सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मांग की गई थी कि मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को दिए जा रहे 27 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाई जाए। इससे पहले यह याचिका मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में भी खारिज हो चुकी थी।
यह याचिका 'Youth
for Equality” नाम की संस्था ने दाखिल की थी, जिसमें
राज्य सरकार के 2021 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें OBC को 27% आरक्षण देने
की व्यवस्था की गई थी। याचिका में कहा गया था कि इस फैसले की वैधानिकता पर सवाल
है।
हालांकि,
हाई कोर्ट ने 4 अगस्त 2023 को इस आदेश पर अंतरिम रोक लगाई थी। इसके बाद राज्य सरकार की तरफ से
महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने निर्देश जारी किए और 83:13 के
फार्मूले के तहत आरक्षण लागू करने की बात कही। इस मुद्दे को कई भर्ती विज्ञापनों
में भी शामिल किया गया।
इसी दौरान ओबीसी
वकीलों की संस्था ‘ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन’ और अन्य लोगों ने भी याचिकाएं
दाखिल कीं। अंततः हाई कोर्ट ने 28 जनवरी 2025 को याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया।
इसके बाद
याचिकाकर्ता संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। सुनवाई
के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ताओं रामेश्वर सिंह ठाकुर और वरुण सिंह ने राज्य सरकार की
ओर से पक्ष रखा और बताया कि याचिका राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित है और
याचिकाकर्ता स्वयं सागर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का
यह निर्णय कानून, न्याय और सामाजिक समानता
तीनों के बीच संतुलन बनाए रखने का उदाहरण है। जहां एक ओर यह न्यायपालिका की
निष्पक्षता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह हाशिए पर खड़े
वर्गों को संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों की पुष्टि करता है। आने वाले समय में यह
फैसला न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है।
आप क्या सोचते हैं?
क्या यह फैसला सामाजिक समरसता को मजबूत करेगा या नई बहसों को जन्म
देगा? अपनी राय कमेंट में जरूर साझा करें।