भारतीय न्याय
संहिता, 2023 का
अध्याय 3- साधारण अपवाद (General
Exceptions): धारा 22-विकृत
मस्तिष्क वाले व्यक्ति का कार्य।
भारतीय न्याय
सऺहीता, 2023 की धारा 22-विकृत मस्तिष्क वाले
व्यक्ति का कार्य।
“कोई भी कार्य
अपराध नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो ऐसा करते समय मानसिक
बीमारी के कारण कार्य की प्रकृति को जानने में असमर्थ होता है,
या यह नहीं जानता कि वह ऐसा कार्य कर रहा है जो गलत है या कानून के
विरुद्ध है।“
संक्षिप्त विवरण:
भारतीय कानून के
अनुसार, कोई भी कार्य अपराध नहीं माना जाता है
यदि उसे किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया हो जो मानसिक बीमारी के कारण सही से सोच
या समझ नहीं पाता। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति अपने कार्य की प्रकृति
(उसके सही-गलत होने के बारे में) को नहीं समझता, या यह
नहीं जानता कि वह कार्य कानून के खिलाफ है, तो उसे दायी
ठहराया नहीं जा सकता।
यह नियम भारतीय न्याय
संहिता (BNS),
2023 की धारा 22 पर आधारित है। इसके अनुसार,
मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को दंडनीय उत्तरदायित्व से मुक्त किया
जाता है, क्योंकि उसकी मानसिक स्थिति ऐसी होती है कि वह अपने
कार्यों की समझदारी से जिम्मेदारी नहीं ले सकता।
उदाहरण
अगर कोई मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति ने अपनी समझ की कमी के कारण
किसी को चोट पहुँचाई है, तो उसे अपने कार्य के लिए कानूनी
दंड नहीं दिया जाएगा। ऐसे मामलों में, व्यक्ति को दंड की
बजाय उपचार की आवश्यकता होती है।
सारांश
इस नियम का
उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कानून मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के प्रति
न्यायसंगत और करुणापूर्ण व्यवहार करे। यह सिद्धांत कहता है कि केवल वही व्यक्ति
दंडनीय है जो अपने कार्य की समझदारी से जिम्मेदार है,
न कि जो मानसिक रूप से अक्षम है।
B.N.S. धारा
22: विकृत मस्तिष्क वाले व्यक्ति का कार्य (Acts of a
Person with Unsound Mind) - FAQs
प्रश्न: बीएनएस
धारा 22 में क्या प्रावधान है?
उत्तर:
भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 22
के अनुसार:
- कोई भी कार्य अपराध नहीं है,
यदि वह विकृत मस्तिष्क वाले व्यक्ति द्वारा किया गया हो,
- जब वह व्यक्ति कार्य की
प्रकृति को समझने में असमर्थ हो या
- यह नहीं जानता हो कि उसका कार्य गलत
है या कानून के विरुद्ध है।
प्रश्न: विकृत
मस्तिष्क वाले व्यक्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विकृत मस्तिष्क का अर्थ है:
- मानसिक बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति,
जो अपने कार्यों की प्राकृतिक परिणामों को समझने में असमर्थ
हो।
- वह व्यक्ति,
जो सही और गलत का भेद करने में असमर्थ हो और
- कानून की दृष्टि में उसके मानसिक
असंतुलन के कारण उसे दायित्व से मुक्त कर दिया जाता है।
प्रश्न: क्या
मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को अपराध के लिए सजा दी जा सकती है?
उत्तर:
नहीं, यदि किसी व्यक्ति ने मानसिक विकार
के कारण अपराध किया है और वह अपने कार्य की प्रकृति और परिणामों को नहीं समझता
है, तो उसे बीएनएस धारा 22 के तहत सजा
नहीं दी जा सकती।
प्रश्न: क्या
बीएनएस धारा 22 पूर्ण प्रतिरक्षा प्रदान
करती है?
उत्तर:
हाँ, बीएनएस धारा 22 मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति को पूर्ण प्रतिरक्षा प्रदान करती है,
- जब यह साबित हो जाए कि उसने मानसिक
विकार के कारण अपने कार्य की प्रकृति या उसके परिणामों को समझे बिना
कार्य किया है।
- हालांकि,
मानसिक विकृति का प्रमाण देना
आवश्यक है।
प्रश्न: क्या
मानसिक रोग का प्रमाण देना आवश्यक है?
उत्तर:
हाँ, मानसिक रोग का प्रमाण देना अनिवार्य है।
- अदालत यह जांच करती है कि अपराध
के समय व्यक्ति मानसिक रूप से विकृत था या नहीं।
- चिकित्सा प्रमाण,
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की रिपोर्ट, और
गवाहों का बयान इस निर्धारण में
सहायक होते हैं।
प्रश्न: क्या
मानसिक विकृति का दावा करने पर स्वतः सजा से बचाव हो जाता है?
उत्तर:
नहीं, मानसिक विकृति का दावा करने पर स्वतः
सजा से बचाव नहीं मिलता।
- अदालत यह तय करती है कि व्यक्ति
ने अपने कार्य की प्रकृति को समझने की क्षमता खो दी थी या नहीं।
- यदि यह साबित हो जाए कि व्यक्ति
में सही और गलत का भेद करने की समझ नहीं थी,
तभी उसे प्रतिरक्षा दी जाएगी।
प्रश्न: बीएनएस
धारा 22 का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
बीएनएस धारा 22 का उद्देश्य है:
- मानसिक रूप से विकृत व्यक्तियों
के प्रति न्यायसंगत और करुणापूर्ण व्यवहार।
- मानसिक अस्वस्थ व्यक्तियों को दंड
के बजाय उपचार प्रदान करना।
- यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है
कि अपराध के लिए केवल वह व्यक्ति उत्तरदायी ठहराया जाए जो अपने कार्यों की
समझदारी से जिम्मेदार हो।
प्रश्न: क्या धारा 22
के तहत विकृत मस्तिष्क वाले व्यक्ति को उपचार मिलना चाहिए?
उत्तर:
हाँ, बीएनएस धारा 22 के
तहत ऐसे व्यक्ति को सजा के बजाय उपचार और पुनर्वास की आवश्यकता होती है।
- न्यायालय अक्सर मानसिक
स्वास्थ्य संस्थानों में उपचार का आदेश देती है।
- व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य
अधिनियम, 2017
के तहत देखभाल और सुरक्षा प्रदान की जाती है।
प्रश्न: क्या धारा 22
बच्चों पर भी लागू होती है?
उत्तर:
नहीं, बच्चों के मामले में बीएनएस धारा 20
और धारा 21 लागू होती है।
- धारा 22
केवल वयस्क मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के मामलों
में लागू होती है।
- बच्चों को किशोर न्याय अधिनियम,
2015 के अंतर्गत विशेष संरक्षण मिलता है।
प्रश्न: विकृत
मस्तिष्क वाले व्यक्ति के कार्यों की जांच कैसे होती है?
उत्तर:
न्यायालय द्वारा निम्नलिखित आधारों पर जांच की जाती है:
- मनोचिकित्सकों की रिपोर्ट
और चिकित्सा साक्ष्य।
- परिवार और समाज द्वारा दी गई
जानकारी।
- अपराध के समय व्यक्ति की
मानसिक स्थिति और उसकी सोचने-समझने की क्षमता।
प्रश्न: बीएनएस
धारा 22 और मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम,
2017 में क्या संबंध है?
उत्तर:
बीएनएस धारा 22 और मानसिक स्वास्थ्य
अधिनियम, 2017 में गहरा संबंध है।
- मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम मानसिक
रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों को उपचार और पुनर्वास का अधिकार प्रदान करता
है।
- बीएनएस धारा 22
यह सुनिश्चित करती है कि मानसिक रोगी को दंड के बजाय आवश्यक
उपचार मिले।
उदाहरण:
👉 उदाहरण 1:
एक मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति गुस्से में किसी को नुकसान
पहुंचा देता है। जांच में यह साबित होता है कि वह अपनी समझ खो बैठा था और
अपने कार्यों के परिणाम नहीं समझ पा रहा था। ऐसे में बीएनएस धारा 22
के तहत उसे दंडित नहीं किया जाएगा।
👉 उदाहरण 2:
एक व्यक्ति स्किजोफ्रेनिया (Schizophrenia) से ग्रस्त है और अपराध कर बैठता है। यदि यह साबित हो जाए कि अपराध के समय
वह सही-गलत का भेद करने में असमर्थ था, तो उसे सजा के
बजाय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भेजा जा सकता है।