प्रथम सूचना रिपोर्ट के प्रकार: एक विस्तृत संवैधानिक एवं कानूनी विश्लेषण
परिचय
भारत
में आपराधिक मामलों की जांच
प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR – First Information Report) से
शुरू होती है। यह आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और पुलिस को
किसी संज्ञेय अपराध की जानकारी मिलने पर अनिवार्य रूप से इसे दर्ज करना होता है।
हालाँकि, एफआईआर
के विभिन्न प्रकार होते हैं, जो अपराध की प्रकृति, स्थान, अधिकार
क्षेत्र और अन्य कानूनी पहलुओं के आधार पर भिन्न होते हैं।
इस लेख में हम एफआईआर
के प्रकार, उनकी कानूनी वैधता, भारतीय
संविधान में उनका स्थान, और न्यायिक दृष्टिकोण का
विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
प्रथम सूचना रिपोर्ट का कानूनी आधार
🟢प्रथम सूचना रिपोर्ट को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 के तहत विधिवत परिभाषित किया गया है।
✅
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
(BNSS) 2023- संज्ञेय अपराधों में एफआईआर दर्ज करने की
प्रक्रिया
🔹
यदि किसी पुलिस स्टेशन को
किसी संज्ञेय अपराध
(Cognizable Offense) की सूचना मिलती है, तो
उसे अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करनी होती है।
🔹 पुलिस
को जाँच करने और गिरफ्तारी करने का अधिकार होता है।
✅
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
(BNSS) 2023 174 – गैर-संज्ञेय अपराधों में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया
🔹
यदि किसी अपराध की प्रकृति गैर-संज्ञेय
(Non-Cognizable) है, तो
पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती।
🔹 ऐसे
मामलों में पुलिस पहले मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजती है और उनकी स्वीकृति के बाद
जाँच शुरू कर सकती है।
🔹 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 लालिता
कुमारी बनाम भारत सरकार (2013) – सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि यदि कोई संज्ञेय अपराध होता है, तो
पुलिस को अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करनी होगी।
प्रथम सूचना रिपोर्ट के प्रकार और उनका कानूनी महत्व
प्रथम
सूचना रिपोर्ट के विभिन्न प्रकार
होते हैं, जिनका उद्देश्य अपराध की प्रकृति और परिस्थिति के अनुसार
जांच को प्रभावी बनाना होता है।
1.
नियमित प्रथम सूचना
रिपोर्ट (Regular FIR)
✅
परिभाषा:
🔹 यह
सबसे सामान्य प्रकार की प्रथम सूचना रिपोर्ट होती है, जो BNSS
की धारा 173
के तहत दर्ज की जाती है।
🔹 यह
तब दर्ज होती है जब किसी संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को दी
जाती है।
✅
उद्देश्य:
🔹 अपराध
की आधिकारिक जांच शुरू करना।
🔹 अपराध
स्थल पर जाकर सबूत इकट्ठा करना और आरोपियों को गिरफ्तार करना।
🔹 उदाहरण:
✔ हत्या
BNS धारा 103),
बलात्कार (BNS
धारा 64 ), डकैती
(BNS धारा 310(2)),
और चोरी (BNS धारा
305) के मामले में यह एफआईआर दर्ज की जाती है।
2.
जीरो प्रथम सूचना रिपोर्ट
(Zero FIR)
✅
परिभाषा:
🔹 यह
किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज की जा सकती है,
चाहे अपराध किसी भी
क्षेत्र में हुआ हो।
🔹 इसे "जीरो एफआईआर" इसलिए
कहा जाता है क्योंकि यह बिना किसी सीरियल नंबर के दर्ज होती है।
🔹 बाद
में इसे संबंधित अधिकार क्षेत्र वाले पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया जाता
है।
✅
उद्देश्य:
🔹 यह
सुनिश्चित करना कि शिकायत तुरंत दर्ज हो और प्रारंभिक जांच
शुरू की जा सके।
🔹 पीड़ित
को एफआईआर दर्ज कराने के लिए अलग पुलिस स्टेशन जाने की जरूरत न हो।
🔹 उदाहरण:
✔ यदि
कोई महिला दिल्ली में यात्रा के दौरान यौन उत्पीड़न का शिकार होती है, तो
वह किसी भी पुलिस स्टेशन में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकती है, और
बाद में इसे घटना के वास्तविक क्षेत्र के पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जा
सकता है।
3.
गैर-संज्ञेय रिपोर्ट (NCR - Non-Cognizable Report)
✅
परिभाषा:
🔹 गैर-संज्ञेय
अपराधों के लिए यह रिपोर्ट दर्ज की जाती है।
🔹 पुलिस
बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के ऐसे मामलों में जांच नहीं कर सकती।
✅
उद्देश्य:
🔹 अपराध
के दस्तावेजीकरण के लिए इसे दर्ज किया जाता है,
लेकिन पुलिस को जाँच के
लिए मजिस्ट्रेट से आदेश लेना होता है।
🔹 उदाहरण:
✔ मानहानि
(BNSधारा 356(2)),
गाली-गलौज (IPC धारा
352), और साधारण मारपीट (IPC धारा 115(2)) जैसे
अपराध इसमें आते हैं।
4.
काउंटर एफआईआर (Counter FIR)
✅
परिभाषा:
🔹 यह
पहले से दर्ज की गई एफआईआर के जवाब में दूसरी पार्टी द्वारा दर्ज की जाती है।
🔹 आमतौर
पर यह मामलों में होती है जहाँ
दोनों पक्ष एक-दूसरे पर
आरोप लगाते हैं।
✅
उद्देश्य:
🔹 यह
सुनिश्चित करना कि दूसरे पक्ष की भी सुनवाई हो और निष्पक्ष
जांच हो।
🔹 उदाहरण:
✔ किसी
झगड़े के मामले में यदि एक पक्ष एफआईआर दर्ज कराता है, तो
दूसरा पक्ष अपने बचाव में काउंटर एफआईआर दर्ज करा सकता है।
5. क्रॉस एफआईआर (Cross FIR)
✅
परिभाषा:
🔹 यह
तब दर्ज की जाती है जब एक ही घटना के संबंध में दोनों पक्षों
द्वारा अलग-अलग एफआईआर दर्ज कराई जाती हैं।
🔹 इसमें
समानांतर जांच चलती है।
✅
उद्देश्य:
🔹 घटना
के दोनों पक्षों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना।
🔹 उदाहरण:
✔ मारपीट, संपत्ति
विवाद, और सड़क झगड़ों में अक्सर क्रॉस एफआईआर दर्ज
की जाती हैं।
6.
झूठी एफआईआर (False FIR)
✅
परिभाषा:
🔹 जब
कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत जानकारी देकर एफआईआर दर्ज कराता है, तो
इसे झूठी एफआईआर कहते हैं।
🔹 ऐसा
करना कानूनन अपराध है और शिकायतकर्ता पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
✅
परिणाम:
🔹 BNS की
धारा 217 के
तहत झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने पर
6 महीने की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
🔹 उदाहरण:
✔ अगर
कोई व्यक्ति झूठा बलात्कार का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कराता है और बाद में यह गलत
साबित होता है, तो शिकायतकर्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो
सकती है।
7.
ऑनलाइन एफआईआर (Online FIR)
✅
परिभाषा:
🔹 कुछ
राज्यों में पुलिस विभाग ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
🔹 यह
विशेष रूप से गैर-संज्ञेय अपराधों और छोटे अपराधों के लिए
होती है।
✅
उद्देश्य:
🔹 लोगों
को एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन जाने की आवश्यकता न हो।
🔹 प्रक्रियाओं
को सरल और पारदर्शी बनाना।
🔹 उदाहरण:
✔ चोरी, खोए
हुए दस्तावेज, साइबर अपराध आदि की शिकायतें ऑनलाइन दर्ज की
जा सकती हैं।
निष्कर्ष
✅
एफआईआर आपराधिक न्याय
प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसके कई प्रकार होते हैं।
✅ जीरो
एफआईआर, काउंटर एफआईआर, और
क्रॉस एफआईआर जैसे विभिन्न प्रकार विभिन्न कानूनी स्थितियों में उपयोग किए जाते
हैं।
✅ यदि
कोई पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना करती है,
तो नागरिक मजिस्ट्रेट के
पास जाकर BNSS की धारा 173 (4) के
तहत आदेश प्राप्त कर सकते हैं।
✅ नागरिकों
को एफआईआर के प्रकारों और उनके कानूनी प्रभावों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे
अपने अधिकारों की सुरक्षा कर सकें।
👉 "एफआईआर न्याय की पहली सीढ़ी है, और इसे दर्ज कराना हर नागरिक का अधिकार है।"
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – एफआईआर के प्रकार और उनकी कानूनी वैधता
1.एफआईआर क्या होती है और इसका महत्व क्या है?
✅
एफआईआर (First Information Report) किसी भी संज्ञेय अपराध की पहली सूचना होती है, जिसे
पुलिस द्वारा दर्ज किया जाता है।
✅ यह
आपराधिक न्याय प्रक्रिया की पहली औपचारिक कार्रवाई होती है, जो
जांच और अदालती कार्यवाही का आधार बनती है।
🔹 महत्व:
✔ यह
किसी अपराध की आधिकारिक सूचना होती है।
✔ पुलिस
को अपराध की जांच शुरू करने का अधिकार देती है।
✔ अपराधियों
की गिरफ्तारी और सबूत एकत्र करने की प्रक्रिया शुरू होती है।
2. एफआईआर और शिकायत (Complaint) में क्या अंतर है?
✅
एफआईआर (FIR)
– यह केवल संज्ञेय
अपराधों (Cognizable Offense) के
लिए दर्ज की जाती है और पुलिस को तुरंत जांच करने और गिरफ्तारी का अधिकार मिलता
है।
✅ शिकायत
(Complaint) – यह
किसी भी अपराध के लिए दी जा सकती है,
लेकिन गैर-संज्ञेय अपराधों
(Non-Cognizable Offense) में पुलिस को जांच शुरू करने से पहले
मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होती है।
🔹 उदाहरण:
✔ हत्या, बलात्कार, डकैती
जैसे अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की जाती है।
✔ मारपीट, मानहानि, गाली-गलौज
जैसे छोटे अपराधों के लिए शिकायत दर्ज होती है।
3. एफआईआर कितने प्रकार की होती है?
✅
एफआईआर मुख्य रूप से 7
प्रकार की होती है:
1. नियमित
एफआईआर (Regular FIR) – संज्ञेय
अपराधों के लिए दर्ज की जाती है।
2. जीरो एफआईआर (Zero FIR)
– किसी भी पुलिस स्टेशन में
दर्ज की जा सकती है, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो।
3. गैर-संज्ञेय
रिपोर्ट (NCR - Non-Cognizable
Report) – छोटे अपराधों के लिए दर्ज की जाती है, जिनमें
पुलिस मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना कार्रवाई नहीं कर सकती।
4. काउंटर एफआईआर (Counter FIR)
– पहले से दर्ज एफआईआर के
जवाब में दूसरे पक्ष द्वारा दर्ज की जाती है।
5. क्रॉस एफआईआर (Cross FIR)
– जब एक ही घटना को लेकर
दोनों पक्ष अलग-अलग एफआईआर दर्ज कराते हैं।
6. झूठी एफआईआर (False FIR)
– जब कोई व्यक्ति झूठी या
गलत सूचना देकर एफआईआर दर्ज कराता है।
7. ऑनलाइन एफआईआर (Online FIR)
– कई राज्यों में यह सुविधा
उपलब्ध है, जहाँ लोग पुलिस स्टेशन जाए बिना ऑनलाइन एफआईआर दर्ज कर
सकते हैं।
4️. जीरो एफआईआर क्या होती है और इसे क्यों दर्ज किया जाता है?
✅
जीरो एफआईआर ऐसी एफआईआर
होती है, जिसे किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज कराया
जा सकता है, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो।
✅ इसका
उद्देश्य यह है कि पीड़ित को त्वरित न्याय मिले और उसे अधिकार क्षेत्र की समस्या
के कारण एफआईआर दर्ज कराने में देरी न हो।
✅ बाद
में, इसे संबंधित पुलिस स्टेशन को स्थानांतरित कर
दिया जाता है।
🔹 उदाहरण:
✔ अगर
किसी महिला के साथ ट्रेन में छेड़छाड़ होती है, तो
वह किसी भी नजदीकी पुलिस स्टेशन में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकती है। बाद में, इसे
उस स्थान के पुलिस स्टेशन में भेज दिया जाएगा, जहां
अपराध हुआ था।
5️. क्या पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर
सकती है?
✅
नहीं, यदि
अपराध संज्ञेय है, तो पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर
सकती।
✅ अगर
पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती है,
तो शिकायतकर्ता निम्नलिखित
कदम उठा सकता है:
🔹 पुलिस
अधीक्षक (SP) या वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से शिकायत करें।
🔹 राज्य
पुलिस शिकायत प्राधिकरण में आवेदन करें।
🔹 न्यायिक
मजिस्ट्रेट के पास जाकर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की
धारा 173(4) के तहत पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश
दिलाएं।
🔹 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 लालिता
कुमारी बनाम भारत सरकार (2013) – सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि यदि कोई संज्ञेय अपराध होता है, तो
पुलिस को अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करनी होगी।
6️. क्या झूठी एफआईआर दर्ज कराने पर सजा हो सकती
है?
✅
हाँ, अगर
कोई व्यक्ति झूठी एफआईआर दर्ज कराता है,
तो उसके खिलाफ कानूनी
कार्रवाई की जा सकती है।
✅ BNS की
धारा 217 और 248
के तहत झूठी शिकायत देने
पर 6 महीने की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते
हैं।
🔹उदाहरण:
✔ अगर
कोई व्यक्ति झूठा बलात्कार का आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज कराता है और बाद में यह गलत
साबित होता है, तो शिकायतकर्ता पर कानूनी कार्रवाई हो सकती
है।
7️. क्या एफआईआर को रद्द (Cancel) किया
जा सकता है?
✅
हाँ, यदि
एफआईआर झूठी पाई जाती है या इसमें पर्याप्त सबूत नहीं होते, तो
इसे रद्द किया जा सकता है।
✅ एफआईआर
रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में BNSS
की धारा 528 के
तहत याचिका दायर की जा सकती है।
🔹 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 State of Haryana v. Bhajan Lal (1992) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई एफआईआर
पूरी तरह से झूठी है, तो उसे हाई कोर्ट में चुनौती देकर रद्द
कराया जा सकता है।
8️. क्या ऑनलाइन एफआईआर सभी राज्यों में दर्ज
कराई जा सकती है?
✅
नहीं, ऑनलाइन
एफआईआर की सुविधा सभी राज्यों में उपलब्ध नहीं है।
✅ अधिकतर
राज्यों में यह सुविधा गैर-संज्ञेय अपराधों,
चोरी, गुमशुदगी, और
साइबर अपराधों के लिए ही दी जाती है।
🔹 उदाहरण:
✔ दिल्ली, महाराष्ट्र
और कर्नाटक जैसे राज्यों में ऑनलाइन एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
9️. क्या एफआईआर की कॉपी प्राप्त करना अनिवार्य
है?
✅
हाँ, एफआईआर
दर्ज करने के बाद पुलिस को इसकी एक कॉपी शिकायतकर्ता को मुफ्त में देनी होती है।
✅ यदि
पुलिस एफआईआर की कॉपी देने से मना करे,
तो शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट
या उच्च अधिकारियों से इसकी मांग कर सकता है।
🔹 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 Lalita Kumari v. Govt. of Uttar Pradesh (2013)
– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि
एफआईआर दर्ज होने के बाद उसकी कॉपी शिकायतकर्ता को दी जानी चाहिए।
10. क्या एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी को तुरंत गिरफ्तार
किया जाता है?
✅
नहीं, गिरफ्तारी
तभी होती है जब पुलिस को जांच के दौरान यह लगे कि आरोपी ने अपराध किया है।
✅ गंभीर
अपराधों में पुलिस त्वरित गिरफ्तारी कर सकती है, लेकिन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गैर-जरूरी मामलों में गिरफ्तारी से बचना चाहिए।
🔹 महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 Arnesh Kumar v. State of Bihar (2014) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल एफआईआर दर्ज
होने पर ही किसी को गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए। पहले उचित जांच होनी चाहिए।
महत्वपूर्ण
तथ्य
✅
एफआईआर न्यायिक प्रक्रिया
का पहला कदम है और इसके विभिन्न प्रकार होते हैं।
✅ यदि
पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना करती है,
तो नागरिक मजिस्ट्रेट से
आदेश ले सकता है।
✅ झूठी
एफआईआर दर्ज कराना एक दंडनीय अपराध है और इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है।
✅ हर
नागरिक को एफआईआर दर्ज कराने के अपने अधिकारों के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
👉
"एफआईआर न्याय की
पहली सीढ़ी है, और इसे दर्ज कराना हर नागरिक का अधिकार
है।"