दिल्ली हाईकोर्ट ने
केंद्र सरकार को एक निजी संपत्ति पर 20 साल तक
अवैध कब्जा करने के लिए 1.76 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का
आदेश दिया। यह संपत्ति एक व्यक्ति की थी, जिसे गलत तरीके से
सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था। कोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार बहुत
महत्वपूर्ण है और इसे "पवित्र" माना जाना चाहिए।
क्यों हुआ यह विवाद?
- संपत्ति की जब्ती:
यह मामला 1976 के SAFEMA कानून (तस्करी और विदेशी मुद्रा हेरफेर से
संबंधित) के तहत शुरू हुआ। इस कानून के आधार पर आपातकाल (1975-77) के दौरान सरकार ने एक व्यक्ति के फ्लैट को जब्त कर लिया। यह जब्ती एक
निरोध आदेश (detention order) पर आधारित थी, जो बाद में रद्द हो गया।
- मालिक का दावा:
संपत्ति के मालिक ने कहा कि वह इस फ्लैट का कानूनी मालिक है और
1977 से उसका हक छीना जा रहा है। उसने कोर्ट में यह
शिकायत की कि सरकार ने बिना उचित प्रक्रिया के उसकी संपत्ति पर कब्जा किया।
- सरकार का दावा:
सरकार ने कहा कि यह संपत्ति उन्हें पट्टे (lease) पर दी गई थी और बाद में SAFEMA कानून के तहत 1988
में इसे पूरी तरह जब्त कर लिया गया। उनका कहना था कि जब्ती 2016
तक वैध थी, जब SAFEMA के तहत कार्रवाई बंद हुई।
कोर्ट ने क्या पाया?
- गलत जब्ती:
कोर्ट ने पाया कि सरकार ने बिना मालिक को सुनवाई का मौका दिए,
एकतरफा तरीके से संपत्ति जब्त की। यह गलत था।
- लंबा अवैध कब्जा:
जब्ती आदेश 2016 में रद्द हो गया,
लेकिन सरकार ने 2020 तक संपत्ति पर कब्जा
बनाए रखा। कोर्ट ने 1999 से 2020 तक
के कब्जे को अवैध घोषित किया।
- कोई उचित कारण नहीं:
सरकार यह नहीं बता सकी कि उसने इतने सालों तक संपत्ति पर कब्जा
क्यों रखा। न ही उसने इसके लिए कोई किराया दिया।
कोर्ट का फैसला:
1. मुआवजा:
कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह मालिक को 1999 से 2020 तक के अवैध कब्जे के लिए 1,76,79,550
रुपये का मुआवजा दे, जिसमें 6% ब्याज भी शामिल है। यह राशि उस समय की
बाजार दरों के आधार पर तय की गई।
2. संपत्ति
का अधिकार: कोर्ट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार
सिर्फ एक भौतिक चीज नहीं है। यह आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक
पहचान और व्यक्तिगत सम्मान का आधार है। भले ही यह अब मौलिक अधिकार नहीं है (1978
के 44वें संशोधन के बाद), लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार है।
3. सार्वजनिक
उद्देश्य जरूरी: कोर्ट ने कहा कि किसी की
संपत्ति को जब्त करने के लिए एक वैध कानून और सार्वजनिक उद्देश्य होना चाहिए। बिना
उचित प्रक्रिया के संपत्ति छीनना संविधान के खिलाफ है।
4. कानून
का शासन: कोर्ट ने जोर दिया कि अगर सरकार ही
नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करेगी, तो कानून का शासन
खतरे में पड़ जाएगा।
अन्य दावे:
- रखरखाव शुल्क:
मालिक ने कहा कि सरकार ने संपत्ति का इस्तेमाल किया, इसलिए उसे रखरखाव शुल्क देना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर
दिया, क्योंकि सरकार का कब्जा अवैध था और कोई औपचारिक
समझौता (जैसे पट्टा) नहीं था, जो सरकार को यह शुल्क
देने के लिए बाध्य करता।
- संपत्ति कर:
मालिक ने संपत्ति कर की प्रतिपूर्ति भी मांगी, जो उसे चुकाना पड़ा। लेकिन कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने
कहा कि संपत्ति कर मालिक की जिम्मेदारी है, क्योंकि वह
संपत्ति का पंजीकृत मालिक है। इसके लिए भी कोई समझौता नहीं था जो सरकार को
जिम्मेदार ठहराए।
कोर्ट की टिप्पणी:
- संपत्ति का महत्व:
कोर्ट ने कहा कि संपत्ति सिर्फ पैसों की चीज नहीं है। यह
व्यक्ति की गरिमा, सुरक्षा और पहचान से जुड़ी है।
- राज्य की जिम्मेदारी:
सरकार को भी आम नागरिक की तरह जवाबदेह होना चाहिए। अगर वह गलत
तरीके से किसी की संपत्ति पर कब्जा करती है, तो उसे
मुआवजा देना होगा।
- कानूनी प्रक्रिया:
किसी की संपत्ति छीनने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया और कारण
होना चाहिए। मनमानी कार्रवाई संविधान के खिलाफ है।
निष्कर्ष:
यह फैसला संपत्ति
के अधिकार को मजबूत करता है और सरकार को याद दिलाता है कि वह मनमाने तरीके से
नागरिकों की संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती। कोर्ट ने मालिक को मुआवजा देकर न्याय
दिया,
लेकिन रखरखाव शुल्क और संपत्ति कर के दावों को खारिज कर दिया,
क्योंकि इसके लिए कोई कानूनी आधार नहीं था।