अस्पृश्यता का अंत:
अनुच्छेद 17 का संवैधानिक एवं कानूनी
विश्लेषण।
परिचय
🔷भारत में अस्पृश्यता (Untouchability)
सदियों से एक सामाजिक बुराई रही है, जिसने
समाज में गहरी असमानता और भेदभाव को जन्म दिया। इस प्रथा के कारण समाज के एक बड़े
वर्ग को शोषण, अपमान और अधिकारों से वंचित किया गया। भारतीय
संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता को समाप्त कर इसे
दंडनीय अपराध घोषित किया गया। यह अनुच्छेद भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की
दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है, जो समानता और मानव गरिमा को
सुनिश्चित करता है।
इस लेख में,
हम अनुच्छेद 17 का विस्तृत अध्ययन करेंगे,
जिसमें इसका संवैधानिक महत्व, न्यायिक फैसले,
कानूनी प्रावधान और सामाजिक प्रभावों पर चर्चा की जाएगी।
अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन
संविधान का मूल पाठ:
"अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में
पालन निषिद्ध किया जाएगा। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी भी प्रकार की अक्षमता को
कानून के अनुसार दंडनीय अपराध बनाया जाएगा।"
➡ यह अनुच्छेद न केवल
अस्पृश्यता को समाप्त करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है
कि इसे लागू करने वाले व्यक्ति या समूह को कानूनन दंडित किया जाए।
अनुच्छेद 17
का उद्देश्य
✅ समाज में समानता को स्थापित
करना।
✅ दलितों और
पिछड़े वर्गों को उनके मूल अधिकार प्रदान करना।
✅ अस्पृश्यता
को समाप्त कर एक समरस समाज की रचना करना।
✅ कानूनी
प्रावधानों के माध्यम से इस प्रथा को दंडनीय बनाना।
अनुच्छेद 17
से संबंधित कानूनी प्रावधान
1. नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955
➡
इस अधिनियम को अनुच्छेद 17 को प्रभावी बनाने
के लिए लागू किया गया।
➡ यह
अस्पृश्यता को अपराध घोषित करता है और इसका उल्लंघन करने वालों को सजा का प्रावधान
करता है।
➡ इसमें
सामाजिक बहिष्कार, मंदिरों में प्रवेश पर रोक, सार्वजनिक जल स्रोतों के उपयोग में भेदभाव आदि को अपराध माना गया है।
2. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
➡ इस अधिनियम को अस्पृश्यता और
जातिगत भेदभाव के मामलों में कठोर दंड देने के लिए लागू किया गया।
➡ यह अधिनियम
उन अत्याचारों को रोकता है जो अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर किए जाते हैं।
➡ इसमें
सार्वजनिक स्थलों पर प्रवेश निषेध, सामाजिक बहिष्कार,
जातिगत अपमान आदि को अपराध घोषित किया गया है।
3. मंदिर प्रवेश अधिनियम, 1947
➡ यह अधिनियम अस्पृश्यता के
कारण मंदिरों में प्रवेश से रोके जाने पर प्रतिबंध लगाता है।
➡ इसे बाद
में संविधान के अनुच्छेद 17 के साथ जोड़ा गया।
महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले
🔹 चंपकम दोराईराजन बनाम मद्रास राज्य (1951)
➡ सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के मौलिक अधिकार अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव को अस्वीकार करते हैं।🔹 गुलाम अब्बास बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (1984)
➡ न्यायालय ने कहा कि समाज में अस्पृश्यता की समाप्ति के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे।🔹 सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ (2014)
➡ सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मैला ढोने की प्रथा अस्पृश्यता का सबसे घृणित रूप है और सरकार को इसे पूरी तरह समाप्त करने के लिए सख्त कानून लागू करने चाहिए।🔹 मद्रास उच्च न्यायालय (2018) का फैसला
➡ अदालत ने कहा कि अस्पृश्यता का कोई भी रूप संविधान का उल्लंघन करता है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।संविधान में अन्य संबंधित अनुच्छेद
📌 अनुच्छेद 14
– समानता का अधिकार।
📌 अनुच्छेद
15 – धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।
📌 अनुच्छेद
16 – रोजगार में अवसर की समानता।
📌 अनुच्छेद
46 – अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक
और आर्थिक हितों की सुरक्षा।
अनुच्छेद 17
का सामाजिक प्रभाव
✅ सकारात्मक प्रभाव:
✔
समाज में समानता की भावना को बल मिला।
✔ अनुसूचित
जाति और अन्य वंचित वर्गों को अधिकार मिले।
✔ मंदिरों,
स्कूलों, सार्वजनिक स्थलों में भेदभाव में कमी
आई।
✔ शिक्षा और
रोजगार के अवसर बढ़े।
❌ नकारात्मक प्रभाव:
✖ कई
क्षेत्रों में अस्पृश्यता की मानसिकता अब भी बनी हुई है।
✖ कई मामलों
में दलितों के प्रति हिंसा और अत्याचार जारी है।
✖ सामाजिक
बहिष्कार और छुआछूत की घटनाएँ आज भी देखने को मिलती हैं।
अनुच्छेद 17
के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ
1. सामाजिक संरचना में जड़ें जमाए पूर्वाग्रह
➡ ग्रामीण
क्षेत्रों में अब भी अस्पृश्यता की मानसिकता बनी हुई है।
2. कानूनों का सख्ती से पालन न होना
➡ अस्पृश्यता विरोधी कानूनों
का प्रभावी क्रियान्वयन कई स्थानों पर नहीं हो पा रहा है।
3. राजनीतिक और प्रशासनिक बाधाएँ
➡ कई बार राजनीतिक कारणों से
अस्पृश्यता उन्मूलन के प्रयास कमजोर पड़ जाते हैं।
4. शिक्षा और जागरूकता की कमी
➡ कई वर्गों में संविधान में
दिए गए अधिकारों की जानकारी का अभाव है।
अनुच्छेद 17
को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक उपाय
✅ कानूनों को कड़ाई से लागू
करना: अस्पृश्यता विरोधी कानूनों का कठोरता से पालन किया
जाए।
✅ शिक्षा
और जागरूकता बढ़ाना: समाज में शिक्षा और संवैधानिक
अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए।
✅ सामाजिक
समरसता कार्यक्रम: विभिन्न जातियों के लोगों को एक मंच
पर लाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ।
✅ रिपोर्टिंग
और शिकायत प्रणाली को मजबूत बनाना: अस्पृश्यता के मामलों
की रिपोर्टिंग और कार्रवाई की प्रक्रिया को तेज किया जाए।
निष्कर्ष
✅ अस्पृश्यता का अंत भारतीय
संविधान की सबसे बड़ी सामाजिक उपलब्धियों में से एक है। अनुच्छेद
17 के माध्यम से इस घृणित प्रथा को समाप्त करने का प्रयास
किया गया, लेकिन अभी भी समाज में कुछ स्तरों पर यह मानसिकता
बनी हुई है।
✅ न्यायपालिका और सरकार ने
कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन सामाजिक बदलाव लाने के
लिए जन-जागृति और शिक्षा की आवश्यकता है।
✅ भारत को एक समान और समरस
समाज बनाने के लिए अस्पृश्यता उन्मूलन के प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाना होगा।
📌 "अस्पृश्यता
केवल एक कानूनी समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक बीमारी है,
जिसे शिक्षा, जागरूकता और कठोर कानूनों के
माध्यम से मिटाया जाना चाहिए।" 🚩
अक्सर पूछे जाने
वाले प्रश्न (FAQs)
1. अनुच्छेद
17 क्या कहता है?
✅ उत्तर: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को
समाप्त करता है और इसे किसी भी रूप में अवैध और दंडनीय अपराध घोषित करता
है।
➡ संविधान का मूल पाठ:
"अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में
पालन निषिद्ध किया जाएगा। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी भी प्रकार की अक्षमता को
कानून के अनुसार दंडनीय अपराध बनाया जाएगा।"
➡ इसका मतलब:
- कोई भी व्यक्ति,
समुदाय या संस्था अस्पृश्यता को मान्यता नहीं दे सकती।
- यदि कोई अस्पृश्यता का पालन करता
है तो उसे कानूनी दंड दिया जाएगा।
2. अनुच्छेद
17 को लागू करने के लिए कौन से कानून बनाए गए हैं?
✅ उत्तर: अनुच्छेद 17 को प्रभावी बनाने के लिए सरकार ने दो
प्रमुख कानून बनाए हैं:
📌 1. नागरिक अधिकार
संरक्षण अधिनियम, 1955
➡ यह
अस्पृश्यता को अवैध घोषित करता है और इसके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान करता
है।
➡ मंदिरों,
स्कूलों, कुओं, होटलों,
दुकानों आदि में भेदभाव करने वालों को सजा दी जाती है।
📌 2. अनुसूचित जाति
एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
➡ SC/ST समुदायों
पर होने वाले जातिगत अत्याचार रोकने के लिए यह कानून लागू किया गया।
➡ इसमें
जातिगत अपमान, सामाजिक बहिष्कार और अन्य अत्याचारों के लिए सख्त
दंड का प्रावधान है।
3. अस्पृश्यता
के अंत से संबंधित महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले कौन-कौन से हैं?
✅ उत्तर: भारतीय न्यायपालिका ने कई ऐतिहासिक फैसलों में अनुच्छेद 17
की व्याख्या की और इसे और अधिक प्रभावी बनाया।
📌 🔹 चंपकम
दोराईराजन बनाम मद्रास राज्य (1951)
➡ सर्वोच्च
न्यायालय ने कहा कि संविधान अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव को पूरी तरह अस्वीकार
करता है।
📌 🔹 गुलाम
अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1984)
➡ न्यायालय
ने कहा कि सरकार को अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए।
📌 🔹 सफाई
कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ (2014)
➡ सुप्रीम
कोर्ट ने मैला ढोने की प्रथा को अस्पृश्यता का सबसे घृणित रूप बताया और
सरकार को इसे पूरी तरह समाप्त करने का निर्देश दिया।
📌 🔹 मद्रास
उच्च न्यायालय (2018) का फैसला
➡ अदालत ने
कहा कि अस्पृश्यता संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध है और इसे किसी भी रूप में
सहन नहीं किया जा सकता।
4. संविधान
में अस्पृश्यता से संबंधित अन्य कौन-कौन से अनुच्छेद हैं?
✅ उत्तर: भारतीय संविधान के अन्य अनुच्छेद भी समानता और सामाजिक न्याय को
बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं।
📌 अनुच्छेद 14
– विधि के समक्ष समानता।
📌 अनुच्छेद
15 – जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध।
📌 अनुच्छेद
16 – रोजगार में अवसर की समानता।
📌 अनुच्छेद
46 – अनुसूचित जाति और जनजाति के शैक्षिक और आर्थिक
हितों की सुरक्षा।
5. अस्पृश्यता
को समाप्त करने के लिए समाज में क्या बदलाव आए हैं?
✅ उत्तर: संविधान और कानूनों के प्रभाव से समाज में कई सकारात्मक बदलाव देखे
गए हैं:
✔ सरकारी और निजी संस्थानों
में जातिगत भेदभाव में कमी आई।
✔ अनुसूचित
जाति और पिछड़े वर्गों को समान अवसर मिलने लगे।
✔ मंदिरों,
स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव कम हुआ।
✔ शिक्षा और
नौकरियों में आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ मिला।
6. अस्पृश्यता
उन्मूलन में कौन-कौन सी चुनौतियाँ बनी हुई हैं?
✅ उत्तर: आज भी कई जगह अस्पृश्यता समाप्त नहीं हुई है और कुछ प्रमुख
चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
❌ ग्रामीण क्षेत्रों में
सामाजिक भेदभाव अब भी जारी है।
❌ जातिगत
हिंसा और सामाजिक बहिष्कार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं।
❌ कई
मामलों में कानूनों का सख्ती से पालन नहीं किया जाता।
❌ शिक्षा
और जागरूकता की कमी के कारण भेदभाव बना रहता है।
7. अस्पृश्यता
उन्मूलन के लिए कौन-कौन से सुधार किए जाने चाहिए?
✅ उत्तर: अस्पृश्यता को पूरी तरह समाप्त करने के लिए निम्नलिखित सुधार आवश्यक हैं:
📌 1. शिक्षा और
जागरूकता बढ़ाना – स्कूलों और कॉलेजों में जातिवाद के
खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना।
📌 2. कानूनी कड़ाई – अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव
करने वालों के खिलाफ सख्त सजा देना।
📌 3. सामाजिक समरसता कार्यक्रम – विभिन्न समुदायों को
जोड़ने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम और संवाद को बढ़ावा देना।
📌 4. मीडिया और टेक्नोलॉजी का उपयोग – डिजिटल मीडिया
और फिल्मों के माध्यम से समाज को शिक्षित करना।
8. क्या
अस्पृश्यता आज भी भारत में मौजूद है?
✅ उत्तर: हाँ, हालाँकि कानूनन अस्पृश्यता समाप्त कर दी गई
है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में अब भी यह समस्या बनी हुई
है। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में दलित समुदायों को सामाजिक भेदभाव,
हिंसा और बहिष्कार का सामना करना पड़ता
है।
9. क्या
अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए कोई सरकारी योजनाएँ चलाई जा रही हैं?
✅ उत्तर: हाँ, सरकार अस्पृश्यता समाप्त करने के लिए कई
योजनाएँ चला रही है:
📌 दलित उत्पीड़न
निवारण योजना
📌 अत्याचार
निवारण अधिनियम, 1989
📌 अंबेडकर
सामाजिक नवजागरण योजना
📌 प्रो-एससी
स्कॉलरशिप योजना
10. अस्पृश्यता
उन्मूलन की दिशा में आगे का रास्ता क्या है?
✅ उत्तर: भारत को एक समान और समरस समाज बनाने के लिए अस्पृश्यता उन्मूलन के
प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाना होगा। कानूनी, सामाजिक
और शैक्षिक सुधारों को लागू कर इस समस्या को पूरी तरह
समाप्त किया जा सकता है।
"अस्पृश्यता केवल एक कानूनी समस्या नहीं, बल्कि एक
सामाजिक बीमारी है, जिसे शिक्षा, जागरूकता
और कठोर कानूनों के माध्यम से मिटाया जाना चाहिए।"