अरुणा रामचन्द्र शानबाग बनाम भारत संघ (पीआईएल मामला)
परिचय
अरुणा रामचंद्र
शानबाग बनाम भारत संघ भारत में एक ऐतिहासिक जनहित याचिका (पीआईएल) मामला है जो
इच्छामृत्यु, सम्मान के साथ मरने के अधिकार और
निष्क्रिय इच्छामृत्यु से जुड़े कानूनी ढांचे से संबंधित मुद्दों से संबंधित है।
यह मामला अपने द्वारा उठाए गए सूक्ष्म कानूनी और नैतिक सवालों के लिए उल्लेखनीय
है।
अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ की पृष्ठभूमि
अरुणा शानबाग: अरुणा
शानबाग मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स थीं।
1973 में, अस्पताल के एक कर्मचारी ने उनका यौन उत्पीड़न
किया और गला घोंटकर उनकी हत्या करने का प्रयास किया , जिसके
परिणामस्वरूप उनके मस्तिष्क को गंभीर क्षति पहुंची और उन्हें लकवा मार गया।
🔹चिकित्सा स्थिति:
अरुणा शानबाग 40 से अधिक वर्षों
तक लगातार वनस्पति अवस्था (पीवीएस) में रहीं, अस्पताल
में उनकी देखभाल की जाती रही। वह संवाद करने, हिलने-डुलने या
खुद को खिलाने में असमर्थ थीं, और उनके मामले ने उनके निरंतर
चिकित्सा उपचार की नैतिकता और वैधता पर सवाल उठाए।
प्रमुख घटनाएँ और कानूनी कार्यवाहियाँ
🔹पिंकी विरानी द्वारा जनहित
याचिका: पत्रकार और लेखिका पिंकी विरानी ने 2009 में अरुणा शानबाग की ओर से भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित
याचिका दायर की। जनहित याचिका में अरुणा को जबरन खिलाने और चिकित्सा उपचार बंद
करने के लिए न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की गई थी, ताकि
उसे सम्मान के साथ मरने का मौका मिल सके।
🔹इच्छामृत्यु पर बहस:
इस मामले ने सम्मान के साथ मरने के अधिकार, इच्छामृत्यु
और जीवन के अंतिम निर्णय पर एक महत्वपूर्ण कानूनी और नैतिक बहस को जन्म दिया।
🔹सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
2011 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना
फैसला सुनाया। हालाँकि इसने सक्रिय इच्छामृत्यु (सीधे मौत का कारण बनना) की
अनुमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन अदालत ने कुछ शर्तों के
तहत निष्क्रिय इच्छामृत्यु (जीवन-रक्षक उपचार को रोकना या वापस लेना) की
अनुमति दी।
🔹निष्क्रिय इच्छामृत्यु के
लिए दिशानिर्देश: न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु के
मामलों के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए, जिसमें
उच्च न्यायालय की सहमति, मेडिकल बोर्ड की राय और दुरुपयोग को
रोकने के लिए सुरक्षा उपाय शामिल थे।
अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ का आशय
अरुणा रामचंद्र
शानबाग बनाम भारत संघ जनहित याचिका मामले के कई महत्वपूर्ण निहितार्थ थे:
🔹सम्मान के साथ मरने के
अधिकार को मान्यता: इस मामले ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद
21
के तहत व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के मौलिक पहलू के रूप
में सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता दी।
🔹निष्क्रिय इच्छामृत्यु के
लिए दिशानिर्देश: निर्णय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु के
संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश स्थापित किए,
जिसमें रोगी की स्वायत्तता, चिकित्सा
विशेषज्ञों की राय और न्यायपालिका की भूमिका के बीच संतुलन स्थापित किया गया।
🔹नैतिक और कानूनी स्पष्टता:
इस मामले ने भारत में इच्छामृत्यु और जीवन के अंत की देखभाल के विवादास्पद मुद्दे
पर नैतिक और कानूनी स्पष्टता प्रदान की।
🔹मानव गरिमा का सम्मान:
इसने सबसे चुनौतीपूर्ण चिकित्सा परिस्थितियों में भी,
व्यक्तियों की मानवीय गरिमा और स्वायत्तता का सम्मान करने के महत्व
को रेखांकित किया।
🔹करुणामयी जीवन-अंत देखभाल:
इस मामले में करुणामयी जीवन-अंत देखभाल की आवश्यकता और अनावश्यक पीड़ा को रोकने के
नैतिक कर्तव्य पर बल दिया गया।
🔹कानूनी और चिकित्सा पद्धति
पर प्रभाव: इस मामले का भारत में कानूनी और चिकित्सा
पद्धति पर प्रभाव पड़ा, जिससे जीवन के अंतिम समय
में निर्णय लेने और न्यायनिर्णयन के तरीके पर असर पड़ा।
अरुणा रामचंद्र
शानबाग बनाम भारत संघ एक महत्वपूर्ण मामला था जिसमें इच्छामृत्यु और सम्मान के साथ
मरने के अधिकार से जुड़े जटिल मुद्दों को संबोधित किया गया था। न्यायालय के फैसले
ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए स्पष्टता और दिशा-निर्देश प्रदान किए और इस
क्षेत्र में भविष्य के मामलों के लिए एक मिसाल कायम की।
भारतीय न्यायपालिका में इच्छामृत्यु पर प्रभाव
🔹अरुणा रामचंद्र शानबाग
बनाम भारत संघ (2011) मामला
भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में इच्छामृत्यु, सम्मानपूर्वक
मरने के अधिकार और जीवन के अंतिम निर्णयों से जुड़े कानूनी व नैतिक पहलुओं को स्पष्ट करने वाला एक ऐतिहासिक जनहित याचिका (PIL) मामला रहा है।
इस मामले ने संविधान
के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत
स्वतंत्रता का अधिकार) की व्याख्या को व्यापक किया,
जिसमें न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि "जीवन का अधिकार" केवल जीवित रहने का अधिकार नहीं है, बल्कि सम्मान और गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी इसमें शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले और इसके प्रमुख प्रभाव:
🔹 निष्क्रिय इच्छामृत्यु
(Passive Euthanasia) को कुछ शर्तों के साथ वैधता प्रदान की
गई।
🔹 अधिकारों
और मानव गरिमा को प्राथमिकता दी गई।
🔹 उच्च
न्यायालय की निगरानी में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी अनुमति देने के लिए
प्रक्रिया तय की गई।
🔹 मेडिकल
बोर्ड और विशेषज्ञों की राय अनिवार्य की गई।
🔹 इच्छामृत्यु
पर होने वाले संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय लागू किए गए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश और उनका प्रभाव
🔹 निष्क्रिय इच्छामृत्यु
को वैध बनाने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश तैयार किए गए।
🔹 अग्रिम
चिकित्सा निर्देश (Living Will) और मेडिकल बोर्ड की
सिफारिशों को कानूनी मान्यता दी गई।
🔹 इस
फैसले ने भारत में इच्छामृत्यु से संबंधित आगे की कानूनी बहस को प्रेरित किया,
जिससे 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने 'सम्मानपूर्वक मरने के अधिकार' को और अधिक स्पष्ट
किया।
निष्कर्ष
यह मामला नैतिकता,
चिकित्सा विज्ञान और कानून के संगम पर खड़े एक जटिल प्रश्न
को सुलझाने में महत्वपूर्ण रहा। न्यायालय के फैसले ने यह सुनिश्चित किया कि जीवन
का अधिकार केवल जीवित रहने का अधिकार नहीं, बल्कि
सम्मानपूर्वक जीवन जीने और अनावश्यक पीड़ा से मुक्त रहने का भी अधिकार है।
हालांकि,
यह मामला एक भावनात्मक और संवेदनशील विषय को संबोधित करता है,
लेकिन इसने भारतीय न्यायपालिका को मानव गरिमा, चिकित्सा नैतिकता और व्यक्तिगत अधिकारों के
प्रति अधिक उत्तरदायी बनाया। यह निर्णय भारत में जीवन के अंत से संबंधित
कानूनों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ, जिससे भविष्य में इसी तरह के मामलों के लिए कानूनी रूपरेखा तैयार करने में
मदद मिली।
महत्वपूर्ण प्रश्न
(FAQs)
1. अरुणा
रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ मामला क्या है?
उत्तर:
अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ (2011) भारत का एक ऐतिहासिक जनहित याचिका (PIL) मामला है, जो इच्छामृत्यु (Euthanasia) और सम्मानपूर्वक मरने के अधिकार से जुड़ा है।
👉 मामले की मुख्य
बातें:
🔹 अरुणा
शानबाग, जो एक नर्स थीं, 1973 में
यौन उत्पीड़न और गला घोंटने के कारण गंभीर मस्तिष्क क्षति से ग्रसित हुईं और लगभग
42 वर्षों तक 'वनस्पति अवस्था'
(PVS) में रहीं।
🔹 पत्रकार
पिंकी विरानी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसमें अरुणा को जबरन खिलाने और चिकित्सा उपचार रोकने की अनुमति देने
का अनुरोध किया गया।
🔹 सुप्रीम
कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) को सशर्त वैधता दी, लेकिन अरुणा को इच्छामृत्यु
देने से इनकार कर दिया।
2. इच्छामृत्यु
(Euthanasia) क्या होती है और इसके कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर:
इच्छामृत्यु का अर्थ है किसी गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति की
जानबूझकर मौत की अनुमति देना, ताकि उसे अत्यधिक दर्द और
पीड़ा से बचाया जा सके।
👉 इच्छामृत्यु के
प्रकार:
🔹 सक्रिय
इच्छामृत्यु (Active Euthanasia): रोगी को किसी दवा या
अन्य प्रक्रिया से जानबूझकर मारना (जो भारत में अवैध है)।
🔹 निष्क्रिय
इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia): रोगी का जीवनरक्षक
उपचार रोक देना या हटाना (जो इस मामले के बाद सशर्त वैध कर दिया गया)।
👉 महत्वपूर्ण मामला:
🔹 कॉमन
कॉज बनाम भारत संघ (2018) – सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम
चिकित्सा निर्देश (Living Will) को मान्यता दी और
निष्क्रिय इच्छामृत्यु को और अधिक स्पष्ट किया।
3. सुप्रीम
कोर्ट ने इस मामले में क्या फैसला दिया?
उत्तर:
सुप्रीम कोर्ट ने सक्रिय इच्छामृत्यु को गैरकानूनी ठहराया,
लेकिन निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कुछ शर्तों के साथ वैध कर दिया।
👉 न्यायालय के
निर्देश:
🔹 निष्क्रिय
इच्छामृत्यु के लिए मेडिकल बोर्ड की राय अनिवार्य होगी।
🔹 निर्णय
लेने से पहले उच्च न्यायालय की अनुमति आवश्यक होगी।
🔹 इच्छामृत्यु
पर होने वाले संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय लागू किए गए।
🔹 अरुणा
शानबाग के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं दी गई, क्योंकि
उनके देखभालकर्ता (अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ) उनका इलाज जारी रखना चाहते थे।
4. क्या
भारत में इच्छामृत्यु (Euthanasia) वैध है?
उत्तर:
🔹 सक्रिय
इच्छामृत्यु: --- अभी
भी गैरकानूनी है।
🔹 निष्क्रिय
इच्छामृत्यु: --- कुछ
शर्तों के साथ वैध है।
👉 शर्तें:
🔹 रोगी
अपरिवर्तनीय कोमा (Irreversible Coma) या वनस्पति
अवस्था (PVS) में हो।
🔹 मेडिकल
बोर्ड यह पुष्टि करे कि रोगी का ठीक होना संभव नहीं है।
🔹 उच्च
न्यायालय की अनुमति के बिना इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं दी जा सकती।
5. इस मामले
ने भारतीय कानून में क्या बदलाव किए?
उत्तर:
इस मामले ने भारत में सम्मानपूर्वक मरने के अधिकार (Right
to Die with Dignity) को कानूनी रूप से मान्यता दी और निष्क्रिय
इच्छामृत्यु के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए।
👉 बदलाव:
🔹 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम चिकित्सा निर्देश (Living Will) को वैध किया।
🔹 इच्छामृत्यु
को कानूनी बनाने की प्रक्रिया को आसान बनाया गया।
🔹 स्वास्थ्य
देखभाल और कानून में "पैलिएटिव केयर" (Palliative Care) को बढ़ावा मिला।
👉 महत्वपूर्ण मामला:
🔹 कॉमन
कॉज बनाम भारत संघ (2018) – इसमें इच्छामृत्यु को
कानूनी रूप से और अधिक स्पष्ट किया गया।
6. इस मामले
का नैतिक और कानूनी प्रभाव क्या पड़ा?
उत्तर:
👉 नैतिक
प्रभाव:
🔹 जीवन
और मृत्यु के अधिकार पर एक गंभीर बहस शुरू हुई।
🔹 मानव
गरिमा और करुणामयी मृत्यु (Mercy Killing) को लेकर नैतिकता
पर सवाल उठे।
🔹 डॉक्टरों
और देखभालकर्ताओं की ज़िम्मेदारी को लेकर चिंताएँ बढ़ीं।
👉 कानूनी प्रभाव:
🔹 निष्क्रिय
इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता दी गई।
🔹 मेडिकल
बोर्ड और न्यायपालिका की भूमिका को स्पष्ट किया गया।
🔹 भविष्य
के मामलों के लिए कानूनी ढांचा तैयार हुआ।
7. क्या
अरुणा शानबाग की मृत्यु प्राकृतिक थी या उन्हें इच्छामृत्यु दी गई थी?
उत्तर:
🔹 अरुणा
शानबाग को इच्छामृत्यु नहीं दी गई थी।
🔹 वह 42
वर्षों तक वनस्पति अवस्था में रहीं और 18 मई 2015
को निमोनिया के कारण उनकी प्राकृतिक मृत्यु हो गई।
8. इच्छामृत्यु
से संबंधित भारत का संवैधानिक प्रावधान क्या है?
उत्तर:
🔹 संविधान
का अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार)
इच्छामृत्यु से सीधे जुड़ा है।
🔹 सुप्रीम
कोर्ट ने इस अनुच्छेद की व्याख्या करते हुए कहा कि "सम्मानपूर्वक जीने का
अधिकार, सम्मानपूर्वक मरने के अधिकार को भी शामिल करता
है।"
9. क्या
इच्छामृत्यु को लेकर भविष्य में और कानूनी बदलाव संभव हैं?
उत्तर:
हाँ, भविष्य में इच्छामृत्यु को और स्पष्ट
व संगठित करने के लिए नए कानून बनाए जा सकते हैं।
👉 संभावित सुधार:
🔹 "राइट टू डाय विथ डिग्निटी" को और मजबूत किया जा सकता है।
🔹 सक्रिय
इच्छामृत्यु को लेकर बहस हो सकती है।
🔹 आगे
की कानूनी स्पष्टता के लिए नया कानून प्रस्तावित किया जा सकता है।
विशेष तथ्य
अरुणा रामचंद्र
शानबाग बनाम भारत संघ (2011) मामला इच्छामृत्यु और सम्मानपूर्वक मरने के अधिकार पर एक ऐतिहासिक PIL
थी। इस मामले ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को सशर्त वैधता दी और जीवन
के अंतिम समय में चिकित्सा निर्णयों को अधिक न्यायसंगत और संवेदनशील बनाया।
हालाँकि, यह एक नैतिक और संवेदनशील विषय है, लेकिन इसने
भारतीय न्यायपालिका को मानव गरिमा, चिकित्सा नैतिकता और
व्यक्तिगत अधिकारों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाया।
यदि भविष्य में
इच्छामृत्यु पर कानून को और विकसित किया जाए, तो यह
करुणामयी जीवन-अंत देखभाल और मरीजों के अधिकारों को और अधिक सशक्त कर सकता है।