निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22
भूमिका
भारतीय संविधान
प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार देता है। लेकिन कई बार
परिस्थितियां ऐसी होती हैं जहां किसी व्यक्ति को गिरफ्तार
(Arrest) किया जा सकता है या निरोध (Preventive
Detention) के तहत बिना मुकदमा चलाए हिरासत में रखा जा सकता है।
इन्हीं स्थितियों
में नागरिकों को अनुचित या गैरकानूनी गिरफ्तारी से बचाने के लिए संविधान का
अनुच्छेद 22 महत्वपूर्ण
भूमिका निभाता है। यह अनुच्छेद सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति बिना किसी
उचित कानूनी प्रक्रिया के लंबे समय तक हिरासत में नहीं रखा जाए और उसे अपने
बचाव के लिए पर्याप्त अवसर मिले।
इस लेख में हम अनुच्छेद
22
के प्रावधान, इसके महत्व, न्यायिक व्याख्या, ऐतिहासिक फैसले और इसके
कार्यान्वयन की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा
करेंगे।
अनुच्छेद 22
का उद्देश्य और महत्व
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 नागरिकों को अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी और निरोध से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के गिरफ्तार या हिरासत में नहीं लिया जा सकता।
अनुच्छेद 22
गिरफ्तारी और निरोध के दो प्रकारों को
परिभाषित करता है:
1. सामान्य गिरफ्तारी (Ordinary Arrest)
➡ जब किसी व्यक्ति को भारतीय न्याय संहिता (BNS) या किसी अन्य आपराधिक कानून के तहत
गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे कुछ कानूनी अधिकार
प्राप्त होते हैं।
✔ गिरफ्तारी
का कारण बताना अनिवार्य होता है।
✔ उसे
तुरंत अपने वकील से मिलने और परामर्श करने का अधिकार होता है।
✔ गिरफ्तारी
के 24 घंटे के भीतर उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना
आवश्यक है (यात्रा का समय छोड़कर)।
✔ यदि
मजिस्ट्रेट अनुमति नहीं देता, तो व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
2. निरोध (Preventive Detention) – बिना मुकदमे के हिरासत में रखने का अधिकार
➡ जब किसी व्यक्ति को बिना
किसी मुकदमे के सिर्फ संदेह के आधार पर किसी संभावित अपराध को रोकने के लिए
हिरासत में लिया जाता है, तो इसे निरोध (Preventive
Detention) कहा जाता है।
✔ यह आतंकवाद,
राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था,
राज्य की सुरक्षा या कानून-व्यवस्था बनाए रखने के मामलों में लागू
किया जाता है।
✔ निरोध
अधिकतम 3 महीने तक किया जा सकता है, लेकिन
उसके बाद एक सलाहकार बोर्ड की स्वीकृति आवश्यक होती है।
✔ व्यक्ति
को निरोध के कारण बताए जाने चाहिए, ताकि वह अपने बचाव की
तैयारी कर सके।
✔ निरोध
करने वाले व्यक्ति को अदालत में पेश करने की आवश्यकता नहीं होती (सामान्य गिरफ्तारी के विपरीत)।
✔ सरकार
द्वारा बनाए गए कानूनों के तहत विशेष परिस्थितियों में हिरासत की अवधि को
बढ़ाया जा सकता है।
अनुच्छेद 22
गिरफ्तारी और निरोध से संबंधित दो महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता
है:
✔ कोई भी व्यक्ति गिरफ्तारी
के बाद तुरंत अपने वकील से परामर्श कर सकता है।
✔ किसी भी
व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया
जाना आवश्यक है (यदि मामला सामान्य गिरफ्तारी का है)।
अनुच्छेद 22
यह सुनिश्चित करता है कि कानून का दुरुपयोग न हो और नागरिकों के
मौलिक अधिकारों की रक्षा हो। हालाँकि, इसका निरोध
संबंधी प्रावधान सरकार को किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के हिरासत में रखने की
शक्ति देता है, जिससे कई बार इस कानून के दुरुपयोग की भी
संभावना बनी रहती है।
"स्वतंत्रता और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना अनुच्छेद 22 का मुख्य उद्देश्य है।"
अनुच्छेद 22 के प्रावधान (Provisions of Article 22)
1. गिरफ्तारी के बाद मौलिक अधिकार
➡ यदि किसी व्यक्ति को सामान्य
आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे
निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं:
✔ गिरफ्तारी
का कारण जानने का अधिकार।
✔ अपना
बचाव करने के लिए वकील की सहायता लेने का अधिकार।
✔ 24 घंटे
के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना अनिवार्य।
✔ यदि
मजिस्ट्रेट की अनुमति नहीं मिलती, तो व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
2. निरोध (Preventive Detention) से संबंधित प्रावधान
➡ निरोध (Preventive
Detention) का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को बिना किसी अपराध के
हिरासत में लिया जा सकता है यदि ऐसा लगता है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।
✔ निरोध की अधिकतम अवधि
– किसी व्यक्ति को बिना न्यायिक हस्तक्षेप के तीन महीने तक
हिरासत में रखा जा सकता है।
✔ सलाहकार
बोर्ड (Advisory Board) – यदि किसी व्यक्ति को तीन महीने
से अधिक हिरासत में रखना हो, तो सरकार को एक सलाहकार
बोर्ड (Advisory Board) से अनुमति लेनी होगी, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होते हैं।
✔ निरोध
के कारण बताने का अधिकार – निरोध के तहत रखे गए व्यक्ति
को कारण बताया जाना चाहिए, ताकि वह अपना बचाव कर सके।
✔ निरोध
कानून संसद द्वारा बनाए जाते हैं, जैसे:
✔ राष्ट्रीय
सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980
✔ सार्वजनिक
सुरक्षा अधिनियम (PSA), 1978
✔ गुंडा
अधिनियम, 1985
भारतीय न्यायपालिका के महत्वपूर्ण फैसले
🔹A.K. Gopalan v. State of
Madras (1950)
➡ इस ऐतिहासिक फैसले में
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निरोध कानून को अनुच्छेद 22 के अनुसार कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
➡ निरोध
कानून संविधान की मूलभूत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं कर सकते।
🔹Maneka Gandhi v. Union of
India (1978)
➡ इस मामले में सुप्रीम कोर्ट
ने कहा कि निरोध या गिरफ्तारी की प्रक्रिया में "न्याय की उचित
प्रक्रिया" का पालन किया जाना चाहिए।
➡ अनुच्छेद
21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 22 (गिरफ्तारी
से सुरक्षा) एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
🔹ADM Jabalpur v. Shivkant
Shukla (1976)
➡ इस मामले में अदालत ने
आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी और निरोध की वैधता पर चर्चा की।
➡ यह फैसला
इस बात का उदाहरण बना कि कानून का दुरुपयोग करके नागरिकों की स्वतंत्रता छीनी
जा सकती है।
🔹Kartar Singh v. State of
Punjab (1994)
➡ सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि निरोध कानूनों को लागू करने में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है,
ताकि नागरिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
🔹2019 के
जम्मू-कश्मीर निरोध मामले
➡ अनुच्छेद
370 हटाने के बाद कई राजनीतिक नेताओं को सार्वजनिक सुरक्षा
अधिनियम (PSA) के तहत हिरासत में लिया गया।
➡ कई
महीनों तक अदालतों ने इस पर फैसला नहीं दिया, जिससे निरोध का
दुरुपयोग स्पष्ट रूप से देखा गया।
निरोध कानून की चुनौतियां और दुरुपयोग
भारत में निरोध
कानून (Preventive Detention Laws) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि राष्ट्रीय सुरक्षा,
सार्वजनिक व्यवस्था और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम
उठाए जा सकें। लेकिन समय-समय पर यह देखा गया है कि इन
कानूनों का दुरुपयोग किया गया है, जिससे नागरिकों के
मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
अनुच्छेद 22
के तहत निरोध कानूनों की प्रमुख चुनौतियां और इनके दुरुपयोग के
विभिन्न तरीके निम्नलिखित हैं:
1 1.निरोध कानून का राजनीतिक दुरुपयोग
➡ राजनीतिक विरोधियों को
दबाने के लिए निरोध का उपयोग
✔ कई बार सरकारें
अपने राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और असहमति जताने वाले नागरिकों को दबाने के लिए
निरोध कानूनों का उपयोग करती हैं।
✔ राष्ट्रीय
सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980 और गुंडा अधिनियम,
1985 जैसे कानूनों का उपयोग कई बार बिना ठोस कारण के किया जाता
है।
उदाहरण:
✔ कई राज्यों
में पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को केवल सरकार की नीतियों की
आलोचना करने के लिए NSA के तहत हिरासत में लिया गया।
✔ 2019 में उत्तर प्रदेश में CAA (नागरिकता
संशोधन अधिनियम) के विरोध में प्रदर्शन करने वालों को NSA
के तहत गिरफ्तार किया गया।
➡ निरोध कानूनों का
इस्तेमाल असहमति को दबाने के लिए किया गया
✔ भारत में कई
मामलों में विरोध प्रदर्शनकारियों, मानवाधिकार
कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को "सुरक्षा
खतरा" बताकर गिरफ्तार किया गया है।
✔ विशेष रूप
से, आपातकाल (Emergency) के
दौरान सरकार ने निरोध कानूनों का उपयोग बड़े पैमाने पर राजनीतिक विरोधियों को
गिरफ्तार करने के लिए किया था।
2. पारदर्शिता की कमी
➡ निरोध कानूनों के तहत
गिरफ्तार व्यक्ति को अक्सर गिरफ्तारी का कारण नहीं बताया जाता।
✔ संविधान के
अनुच्छेद 22(5) के तहत यह प्रावधान है कि
निरुद्ध व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारण बताने चाहिए, लेकिन कई
बार यह औपचारिकता मात्र रह जाती है।
✔ सरकारें "राष्ट्रीय
सुरक्षा" या "सार्वजनिक व्यवस्था" का हवाला देकर व्यक्ति
को कानूनी बचाव का अवसर नहीं देतीं।
➡ व्यक्ति को कानूनी सहायता
से वंचित किया जाता है
✔ सामान्य
गिरफ्तारी में व्यक्ति को वकील से मिलने और अदालत में अपील करने का अधिकार होता
है, लेकिन निरोध के मामलों में यह अधिकार सीमित हो जाता
है।
✔ कई बार यह
देखा गया है कि निरोध में रखे गए व्यक्तियों को उचित कानूनी सलाह नहीं दी जाती,
जिससे वे खुद को बचाने में असमर्थ हो जाते हैं।
उदाहरण:
✔ राष्ट्रीय
सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत कई बार गिरफ्तार किए गए
व्यक्तियों को महीनों तक यह पता नहीं चल पाता कि उनके खिलाफ आरोप क्या हैं।
✔ कई मामलों
में आरोपों की स्पष्टता न होने के कारण व्यक्तियों को न्याय पाने में कठिनाई होती
है।
3. सलाहकार बोर्ड की कमजोरी
➡ सलाहकार बोर्ड (Advisory
Board) का गठन न्यायिक समीक्षा के लिए किया जाता है, लेकिन यह पूरी तरह निष्पक्ष नहीं होता।
✔ सरकार
द्वारा नियुक्त सलाहकार बोर्ड कई मामलों में सरकार के पक्ष में निर्णय देता है।
✔ अनुच्छेद
22(4) के तहत, तीन महीने से अधिक
निरोध करने के लिए सरकार को सलाहकार बोर्ड की मंजूरी लेनी होती है, लेकिन यह प्रक्रिया अक्सर औपचारिकता मात्र रह जाती है।
➡ सलाहकार बोर्ड को
पारदर्शी बनाने की जरूरत
✔ सलाहकार
बोर्ड की निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए स्वतंत्र न्यायाधीशों और मानवाधिकार
संगठनों की भागीदारी आवश्यक है।
✔ वर्तमान
में, सरकार ही सलाहकार बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति करती
है, जिससे इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
उदाहरण:
✔
1980 में लागू किए गए NSA के तहत गिरफ्तार किए
गए कई व्यक्तियों के मामले सलाहकार बोर्ड तक पहुंचे, लेकिन
उनमें से अधिकांश को बिना पर्याप्त जांच के निरोध में रखा गया।
संक्षेप में
✅ निरोध कानूनों का मुख्य
उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखना है, लेकिन इसका कई बार दुरुपयोग भी किया गया है।
✅ राजनीतिक
विरोधियों, पत्रकारों, सामाजिक
कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को गैर-जरूरी मामलों में
हिरासत में रखने के उदाहरण मिलते हैं।
✅ सलाहकार
बोर्ड की निष्पक्षता और न्यायिक समीक्षा की
सीमाएं निरोध कानूनों की पारदर्शिता को कमजोर बनाती हैं।
✅ आवश्यकता
इस बात की है कि निरोध कानूनों को न्यायपालिका द्वारा अधिक पारदर्शी और
जवाबदेह बनाया जाए, ताकि नागरिक अधिकारों की रक्षा हो सके।
1."निरोध
कानूनों का उद्देश्य सुरक्षा बनाए रखना है, लेकिन यदि इन्हें
उचित तरीके से लागू न किया जाए, तो ये नागरिक स्वतंत्रता को
कुचल सकते हैं।"
2."कोई भी व्यक्ति, जिसे गिरफ्तार किया जाए या किसी कारावास में रखा जाए, उसे तुरंत उसे गिरफ्तार करने का कारण बताया जाएगा और उसे अपने चुने हुए वकील से परामर्श करने का अधिकार होगा। यदि किसी व्यक्ति को निरोध कानून के तहत रखा जाता है, तो उसे तीन महीने से अधिक समय तक बिना किसी न्यायिक पुष्टि के नहीं रखा जा सकता।"
निष्कर्ष
✅ अनुच्छेद 22 भारतीय नागरिकों को अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी और निरोध से सुरक्षा प्रदान
करता है।
✅ यह एक मौलिक
अधिकार है, जो संविधान द्वारा हर व्यक्ति को उचित कानूनी
प्रक्रिया की गारंटी देता है।
✅ हालांकि,
कई बार निरोध कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है, जिसे रोकने के लिए न्यायपालिका और नागरिक समाज को सतर्क
रहने की जरूरत है।
✅ सरकार को
यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति निरोध या गिरफ्तारी का गलत शिकार न बने।
"स्वतंत्रता सबसे कीमती अधिकार है, और अनुच्छेद 22
इसे सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया है।"
अनुच्छेद 22
(निरोध एवं गिरफ्तारी से संरक्षण) से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले
प्रश्न (FAQs)
1. अनुच्छेद
22 क्या है?
✅ अनुच्छेद 22 भारतीय संविधान का एक प्रावधान है, जो किसी भी
व्यक्ति को अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी और निरोध (Preventive Detention) से बचाने के लिए सुरक्षा प्रदान करता है।
✅ यह दो
प्रकार की सुरक्षा देता है:
✔ (1) सामान्य
गिरफ्तारी के मामलों में कानूनी अधिकार।
✔ (2) निरोध
(Preventive Detention) के मामलों में सीमित सुरक्षा।
2. अनुच्छेद
22 के तहत गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति को क्या अधिकार मिलते
हैं?
✅ यदि किसी व्यक्ति को
गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे निम्नलिखित अधिकार प्राप्त
होते हैं:
✔ गिरफ्तारी
का कारण जानने का अधिकार।
✔ अपने चुने
हुए वकील से परामर्श करने का अधिकार।
✔ गिरफ्तारी
के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए जाने का
अधिकार।
✔ मजिस्ट्रेट
की अनुमति के बिना 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा
सकता।
3. निरोध (Preventive
Detention) क्या होता है?
✅ निरोध (Preventive
Detention) का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए केवल
संदेह के आधार पर हिरासत में लिया जा सकता है, ताकि वह कोई
संभावित अपराध न करे।
✔ यह आमतौर
पर राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और आतंकवाद से जुड़े
मामलों में इस्तेमाल किया जाता है।
✔ निरोध की
अधिकतम अवधि 3 महीने होती है, लेकिन
यदि सरकार को व्यक्ति को अधिक समय तक हिरासत में रखना है, तो
उसे सलाहकार बोर्ड की स्वीकृति लेनी होगी।
4. क्या
पुलिस निरोध (Preventive Detention) के तहत किसी को भी
गिरफ्तार कर सकती है?
✅ नहीं, निरोध
केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है।
✔ यह
कानून-व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक हित को बनाए
रखने के लिए लागू किया जाता है।
✔ सरकार को
गिरफ्तारी के कारणों को न्यायसंगत ठहराना होगा और यदि 3 महीने
से अधिक हिरासत में रखना हो तो सलाहकार बोर्ड की मंजूरी लेनी होगी।
5. क्या
निरोध के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अपने वकील से मिलने की अनुमति होती है?
✅ नहीं, अनुच्छेद
22(3) के तहत निरोध कानून के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति को
अपने वकील से परामर्श लेने का अधिकार नहीं होता।
6. निरोध
कानून का दुरुपयोग कैसे किया जाता है?
✅ निरोध कानूनों का कई बार
सरकारें दुरुपयोग कर सकती हैं, जैसे कि:
✔ राजनीतिक
विरोधियों को दबाने के लिए।
✔ पत्रकारों
और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के लिए।
✔ बिना ठोस
सबूत के किसी व्यक्ति को "राष्ट्रीय सुरक्षा खतरा" बताकर हिरासत
में लेने के लिए।
7. क्या
न्यायपालिका निरोध के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है?
✅ हां, लेकिन
न्यायिक समीक्षा सीमित होती है।
✔ अदालतें
राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में अक्सर सरकार के फैसले का सम्मान करती हैं और बहुत
अधिक दखल नहीं देतीं।
✔ हालांकि,
अनुचित निरोध को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
8. क्या
सरकार किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल तक निरोध में रख सकती है?
✅ नहीं, बिना
न्यायिक समीक्षा के किसी भी व्यक्ति को अधिकतम 3 महीने तक
हिरासत में रखा जा सकता है।
✔ यदि
व्यक्ति को 3 महीने से अधिक हिरासत में रखना हो, तो सरकार को सलाहकार बोर्ड की मंजूरी लेनी होगी।
9. निरोध की
अधिकतम अवधि कितनी होती है?
✅ निरोध की अधिकतम अवधि
सामान्य रूप से 3 महीने होती है।
✔ हालांकि,
कुछ कानूनों के तहत इसे 6 महीने या 1 साल तक बढ़ाया जा सकता है (जैसे, राष्ट्रीय सुरक्षा
अधिनियम - NSA)।
10. क्या
व्यक्ति निरोध के खिलाफ अदालत में अपील कर सकता है?
✅ हां, व्यक्ति
हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में "हैबियस कॉर्पस" (Habeas Corpus)
याचिका दाखिल कर सकता है।
11. निरोध
कानूनों के तहत प्रमुख भारतीय कानून कौन-कौन से हैं?
✅ भारत में कुछ प्रमुख निरोध
कानून हैं:
✔ राष्ट्रीय
सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980।
✔ सार्वजनिक
सुरक्षा अधिनियम (PSA), 1978।
✔ गुंडा
अधिनियम, 1985।
12. क्या
निरोध के दौरान गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताया जाता है?
✅ हां, लेकिन
कुछ मामलों में यह आवश्यक नहीं होता।
✔ अनुच्छेद 22(5)
के तहत गिरफ्तारी का कारण बताया जाना चाहिए, लेकिन
राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में सरकार यह जानकारी छिपा सकती है।
13. क्या
किसी व्यक्ति को बिना सुनवाई के जेल में रखा जा सकता है?
✅ हां, निरोध
कानूनों के तहत मुकदमा चलाए बिना भी व्यक्ति को जेल में रखा जा सकता है।
14. क्या
निरोध कानूनों को खत्म किया जा सकता है?
✅ संविधान में संशोधन के
माध्यम से निरोध कानूनों को हटाया जा सकता है, लेकिन अभी तक
ऐसा नहीं किया गया है।
15. न्यायपालिका
ने निरोध कानूनों पर क्या कहा है?
✅ न्यायपालिका ने कई बार निरोध
कानूनों की सीमाओं को निर्धारित किया है।
✔ Maneka Gandhi v. Union
of India (1978) – "उचित प्रक्रिया" का पालन अनिवार्य।
✔ ADM Jabalpur v. Shivkant
Shukla (1976) – आपातकाल में अनुच्छेद 22 के
दुरुपयोग को लेकर विवादित फैसला।
16. क्या
निरोध कानूनों का दुरुपयोग रोकने के लिए कोई उपाय हैं?
✅ हां, नागरिक
अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होकर और न्यायपालिका का सहारा लेकर निरोध के
दुरुपयोग को चुनौती दे सकते हैं।
17. क्या
पुलिस किसी भी कारण से निरोध का उपयोग कर सकती है?
✅ नहीं, पुलिस
को केवल विशेष परिस्थितियों में निरोध कानूनों का उपयोग करने की अनुमति होती है।
18. क्या
निरोध कानून आपातकाल में अधिक कठोर हो जाते हैं?
✅ हां, आपातकाल
के दौरान सरकार निरोध कानूनों का अधिक कड़ाई से उपयोग कर सकती है।
19. क्या
कोई व्यक्ति अनुच्छेद 22 के तहत अपने मौलिक अधिकारों की
रक्षा कर सकता है?
✅ हां, व्यक्ति
उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है।
20. क्या
निरोध कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है?
✅ हां, कई
विशेषज्ञों का मानना है कि निरोध कानूनों में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की
जरूरत है, ताकि इनका दुरुपयोग न हो।
"स्वतंत्रता सबसे कीमती अधिकार है, और अनुच्छेद 22 इसे सुरक्षित रखने के लिए बनाया गया है।"