14
जून 2025
शादी
का रिश्ता प्यार, विश्वास और सम्मान की नींव
पर टिका होता है। लेकिन जब इस रिश्ते में एक साथी दूसरे का अपमान करे, खासकर उसकी शारीरिक स्थिति को लेकर, तो यह रिश्ता
टूटने की कगार पर पहुंच जाता है। हाल ही में ओडिशा हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले
में अहम फैसला सुनाया, जिसमें पत्नी द्वारा पति की शारीरिक
विकलांगता का मज़ाक उड़ाने को मानसिक क्रूरता माना गया और तलाक को उचित ठहराया
गया। आइए, इस मामले को सरल भाषा में विस्तार से समझते हैं।
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क्या
है पूरा मामला?
यह
कहानी शुरू होती है 1 जून 2016 से, जब एक जोड़े की शादी हुई। लेकिन शादी के कुछ ही
समय बाद दोनों के बीच तनाव शुरू हो गया। पति ने आरोप लगाया कि उनकी पत्नी उनकी
शारीरिक विकलांगता का बार-बार मज़ाक उड़ाती थीं। इससे न सिर्फ उनकी मानसिक शांति
भंग हुई, बल्कि दोनों के बीच झगड़े भी बढ़ गए।
पति
के अनुसार, पत्नी ने पहली बार 15 सितंबर 2016 को घर छोड़ दिया। फिर 5 जनवरी 2017 को दोनों के बीच सुलह हुई और पत्नी घर
लौट आई। लेकिन यह सुलह ज्यादा दिन नहीं टिकी। 25 मार्च 2018
को पत्नी फिर से अपनी मर्जी से घर छोड़कर चली गईं और इसके बाद कभी
वापस नहीं लौटीं।
दूसरी
ओर,
पत्नी ने इन आरोपों को गलत बताया। उनका दावा था कि उन्हें जबरन घर
से निकाला गया और 2018 से वे अपने माता-पिता के साथ रह रही
हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मानसिक क्रूरता के आरोप बेबुनियाद हैं और पारिवारिक
अदालत ने बिना स्थायी भरण-पोषण (गुजारा भत्ता) दिए तलाक का फैसला सुनाकर गलती की।
कोर्ट
ने क्या कहा?
ओडिशा
हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी.पी.
राउत्रे और चित्तंजन दाश शामिल थे, ने इस मामले की गहराई से
जांच की। कोर्ट ने पति के पक्ष को विश्वसनीय माना और फैसला सुनाया कि पत्नी द्वारा
पति की शारीरिक विकलांगता पर की गई अपमानजनक टिप्पणियाँ मानसिक क्रूरता की श्रेणी
में आती हैं।
कोर्ट ने अपने
फैसले में कहा:
"पत्नी ने पति की शारीरिक स्थिति को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं। यह
मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a)
के तहत तलाक का आधार बनता है।"
इसके
साथ ही,
कोर्ट ने पुरी की पारिवारिक अदालत के तलाक के फैसले को बरकरार रखा
और पत्नी की अपील को खारिज कर दिया।
भरण-पोषण
और स्त्रीधन का क्या हुआ?
पत्नी
ने कोर्ट से स्थायी भरण-पोषण और अपने स्त्रीधन (विवाह में मिली संपत्ति) के लिए भी
गुहार लगाई थी। लेकिन कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों की आय से जुड़ा कोई ठोस सबूत
रिकॉर्ड में नहीं है। इसलिए, इस मुद्दे पर कोई आदेश
देना संभव नहीं है।
हालांकि,
कोर्ट ने पत्नी को यह छूट दी कि वे पुरी की पारिवारिक अदालत में
भरण-पोषण और स्त्रीधन से जुड़े मुद्दे को फिर से उठा सकती हैं।
इस
फैसले से क्या सीख मिलती है?
यह
मामला हमें कई अहम बातें सिखाता है:
1. सम्मान
की अहमियत: शादी जैसे पवित्र रिश्ते में दोनों
पक्षों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। किसी की शारीरिक कमी का मज़ाक उड़ाना न
सिर्फ गलत है, बल्कि यह रिश्ते को तोड़ने का कारण भी बन सकता
है।
2. मानसिक
क्रूरता का अर्थ: कोर्ट ने साफ किया कि
मानसिक क्रूरता सिर्फ शारीरिक हिंसा तक सीमित नहीं है। बार-बार अपमानजनक
टिप्पणियाँ करना भी मानसिक यातना का एक रूप है।
3. कानूनी
अधिकार: इस फैसले से यह भी पता चलता है कि अगर
कोई व्यक्ति अपने रिश्ते में मानसिक क्रूरता का शिकार है, तो
वह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की मांग कर सकता है।
निष्कर्ष
ओडिशा
हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल एक जोड़े के रिश्ते का अंत था,
बल्कि यह समाज को एक बड़ा संदेश भी देता है। शादी में प्यार और
सम्मान का होना जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति अपने साथी की कमियों का मज़ाक उड़ाता है,
तो यह न सिर्फ रिश्ते को कमजोर करता है, बल्कि
कानूनी रूप से भी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
इस
मामले में कोर्ट ने पति को न्याय दिया और साबित किया कि किसी की शारीरिक स्थिति का
अपमान करना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह
तलाक का एक पक्का आधार भी हो सकता है।
आप
इस फैसले के बारे में क्या सोचते हैं? क्या यह
सही है कि शारीरिक कमी का मज़ाक उड़ाना तलाक का कारण बने? अपनी
राय हमारे साथ साझा करें!