धारा 2 दहेज की परिभाषा:
इस अधिनियम में,
"दहेज" से तात्पर्य किसी ऐसी सम्पत्ति या मूल्यवान
प्रतिभूति से है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई हो या देने के लिए सहमति
दी गई हो-
(क) विवाह
के एक पक्ष द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को; या
(ख) विवाह
के किसी भी पक्षकार के माता-पिता द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा, विवाह के किसी भी पक्षकार को या किसी अन्य व्यक्ति को;
उक्त पक्षकारों के
विवाह के संबंध में 1[या विवाह के पश्चात किसी भी
समय] 2[परन्तु इसमें] मेहर या महर सम्मिलित नहीं है, उन व्यक्तियों के मामले में जिन पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) लागू होता
है।
स्पष्टीकरण--
"मूल्यवान प्रतिभूति" पद का वही अर्थ है जो भारतीय न्याय
संहिता, 2023 की धारा 2 (31) में है।
आइये हम दहेज की व्याख्या को सरल भाषा मे समझने का प्रयास करते है:
दहेज
का मतलब है – वह संपत्ति, पैसा, या कीमती चीजें जो एक शादी के समय या उसके बाद किसी भी समय,
दुल्हन या दूल्हे को, उनके माता-पिता,
रिश्तेदार या किसी और व्यक्ति द्वारा दी जाती हैं या देने का
वादा किया जाता है,
इस इरादे से कि यह सब शादी से जुड़ा हुआ है।
यह देना:
- सीधे तौर पर हो सकता है – जैसे
नकद पैसा, गाड़ी, गहने
देना
- या परोक्ष रूप से – जैसे कोई
ज़मीन उनके नाम करना, या बैंक बैलेंस देना।
इसमें ये सब शामिल
हो सकते हैं:
- शादी से पहले दिया गया,
- शादी के समय दिया गया,
- या शादी के बाद कभी भी दिया गया।
लेकिन इसमें "महर" (या "मेहर") शामिल
नहीं होता — मेहर वह रकम होती है जो मुस्लिम धर्म के तहत पति अपनी पत्नी को देता
है। इसलिए मुस्लिमों पर इसका अलग नियम चलता है।
इसके अलावा,
जो भी कीमती दस्तावेज़ या प्रतिभूतियाँ (जैसे – बॉन्ड, शेयर, प्रॉपर्टी
के कागज़) शादी के कारण दिए जाएँ, वो भी दहेज की श्रेणी में
आते हैं।
उदाहरण से समझें:
अगर किसी लड़की के
माता-पिता दूल्हे को शादी में कार देते हैं — यह दहेज है।
अगर शादी के बाद दूल्हे के घरवाले लड़की से कहें कि उसके मायके से
फ्रिज या सोना मंगवाए — तो वह भी दहेज की माँग मानी जाएगी।
सार में:
"दहेज"
वह सब कुछ है जो शादी के नाम पर, शादी से पहले, दौरान या बाद में किसी भी पक्ष को दिया जाता है — पैसा, गहने, गाड़ी, ज़मीन, या कोई भी कीमती चीज़।
टिप्पणी
1. मामला:
State of Andhra Pradesh vs. Raj Gopal Asawa, AIR 2004 SC 1933
वर्ष: 2004
न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय (Supreme
Court of India)
इस केस में दहेज की व्याख्या को कैसे समझाया गया आइये समझते है।
इस मामले में सुप्रीम
कोर्ट ने दहेज के मतलब और उसकी कानूनी व्याख्या
(Legal Interpretation) को स्पष्ट किया।
दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2
में 'दहेज' को परिभाषित
किया गया है, और कोर्ट ने इसी आधार पर यह बताया कि क्या
दहेज है और क्या नहीं।
मुख्य बिंदु जो
कोर्ट ने इस केस में स्पष्ट किए:
1. "दहेज" का मतलब केवल शादी के दिन दिया गया तोहफ़ा नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि दहेज वह चीज़ है जो:
o शादी
के तुरंत पहले,
o शादी
के समय, या
o शादी
के बाद,
दी जाती है या देने की बात की जाती है — और वो भी शादी से जुड़े
कारणों से।
2. अगर
कोई पैसा या संपत्ति इसलिए दी जा रही है क्योंकि शादी हो रही है,
तो वह दहेज मानी जाएगी, चाहे वह शादी
से कुछ दिन पहले दी जाए, या शादी के बाद।
3. अगर
दूल्हा या उसके परिवारवाले किसी चीज़ की मांग करते हैं,
और वो चीज़ लड़की के परिवार से उन्हें दी जाती है – तो यह भी दहेज
है।
4. "उपहार" और "दहेज" में फर्क
है:
o अगर
कोई तोहफ़ा अपनी इच्छा से, बिना किसी दबाव या मांग के
दिया गया है – तो वो दहेज नहीं कहलाएगा।
o लेकिन
अगर किसी ने मांग की हो, या शादी के लिए कोई शर्त
रखी हो – तो वह दहेज की श्रेणी में आएगा।
इस केस का महत्व:
इस फैसले में
सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि दहेज की परिभाषा बहुत व्यापक है
– इसमें सिर्फ शादी के दिन का लेन-देन नहीं, बल्कि
शादी से जुड़े किसी भी समय और किसी भी रूप में किया गया लेन-देन शामिल हो
सकता है।
यह निर्णय दहेज
मामलों में जांच और साक्ष्य (evidence) के महत्व को भी बताता है – यानी यह देखना ज़रूरी है कि लेन-देन क्यों हुआ?
क्या उसमें शादी से जुड़ी कोई शर्त या मांग थी?
2. Bhim Singh
& Another v. State of Uttarakhand (AIR 2015 SC 797)
एक महत्वपूर्ण मामला है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दहेज से संबंधित
कानूनों की व्याख्या की।
मामले का सारांश:
इस मामले में,
अभियुक्तों (बचाव पक्ष) पर आरोप था कि उन्होंने विवाह के बाद दहेज
की मांग की और उत्पीड़न किया, जिसके परिणामस्वरूप पीड़िता की
मृत्यु हो गई।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने
अपने फैसले में कहा कि दहेज की मांग विवाह से पहले ही नहीं,
बल्कि विवाह के किसी भी समय की जा सकती है। अदालत ने यह स्पष्ट किया
कि यदि विवाह के बाद भी दहेज की मांग की जाती है, तो वह दहेज
निषेध अधिनियम, 1961 के तहत आती है।
न्यायालय का
अवलोकन:
अदालत ने यह भी कहा
कि दहेज की मांग किसी भी समय की जा सकती है, और यह
जरूरी नहीं है कि यह मांग विवाह से पहले ही की जाए। इसलिए, यदि
विवाह के बाद भी दहेज की मांग की जाती है, तो वह दहेज निषेध
अधिनियम के तहत अपराध मानी जाएगी।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने
इस मामले में दहेज की परिभाषा को व्यापक रूप से व्याख्यायित किया और यह स्पष्ट
किया कि दहेज की मांग विवाह के किसी भी समय की जा सकती है,
न कि केवल विवाह से पहले। इस फैसले ने दहेज से संबंधित कानूनों की
व्याख्या में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
3. मामला:
राजिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य, AIR 2015 SC 1359
निर्णय की तिथि:
26 फरवरी, 2015
सर्वोच्च न्यायालय
का अवलोकन:
इस मामले में,
सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज की परिभाषा और दहेज मृत्यु से संबंधित
प्रावधानों की व्याख्या की। अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304B और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 का संदर्भ लेते हुए कहा कि:
दहेज की परिभाषा:
दहेज में कोई भी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा शामिल है जो विवाह से
पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद, प्रत्यक्ष
या अप्रत्यक्ष रूप से, विवाह से संबंधित कारणों से दी जाती
है या देने की सहमति दी जाती है।
1. दहेज
मृत्यु: यदि किसी महिला की मृत्यु विवाह के सात
वर्षों के भीतर जलने, शारीरिक चोट या असामान्य परिस्थितियों
में होती है, और यह दिखाया जाता है कि मृत्यु से पहले उसे
दहेज की मांग के संबंध में पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न का
सामना करना पड़ा था, तो इसे दहेज मृत्यु माना जाएगा।
2. "मृत्यु से पहले" का अर्थ: अदालत
ने स्पष्ट किया कि "मृत्यु से पहले" एक सापेक्ष शब्द है और प्रत्येक
मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसका मतलब यह नहीं है कि
क्रूरता या उत्पीड़न मृत्यु के तुरंत पहले हुआ हो, लेकिन यह
दिखाना आवश्यक है कि यह मृत्यु के निकट समय में हुआ था।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दहेज और दहेज मृत्यु की परिभाषा
को स्पष्ट किया, जिससे दहेज से संबंधित मामलों में
न्यायालयों को मार्गदर्शन मिला।
4. मामला: सतवीर सिंह बनाम पंजाब राज्य,
AIR 2001 SC 2828
निर्णय की तिथि:
27 सितंबर, 2001
पीठ:
न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस और न्यायमूर्ति एस.एन. वरियावा
मामले का सारांश:
इस मामले में,
अभियुक्तों पर आरोप था कि उन्होंने विवाह के बाद दहेज की मांग की और
उत्पीड़न किया, जिसके परिणामस्वरूप पीड़िता ने आत्महत्या का
प्रयास किया। सत्र न्यायालय ने अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 116
सहपठित धारा 306 और धारा 498ए के तहत दोषी ठहराया। उच्च न्यायालय ने धारा 306 को
धारा 304बी से प्रतिस्थापित किया और सजा को बढ़ाकर पांच वर्ष
का कठोर कारावास कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय में इस निर्णय के खिलाफ अपील की गई।
सर्वोच्च न्यायालय
का अवलोकन:
1. दहेज
की परिभाषा: अदालत ने दहेज निषेध अधिनियम,
1961 की धारा 2 का संदर्भ लेते हुए कहा कि
दहेज में कोई भी संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा शामिल है जो विवाह से पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद, प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष रूप से, विवाह से संबंधित कारणों से दी जाती है
या देने की सहमति दी जाती है。
2. दहेज
मृत्यु: अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी महिला
की मृत्यु विवाह के सात वर्षों के भीतर जलने, शारीरिक चोट या
असामान्य परिस्थितियों में होती है, और यह दिखाया जाता है कि
मृत्यु से पहले उसे दहेज की मांग के संबंध में पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा
क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था, तो इसे दहेज
मृत्यु माना जाएगा।
3. "मृत्यु से पहले" का अर्थ: अदालत
ने कहा कि "मृत्यु से पहले" एक सापेक्ष शब्द है और प्रत्येक मामले के
तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। इसका मतलब यह नहीं है कि क्रूरता या
उत्पीड़न मृत्यु के तुरंत पहले हुआ हो, लेकिन यह दिखाना
आवश्यक है कि यह मृत्यु के निकट समय में हुआ था।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दहेज और दहेज मृत्यु की परिभाषा
को स्पष्ट किया, जिससे दहेज से संबंधित मामलों में
न्यायालयों को मार्गदर्शन मिला।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1: दहेज
क्या होता है?
उत्तर:
दहेज वह संपत्ति, पैसा, गहने,
गाड़ी या कोई भी कीमती चीज़ है जो शादी के समय, शादी से पहले या शादी के बाद दी जाती है – या देने का वादा किया जाता है –
और यह सब शादी से जुड़े कारणों से किया जाता है।
Q2: क्या
शादी के बाद दी गई चीजें भी दहेज मानी जाती हैं?
उत्तर:
हाँ, अगर कोई चीज शादी के बाद दी जाती है और
उसका संबंध शादी से है या दूल्हे के परिवार ने माँग की थी, तो
वह भी दहेज मानी जाएगी।
Q3: क्या
कोई तोहफ़ा भी दहेज माना जा सकता है?
उत्तर:
अगर तोहफ़ा अपनी मर्ज़ी से, बिना किसी दबाव या
मांग के दिया गया है, तो वह दहेज नहीं माना जाएगा। लेकिन अगर
वह किसी मांग या शादी की शर्त पर आधारित है, तो वह दहेज माना
जाएगा।
Q4: क्या
मुस्लिमों में मेहर भी दहेज माना जाता है?
उत्तर:
नहीं, "मेहर" (जिसे मुस्लिम पति
अपनी पत्नी को देता है) दहेज की परिभाषा में शामिल नहीं है। मुस्लिमों के
लिए इसमें अलग प्रावधान है।
Q5: दहेज की
परिभाषा में कौन-कौन सी चीजें शामिल होती हैं?
उत्तर:
- नकद पैसा
- गाड़ी,
सोना, गहने
- जमीन,
मकान या प्रॉपर्टी
- बैंक बैलेंस
- शेयर,
बॉन्ड जैसे कीमती दस्तावेज़
अगर ये शादी से
जुड़ी वजह से दिए गए हैं, तो ये सब दहेज माने जाएंगे।
Q6: क्या
दहेज की माँग करना अपराध है?
उत्तर:
हाँ, दहेज माँगना दहेज निषेध अधिनियम,
1961 के तहत एक दंडनीय अपराध है। इसके लिए सजा और जुर्माना
दोनों हो सकते हैं।
Q7: दहेज
मृत्यु (Dowry Death) क्या होती है?
उत्तर:
अगर शादी के सात साल के भीतर किसी महिला की मौत जलने, चोट लगने या असामान्य स्थिति में होती है, और यह
साबित होता है कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था, तो
उसे "दहेज मृत्यु" कहा जाता है।
Q8: "मृत्यु
से पहले प्रताड़ना" का क्या मतलब है?
उत्तर:
इसका मतलब है – मौत के बिलकुल पहले नहीं, बल्कि
मौत के करीब किसी भी समय महिला को दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया हो, तो वह दहेज मृत्यु मानी जा सकती है।
Q9: अगर कोई
संपत्ति शादी से एक हफ्ता पहले दी गई हो, तो क्या वह दहेज है?
उत्तर:
अगर वह संपत्ति शादी से जुड़ी वजह से दी गई है, तो हाँ, उसे दहेज माना जाएगा – भले ही शादी से पहले
दी गई हो।
Q10: दहेज
से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण कोर्ट केस कौन-से हैं?
उत्तर:
1. State
of A.P. vs. Raj Gopal Asawa (2004): दहेज की
व्यापक परिभाषा दी गई।
2. Bhim
Singh vs. State of Uttarakhand (2015): शादी के
बाद की माँग भी दहेज मानी जाती है।
3. Rajinder
Singh vs. State of Punjab (2015): दहेज
मृत्यु की व्याख्या की गई।
4. Satvir
Singh vs. State of Punjab (2001): "मृत्यु
से पहले" प्रताड़ना का अर्थ स्पष्ट किया गया।