क्या किसी शिकायत को एफआईआर में बदला जा सकता है? एक विस्तृत कानूनी विश्लेषण।
परिचय
भारत में आपराधिक
मामलों की रिपोर्टिंग और पुलिस द्वारा कार्रवाई की प्रक्रिया भारतीय नागरिक
सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के प्रावधानों
द्वारा विनियमित होती है।
कई बार, किसी घटना के बाद पुलिस स्टेशन में
शिकायत दर्ज कराई जाती है, लेकिन हर शिकायत एफआईआर (First
Information Report – प्रथम सूचना रिपोर्ट में नहीं बदली जाती।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि शिकायत और एफआईआर में क्या अंतर है, कौन-से अपराध एफआईआर में बदल सकते हैं, और यदि पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इनकार करे तो क्या कानूनी विकल्प उपलब्ध हैं ?
इस लेख में हम इन सभी प्रश्नों का संवैधानिक और न्यायिक
दृष्टिकोण से विस्तृत अध्ययन करेंगे।
शिकायत और एफआईआर में अंतर
✅ शिकायत (Complaint)
क्या होती है?
🔹 शिकायत वह सूचना
होती है, जिसे कोई भी व्यक्ति पुलिस स्टेशन में दर्ज करा
सकता है।
🔹 यह
एक लिखित या मौखिक रिपोर्ट हो सकती है, जिसमें किसी घटना या
अपराध की जानकारी दी जाती है।
🔹 शिकायत
दर्ज कराने के बाद पुलिस उस पर प्रारंभिक जाँच (Preliminary Inquiry) करती है और तय करती है कि यह एफआईआर में बदली जा सकती है या नहीं।
🔹उदाहरण:
✔ यदि किसी
व्यक्ति के घर से मोबाइल चोरी हो गया है और वह पुलिस स्टेशन जाकर इसकी जानकारी
देता है, तो यह शिकायत होगी।
✔ यदि कोई
व्यक्ति झगड़े या दुर्व्यवहार की शिकायत करता है, तो पुलिस
इस पर जाँच करके उचित कार्रवाई करेगी।
✅ एफआईआर (FIR) क्या होती है?
🔹 एफआईआर एक औपचारिक
दस्तावेज है, जिसमें किसी संज्ञेय अपराध (Cognizable
Offense) की सूचना पुलिस द्वारा दर्ज की जाती है।
🔹 एफआईआर
दर्ज होने के बाद पुलिस को जांच (Investigation) शुरू करने
का अधिकार मिल जाता है।
🔹 एफआईआर
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 173
के तहत दर्ज की जाती है।
🔹उदाहरण:
✔ यदि कोई
व्यक्ति पुलिस स्टेशन में हत्या, बलात्कार, चोरी या डकैती की रिपोर्ट दर्ज कराता है, तो पुलिस
इसे तुरंत एफआईआर के रूप में दर्ज करेगी।
✔ यदि कोई
व्यक्ति कहता है कि उसके घर में जबरन घुसकर हमला किया गया है, तो यह एफआईआर दर्ज करने योग्य अपराध होगा।
किन परिस्थितियों में शिकायत को एफआईआर में बदला जा सकता है
🔹भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 173 संज्ञेय
अपराधों में एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान
यदि कोई अपराध
संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) की
श्रेणी में आता है, तो पुलिस को शिकायत प्राप्त होने पर
एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।
✅ संज्ञेय अपराध (Cognizable
Offense) कौन से होते हैं?
🔹 वे अपराध जिनमें पुलिस
बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के ही गिरफ्तारी कर सकती है।
🔹 ये
गंभीर अपराध होते हैं, जिनमें समाज और व्यक्ति को गंभीर हानि
हो सकती है।
🔹उदाहरण:
✔ हत्या (भारतीय
न्याय संहिता (BNS) की धारा 103)
✔ बलात्कार (भारतीय
न्याय संहिता (BNS) की धारा 64)
✔ डकैती (भारतीय
न्याय संहिता (BNS) की धारा 310(2))
✔ चोरी (भारतीय
न्याय संहिता (BNS) की धारा 305)
✅ गैर-संज्ञेय
अपराध (Non-Cognizable Offense) कौन से होते हैं?
🔹 वे अपराध जिनमें पुलिस
बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के जांच या गिरफ्तारी नहीं कर सकती।
🔹 आमतौर
पर, ये कम गंभीर अपराध होते हैं।
🔹उदाहरण:
✔ गाली-गलौज (भारतीय
न्याय संहिता (BNS) की धारा 352)
✔ मारपीट
जिसमें गंभीर चोट न लगी हो (भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 115(2))
✔ अश्लील
कार्य और गाने (भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा
296 )
✅भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 174: गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए प्रक्रिया
🔹 यदि शिकायत
गैर-संज्ञेय अपराध से संबंधित है, तो पुलिस मजिस्ट्रेट की
अनुमति के बिना एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती।
🔹 ऐसे
मामलों में शिकायतकर्ता को पहले मजिस्ट्रेट के पास जाकर जांच के आदेश लेने होते
हैं।
यदि शिकायत के बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं होती तो क्या करें?
✅भारतीय
नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 173(4) मजिस्ट्रेट के माध्यम से एफआईआर दर्ज कराना
🔹 अगर पुलिस एफआईआर
दर्ज करने से इनकार कर देती है, तो शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट
के पास जाकर धारा 173(4) BNSS के तहत आवेदन कर सकता है।
🔹 मजिस्ट्रेट
पुलिस को एफआईआर दर्ज करने और जांच करने का आदेश दे सकता है।
🔹उदाहरण:
✔ किसी
व्यक्ति पर हमला हुआ, लेकिन पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना
कर रही है।
✔ ऐसे में,
पीड़ित मजिस्ट्रेट के पास आवेदन देकर एफआईआर दर्ज करने का आदेश मांग
सकता है।
⚖️ 4. भारतीय न्यायपालिका
के महत्वपूर्ण निर्णय
1. लालिता
कुमारी बनाम भारत सरकार (2013)
🔹 सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि यदि कोई शिकायत संज्ञेय अपराध से संबंधित है, तो
पुलिस को अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करनी होगी।
🔹 पुलिस
को जांच करने का अधिकार है, लेकिन एफआईआर दर्ज करने में देरी
नहीं की जा सकती।
2. सुब्रमण्यम
स्वामी बनाम भारत सरकार (2014)
🔹सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि एफआईआर दर्ज करना एक संवैधानिक प्रक्रिया है और पुलिस को इसे दर्ज करने से
इनकार नहीं करना चाहिए।
3. एस.सी.
अग्रवाल बनाम दिल्ली पुलिस (2015)
🔹दिल्ली हाई कोर्ट ने
कहा कि पुलिस को बिना उचित कारण एफआईआर दर्ज करने से मना करने का अधिकार नहीं है।
5. एफआईआर
दर्ज करने से इनकार पर शिकायतकर्ता के कानूनी विकल्प
✅ पुलिस अधीक्षक (SP)
या पुलिस कमिश्नर को शिकायत करें।
✅ राज्य
पुलिस शिकायत प्राधिकरण (State Police Complaint Authority) में
शिकायत दर्ज कराएं।
✅ मजिस्ट्रेट
के पास धारा 156(3) के तहत आवेदन करें।
✅ मानवाधिकार
आयोग (Human Rights Commission) या लोकायुक्त (Lokayukta)
में शिकायत करें।
निष्कर्ष
✅ हर शिकायत स्वतः एफआईआर
नहीं बनती, लेकिन यदि शिकायत में संज्ञेय अपराध का आरोप है,
तो पुलिस को एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होता है।
✅ यदि
पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना करती है, तो शिकायतकर्ता
मजिस्ट्रेट से आदेश ले सकता है।
✅ न्यायपालिका
ने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि पुलिस को बिना उचित कारण एफआईआर दर्ज करने से
इनकार नहीं करना चाहिए।
✅ शिकायतकर्ता
के पास एफआईआर दर्ज न होने पर कानूनी विकल्प मौजूद हैं, जैसे
कि उच्च अधिकारियों या मजिस्ट्रेट से संपर्क करना।
👉 "न्याय पाने का पहला कदम एफआईआर है, और इसे दर्ज करवाने का अधिकार हर नागरिक के पास है।"
अक्सर पूछे जाने
वाले प्रश्न (FAQs) – क्या किसी शिकायत को
एफआईआर में बदला जा सकता है?
1. क्या हर
शिकायत एफआईआर में बदली जा सकती है?
✅ नहीं, हर शिकायत को एफआईआर में बदला नहीं जा सकता।
✅ केवल
संज्ञेय अपराधों (Cognizable Offenses) की शिकायत को एफआईआर
में बदला जा सकता है।
✅ यदि
अपराध गैर-संज्ञेय (Non-Cognizable) है, तो पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती।
🔹उदाहरण:
✔ यदि
किसी व्यक्ति का मोबाइल चोरी हो गया है, तो यह संज्ञेय अपराध
है और इसे एफआईआर में बदला जा सकता है।
✔ यदि
किसी व्यक्ति ने मामूली गाली-गलौज की है, तो यह गैर-संज्ञेय
अपराध है और पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी।
2. एफआईआर
और शिकायत में क्या अंतर है?
✅ शिकायत (Complaint):
🔹 किसी
भी घटना की सूचना जो पुलिस को दी जाती है, उसे शिकायत कहते
हैं।
🔹 यह
मौखिक या लिखित हो सकती है और किसी भी अपराध से संबंधित हो सकती है।
✅ एफआईआर (FIR - प्रथम सूचना रिपोर्ट):
🔹 एफआईआर
केवल संज्ञेय अपराधों के लिए दर्ज की जाती है।
🔹 एफआईआर
दर्ज होते ही पुलिस को मामले की जांच करने और आरोपियों को गिरफ्तार करने का अधिकार
मिल जाता है।
🔹उदाहरण:
✔ यदि कोई
व्यक्ति पुलिस को सूचना देता है कि उसका झगड़ा हुआ था, तो यह
एक शिकायत हो सकती है।
✔ लेकिन
यदि किसी व्यक्ति के घर में चोरी हुई है, तो पुलिस इसे
एफआईआर के रूप में दर्ज करेगी।
3. एफआईआर
दर्ज करने के लिए कौन-सी धारा लागू होती है?
✅ एफआईआर दर्ज करने की
प्रक्रिया दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 154 के तहत आती है।
✅ गैर-संज्ञेय
अपराधों के लिए CrPC की धारा 155 लागू होती
है, जिसमें पुलिस मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना एफआईआर दर्ज
नहीं कर सकती।
⚖️महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🟢 लालिता
कुमारी बनाम भारत सरकार (2013) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा
कि यदि कोई संज्ञेय अपराध होता है, तो पुलिस को
अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करनी होगी।
4. किन
परिस्थितियों में शिकायत को एफआईआर में बदला जा सकता है?
✅ यदि शिकायत में संज्ञेय
अपराध का आरोप लगाया गया हो, तो पुलिस को इसे एफआईआर में
बदलना होगा।
✅ अगर
शिकायत गैर-संज्ञेय अपराध की है, तो पुलिस को मजिस्ट्रेट से
अनुमति लेनी होगी।
🔹उदाहरण:
✔ हत्या (BNS की धारा 103), बलात्कार (BNS की धारा 64), और डकैती (BNS की
धारा 310(2)) जैसे अपराधों में शिकायत तुरंत एफआईआर में बदल
जाएगी।
✔ लेकिन
झगड़ा (BNS की धारा 115(2)) या गाली-गलौज
(BNS की धारा 352) के मामलों में पहले
मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी।
5. यदि
पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना कर दे तो क्या किया जा सकता है?
✅ अगर पुलिस एफआईआर दर्ज
नहीं करती है, तो शिकायतकर्ता निम्नलिखित कानूनी कदम उठा
सकता है:
🔹 पुलिस
अधीक्षक (SP) या पुलिस कमिश्नर के पास शिकायत करें।
🔹 BNSS की धारा 173(4) के तहत मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करें
और एफआईआर दर्ज कराने का आदेश मांगें।
🔹 राज्य
पुलिस शिकायत प्राधिकरण (State Police Complaint Authority) में
शिकायत करें।
🔹 मानवाधिकार
आयोग (Human Rights Commission) या लोकायुक्त (Lokayukta)
में शिकायत करें।
महत्वपूर्ण न्यायिक
निर्णय:
🟢 सुब्रमण्यम
स्वामी बनाम भारत सरकार (2014) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा
कि एफआईआर दर्ज करना एक संवैधानिक प्रक्रिया है और पुलिस इसे दर्ज करने से
इनकार नहीं कर सकती।
6. क्या कोई
एफआईआर ऑनलाइन दर्ज की जा सकती है?
✅ हाँ, कुछ राज्यों में पुलिस विभाग ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करने की सुविधा देता है।
✅ लेकिन
आमतौर पर ऑनलाइन एफआईआर केवल चोरी, साइबर अपराध और गुमशुदगी
जैसी शिकायतों के लिए होती है।
🔹 उदाहरण:
✔ दिल्ली,
महाराष्ट्र और कर्नाटक में ऑनलाइन एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
✔ लेकिन
यदि मामला गंभीर अपराध (हत्या, बलात्कार) से जुड़ा है,
तो व्यक्तिगत रूप से पुलिस स्टेशन जाना अनिवार्य होगा।
7. क्या
एफआईआर दर्ज करने के बाद उसे रद्द किया जा सकता है?
✅ एफआईआर दर्ज करने के बाद
इसे स्वतः रद्द नहीं किया जा सकता, लेकिन निम्नलिखित
परिस्थितियों में इसे रद्द किया जा सकता है:
🔹 अगर
शिकायतकर्ता अदालत में एफआईआर वापस लेने का अनुरोध करता है।
🔹 अगर
पुलिस जांच में यह साबित हो जाए कि मामला झूठा था या पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं।
🔹 अगर
हाई कोर्ट BNSS की धारा 528 के तहत
एफआईआर को रद्द करने का आदेश देती है।
⚖️महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🟢 State of
Haryana v. Bhajan Lal (1992) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि
कोई एफआईआर पूरी तरह से झूठी है, तो उसे हाई कोर्ट
में चुनौती देकर रद्द कराया जा सकता है।
8. क्या कोई
एफआईआर गोपनीय रखी जा सकती है?
✅ एफआईआर आमतौर पर एक सार्वजनिक
दस्तावेज होती है और इसे पीड़ित या आरोपी को प्रदान किया जा सकता है।
✅ हालांकि,
यदि मामला राष्ट्रीय सुरक्षा, यौन उत्पीड़न,
या किसी संवेदनशील मुद्दे से जुड़ा है, तो
एफआईआर गोपनीय रखी जा सकती है।
⚖️महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🟢 Youth Bar Association
v. Union of India (2016) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर
की कॉपी पीड़ित, आरोपी, और
संबंधित पक्षों को दी जानी चाहिए, लेकिन कुछ मामलों में इसे
गोपनीय रखा जा सकता है।
9. क्या
झूठी एफआईआर दर्ज कराने पर कोई दंड है?
✅ हाँ, अगर कोई व्यक्ति झूठी एफआईआर दर्ज कराता है, तो उसके
खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
✅ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 217 के तहत
झूठी एफआईआर दर्ज कराने पर 6 महीने की जेल या जुर्माना या
दोनों हो सकते हैं।
🔹उदाहरण:
✔ यदि कोई
व्यक्ति झूठा आरोप लगाकर किसी निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराता है,
और बाद में यह अदालत में साबित हो जाता है कि आरोप गलत थे, तो शिकायतकर्ता को सजा हो सकती है।
10. क्या एफआईआर की कॉपी
प्राप्त करना अनिवार्य है?
✅ हाँ, पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के बाद शिकायतकर्ता को उसकी कॉपी मुफ्त में
देनी होती है।
✅ अगर
पुलिस एफआईआर की कॉपी देने से मना करे, तो शिकायतकर्ता
मजिस्ट्रेट या उच्च अधिकारियों से इसकी मांग कर सकता है।
⚖️महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय:
🟢 Lalita Kumari
v. Govt. of Uttar Pradesh (2013) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर
दर्ज होने के बाद उसकी कॉपी शिकायतकर्ता को दी जानी चाहिए।
विशेष तथ्य
✅ हर शिकायत एफआईआर में
नहीं बदली जा सकती, लेकिन संज्ञेय अपराधों में एफआईआर दर्ज
करना अनिवार्य होता है।
✅ अगर
पुलिस एफआईआर दर्ज करने से मना करे, तो शिकायतकर्ता
मजिस्ट्रेट से आदेश ले सकता है।
✅ न्यायपालिका
ने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि पुलिस को बिना उचित कारण एफआईआर दर्ज करने से
इनकार नहीं करना चाहिए।
👉 "कानून हर नागरिक को न्याय पाने का अधिकार देता है, और एफआईआर इसकी पहली कड़ी है।"