न्यायालयिक
पैथोलॉजी (Forensic Pathology) न्यायालयिक विज्ञान
की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो मृत्यु के कारणों (Cause
of Death), समय (Time of Death) और प्रकृति (Nature
of Death) का निर्धारण करने के लिए शव परीक्षण (Autopsy)
का उपयोग करती है।
पोस्टमार्टम (Autopsy)
की परिभाषा
पोस्टमार्टम या शव
परीक्षण (Autopsy) वह
प्रक्रिया है जिसमें किसी मृत व्यक्ति के शरीर का वैज्ञानिक और विस्तृत अध्ययन
किया जाता है ताकि मृत्यु के वास्तविक कारणों का पता लगाया जा सके।
पोस्टमार्टम शब्द की उत्पत्ति:
- "Post" का
अर्थ है बाद में और "Mortem" का अर्थ
है मृत्यु।
- इस प्रकार,
पोस्टमार्टम का अर्थ है मृत्यु के बाद किया गया परीक्षण।
न्यायालयिक पैथोलॉजी के उद्देश्य
1. मृत्यु के कारण
का निर्धारण: यह पता लगाना कि मृत्यु प्राकृतिक,
अप्राकृतिक, आत्महत्या, हत्या,
या दुर्घटना के कारण हुई।
2. मृत्यु का समय और तरीका: मृत्यु
कितने समय पहले हुई और वह आघात, विषाक्तता,
या अन्य कारकों से हुई।
3. साक्ष्य का संग्रह: शरीर से प्राप्त
साक्ष्य, जैसे डीएनए, वीर्य,
बाल, या अन्य जैविक साक्ष्य, जो अपराध की जांच में सहायक हो सकते हैं।
4. संभावित अपराधियों की पहचान: यदि
मृतक की हत्या हुई है, तो अपराधी की पहचान में मदद।
पोस्टमार्टम के
प्रकार (Types of Autopsy)
न्यायालयिक
पैथोलॉजी में मुख्य रूप से दो प्रकार के पोस्टमार्टम किए जाते हैं:
1. क्लिनिकल/एडमिनिस्ट्रेटिव
ऑटोप्सी (Clinical/Administrative Autopsy)
- यह मेडिकल रिसर्च और शिक्षा
के उद्देश्य से किया जाता है।
- मुख्य उद्देश्य मरीज की बीमारी
की पहचान और उपचार की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना होता है।
2. न्यायालयिक/विधि
ऑटोप्सी (Forensic/Legal Autopsy)
- अपराध या अप्राकृतिक मृत्यु
की परिस्थितियों में किया जाता है।
- इसका उद्देश्य कानूनी मामलों
में साक्ष्य एकत्रित करना और मृत्यु के कारणों का पता लगाना होता है।
- हत्या,
आत्महत्या, दुर्घटना या संदिग्ध मृत्यु
के मामलों में यह अनिवार्य होता है।
पोस्टमार्टम की
प्रक्रिया (Process of Autopsy)
1. शव का
निरीक्षण (External Examination)
- मृतक के शरीर की बाहरी चोटों,
घावों, सूजन और निशानों
का निरीक्षण।
- त्वचा,
आंखें, नाखून और अन्य बाहरी अंगों
की जाँच।
- कपड़े और शरीर पर लगे साक्ष्य
को सुरक्षित करना।
2. शरीर का
आंतरिक परीक्षण (Internal Examination)
- शरीर को 'Y'
या 'I' के आकार में चीरा लगाकर
खोलना।
- अंतःकरण,
फेफड़े, यकृत, मस्तिष्क
और अन्य आंतरिक अंगों का परीक्षण।
- विष विज्ञान (Toxicology)
के लिए रक्त, मूत्र, पेट की सामग्री और अन्य नमूनों का संग्रह।
3. रिपोर्ट
तैयार करना (Report Preparation)
- पोस्टमार्टम के दौरान प्राप्त
साक्ष्यों और निष्कर्षों का लेखन और दस्तावेजीकरण।
- मृत्यु के कारण,
समय और प्रकृति
का निर्धारण करके अंतिम रिपोर्ट तैयार की जाती है।
न्यायालयिक पैथोलॉजी के तहत महत्वपूर्ण सिद्धांत
1. रिगर
मॉर्टिस (Rigor Mortis)
- मृत्यु के 2-3
घंटे बाद शरीर की
मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं।
- यह कठोरता 12-24
घंटे में अधिकतम
हो जाती है और फिर 36-48 घंटे में
समाप्त हो जाती है।
- मृत्यु के समय का अनुमान
लगाने में सहायक।
2. एल्गोर
मॉर्टिस (Algor Mortis)
- मृत्यु के बाद शरीर का तापमान
धीरे-धीरे वातावरण के तापमान तक कम हो जाता है।
- मृत्यु के समय
की गणना में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है।
3. लिवर
मॉर्टिस (Livor Mortis)
- मृत्यु के बाद रक्त का
गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर जमना।
- यह मृत्यु के 30
मिनट से 2 घंटे
के बीच शुरू होता है और 6-12 घंटे में
स्थिर हो जाता है।
भारतीय न्यायालयों में पोस्टमार्टम की कानूनी स्थिति
भारतीय साक्ष्य
अधिनियम, 2023 (BSA)
- धारा 39:
न्यायालय विशेषज्ञ की राय को स्वीकार करता है।
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोरेंसिक
रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया
जा सकता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा
संहिता, 2023
- धारा 194:
अप्राकृतिक मृत्यु के मामलों में पुलिस द्वारा शव परीक्षण
का आदेश दिया जा सकता है।
- धारा 196:
न्यायिक जांच की आवश्यकता होने पर
मजिस्ट्रेट के आदेश से शव परीक्षण किया जाता है।
महत्वपूर्ण भारतीय
न्यायिक निर्णय (Landmark Judgments)
1. रामकृष्ण
राव बनाम सार्वजनिक अभियोजक (1975 AIR 1782)
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट
को न्यायालय में मृत्यु के कारणों का निर्धारण करने के लिए साक्ष्य के
रूप में मान्यता दी गई।
2. मथुरा
बलात्कार मामला (Tukaram v. State of Maharashtra, 1978)
- इस मामले में पोस्टमार्टम
रिपोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पीड़िता का बलात्कार हुआ था।
- न्यायालय ने बलात्कार मामलों में
फोरेंसिक साक्ष्यों की अनिवार्यता पर बल दिया।
3. शिवाजी
साहेब राव बोबडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (1973)
- इस मामले में डीएनए साक्ष्यों
और शव परीक्षण रिपोर्ट ने आरोपी की पहचान सुनिश्चित की।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट की स्वीकार्यता
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट (PM
Report) को प्राथमिक साक्ष्य
(Primary Evidence) माना जाता है।
- न्यायालय विशेषज्ञ की राय (Expert
Opinion) को प्रमाणित करता है और
विशेषज्ञ गवाह (Expert Witness) की गवाही
को निर्णायक मानता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
न्यायालयिक
पैथोलॉजी (Forensic Pathology) अपराधों की जांच में मृत्यु के कारण, समय
और प्रकृति का सटीक विश्लेषण प्रदान करता है। पोस्टमार्टम
रिपोर्ट न्यायालय में वैज्ञानिक साक्ष्य के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाती है और न्यायिक निर्णयों की सटीकता सुनिश्चित करती है।
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट से अपराधी को सजा दिलाने और निर्दोष को बचाने में मदद मिलती है।
- मृत्यु की जांच में पारदर्शिता और सटीकता सुनिश्चित होती है।
- भारतीय न्यायालयों द्वारा समय-समय पर दिए गए फैसलों ने न्यायालयिक पैथोलॉजी की भूमिका को और मजबूत किया है।
FAQs on Forensic Pathology (न्यायालयिक पैथोलॉजी)
1. न्यायालयिक
पैथोलॉजी (Forensic Pathology) क्या है?
उत्तर:
न्यायालयिक पैथोलॉजी (Forensic Pathology) न्यायालयिक
विज्ञान की वह शाखा है जो शव परीक्षण (Autopsy) के माध्यम से
मृत्यु के कारणों, समय और परिस्थितियों का विश्लेषण करती है।
यह हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना और
अप्राकृतिक मौतों की जांच में सहायक होती है।
2. पोस्टमार्टम
(Autopsy) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पोस्टमार्टम का उद्देश्य निम्नलिखित है:
- मृत्यु के कारण और समय का
निर्धारण।
- मृत्यु के प्रकार (हिंसक,
प्राकृतिक, आत्महत्या, या दुर्घटना) का पता लगाना।
- संभावित अपराधियों की पहचान और
साक्ष्यों का संग्रह।
- शव से प्राप्त जैविक साक्ष्यों का
विश्लेषण।
3. पोस्टमार्टम
कितने प्रकार के होते हैं और उनका उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पोस्टमार्टम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:
✅ क्लिनिकल/एडमिनिस्ट्रेटिव
ऑटोप्सी:
- चिकित्सा अनुसंधान और शिक्षा के
लिए किया जाता है।
- रोगों के निदान और उपचार की
समीक्षा में सहायक।
✅ न्यायालयिक/विधि ऑटोप्सी: - हत्या,
आत्महत्या, दुर्घटना, या संदेहास्पद मौतों में किया जाता है।
- कानूनी मामलों में साक्ष्य
एकत्रित करने और मौत के कारणों का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है।
4. पोस्टमार्टम
रिपोर्ट (Postmortem Report) को न्यायालय में कितनी
महत्वपूर्ण माना जाता है?
उत्तर:
पोस्टमार्टम रिपोर्ट को प्राथमिक साक्ष्य माना जाता है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम,
1872 की धारा 45 के तहत, विशेषज्ञ की राय को न्यायालय स्वीकार करता है।
- रिपोर्ट मृत्यु के कारण,
समय और प्रकृति का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रदान करती है, जिससे न्यायिक निर्णयों की सटीकता सुनिश्चित होती है।
5. रिगर
मॉर्टिस (Rigor Mortis) और एल्गोर मॉर्टिस (Algor
Mortis) में क्या अंतर है?
उत्तर:
✅ रिगर
मॉर्टिस (Rigor Mortis):
- मृत्यु के 2-3
घंटे बाद शरीर की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं।
- 12-24 घंटे में कठोरता
अधिकतम होती है और 36-48 घंटे में समाप्त हो जाती है।
✅ एल्गोर मॉर्टिस (Algor Mortis): - मृत्यु के बाद शरीर का तापमान
धीरे-धीरे गिरकर वातावरण के तापमान तक आ जाता है।
- यह प्रक्रिया मृत्यु के समय का
अनुमान लगाने में सहायक होती है।
6. भारतीय
कानून में शव परीक्षण (Autopsy) का कानूनी प्रावधान क्या है?
उत्तर:
✅भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
- धारा 194: अप्राकृतिक मृत्यु के मामलों में पुलिस द्वारा शव परीक्षण का आदेश दिया जाता है।
- धारा 196: न्यायिक जांच की आवश्यकता होने पर मजिस्ट्रेट के आदेश से शव परीक्षण कराया जाता है।
✅भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023:
- धारा 39 के तहत, विशेषज्ञ की राय और पोस्टमार्टम रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में मान्यता दी जाती है।
7. पोस्टमार्टम
प्रक्रिया में कौन-कौन से चरण शामिल होते हैं?
उत्तर:
पोस्टमार्टम की प्रक्रिया तीन मुख्य चरणों में पूरी होती है:
1. शव
का बाहरी निरीक्षण (External Examination):
o शरीर
पर चोट,
घाव और निशानों का निरीक्षण।
2. आंतरिक
परीक्षण (Internal Examination):
o शरीर
को 'Y'
या 'I' आकार में चीरा लगाकर आंतरिक अंगों का
अध्ययन।
3. रिपोर्ट
तैयार करना (Report Preparation):
o पोस्टमार्टम
निष्कर्षों का दस्तावेजीकरण और मृत्यु के कारण का निर्धारण।
8. क्या
आत्महत्या के मामलों में भी पोस्टमार्टम अनिवार्य होता है?
उत्तर:
हाँ, आत्महत्या, हत्या
और अप्राकृतिक मौत के मामलों में न्यायालयिक/विधि ऑटोप्सी (Forensic/Legal
Autopsy) अनिवार्य होती है। पुलिस और न्यायालय के निर्देशानुसार
शव परीक्षण किया जाता है ताकि मृत्यु के कारण की पुष्टि हो सके।
9. क्या
पोस्टमार्टम रिपोर्ट को चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर:
हाँ, यदि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में विसंगतियां
हों या पक्षपात का संदेह हो, तो उसे अदालत में विशेषज्ञ
गवाह (Expert Witness) की गवाही के आधार पर
चुनौती दी जा सकती है। पुनः परीक्षण (Second Opinion) के लिए
शव परीक्षण की पुन: जांच भी कराई जा सकती है।
10. न्यायालयिक
पैथोलॉजी में डीएनए प्रोफाइलिंग की क्या भूमिका है?
उत्तर:
डीएनए प्रोफाइलिंग हत्या, बलात्कार और पहचान
के मामलों में महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करती है।
- डीएनए परीक्षण से अपराधी की पहचान,
पितृत्व विवाद और यौन अपराधों की पुष्टि संभव होती है।
- भारतीय न्यायालयों में डीएनए
साक्ष्य को अत्यधिक विश्वसनीय माना जाता है।
11. कौन से
महत्वपूर्ण भारतीय न्यायिक फैसले पोस्टमार्टम रिपोर्ट की उपयोगिता को प्रमाणित
करते हैं?
उत्तर:
1. रामकृष्ण
राव बनाम सार्वजनिक अभियोजक (1975 AIR 1782):
o पोस्टमार्टम
रिपोर्ट को मृत्यु के कारण का निर्धारण करने के लिए प्रमाणित किया गया।
2. मथुरा
बलात्कार मामला (Tukaram v. State of Maharashtra, 1978):
o बलात्कार
के मामलों में फोरेंसिक साक्ष्यों की अनिवार्यता पर जोर दिया गया।
3. शिवाजी
साहेब राव बोबडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (1973):
o डीएनए
साक्ष्य और पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने आरोपी की पहचान सुनिश्चित की।
12. पोस्टमार्टम
रिपोर्ट में किस प्रकार की गलतियाँ हो सकती हैं?
उत्तर:
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में निम्नलिखित त्रुटियां संभव हैं:
- साक्ष्यों की गलत व्याख्या।
- विष विज्ञान रिपोर्ट में देरी।
- शव परीक्षण प्रक्रिया में
लापरवाही या अनदेखी।
- विशेषज्ञ की राय में भिन्नता।
13. क्या
परिवारजन पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कॉपी प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रति संबंधित
मृतक के परिवारजन पुलिस या मजिस्ट्रेट की अनुमति से प्राप्त कर सकते हैं। यह
प्रक्रिया अपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की
धारा 174 और 176 के तहत की जाती
है।
14. क्या
पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गोपनीय रखा जाता है?
उत्तर:
पोस्टमार्टम रिपोर्ट गोपनीय दस्तावेज होती है।
- इसे केवल पुलिस,
न्यायालय और मृतक के परिवारजन को प्रदान किया जाता है।
- रिपोर्ट को मीडिया या अन्य
सार्वजनिक माध्यमों में प्रकाशित करना प्रतिबंधित है।
15. पोस्टमार्टम
के दौरान कौन से साक्ष्य एकत्र किए जाते हैं?
उत्तर:
पोस्टमार्टम के दौरान निम्नलिखित साक्ष्य एकत्र किए जाते हैं:
- रक्त,
वीर्य, बाल और नाखून के नमूने।
- विष विज्ञान के लिए पेट की
सामग्री।
- डीएनए और अन्य जैविक साक्ष्य।
- गोली,
चाकू या अन्य घातक हथियारों के निशान।
16. क्या
न्यायालय पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर दोष सिद्ध कर सकता है?
उत्तर:
हाँ, पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्राथमिक साक्ष्य
होती है और इसे न्यायालय में दोष सिद्ध करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- हालांकि,
रिपोर्ट के साथ अन्य साक्ष्यों, गवाहों
और परिस्थितियों का विश्लेषण भी आवश्यक होता है।
17. क्या
पोस्टमार्टम रिपोर्ट को अंतिम साक्ष्य माना जाता है?
उत्तर:
पोस्टमार्टम रिपोर्ट निर्णायक साक्ष्य होती है लेकिन इसे अंतिम
और अपरिवर्तनीय साक्ष्य नहीं माना जाता।
- न्यायालय अन्य फोरेंसिक साक्ष्यों,
गवाहों और परिस्थितियों को भी ध्यान में रखता है।
- आवश्यक होने पर पुनः शव परीक्षण (Second
Autopsy) का आदेश दिया जा सकता है।