भारत
में आपराधिक न्याय प्रणाली में अभियोजन साक्ष्य (Prosecution
Evidence) एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो किसी
मामले में अभियुक्त के खिलाफ अपराध को साबित करने के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 230 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की
धारा 253, अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख तय करने और इसकी
प्रक्रिया से संबंधित हैं। इस लेख हम इन दोनों धाराओं की परिभाषा, उनके प्रावधानों, और अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख
तय करने की प्रक्रिया को सरल भाषा में विस्तार से जानेगे।
CrPC की धारा 230: परिभाषा और प्रावधान
CrPC
की धारा 230 दंड
प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत अभियोजन साक्ष्य प्रस्तुत
करने के लिए तारीख तय करने से संबंधित है। यह धारा न्यायाधीश को यह निर्देश देती
है कि जब कोई मामला पुलिस रिपोर्ट के आधार पर शुरू होता है, तो
उसे अभियुक्त और पीड़ित (यदि वह वकील द्वारा प्रतिनिधित्व कर रहा हो) को आवश्यक
दस्तावेजों की प्रतियां प्रदान करनी चाहिए। इसके बाद, अभियोजन
पक्ष को अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए एक तारीख तय की जाती है।
CrPC धारा 230 की परिभाषा
धारा 230: अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख
"यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इंकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या धारा 229 के अधीन सिद्धदोष नहीं किया जाता है तो न्यायाधीश साक्षियों की परीक्षा करने के लिए तारीख नियत करेगा और अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी कर सकता है।"
सरल भाषा में व्याख्या
- उद्देश्य: इस धारा का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियोजन पक्ष को अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने का उचित अवसर मिले। यह साक्ष्य अभियुक्त के खिलाफ अपराध को साबित करने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
- प्रक्रिया:
1. जब
मामला पुलिस रिपोर्ट पर आधारित होता है, तो न्यायाधीश पहले यह जांचता है कि क्या मामला धारा 227 (अभियुक्त
को आरोपमुक्त करने की प्रक्रिया) या धारा 229 (दोषी होने के अभिवचन)
के तहत निपटाया जा सकता है।
2. यदि
ऐसा नहीं हो सकता, तो न्यायाधीश अभियोजन पक्ष
को साक्ष्य और गवाह पेश करने के लिए एक तारीख देता है।
3. अभियुक्त
को भी इस प्रक्रिया में शामिल होने और अपने बचाव की तैयारी करने का मौका मिलता है।
- महत्व:
यह धारा सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष और
पारदर्शी हो। अभियुक्त को यह जानने का अधिकार है कि उसके खिलाफ कौन से
साक्ष्य पेश किए जा रहे हैं, ताकि वह उचित बचाव कर सके।
उदाहरण
मान
लीजिए,
एक व्यक्ति पर लूट का आरोप है और पुलिस ने इस मामले में चार्जशीट
दाखिल की है। न्यायाधीश इस चार्जशीट की जांच करता है और पाता है कि मामला धारा 227
या 229 के तहत निपटाया नहीं जा सकता। फिर वह
अभियोजन पक्ष को अपने साक्ष्य (जैसे गवाहों के बयान, लूट की
वस्तु का सबूत, आदि) पेश करने के लिए एक तारीख देता है,
जैसे कि 15 दिन बाद।
BNSS की धारा 253: परिभाषा और प्रावधान
BNSS
की धारा 253 भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में शामिल है, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हो
चुकी है और CrPC को पूरी तरह से प्रतिस्थापित कर चुकी है। यह
धारा भी अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख तय करने से संबंधित है, लेकिन इसमें कुछ आधुनिक बदलाव और तकनीकी प्रगति को शामिल किया गया है।
BNSS धारा 253 की परिभाषा
धारा 253:
अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख
"यदि
अभियुक्त अभिवचन करने से इंकार करता है या
अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या धारा 252 के अधीन सिद्धदोष
नहीं किया जाता है तो न्यायाधीश साक्षियों की परीक्षा करने के लिए तारीख नियत करेगा
और अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश
करने को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी
कर सकता है।"
सरल भाषा में व्याख्या
उद्देश्य:
BNSS की धारा 253, CrPC की धारा 230 की तरह ही, अभियोजन पक्ष को साक्ष्य प्रस्तुत करने
के लिए तारीख देने का प्रावधान करती है। यह धारा नई संहिता के तहत प्रक्रिया को और
अधिक पारदर्शी और तकनीकी रूप से उन्नत बनाने पर जोर देती है।
प्रक्रिया:
1. जब
मामला पुलिस रिपोर्ट पर आधारित होता है, तो न्यायाधीश
धारा 250 (अभियुक्त को आरोपमुक्त करने की प्रक्रिया) और धारा
252 (दोषी होने के अभिवचन) के तहत मामले की जांच करता है।
2. यदि
मामला इन धाराओं के तहत निपटाया नहीं जा सकता, तो
अभियोजन पक्ष को साक्ष्य और गवाह पेश करने के लिए तारीख दी जाती है।
3. इस
प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (जैसे ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग) और फॉरेंसिक
जांच को भी महत्व दिया गया है।
- महत्व:
BNSS में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को शामिल करने का
प्रावधान है, जो आधुनिक समय की आवश्यकता है। यह
प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाता है।
उदाहरण
उदाहरण
के लिए,
यदि किसी व्यक्ति पर साइबर अपराध का आरोप है और पुलिस ने डिजिटल
साक्ष्य (जैसे ईमेल, चैट लॉग्स) के साथ चार्जशीट दाखिल की है,
तो न्यायाधीश धारा 253 के तहत अभियोजन पक्ष को
इन साक्ष्यों को पेश करने और गवाहों को बुलाने के लिए तारीख देगा। यह तारीख,
उदाहरण के लिए, 15 या 20 दिन बाद हो सकती है।
CrPC धारा 230 और BNSS धारा 253 में अंतर
पहलू |
CrPC
धारा 230 |
BNSS
धारा 253 |
लागू
होने की तारीख |
1
अप्रैल 1974 से 30 जून
2024 तक |
1
जुलाई 2024 से लागू |
प्रक्रिया |
अभियोजन
साक्ष्य के लिए तारीख तय करना |
अभियोजन
साक्ष्य के लिए तारीख तय करना, डिजिटल
साक्ष्य पर जोर |
दस्तावेजों
की आपूर्ति |
अभियुक्त
और पीड़ित को दस्तावेजों की प्रतियां |
अभियुक्त
और पीड़ित को दस्तावेजों की प्रतियां, इलेक्ट्रॉनिक
साक्ष्य शामिल |
तकनीकी
प्रगति |
पारंपरिक
प्रक्रिया पर आधारित |
डिजिटल
और फॉरेंसिक साक्ष्यों को प्राथमिकता |
संबंधित
धाराएं |
धारा
227 और 229 |
धारा
250 और 252 |
|
|
|
अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख तय करने की प्रक्रिया
1. पुलिस
रिपोर्ट की जांच: मामला पुलिस रिपोर्ट पर
आधारित होना चाहिए, जिसमें अपराध का विवरण, गवाहों के बयान, और अन्य साक्ष्य शामिल हों।
2. आरोपमुक्ति
की जांच: न्यायाधीश पहले यह देखता है कि क्या
अभियुक्त को धारा 227 (CrPC) या धारा 250 (BNSS) के तहत आरोपमुक्त किया जा सकता है।
3. मामूली
अपराधों का निपटारा: यदि मामला मामूली है,
तो धारा 229 (CrPC) या धारा 252 (BNSS)
के तहत निपटाया जा सकता है।
4. तारीख
नियत करना: यदि मामला आगे बढ़ता है, तो न्यायाधीश अभियोजन पक्ष को साक्ष्य और गवाह पेश करने के लिए एक तारीख
देता है।
5. साक्ष्य
प्रस्तुत करना: अभियोजन पक्ष को गवाहों,
दस्तावेजों, और अन्य साक्ष्यों (जैसे फॉरेंसिक
या डिजिटल साक्ष्य) को कोर्ट में पेश करना होता है।
6. अभियुक्त
का बचाव: अभियुक्त को साक्ष्यों की जांच करने और
अपने बचाव के लिए तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है।
अभियोजन साक्ष्य का महत्व
- निष्पक्ष सुनवाई:
अभियोजन साक्ष्य यह सुनिश्चित करते हैं कि अभियुक्त को उसके
खिलाफ लगाए गए आरोपों की पूरी जानकारी हो और वह उचित बचाव कर सके।
- न्याय की गारंटी:
साक्ष्य अपराध को साबित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,
जिससे सही व्यक्ति को सजा मिले और निर्दोष को बरी किया जाए।
- पारदर्शिता:
साक्ष्य प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को समयबद्ध और व्यवस्थित
करने से न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी रहती है।
निष्कर्ष
CrPC
की धारा 230 और BNSS की
धारा 253 दोनों ही अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख तय करने की
प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं। जहां CrPC की धारा 230
पारंपरिक प्रक्रिया पर आधारित थी, वहीं BNSS
की धारा 253 में डिजिटल और फॉरेंसिक साक्ष्यों
को शामिल कर आधुनिक जरूरतों को पूरा किया गया है। यह दोनों धाराएं निष्पक्ष और
पारदर्शी न्याय प्रक्रिया को सुनिश्चित करती हैं, ताकि
अभियुक्त और पीड़ित दोनों को उचित अवसर मिले।
"अगर आप इस प्रक्रिया के बारे में और जानना चाहते हैं या किसी कानूनी सलाह की आवश्यकता है, तो किसी अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क कर सकते है।"