्मन जारी किया।
o नियत तारीख पर, मजिस्ट्रेट ने धारा 242(3) के तहत साक्षियों के बयान दर्ज किए। एक गवाह की जिरह को स्थगित कर दिया गया, क्योंकि बचाव पक्ष ने अतिरिक्त दस्तावेज मांगे।
2. BNSS
धारा 265 के तहत प्रक्रिया:
o प्रक्रिया
समान रही,
लेकिन एक गवाह, जो विदेश में था, ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपनी गवाही दी, जैसा कि धारा 265(3) के अतिरिक्त प्रावधान में
अनुमति है।
o यह
तकनीकी सुविधा समय और लागत की बचत के साथ-साथ विचारण को तेज करने में सहायक रही।
न्यायिक
परिणाम:
दोनों
ही मामलों में, साक्ष्यों के आधार पर मजिस्ट्रेट ने
अभियोजन और बचाव पक्ष की दलीलों को सुना और निर्णय लिया। BNSS के तहत प्रक्रिया अधिक कुशल और तकनीकी रूप से उन्नत थी।
निष्कर्ष
CrPC
की धारा 242 और BNSS
की धारा 265 दोनों ही अभियोजन के
साक्ष्यों को दर्ज करने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करती हैं, जो आपराधिक विचारण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। BNSS में शामिल तकनीकी प्रावधान, जैसे कि वीडियो
कॉन्फ्रेंसिंग, इसे आधुनिक समय के लिए अधिक प्रासंगिक बनाते
हैं। ये धाराएं निष्पक्ष और व्यवस्थित विचारण के सिद्धांत को मजबूत करती हैं,
जिससे अभियुक्त को अपने बचाव का पूरा अवसर मिलता है।
उपरोक्त
न्यायालयीन उदाहरण से यह स्पष्ट है कि दोनों कानून अभियोजन पक्ष को साक्ष्य
प्रस्तुत करने का समान अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन BNSS
के तहत प्रक्रिया अधिक लचीली और तकनीकी रूप से उन्नत है। यह भारतीय
न्यायिक प्रणाली को और अधिक कुशल बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।