शरजील इमाम के मामले में सुप्रीम कोर्ट का सवाल—क्या एक ही भाषण के लिए अलग-अलग राज्यों में मुकदमे चलाए जा सकते हैं—एक महत्वपूर्ण कानूनी और संवैधानिक मुद्दा है, जो डबल जेपर्डी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के समान अनुप्रयोग जैसे सिद्धांतों को छूता है।
मामले की पृष्ठभूमि
शरजील
इमाम,
जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के
पूर्व छात्र हैं, 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA)
के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान एक भाषण देने के लिए विवादों में आए।
इस भाषण को भड़काऊ माना गया, और इसके आधार पर उत्तर प्रदेश,
असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में उनके खिलाफ
देशद्रोह (IPC धारा 124A) और गैरकानूनी
गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) जैसे गंभीर अपराधों के तहत
कई FIR दर्ज की गईं। इसके अलावा, दिल्ली
पुलिस ने भी 25 जनवरी 2020 को IPC
की धारा 124A और 153A के
तहत मामला दर्ज किया और 28 जनवरी 2020 को
बिहार के जहानाबाद से उनकी गिरफ्तारी की।
शरजील
ने सुप्रीम कोर्ट में 2020 में याचिका दायर की,
जिसमें मांग की गई कि इन सभी FIR को एक साथ
जोड़ दिया जाए और सभी मामलों को दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया जाए, ताकि उन्हें बार-बार अलग-अलग राज्यों में मुकदमों का सामना न करना पड़े।
यह याचिका कानूनी सिद्धांतों जैसे डबल जेपर्डी और न्यायिक दक्षता पर आधारित थी।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और सवाल
29
अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर
सुनवाई की, जिसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और
न्यायमूर्ति संजय कुमार की बेंच ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि
क्या एक ही भाषण के लिए शरजील को अलग-अलग राज्यों में कई मुकदमों का सामना करना
पड़ सकता है, खासकर जब भाषण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे YouTube
पर उपलब्ध है और इसका असर कई जगहों पर एक जैसा है।
कोर्ट
ने यह भी कहा कि अगर शरजील को अलग-अलग राज्यों में दोषी ठहराया जाता है,
तो यह डबल जेपर्डी का मामला हो सकता है, जो
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(2) के तहत निषिद्ध है।
अनुच्छेद 20(2) कहता है कि किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के
लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी चिंता जताई कि कई मुकदमे चलाने से
भविष्य में कानूनी समस्याएं बढ़ सकती हैं और यह एक खराब मिसाल कायम करेगा।
दलीलें और विरोध
शरजील
के वकील सिद्धार्थ दवे ने कोर्ट से कहा कि एक भाषण के लिए पूरे देश में कई मुकदमे
दर्ज करना अन्यायपूर्ण है। उनका तर्क था कि सभी FIR को
एक साथ जोड़ देना चाहिए, ताकि शरजील को कानूनी प्रक्रिया में
बार-बार भाग लेने की जरूरत न पड़े।
दूसरी
ओर,
दिल्ली पुलिस की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इसका
विरोध किया। उन्होंने कहा कि शरजील ने सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भीड़ को भड़काने का काम
किया। उनका तर्क था कि अलग-अलग राज्यों में भीड़ भड़काने के लिए अलग-अलग अपराध हुए,
इसलिए अलग-अलग मुकदमे चलाने चाहिए। राजू ने कोर्ट को कुछ फैसले भी
दिखाए, जिसमें कहा गया कि ऐसे मामले में अलग-अलग अपराध माने
जा सकते हैं।
कोर्ट की प्रारंभिक राय
मुख्य
न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि अगर भाषण एक है और उसका असर भी एक जैसा है,
तो इसे एक ही अपराध माना जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि सभी
मामलों को दिल्ली में स्थानांतरित किया जा सकता है और अन्य राज्यों में चल रहे
मुकदमों पर रोक लगाई जा सकती है, ताकि कई बार सुनवाई से बचा
जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि कई मुकदमे चलाने से शरजील को कानूनी और वित्तीय बोझ
उठाना पड़ेगा, जो न्यायिक प्रणाली के लिए भी सही नहीं है।
मामले का कानूनी और सामाजिक संदर्भ
यह
मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक
रूप से भी संवेदनशील है। शरजील इमाम के भाषण को लेकर यह विवाद CAA और NRC के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान उठा, जो उस समय देश में बड़े पैमाने पर चर्चा का विषय थे। इस मामले में
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के दुरुपयोग के सवाल भी उठ रहे हैं। कुछ लोगों
का मानना है कि शरजील को राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा है, जबकि दूसरों का कहना है कि उनके भाषण से सार्वजनिक शांति भंग हुई।
वर्तमान स्थिति और भविष्य का रास्ता
29
अप्रैल 2025 की सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मामले को दो सप्ताह के लिए टाल दिया, ताकि दोनों पक्ष अपनी दलीलें और सबूत पेश कर सकें। अभी तक कोई अंतिम फैसला
नहीं आया है। कोर्ट इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या सभी FIR को एक साथ जोड़ा जाए या अलग-अलग राज्यों में मुकदमे चलते रहें। यह फैसला
भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है, खासकर
जब सोशल मीडिया पर दिए गए भाषणों के लिए कई जगह FIR दर्ज की
जाती हैं।
मामले के मुख्य तत्व
तत्व |
विवरण |
शरजील इमाम का बैकग्राउंड |
JNU
के पूर्व छात्र, दिल्ली दंगों के आरोपी,
2020 में CAA विरोधी भाषण दिया |
FIR
दर्ज करने वाले राज्य |
उत्तर प्रदेश, असम,
मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, और दिल्ली |
कानूनी धाराएं |
IPC
धारा 124A (देशद्रोह), UAPA, और अन्य |
शरजील की मांग |
सभी FIR को एक साथ जोड़ना,
मामले दिल्ली में स्थानांतरित करना |
दिल्ली पुलिस का तर्क |
अलग-अलग राज्यों में भीड़ भड़काने के लिए अलग मुकदमे
जायज |
सुप्रीम कोर्ट की राय |
एक भाषण, एक
अपराध; डबल जेपर्डी का खतरा, मामलों
को दिल्ली में स्थानांतरित करने का सुझाव |
निष्कर्ष
यह मामला कानूनी, संवैधानिक और सामाजिक रूप से जटिल है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला यह तय करेगा कि क्या एक ही भाषण के लिए कई राज्यों में मुकदमे चलाना उचित है या नहीं। यह फैसला न केवल शरजील इमाम के लिए, बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों के लिए भी दिशा-निर्देश देगा, खासकर जब सोशल मीडिया पर दिए गए भाषणों का असर कई जगहों पर पड़ता है।