14 अप्रैल 2025
सुप्रीम कोर्ट ने
एक अहम फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है,
जिसमें एक पुराने गोदनामा (Adoption Deed) को
खारिज कर दिया गया था। कोर्ट ने साफ कहा कि यह गोदनामा एक सोची-समझी साजिश थी,
जिसका उद्देश्य था – पुत्रियों को उनके पिता की संपत्ति में
वैधानिक अधिकार से वंचित करना।
यह मामला उत्तर
प्रदेश के भुनेश्वर सिंह की संपत्ति से जुड़ा था, जिनकी
दो बेटियाँ – शिव कुमारी देवी और हरमुनिया – वैध उत्तराधिकारी हैं।
मामला क्या था?
याचिकाकर्ता अशोक
कुमार ने दावा किया था कि उन्हें भुनेश्वर सिंह ने 1967 में गोद लिया था और गोद लेने की विधि एक समारोह में पूरी की गई थी।
उन्होंने एक पुरानी फोटो भी पेश की। इसके आधार पर उन्होंने संपत्ति में हिस्सा
मांगा।
हालाँकि,
बेटियों ने इस गोदनामे को चुनौती दी और कहा कि यह पूरी तरह फर्जी और
केवल बेटियों को बाहर करने के लिए तैयार किया गया दस्तावेज़ है।
कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की
पीठ ने,
जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह
शामिल थे, कहा:
"1967 का
यह गोदनामा केवल शिवकुमारी और उनकी बहन को उनके पिता की संपत्ति से वंचित करने की
एक चाल है।"
कोर्ट ने विशेष रूप
से कहा कि:
- गोद लेने की प्रक्रिया में पत्नी
की सहमति अनिवार्य होती है, लेकिन
इस मामले में गोद लेने वाले की पत्नी की न तो सहमति ली गई और न ही वह समारोह
में मौजूद थीं।
- गोदनामा और गोद लेने की कोई
विधिवत धार्मिक या सामाजिक प्रक्रिया सिद्ध नहीं हो सकी।
- तस्वीरों में भी पत्नी की
उपस्थिति नहीं दिखाई दी और एक गवाह ने तो तस्वीर में उन्हें पहचानने से भी
इंकार कर दिया।
हाईकोर्ट ने क्यों
खारिज किया था गोदनामा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट
ने 2024
में दिए अपने फैसले में:
- गोद लेने की सभी कानूनी और
सामाजिक प्रक्रियाओं के अभाव को रेखांकित किया।
- कहा कि गोदनामा "Maintenance
and Adoption Act, 1956" की शर्तों को पूरा नहीं करता।
- और साथ ही 40
वर्षों की देरी के लिए खेद प्रकट करते हुए यह भी कहा कि इतने
सालों में भी गोद लेने की वैधता साबित नहीं हो सकी।
सुप्रीम कोर्ट ने
क्या जोड़ा?
सुप्रीम कोर्ट ने
ग्रामीण इलाकों में बेटियों को संपत्ति से वंचित करने के लिए गोदनामा जैसी चालों
की आलोचना करते हुए कहा कि:
"हमें
पता है कि यह कैसी पुरानी रणनीति है। बेटियों को संपत्ति से निकाल बाहर करने के
लिए ऐसे दस्तावेज़ बनाए जाते हैं।"
निष्कर्ष
यह फैसला भारतीय
न्यायपालिका की एक बड़ी और सशक्त टिप्पणी है – बेटियाँ भी पिता की संपत्ति में
बराबर की हकदार हैं। कोई भी गोदनामा या चाल इस अधिकार को नहीं छीन सकती।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक मजबूत कदम है।
क्या आपने कभी ऐसे
मामले देखे हैं जहाँ बेटियों को जानबूझकर वंचित किया गया हो?
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