भारत में जब पति-पत्नी अलग होते हैं, तो न्यायालय जरूरतमंद पक्ष (अक्सर पत्नी) को गुजारा भत्ता यानी भरण-पोषण (Maintenance) देने का आदेश दे सकता है। लेकिन सवाल उठता है—अगर महिला दोबारा शादी कर ले, तो क्या उसे गुजारा भत्ता मिलता रहेगा? आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।
क्या पुनर्विवाह से गुजारा भत्ता बंद हो जाता है?
सीधे शब्दों में
कहें तो—अक्सर हां।
जब कोई महिला,
जो अपने पहले पति से गुजारा भत्ता (Maintenance) प्राप्त कर रही होती है, दोबारा विवाह करती है,
तो कानून मानता है कि अब उसका भरण-पोषण (रोज़मर्रा की जरूरतें और
जीवन यापन) उसके नए पति की जिम्मेदारी है। इसलिए, पहले
पति की जिम्मेदारी स्वतः समाप्त मानी जाती है।
भारत में अब इस
स्थिति को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
की धारा 144 द्वारा
नियंत्रित किया गया है, जो पहले CrPC की धारा 125 में हुआ करता था।
इस धारा के अनुसार:
- यदि पत्नी ने पुनर्विवाह कर लिया
है,
और वह विवाह वैध है (यानी विधिक रूप से स्वीकार्य),
तो पहले पति को अब गुजारा भत्ता देने की ज़रूरत नहीं होती।
- कानून का तर्क है कि जब महिला का
नया पति है, तो अब उसकी देखभाल और
खर्च की जिम्मेदारी उसी की बनती है।
लेकिन ध्यान दें:
यह
नियम हर स्थिति में लागू नहीं होता। यदि दूसरा विवाह वैध नहीं है (जैसे कि
धोखे से किया गया, या वह पति पहले से शादीशुदा
है), तो भरण-पोषण जारी भी रह सकता है—यह सब परिस्थितियों पर
निर्भर करता है।
महत्वपूर्ण केस:
भगवती देवी बनाम
प्रेम नारायण (AIR 1975 All 48)
इस मामले में,
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई पत्नी पुनर्विवाह
कर लेती है, तो वह अपने पूर्व पति से भरण-पोषण की
हकदार नहीं रह जाती। अदालत ने कहा कि नया विवाह यह दर्शाता है कि महिला की
देखरेख की जिम्मेदारी अब नए पति की है, इसलिए पहले पति
की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है।
यह केस इस बात का
ठोस उदाहरण है कि कैसे भारतीय न्यायालय पुनर्विवाह के बाद भरण-पोषण को समाप्त करने
की ओर झुकाव रखते हैं—बशर्ते पुनर्विवाह वैध हो और महिला को नए पति से पर्याप्त
सहारा मिल रहा हो।
क्या हमेशा गुजारा भत्ता रुकता है?
नहीं, हर बार नहीं। पुनर्विवाह के बाद भी कुछ विशेष परिस्थितियों में गुजारा भत्ता पूरी
तरह बंद नहीं किया जाता, बल्कि उसे कम किया जा सकता
है या जारी भी रखा जा सकता है, खासकर जब पत्नी को
अभी भी आर्थिक मदद की ज़रूरत हो।
उदाहरण के लिए:
- यदि पत्नी के नए पति की आर्थिक
स्थिति कमजोर है और वह उसकी देखरेख अच्छे से नहीं कर पा रहा।
- यदि पत्नी किसी गंभीर बीमारी
से जूझ रही है और इलाज या देखभाल के लिए आर्थिक मदद की ज़रूरत है।
- यदि पिछले विवाह से बच्चे
पत्नी के साथ रह रहे हैं, और
उनके खर्चों का बोझ उसी पर है।
महत्वपूर्ण केस:
Mamta Jaiswal vs Rajesh
Jaiswal (AIR 2000 MP 296)
इस
केस में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर पत्नी के पास कुछ सीमित आमदनी
है या उसकी स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर है, तो
सिर्फ इसी आधार पर गुजारा भत्ता को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता।
यह फैसला यह भी
दर्शाता है कि न्यायालय मामले की परिस्थितियों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करता
है और यदि ज़रूरत हो तो गुजारा भत्ता जारी रखने का आदेश भी दे सकता है।
न्यायालय का
दृष्टिकोण:
हर मामला अपने आप में अलग होता है। अदालतें यह देखती हैं कि क्या पुनर्विवाह
के बाद महिला की आर्थिक जरूरतें पूरी हो पा रही हैं या नहीं। यदि नहीं,
तो अदालत मानवता के आधार पर राहत देने का अधिकार रखती है।
बच्चों के भरण-पोषण
पर क्या असर होता है?
बिलकुल भी नहीं।
अगर माँ दोबारा शादी कर लेती है, तो भी बच्चों
के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उनके जैविक पिता पर ही रहती है।
बच्चों को तब तक गुजारा भत्ता मिलता है जब तक वे वयस्क न हो जाएं या
खुद कमाने न लगें।
क्या स्थायी गुजारा
भत्ता भी रुकता है?
सीधा जवाब है — नहीं, हर बार नहीं।
जब किसी महिला को स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent
Alimony) मिला होता है, जैसे कि तलाक के
समय एकमुश्त रकम या हर महीने लंबे समय तक भुगतान, तो
पुनर्विवाह के बाद
भी यह भत्ता अपने आप बंद नहीं होता।
ऐसा क्यों?
क्योंकि यह भत्ता
पहले ही कुछ विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तय किया गया होता है,
जैसे:
- महिला की उम्र (अगर वह वृद्ध है
और काम करने में असमर्थ है)
- स्वास्थ्य की स्थिति (अगर वह
बीमार या विकलांग है)
- शिक्षा और रोजगार की संभावनाएं
ऐसे मामलों में
अदालत पहले ही मान चुकी होती है कि महिला को लंबे समय तक आर्थिक सहायता की ज़रूरत
होगी।
परंतु... अदालत को
विवेकाधिकार है
यदि महिला ने
पुनर्विवाह कर लिया है और अदालत को यह लगता है कि:
- नया पति आर्थिक रूप से सक्षम है
- महिला को अब अलग से भरण-पोषण
की ज़रूरत नहीं रही
...तो अदालत
भत्ता की राशि कम कर सकती है या इसे पूरी तरह बंद भी कर सकती है। लेकिन यह स्वचालित
नहीं होता, कोर्ट को आवेदन और तथ्यों की जांच करनी होती
है।
महत्वपूर्ण केस:
U. Sree vs U. Srinivas,
(2013) 2 SCC 114)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता मिला है,
तो सिर्फ पुनर्विवाह के आधार पर उसे बिना जांच के बंद
नहीं किया जा सकता।
कोर्ट को यह देखना होगा कि क्या महिला को अभी भी सहायता की ज़रूरत
है, और क्या नया पति उसे पूरा सहारा दे रहा है।
Ravi Kumar v. Julmi Devi,
(2022 SCC OnLine Pat 1457)
पटना हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि स्थायी भरण-पोषण को रोकने या
संशोधित करने के लिए कोर्ट में याचिका देना आवश्यक है। पुनर्विवाह मात्र से यह
स्वतः समाप्त नहीं होता।
- स्थायी गुजारा भत्ता पुनर्विवाह
के बाद अपने आप नहीं रुकता।
- अगर महिला को अब नया आर्थिक सहारा
मिल गया है, तो पूर्व पति कोर्ट
में अर्जी देकर राशि कम या बंद करवाने का निवेदन कर सकता है।
- हर फैसला केस की परिस्थितियों पर
निर्भर करता है।
कौन-कौन से कानून
इस पर लागू होते हैं?
1. BNSS की
धारा 144 (पूर्व में CrPC की धारा 125
की जगह)
BNSS यानी Bharatiya
Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 जो अब दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
की जगह लागू हो चुका है।
क्या कहती है धारा 144?
- यह धारा उस स्थिति से संबंधित है
जब कोई व्यक्ति (अक्सर पत्नी, बच्चे,
माता-पिता) अपने जीवनयापन के लिए आवश्यक साधन नहीं रखता
और वह किसी ऐसे व्यक्ति (जैसे पति) से गुजारा भत्ता मांग सकता है जो
उसकी देखभाल करने का कानूनी दायित्व रखता है।
- लेकिन अगर पत्नी पुनर्विवाह कर
लेती है, तो यह धारा कहती है कि
पहले पति की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है, क्योंकि
अब पत्नी के नए पति पर उसके भरण-पोषण का दायित्व आ जाता है।
मुख्य बात:
पुनर्विवाह = पहले पति की कानूनी जिम्मेदारी खत्म
(लेकिन कोर्ट में इसके लिए पुष्टि करनी होती है कि विवाह वैध है)
हिंदू विवाह
अधिनियम, 1955 की धारा 25
क्या कहती है धारा 25?
- इस धारा के तहत,
तलाक के बाद कोई भी पक्ष (पति या पत्नी) स्थायी भरण-पोषण (Permanent
Alimony) की मांग कर सकता है।
- यदि बाद में उस पक्ष की स्थिति
बदलती है, जैसे कि:
- पुनर्विवाह कर लिया हो,
- आर्थिक रूप से सक्षम हो गया हो,
...तो अदालत
के पास यह अधिकार होता है कि वह:
- भरण-पोषण की राशि को कम कर दे,
- या पूरा भत्ता बंद कर दे।
इस धारा के तहत
कोर्ट पूरी तरह से मामले की परिस्थितियों को देखता है और मानवता व न्याय
के आधार पर फैसला करता है।
उदाहरण के साथ
समझें:
- यदि एक महिला को तलाक के बाद हर
महीने ₹10,000 का गुजारा भत्ता मिल रहा है,
- लेकिन बाद में वह पुनर्विवाह
कर लेती है और उसका नया पति आर्थिक रूप से सक्षम है,
- तो Hindu
Marriage Act की धारा 25
के तहत कोर्ट उस भत्ते में संशोधन का आदेश दे सकता है।
अदालत कैसे फैसला करती है?
जब अदालत के सामने
यह प्रश्न आता है कि पुनर्विवाह के बाद भरण-पोषण (maintenance/alimony) जारी रखा जाए या नहीं, तो वह हर मामले को उसके विशेष
तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय करती है। कोई भी फैसला स्वतः या
एकसमान नियमों के आधार पर नहीं होता।
न्यायालय किन बातों
पर ध्यान देता है?
1. क्या
नया पति पत्नी की आर्थिक मदद कर रहा है?
अगर नया पति आय वाला है और पत्नी की सभी आवश्यकताओं का ध्यान रख रहा
है, तो अदालत भरण-पोषण बंद कर सकती है।
2. क्या
पत्नी को अब भी आर्थिक मदद की ज़रूरत है?
अगर पत्नी बीमार है, वृद्ध है, या नया पति असमर्थ है, तो अदालत भरण-पोषण जारी रख
सकती है।
3. क्या
बच्चों की देखरेख पत्नी कर रही है?
अगर बच्चे पत्नी के साथ रहते हैं और उनकी देखरेख का खर्च वही उठा
रही है, तो अदालत भरण-पोषण को पूरी तरह खत्म नहीं करती।
महत्वपूर्ण केस:
Bhuwan Mohan Singh v.
Meena & Ors. Supreme Court, AIR 2015 SC 2506
सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य महिला और बच्चों को गरिमा के साथ जीवन जीने का
अधिकार देना है।
अगर परिस्थितियाँ दर्शाती हैं कि पत्नी को अभी भी सहायता की जरूरत
है, तो पुनर्विवाह के बावजूद उसे भरण-पोषण मिल सकता है।
Rajnesh v. Neha &
Anr. Supreme Court, 2020 SCC Online SC 903
इस केस में कोर्ट
ने Maintenance
Guidelines जारी किए और कहा कि:
- न्यायालय को भरण-पोषण तय करते समय
दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति, ज़रूरतें
और जिम्मेदारियाँ देखनी होंगी।
- पुनर्विवाह के बाद भी अगर महिला
की वास्तविक ज़रूरत बनी रहती है, तो
कोर्ट मदद दे सकता है।
निष्कर्ष:
- पुनर्विवाह आम तौर पर गुजारा
भत्ता खत्म कर देता है।
- लेकिन अदालत का अंतिम निर्णय
परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
- बच्चों का भरण-पोषण पुनर्विवाह से
प्रभावित नहीं होता।
याद रखें:
हर मामला अलग होता है। यदि आप या कोई जानने वाला इस स्थिति में है,
तो कानून की सही जानकारी और कानूनी सलाह लेना बेहद जरूरी है।
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