7 मई 2025
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल में
बच्ची से दुष्कर्म के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक
(एसएसपी) को जांच की निगरानी स्वयं करने और प्रत्येक 15 दिन
में प्रगति रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और
न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मंगलवार को इस मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने
पुलिस की कार्यप्रणाली की सराहना की, लेकिन नगर पालिका और
प्रशासन की भूमिका पर एक बार फिर नाराजगी जताई।
पुलिस
की सराहना, प्रशासन पर नाराजगी
हाईकोर्ट
ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में स्थिति को बिगड़ने से रोकने में प्रभावी भूमिका
निभाई,
जबकि नगर पालिका और प्रशासन की लापरवाही के कारण हालात खराब हुए।
कोर्ट ने पहले भी पालिका के कार्यकारी अधिकारी (ईओ) और मजिस्ट्रेट की भूमिका पर
असंतोष जताया था, जिसके कारण पुलिस पर अतिरिक्त बोझ पड़ा।
मंगलवार को पालिका ने कोर्ट को बताया कि आरोपी उस्मान सहित 62 अन्य लोगों को जारी किए गए नोटिस निरस्त कर दिए गए हैं।
पीड़ित पक्ष की याचिका और मांगें
पीड़ित
पक्ष की ओर से अधिवक्ता शिव भट्ट ने हस्तक्षेप याचिका दायर कर कई गंभीर मांगें
रखीं। उन्होंने कहा कि आरोपी उस्मान के परिजन साक्ष्य मिटाने,
खून के धब्बे हटाने और पीड़िता को धमकाने जैसे अपराधों में शामिल
हैं। इसके बावजूद पुलिस उन्हें सुरक्षा दे रही है। याचिका में मांग की गई कि
पॉक्सो अधिनियम की धारा 16, 29 और 30 के
तहत आरोपी के परिजनों को भी अभियुक्त बनाया जाए। साथ ही, मामले
की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी जाए।
अधिवक्ता
ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी के परिजनों के डीएनए,
फिंगरप्रिंट और मोबाइल लोकेशन की जांच नहीं की। इसके अलावा, पीड़िता को अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। याचिका में बताया गया कि
दुष्कर्म की घटना एक गैराज में हुई, जहां पीड़िता को चाकू
दिखाकर डराया गया।
एसएसपी की ओर से जवाब
वर्चुअल
माध्यम से कोर्ट में उपस्थित एसएसपी प्रह्लाद नारायण मीणा ने बताया कि पीड़िता की
जाति के आधार पर आरोपी के खिलाफ अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम के तहत
भी कार्रवाई की गई है। मामले की जांच अब डीएसपी स्तर के अधिकारी द्वारा की जाएगी।
कोर्ट ने एसएसपी को जांच पर कड़ी नजर रखने और नियमित प्रगति रिपोर्ट देने का आदेश
दिया।
आरोपी की पत्नी की मांग खारिज
आरोपी
उस्मान की पत्नी हुस्न बानो ने कोर्ट से सुरक्षा और नोटिस का जवाब देने के लिए तीन
महीने का समय मांगा। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि नोटिस
निरस्त होने के बाद इस मांग की कोई प्रासंगिकता नहीं है।
मामला और उसका महत्व
नैनीताल
कांड ने स्थानीय स्तर पर व्यापक चर्चा पैदा की है। हाईकोर्ट का यह सख्त रुख न केवल
इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह
भी सुनिश्चित करता है कि जांच में किसी तरह की ढिलाई न बरती जाए। कोर्ट का पुलिस
की कार्यप्रणाली की सराहना करना और प्रशासन की लापरवाही पर सवाल उठाना इस मामले
में जवाबदेही तय करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
आगामी
सुनवाई में कोर्ट द्वारा मांगी गई प्रगति रिपोर्ट और पीड़ित पक्ष की मांगों पर
विचार से इस मामले में और स्पष्टता आने की उम्मीद है।