18 अप्रैल 2025
सुप्रीम कोर्ट ने
गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अगर किसी हत्या के मामले में मकसद
(मोटिव) नहीं पता चलता, तो भी सिर्फ इसी आधार पर
आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता। अदालत ने एक पिता द्वारा अपने ही बेटे की हत्या
के मामले में दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा।
क्या कहा सुप्रीम
कोर्ट ने:
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने साफ
कहा कि –
"जैसे
किसी अपराध के पीछे मकसद का होना ही दोष सिद्ध करने के लिए काफी नहीं होता,
वैसे ही मकसद का न होना आरोपी को छोड़ देने का कारण नहीं हो
सकता।"
अदालत ने आरोपी की
इस दलील को भी खारिज कर दिया कि कोई बाप अपने इकलौते बेटे की हत्या नहीं कर सकता।
कोर्ट ने इस तर्क को "बचकाना" बताया।
मामला क्या है:
यह घटना 14-15 दिसंबर 2012 की रात की है। आरोपी सुभाष अग्रवाल दिल्ली में अपनी पत्नी और 5 बच्चों के साथ रहता था। उसी रात उसके सबसे छोटे बेटे की सीने में गोली
लगने से मौत हो गई। सुभाष ने परिवार और पड़ोसियों को बताया कि उसके बेटे ने पेचकस
(स्क्रू ड्राइवर) से आत्महत्या कर ली, लेकिन पोस्टमार्टम
रिपोर्ट और जांच में साफ हो गया कि मौत गोली लगने से हुई थी।
गवाहों ने क्या
कहा:
अभियुक्त की पत्नी और बेटियों ने अदालत में बताया कि घटना के बाद
सुभाष का व्यवहार संदिग्ध था। पड़ोसी ने भी बताया कि उसने आरोपी से पूछा तो उसने
झूठ कहा कि बेटे ने पेचकस से खुद को मारा, जबकि शरीर पर ऐसे
कोई निशान नहीं थे।
दिल्ली हाईकोर्ट के
फैसले पर लगी थी अपील:
इस केस में पहले ट्रायल कोर्ट ने सुभाष को आजीवन कारावास की
सजा दी थी। इसके खिलाफ उसने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन
हाईकोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के 2022 के फैसले को सही ठहराते हुए अपील खारिज कर दी।
अदालत ने क्या
निष्कर्ष निकाला:
सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों (circumstantial
evidence) पर आधारित है और भले ही मकसद न मिले, लेकिन बाकी सबूत आरोपी के खिलाफ हैं। जांच से साफ हुआ कि गोली पास से
चलाई गई थी, इसलिए अदालत ने सजा में कोई बदलाव नहीं
किया।