धारा 1
– संक्षिप्त शीर्षक, प्रारंभ और विस्तार
1. इसे क्या
कहा जाता है? (संक्षिप्त शीर्षक)
इस कानून का नाम है
"सम्पत्ति अंतरण अधिनियम, 1882"।
इसका मतलब है कि जब भी हम इस कानून की बात करेंगे, तो इसे इसी नाम से पहचाना जाएगा। जैसे हम किसी व्यक्ति को उसके नाम से
बुलाते हैं, वैसे ही कानूनों को भी एक आधिकारिक नाम दिया
जाता है।
2. यह कब से
लागू हुआ? (प्रारंभ की तिथि)
यह कानून 1
जुलाई 1882 से पूरे
भारत में लागू हो गया था।
इसका मतलब है कि अगर किसी ने इससे पहले (जैसे जून 1882 में) कोई जमीन बेची या खरीदी थी, तो उस पर यह कानून
लागू नहीं होगा। लेकिन 1 जुलाई 1882 के
बाद जो भी सम्पत्ति से संबंधित लेन-देन होंगे, उन पर यही
कानून लागू होगा।
3. कहां-कहां
लागू होता है? (विस्तार या क्षेत्राधिकार)
शुरुआत में यह
कानून भारत के सभी हिस्सों में एकसमान रूप से लागू नहीं था। कई जगहों पर
इसे बाद में लागू किया गया।
आज के समय में यह कानून भारत के लगभग सभी राज्यों और केंद्रशासित
प्रदेशों में लागू हो चुका है, लेकिन इसकी प्रक्रिया धीरे-धीरे
अधिसूचना (Notification) के माध्यम से की गई।
क्यों कुछ जगहों पर
तुरंत लागू नहीं हुआ?
क्योंकि भारत बहुत
बड़ा और विविधतापूर्ण देश है। कुछ इलाके जैसे पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासी
क्षेत्र,
पहले से मौजूद कानूनों के तहत संचालित होते थे। वहां के रीति-रिवाज
और स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस कानून को सीधे लागू नहीं किया
गया। इसके लिए राज्य सरकारों को छूट दी गई कि वे चाहें तो इस कानून को अपने
क्षेत्र में लागू करें या कुछ हिस्सों को इससे बाहर रखें।
4. राज्य
सरकारों की शक्तियां क्या हैं?
राज्य सरकार को यह
अधिकार दिया गया है कि वह चाहे तो:
- इस कानून को अपने राज्य में
लागू कर सकती है या नहीं।
- इस कानून के कुछ हिस्सों को
लागू कर सकती है, बाकी को नहीं।
- वह चाहें तो किसी क्षेत्र को इस
कानून से छूट (exempt) भी दे सकती
हैं।
उदाहरण के लिए,
धारा 54 (बिक्री), धारा 59
(रजिस्ट्रेशन), धारा 107 (लीज) और धारा 123 (गिफ्ट) जैसे प्रावधान कुछ इलाकों
में शुरू में लागू नहीं किए गए थे।
संपत्ति अंतरण
अधिनियम, 1882 का क्षेत्रीय विस्तार और संशोधन
ए.ओ. 1950
के तहत तीसरे पैराग्राफ का प्रतिस्थापन
यह आदेश "Adaptation
Order, 1950" के अंतर्गत जारी किया गया था। इसका उद्देश्य
भारतीय संविधान के बाद पुराने ब्रिटिश कानूनों को नए भारत के संदर्भ में अनुकूल
बनाना था। इस आदेश ने अधिनियम के तीसरे पैराग्राफ को नए भारत की राजनीतिक और
प्रशासनिक स्थिति के अनुसार बदला।
पूर्वोत्तर भारत में असम फ्रंटियर ट्रैक्ट्स में अधिनियम की रोक
जब यह कानून लागू
हुआ,
तब असम के कुछ दूर-दराज और आदिवासी क्षेत्रों में इसे "Assam
Frontier Tracts Regulation, 1880" की धारा 2 के अंतर्गत रोक दिया गया। जिन क्षेत्रों में यह रोक लगी, उनमें शामिल थे:
- मोकोकचुंग उप-मंडल
- डिब्रूगढ़ फ्रंटियर ट्रैक्ट
- उत्तरी कछार हिल्स
- गारो हिल्स
- खासी और जैंतिया हिल्स
- मिकिर हिल्स ट्रैक्ट
इन क्षेत्रों की
सांस्कृतिक और प्रशासनिक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए यह कानून लागू नहीं किया
गया।
कानून का विस्तार विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक
इस अधिनियम को
अलग-अलग समय पर भारत के विभिन्न भागों में लागू किया गया:
क्षेत्र |
विस्तार
की तिथि/विधेयक |
बरार क्षेत्र |
1941 का
अधिनियम 4 |
मणिपुर |
1956 का
अधिनियम 68 |
दादरा और नगर
हवेली |
1963 का
विनियम 6 |
गोवा,
दमन और दीव |
1963 का
विनियम 11 |
लक्षद्वीप |
1965 का
विनियम 8 |
पांडिचेरी |
1968 का
अधिनियम 26 |
जम्मू-कश्मीर और
लद्दाख |
2019 का
अधिनियम सं. 34 |
विभिन्न राज्यों में संशोधन और अधिसूचना
- बम्बई (अब महाराष्ट्र):
बम्बई अधिनियम 14, 1959 के माध्यम से
संशोधित किया गया।
- उत्तर प्रदेश:
अधिनियम 24, 1954 व 1970 तथा 1976 के अधिनियमों से संशोधित।
- दिल्ली:
धारा 54, 107 और 123 को 30 मई 1939 से लागू
किया गया। बाकी प्रावधान 1 दिसंबर 1962 से लागू किए गए।
विधि अनुकूलन आदेश
1956 और 1937 में Law Adaptation Orders के माध्यम से
अंग्रेजी काल के कानूनों को स्वतंत्र भारत के संविधान और शासन प्रणाली से मेल खाने
योग्य बनाया गया। यह बहुत ज़रूरी था क्योंकि ब्रिटिश राज के कानून भारतीय जनसंख्या
और आज़ादी के बाद की ज़रूरतों के अनुकूल नहीं थे।
अन्य क्षेत्रों में विस्तार
राज्य/क्षेत्र |
लागू
होने की तिथि |
बम्बई
प्रेसीडेंसी |
1-1-1893 |
मेहवासी एस्टेट |
1949 |
पूर्व रियासती
क्षेत्र (अब महाराष्ट्र) |
1-4-1951 |
सौराष्ट्र
(गुजरात) |
1949 |
कच्छ (गुजरात) |
1-1-1950 |
मैसूर (अब
कर्नाटक) |
1-4-1951 |
राजस्थान |
1-7-1952 |
त्रावणकोर-कोचीन
(अब केरल) |
1-5-1952 |
हिमाचल प्रदेश |
7-12-1970 |
पंजाब |
1-4-1955; रियासती क्षेत्र – 15-5-1957 |
हरियाणा |
5-8-1967 (धारा 59 लागू) |
विशेष क्षेत्रीय अधिसूचनाएं
- मानपुर परगना:
1926 के कानून के तहत अधिनियम लागू।
- पंथ पिपलोदा:
1929 के कानून द्वारा अधिनियम लागू।
- सिक्किम:
1 सितंबर 1984 से भारत सरकार की अधिसूचना
द्वारा लागू।
निरसन और संशोधन
- सरकारी अनुदान अधिनियम,
1895 के अंतर्गत सरकारी अनुदानों (grants)
पर इस अधिनियम को लागू नहीं किया गया। यानि सरकार द्वारा दी गई
ज़मीन या संपत्ति इस कानून के दायरे में नहीं आती।
- मद्रास अधिनियम 3,
1922 द्वारा मद्रास शहर में संपत्ति
अंतरण अधिनियम को निरस्त या संशोधित किया गया, जहां
ज़रूरत महसूस हुई।
गवर्नर जनरल की मंजूरी हटाई गई
1920 के
अधिनियम 38 के माध्यम से यह आवश्यक नहीं रहा कि किसी राज्य
सरकार को यह अधिनियम लागू करने से पहले गवर्नर जनरल की अनुमति लेनी होगी। इससे
राज्यों को अधिक स्वतंत्रता मिल गई।
कुछ विशेष धाराएं जो विशेष रूप से लागू की गईं
कुछ धाराएं जैसे:
- धारा 54
(बिक्री)
- धारा 107
(लीज)
- धारा 123
(गिफ्ट)
इन धाराओं को
अलग-अलग राज्यों में विशेष अधिसूचना के द्वारा लागू किया गया। इससे पहले ये सब
राज्यों में एक साथ लागू नहीं थीं।
“संपत्ति
अंतरण अधिनियम, 1882 एक
केंद्रीय कानून है, लेकिन इसकी क्षेत्रीय लागू प्रक्रिया विविध
और चरणबद्ध रही है। इसे स्थानीय परिस्थितियों, सांस्कृतिक विशिष्टताओं और प्रशासनिक जरूरतों को
ध्यान में रखते हुए लागू किया गया।“
“आज यह
कानून भारत के लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू है,
लेकिन कुछ क्षेत्रों में विशेष छूट या संशोधन के साथ।
इसका उद्देश्य संपत्ति से संबंधित लेन-देन को स्पष्ट, व्यवस्थित और कानूनी ढंग से संचालित करना है।“
संपत्ति अंतरण
अधिनियम, 1882 की धारा 1 से
जुड़े FAQs
Q1. "सम्पत्ति
अंतरण अधिनियम, 1882" का संक्षिप्त शीर्षक क्या है?
🔹 इस
कानून का नाम "सम्पत्ति अंतरण अधिनियम, 1882" है।
इसका उपयोग जब भी संपत्ति से संबंधित कानूनी चर्चा होगी, तब
इसी नाम से किया जाएगा।
Q2. यह
कानून भारत में कब से लागू हुआ?
🔹 यह
अधिनियम 1 जुलाई 1882 से पूरे भारत में
लागू हुआ। इससे पहले की संपत्ति संबंधी डील पर यह लागू नहीं होगा।
Q3. क्या यह
कानून पूरे भारत में एकसमान रूप से लागू हुआ था?
🔹 नहीं,
शुरू में यह पूरे भारत में एकसमान रूप से लागू नहीं हुआ। विभिन्न
राज्यों और क्षेत्रों में इसे अलग-अलग समय पर अधिसूचना के माध्यम से लागू किया
गया।
Q4. किन
क्षेत्रों में शुरुआत में यह कानून लागू नहीं हुआ था?
🔹 पूर्वोत्तर
भारत के कुछ आदिवासी क्षेत्रों जैसे मोकोकचुंग, गारो हिल्स,
खासी-जैंतिया हिल्स, आदि में इसे “Assam
Frontier Tracts Regulation, 1880” के तहत रोक दिया गया था।
Q5. राज्य
सरकारों को इस अधिनियम से संबंधित क्या अधिकार प्राप्त हैं?
🔹 राज्य
सरकारें यह तय कर सकती हैं कि:
- वे अधिनियम को अपने क्षेत्र में
लागू करें या नहीं।
- अधिनियम के कौन-कौन से हिस्से को
लागू करें।
- किसी विशेष क्षेत्र को इस अधिनियम
से छूट भी दे सकती हैं।
Q6. किन
धाराओं को विशेष रूप से अलग-अलग राज्यों में अधिसूचना द्वारा लागू किया गया?
🔹 मुख्य
रूप से ये धाराएं हैं:
- धारा 54:
बिक्री (Sale)
- धारा 107:
पट्टा (Lease)
- धारा 123:
उपहार (Gift)
Q7. क्या यह
अधिनियम आज भारत के सभी राज्यों में लागू है?
🔹 हाँ,
वर्तमान में यह अधिनियम भारत के लगभग सभी राज्यों और केंद्रशासित
प्रदेशों में लागू है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में विशेष
शर्तों या संशोधनों के साथ।
Q8. क्या इस
अधिनियम में कोई संशोधन या निरसन हुआ है?
🔹 हाँ,
समय-समय पर विभिन्न राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उत्तर
प्रदेश, दिल्ली आदि में इसे संशोधित किया गया है।
🔹 सरकारी
अनुदान (grants) पर यह अधिनियम लागू नहीं होता, जैसा कि "Government Grants Act, 1895" में
स्पष्ट किया गया है।
Q9. क्या
पहले राज्य सरकारों को इस अधिनियम को लागू करने से पहले गवर्नर जनरल की अनुमति
लेनी होती थी?
🔹 हाँ,
लेकिन 1920 के अधिनियम 38 द्वारा यह आवश्यकता हटा दी गई और राज्यों को अधिक स्वतंत्रता दी गई।
Q10. "Adaptation
Order, 1950" का क्या महत्व है?
🔹 यह
आदेश स्वतंत्र भारत के संविधान के अनुसार ब्रिटिश कानूनों को भारतीय प्रणाली से
मेल बैठाने के लिए जारी किया गया। इसमें अधिनियम की भाषा और संदर्भों को बदला गया।