7 मई 2025
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए), 1955 के तहत तलाक की याचिका दायर करने वाली पत्नी को उस न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में शारीरिक रूप से निवास करना अनिवार्य है, जहां याचिका दायर की गई है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि याचिका दायर करने के समय पत्नी का वास्तविक और शारीरिक निवास उस जिला न्यायालय की सीमा में होना चाहिए, जिसके पास याचिका पर विचार करने का अधिकार है।
मामला और कोर्ट का फैसला
जस्टिस सुरेश्वर
ठाकुर और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने एक महिला द्वारा दायर अपील पर यह फैसला
सुनाया। अपील में फरीदाबाद फैमिली कोर्ट के 17 दिसंबर 2024
के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें
क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी के कारण तलाक की याचिका खारिज कर दी गई थी।
फैमिली कोर्ट ने याचिका को उचित न्यायालय में दायर करने के लिए वापस करने का आदेश
दिया था।
हाईकोर्ट ने हिंदू
विवाह अधिनियम की धारा 19(iii-a) का हवाला देते हुए
कहा कि इस प्रावधान में स्पष्ट है कि तलाक की याचिका उस जिला न्यायालय में दायर की
जाएगी, जहां पत्नी याचिका दायर करने के समय निवास कर रही है।
कोर्ट ने जोर दिया कि "निवास" से तात्पर्य स्थायी और शारीरिक रूप से उस
क्षेत्र में मौजूदगी से है।
अपीलकर्ता का तर्क और कोर्ट की टिप्पणी
अपीलकर्ता-पत्नी ने
तर्क दिया कि याचिका दायर करने के समय वह अध्ययन वीजा पर कनाडा में थी,
इसलिए फरीदाबाद में शारीरिक रूप से निवास करने की शर्त की कठोर
व्याख्या नहीं की जानी चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को
खारिज करते हुए कहा कि धारा 19(iii-a) में विधानमंडल की मंशा
स्पष्ट है कि याचिका के लिए न्यायालय का अधिकार क्षेत्र तभी मान्य होगा, जब याचिकाकर्ता वास्तव में उस न्यायालय की क्षेत्रीय सीमा में रह रही हो।
कोर्ट ने यह भी
स्पष्ट किया कि धारा 19(iii-a) में "सामान्य
निवास" की शर्त का उल्लेख नहीं है, बल्कि यह शारीरिक और
वास्तविक निवास पर जोर देता है। चूंकि अपीलकर्ता फरीदाबाद फैमिली कोर्ट के अधिकार
क्षेत्र में शारीरिक रूप से मौजूद नहीं थी, इसलिए याचिका
वहां दायर करना अनुचित था।
अपील खारिज,
नई याचिका का निर्देश
हाईकोर्ट ने
फरीदाबाद फैमिली कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए अपील खारिज कर दी। साथ ही,
अपीलकर्ता को निर्देश दिया कि वह अपने वास्तविक शारीरिक निवास के
आधार पर उचित फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दोबारा दायर करे। कोर्ट ने यह भी
कहा कि चूंकि इस मामले में पहले ही ढाई साल की कार्यवाही हो चुकी है, इसलिए नई याचिका पर सुनवाई में तेजी लाई जाए।
फैसले का महत्व
यह फैसला हिंदू
विवाह अधिनियम के तहत तलाक याचिकाओं के लिए क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की शर्तों को
और स्पष्ट करता है। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि याचिकाकर्ता की शारीरिक
उपस्थिति न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण है,
जिससे गलत स्थानों पर याचिकाएं दायर होने की संभावना कम होगी। यह
निर्णय तलाक से संबंधित मामलों में कानूनी प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की दिशा
में एक कदम है।