29
अप्रैल 2025:
सुप्रीम
कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम सुनवाई में पेगासस
स्पाइवेयर के इस्तेमाल पर सवाल उठाए। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या
सरकार द्वारा "राष्ट्र-विरोधी तत्वों" के खिलाफ सुरक्षा के लिए
इजरायली पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल करना गलत है। जस्टिस
सूर्यकांत ने जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह के
साथ बेंच की अगुआई करते हुए कहा, "अगर देश
ने आतंकियों या राष्ट्र-विरोधी तत्वों के खिलाफ सुरक्षा के लिए इस स्पाइवेयर का
इस्तेमाल किया, तो इसमें क्या बुराई है? स्पाइवेयर गलत नहीं है, गलत यह है कि इसका इस्तेमाल
किसके खिलाफ हुआ।"
इस
बयान से पहले वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने कोर्ट में दलील दी कि इस
मामले का मुख्य सवाल यह है कि क्या सरकार के पास पेगासस है और क्या इसका इस्तेमाल
पत्रकारों, जजों समेत आम नागरिकों पर गैरकानूनी
निगरानी के लिए हुआ। जस्टिस कांत ने साफ कहा, "निजी
नागरिकों की निजता का हक है और इसे राज्य की निगरानी से बचाया जाना चाहिए।"
सुनवाई
पहलगाम आतंकी हमले के कुछ दिन बाद हुई, जो करीब 20
मिनट चली। जस्टिस कांत ने जोर देकर कहा, "हमें देश की सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहिए, खासकर
आज के हालात में।" सॉलिसिटर जनरल तुषार
मेहता ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा, "आतंकवादियों
का निजता का कोई अधिकार नहीं हो सकता।"
रिपोर्ट
सार्वजनिक करने की मांग: याचिकाकर्ताओं,
जिनमें वरिष्ठ पत्रकार एन. राम भी शामिल हैं, ने
कोर्ट से तकनीकी समिति की रिपोर्ट और पूर्व जस्टिस आरवी रवींद्रन की अलग
रिपोर्ट की कॉपी मांगी। ये रिपोर्ट तीन साल पहले सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी
गई थीं, जिनमें निगरानी, गोपनीयता और
साइबर सुरक्षा पर सुझाव दिए गए थे। वकील श्याम दीवान ने कहा कि अगर सरकार ने अपने
ही नागरिकों की जासूसी की, तो यह बहुत गंभीर मामला है।
उन्होंने मांग की कि पूरी रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।
दीवान
ने याद दिलाया कि 2022 में तत्कालीन चीफ जस्टिस
एनवी रमना की बेंच ने बताया था कि 29 फोनों की जांच में 5
फोन मैलवेयर से संक्रमित पाए गए थे और केंद्र ने सहयोग नहीं किया
था। वहीं, तुषार मेहता ने इस दलील पर आपत्ति जताई।
न्यायालय का रुख: जस्टिस कांत ने कहा, "जो लोग निगरानी की आशंका से फोन जांच के लिए दे चुके हैं, उन्हें यह जानने का हक है कि वे सुरक्षित हैं या हैक हुए हैं।" कोर्ट ने वकीलों से ऐसे लोगों की सूची मांगी, जिनके फोन जांच के लिए दिए गए। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ी कोई बात उजागर नहीं की जाएगी। जस्टिस कांत ने कहा, "अगर किसी को शक है, तो उसका जवाब देना चाहिए, लेकिन इसे सड़क पर चर्चा का मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए।"
मामले
की अगली सुनवाई 30 जुलाई 2025 को होगी।