शोषण के विरुद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23
परिचय
भारतीय संविधान हर
नागरिक को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार देता है। इस संदर्भ में अनुच्छेद 23 एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है जो शोषण के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान
करता है। यह अनुच्छेद विशेष रूप से बलात् श्रम, बंधुआ
मजदूरी, मानव तस्करी और अन्य
अमानवीय प्रथाओं को प्रतिबंधित करता है।
❖ यह अधिकार न केवल राज्य
के खिलाफ बल्कि व्यक्तियों और निजी संगठनों के खिलाफ भी लागू होता है।
❖ यह
अनुच्छेद भारत में सामाजिक समानता और मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने का एक
महत्वपूर्ण स्तंभ है।
अनुच्छेद 23
का विवरण
भारतीय संविधान का अनुच्छेद
23 दो मुख्य प्रावधानों को परिभाषित करता है:
1. मानव तस्करी,
बलात् श्रम और बंधुआ मजदूरी पर प्रतिबंध
भारतीय संविधान का अनुच्छेद
23 नागरिकों को शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है और मानव तस्करी,
बलात् श्रम एवं बंधुआ मजदूरी को पूरी तरह
प्रतिबंधित करता है। यह प्रावधान विशेष रूप से उन आर्थिक और सामाजिक रूप से
कमजोर व्यक्तियों की रक्षा करता है जो अपने हालातों के कारण जबरन श्रम करने के
लिए मजबूर किए जाते हैं।
🔹 जबरन श्रम
पर रोक
✔ कोई भी व्यक्ति किसी अन्य
व्यक्ति को जबरन श्रम करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
✔ शारीरिक,
मानसिक, आर्थिक या सामाजिक दबाव डालकर किसी को काम करवाना इस अनुच्छेद का उल्लंघन माना जाता है।
✔ यह
प्रावधान किसी निजी व्यक्ति, संगठन या सरकार
द्वारा किए गए किसी भी प्रकार के शोषण पर लागू होता है।
🔹 कमजोर
वर्गों की सुरक्षा
✔ यह अनुच्छेद विशेष रूप से गरीब,
दलित, पिछड़े वर्गों और महिलाओं को जबरन श्रम से बचाने के लिए लागू किया गया है।
✔ जो लोग
आर्थिक रूप से मजबूर होते हैं और कम मजदूरी या बिना मजदूरी के काम करने के लिए
बाध्य किए जाते हैं, उन्हें इस अनुच्छेद के तहत सुरक्षा
मिलती है।
✔ जबरन
श्रम के मामलों में सरकार और न्यायपालिका उचित कदम उठाने के लिए बाध्य हैं।
🔹 मानव
तस्करी (Human Trafficking) पर रोक
✔ मानव तस्करी यानी किसी
व्यक्ति को बेचने, खरीदने या जबरन किसी कार्य में लगाने पर
सख्त रोक है।
✔ महिलाओं
और बच्चों को अवैध तरीके से किसी दूसरे स्थान पर ले जाकर उनसे जबरन कार्य करवाना
अपराध है।
✔ देह
व्यापार, जबरन मजदूरी, घरेलू कामों में
अत्यधिक शोषण और अन्य प्रकार की तस्करी पूर्ण रूप से गैर-कानूनी है।
🔹 बंधुआ
मजदूरी (Bonded Labour) पर प्रतिबंध
✔ किसी व्यक्ति को कर्ज़ न
चुका पाने के कारण मजबूरन श्रम करवाना "बंधुआ मजदूरी" कहलाता है,
जो पूरी तरह गैर-कानूनी है।
✔ बंधुआ
मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, 1976 के तहत ऐसे मामलों में दोषियों
को कठोर दंड दिया जाता है।
✔ बंधुआ
मजदूरी प्रथा को खत्म करने के लिए सरकार को मुक्त मजदूरों के पुनर्वास की
व्यवस्था करनी होती है।
🔹 जबरन भीख
मंगवाने (Begging Racket) पर रोक
✔ बच्चों, विकलांगों और गरीबों से जबरन भीख मंगवाने के संगठित रैकेट चलाना इस अनुच्छेद के तहत अपराध है।
✔ कई
माफिया गिरोह गरीबों और बच्चों को अगवा कर जबरन भीख मंगवाते हैं, जो एक गंभीर अपराध है।
✔ इस तरह की
गतिविधियों में शामिल लोगों को सख्त कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है।
🔹 अन्य
प्रकार के श्रम शोषण पर रोक
✔ बिना उचित वेतन के कार्य
कराना, जातिगत या लैंगिक भेदभाव के आधार पर किसी व्यक्ति से
मजदूरी करवाना अनुच्छेद 23 का उल्लंघन है।
✔ मजदूरों
को उनके अधिकारों से वंचित करना और उनके श्रम का शोषण करना इस अनुच्छेद के अंतर्गत
निषिद्ध है।
✔ इस
प्रावधान का उद्देश्य हर नागरिक को सम्मानजनक और न्यायसंगत कार्य वातावरण
प्रदान करना है।
2. राज्य को उचित
परिश्रम के लिए कर (Compulsory Service) लगाने
की अनुमति
भारतीय संविधान का
अनुच्छेद 23(2) यह स्पष्ट करता है कि
राज्य किसी विशेष उद्देश्य के लिए नागरिकों से अनिवार्य सेवा (Compulsory
Service) की मांग कर सकता है, लेकिन यह पूरी
तरह से भेदभाव रहित होना चाहिए।
🔹 अनिवार्य
सेवा (Compulsory Service) का अर्थ
✔ राज्य को विशेष
परिस्थितियों में नागरिकों से अनिवार्य सेवाएँ लेने का अधिकार है।
✔ इसका
मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और सामाजिक
कल्याण से जुड़ा होता है।
✔ हालाँकि,
यह सेवा किसी एक विशेष समुदाय, जाति, धर्म, लिंग या वर्ग पर जबरदस्ती नहीं थोपी जा सकती।
🔹 यह
प्रावधान क्यों आवश्यक है?
✔ कुछ स्थितियों में, सरकार को नागरिकों से अनिवार्य सेवाएँ प्राप्त करने की आवश्यकता होती है,
जैसे:
- युद्ध या राष्ट्रीय आपातकाल के
दौरान नागरिकों से सैन्य सेवा लेने की जरूरत।
- आपदा प्रबंधन के समय राहत कार्यों
के लिए लोगों को अनिवार्य रूप से सेवा में लगाना।
- संक्रमण फैलने की स्थिति में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों से अतिरिक्त सेवाएँ लेना।
🔹 अनिवार्य
सेवा के दौरान भेदभाव की मनाही
✔ अनुच्छेद 23(2) यह सुनिश्चित करता है कि सरकार किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती।
✔ जाति,
धर्म, लिंग, भाषा,
वर्ग आदि के आधार पर किसी भी नागरिक से जबरन सेवा नहीं ली जा सकती।
✔ उदाहरण के
लिए, किसी विशेष जाति या धर्म के लोगों को जबरन सेना में
भर्ती करना इस अनुच्छेद का उल्लंघन होगा।
अनिवार्य सेवा के उदाहरण
सैन्य सेवा:
- कई देशों में अनिवार्य सैन्य
सेवा (Compulsory Military Service)
होती है।
- हालाँकि,
भारत में ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में यह लागू की जा सकती है।
आपातकालीन
सेवाएँ:
- प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप,
बाढ़, महामारी के दौरान सरकार अनिवार्य
सेवाएँ लागू कर सकती है।
- उदाहरण: COVID-19
महामारी के दौरान डॉक्टरों, नर्सों और
स्वास्थ्य कर्मियों को अनिवार्य रूप से सेवा देने का आदेश दिया गया।
✔ 👮 पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती:
- सामाजिक अशांति या दंगों की
स्थिति में पुलिस और अर्धसैनिक बलों से अनिवार्य सेवा लेने का प्रावधान किया
जाता है।
- राष्ट्रीय आपदा की स्थिति में
सुरक्षा बलों को तैनात करना इसी श्रेणी में आता है।
आवश्यक सेवाओं में योगदान:
- कुछ सेवाएँ जैसे अग्निशमन,
चिकित्सा सेवा, खाद्य आपूर्ति आदि
नागरिकों के सहयोग के बिना संभव नहीं होतीं।
- सरकार इन सेवाओं में नागरिकों को
अनिवार्य रूप से शामिल कर सकती है।
अनुच्छेद 23(2)
का दुरुपयोग न हो, इसके लिए क्या प्रावधान हैं?
✔ सरकार नागरिकों से अनिवार्य
सेवा ले सकती है, लेकिन इसे जबरन श्रम में नहीं बदला
जा सकता।
✔ यदि
सरकार किसी वर्ग विशेष को ही ऐसी सेवाओं के लिए मजबूर करती है, तो यह असंवैधानिक होगा।
✔ न्यायपालिका
किसी भी तरह के अनुचित अनिवार्य श्रम को रोकने के लिए हमेशा सतर्क रहती है।
विशेष
🔹 अनुच्छेद
23(2) राज्य को विशेष परिस्थितियों में नागरिकों से अनिवार्य
सेवा लेने की अनुमति देता है।
🔹 हालाँकि, यह सेवा बिना किसी भेदभाव के होनी चाहिए और
इसे जबरन श्रम नहीं माना जा सकता।
🔹 यह प्रावधान राष्ट्रीय सुरक्षा और आपातकालीन परिस्थितियों में नागरिकों की
भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
अनुच्छेद 23
के अंतर्गत अपराध
इस अनुच्छेद के तहत
निम्नलिखित कार्य गैर-कानूनी घोषित किए गए हैं:
✅ मानव तस्करी (Human
Trafficking) : एक गंभीर अपराध
मानव तस्करी
(Human Trafficking) एक गंभीर अपराध और मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन
है। इसमें महिलाओं, बच्चों और कमजोर वर्गों को जबरन खरीदने, बेचने, यौन शोषण, बंधुआ मजदूरी और अवैध गतिविधियों में
धकेलने की घटनाएँ शामिल होती हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद
23 इसे अवैध और दंडनीय अपराध घोषित करता
है।
मानव तस्करी का अर्थ और प्रकार
मानव तस्करी केवल देह
व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई अन्य
रूप भी होते हैं। इसके प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
1. यौन शोषण के लिए तस्करी
✔ महिलाओं और बच्चों को जबरन
वेश्यावृत्ति या पोर्नोग्राफी में धकेलना।
✔ झूठे वादों
से शादी करवाकर विदेशों में बेच देना।
✔ बच्चों को
बाल यौन शोषण रैकेट्स में धकेलना।
2. बंधुआ मजदूरी में धकेलना
✔ गरीब और कमजोर वर्गों को
कर्ज़ के नाम पर गुलाम बना लेना।
✔ मजदूरी
के बदले बहुत कम या कोई वेतन न देना।
✔ किसानों,
ईंट भट्ठों और कारखानों में मजदूरों को जबरन काम करवाना।
3. घरेलू नौकरों के रूप में शोषण
✔ बच्चों और महिलाओं को
जबरन अमीर घरों में नौकर बना देना।
✔ तनावपूर्ण
परिस्थितियों में कार्य करने के लिए मजबूर करना।
✔ शारीरिक,
मानसिक और यौन शोषण सहने पर बाध्य करना।
4. अवैध अंग व्यापार के लिए तस्करी
✔ गरीबों को बहकाकर या
जबरदस्ती उनके अंग निकाल लेना।
✔ गर्भवती
महिलाओं को जबरन बच्चे देने के लिए मजबूर करना और नवजात बच्चों की बिक्री।
5. बच्चों को भीख मंगवाने के लिए तस्करी
✔ बच्चों का अपहरण कर उनसे
जबरन भीख मंगवाना।
✔ भीख न
देने पर शारीरिक प्रताड़ना देना।
✔ नशीले
पदार्थों का आदी बनाकर उनसे गैर-कानूनी काम करवाना।
भारत में मानव तस्करी से जुड़े कानून
भारत में मानव
तस्करी रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं:
📜 भारतीय न्याय संहिता
(BNS), 2023 – धारा 143 और 144 के तहत मानव तस्करी अपराध है।
📜 मानव
तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) अधिनियम, 2018
– मानव तस्करी के मामलों की रोकथाम के लिए सख्त कानून।
📜 अनैतिक
व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 – वेश्यावृत्ति में जबरन
धकेलने से रोकने के लिए बनाया गया कानून।
📜 बंधुआ
मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, 1976 – बंधुआ मजदूरी को अपराध
घोषित करने वाला कानून।
📜 बाल
श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 – बच्चों को
मजदूरी में लगाने पर रोक।
मानव तस्करी से संबंधित प्रमुख न्यायिक निर्णय
भारतीय न्यायपालिका
ने कई ऐतिहासिक फैसलों में अनुच्छेद 23 की
व्याख्या की है।
⚖ विशाखा बनाम राजस्थान
राज्य (1997 AIR SC 3011)
✔ इस फैसले में महिलाओं के
कार्यस्थल पर यौन शोषण को रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए गए।
✔ यह निर्णय
महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
⚖ बुधन चौधरी बनाम बिहार
राज्य (AIR 1955 SC 367)
✔ इस मामले में सुप्रीम कोर्ट
ने यह स्पष्ट किया कि कोई भी नागरिक किसी के भी गुलाम के रूप में कार्य करने के
लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
⚖ गुरिया बनाम उत्तर
प्रदेश राज्य (2010 SCC 556)
✔ इस केस में कोर्ट ने देह
व्यापार के लिए मानव तस्करी रोकने के लिए सख्त कानून लागू करने का निर्देश दिया।
⚖ पीपुल्स यूनियन फॉर
डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982 AIR 1473)
✔ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई
भी व्यक्ति अपनी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
✔ मजदूरों को
न्यूनतम मजदूरी से वंचित करना भी अनुच्छेद 23 का उल्लंघन
माना जाएगा।
⚖ नीरा चौधरी बनाम दिल्ली
प्रशासन (1984 SCR (3) 866)
✔ दिल्ली में जबरन श्रमिकों
को मुक्त कराने के लिए अदालत ने आदेश दिया।
✔ बंधुआ
मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, 1976 को सख्ती से लागू करने का
निर्देश दिया।
⚖ संजीव कुमार बनाम बिहार
राज्य सरकार (2013 SCC 1442)
✔ मानव तस्करी के खिलाफ
सख्त कार्यवाही के लिए बिहार सरकार को आदेश दिया गया।
✔ देह
व्यापार में धकेले गए बच्चों और महिलाओं के पुनर्वास के
लिए सरकार को दिशानिर्देश दिए गए।
मानव तस्करी को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम
✔ मानव तस्करी विरोधी इकाइयों
(AHTUs) का गठन।
✔ बचाव और
पुनर्वास केंद्रों की स्थापना।
✔ सरहदों पर
सख्त निगरानी और तस्करी रोकने के लिए विशेष टीमें।
✔ महिलाओं और
बच्चों के लिए हेल्पलाइन नंबर 1098 और 181 की शुरुआत।
✔ समाज में
जागरूकता अभियान और स्कूलों में शिक्षा कार्यक्रम।
समाज में अनुच्छेद 23 का प्रभाव
💠 श्रमिकों
के अधिकारों की सुरक्षा
✔ न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू होने से श्रमिकों की स्थिति में सुधार हुआ।
✔ बंधुआ
मजदूरी को गैर-कानूनी घोषित कर गरीब वर्गों को सुरक्षा
दी गई।
💠 महिला एवं
बाल संरक्षण
✔ यौन शोषण और जबरन श्रम से
बचाने के लिए सरकार द्वारा पुनर्वास योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
✔ मानव
तस्करी और देह व्यापार के विरुद्ध सख्त कानून लागू किए गए हैं।
💠 सामाजिक
समानता
✔ जातिगत और वर्गगत आधार पर
श्रमिकों का शोषण रोकने के लिए सख्त नीतियाँ लागू की गई हैं।
✔ बाल मजदूरी
और बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का अनुच्छेद
23 शोषण के विरुद्ध एक मजबूत सुरक्षा कवच प्रदान करता है। यह न केवल बलात्
श्रम, बंधुआ मजदूरी और मानव तस्करी को प्रतिबंधित करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है
कि हर नागरिक गरिमापूर्ण जीवन जी सके।
✔ हालाँकि, इस कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सरकार, न्यायपालिका
और नागरिक समाज को निरंतर प्रयास करने की
आवश्यकता है।
✔ सिर्फ
कानूनी उपायों से ही नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और
नीति-निर्माण के माध्यम से ही शोषण मुक्त समाज की स्थापना की जा
सकती है।
यदि आपको मानव
तस्करी से जुड़ी कोई भी जानकारी मिलती है, तो तुरंत पुलिस या
हेल्पलाइन नंबर 1098 पर सूचित करें। 🚨
शोषण के विरुद्ध
अधिकार (अनुच्छेद 23) – FAQs
1.अनुच्छेद 23 क्या है?
अनुच्छेद 23 भारतीय संविधान का एक मौलिक
अधिकार है जो मानव तस्करी, बलात् श्रम और बंधुआ मजदूरी पर
रोक लगाता है।
2.क्या अनुच्छेद 23 केवल सरकार पर लागू होता है?
नहीं, यह अनुच्छेद राज्य (सरकार) के साथ-साथ
निजी व्यक्तियों और संगठनों पर भी लागू होता है।
3.अनुच्छेद 23 के तहत कौन-कौन से अपराध आते हैं?
इसमें मानव तस्करी, जबरन श्रम, बंधुआ मजदूरी, भीख मंगवाने का रैकेट और अन्य प्रकार
के श्रम शोषण शामिल हैं।
4.बंधुआ मजदूरी क्या है?
जब कोई व्यक्ति ऋण या किसी अन्य कारण से मजबूरी में बिना उचित वेतन
के श्रम करने के लिए बाध्य होता है, तो इसे बंधुआ मजदूरी कहा
जाता है।
5.मानव तस्करी का क्या अर्थ है?
मानव तस्करी में किसी व्यक्ति को खरीदना, बेचना
या जबरन किसी कार्य में लगाना शामिल है, जैसे देह व्यापार,
बंधुआ मजदूरी या अवैध अंग व्यापार।
6.क्या जबरन भीख मंगवाना अनुच्छेद 23 के तहत अपराध है?
हाँ, बच्चों और कमजोर व्यक्तियों से जबरन भीख
मंगवाना इस अनुच्छेद के तहत अवैध है।
7.अनुच्छेद 23 में ‘अनिवार्य सेवा’ (Compulsory
Service) की क्या व्यवस्था है?
अनुच्छेद 23(2) के अनुसार, राज्य किसी विशेष उद्देश्य (जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन) के लिए अनिवार्य सेवाएँ लगा सकता है, लेकिन
यह भेदभाव रहित होनी चाहिए।
8.क्या सेना भर्ती अनुच्छेद 23 के तहत आती है?
भारत में अनिवार्य सैन्य सेवा नहीं है, लेकिन
राष्ट्रीय आपातकाल में सरकार इस प्रावधान का उपयोग कर सकती है।
9.बंधुआ मजदूरी से जुड़े मुख्य कानून कौन-कौन से हैं?
o बंधुआ
मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, 1976
o बाल
श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986
o मानव
तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास)
अधिनियम, 2018
10.
क्या मजदूरों को कम वेतन देना अनुच्छेद 23 का
उल्लंघन है?
हाँ, न्यूनतम वेतन से कम भुगतान करना और जबरन
श्रम करवाना इस अनुच्छेद का उल्लंघन है।
11.अगर किसी को जबरन श्रम करने के लिए बाध्य किया जाए तो क्या करें?
पीड़ित व्यक्ति पुलिस, राष्ट्रीय मानवाधिकार
आयोग (NHRC) या श्रम विभाग से शिकायत कर सकता है।
12.अनुच्छेद 23 से जुड़े कुछ प्रमुख न्यायिक फैसले
कौन-कौन से हैं?
o पीपुल्स
यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (1982)
– मजदूरों को जबरन श्रम से बचाने पर जोर दिया गया।
o बुधन
चौधरी बनाम बिहार राज्य (1955)
– जबरन श्रम को असंवैधानिक घोषित किया गया।
13.क्या अनुच्छेद 23 का उल्लंघन करने पर सजा हो सकती है?
हाँ, भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 143 और 144 के तहत
मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी के लिए कठोर दंड का प्रावधान है।
14.भारत सरकार शोषण रोकने के लिए क्या कदम उठा रही है?
o मानव
तस्करी विरोधी इकाइयों (AHTUs) की स्थापना
o बचाव
और पुनर्वास केंद्रों का निर्माण
o 1098
(बच्चों के लिए हेल्पलाइन) और 181 (महिलाओं के
लिए हेल्पलाइन) का संचालन
15.क्या अनुच्छेद 23 केवल गरीबों के लिए लागू होता है?
नहीं, यह अनुच्छेद सभी नागरिकों के लिए लागू
है, लेकिन यह विशेष रूप से कमजोर और आर्थिक रूप से पिछड़े
वर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।