मुख्य बिन्दु
- सुप्रीम कोर्ट राज परिवारों के
संपत्ति विवादों में अदालतों के दखल पर विचार कर रहा है,
विशेष रूप से अनुच्छेद 363 के संदर्भ
में।
- यह मामला जयपुर राजघराने से
संबंधित है, जहां हाईकोर्ट के
फैसले को चुनौती दी गई है।
- अनुच्छेद 363
पूर्व-संवैधानिक समझौतों से उत्पन्न विवादों में अदालतों की
हस्तक्षेप पर रोक लगाता है, जिससे यह मुद्दा जटिल है।
- सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस
जारी किया है, लेकिन अभी तक हाईकोर्ट
के फैसले पर कोई रोक नहीं लगाई गई है।
पृष्ठभूमि
सुप्रीम
कोर्ट वर्तमान में यह तय करने पर विचार कर रहा है कि क्या अदालतें राज परिवारों,
विशेष रूप से पूर्व रियासतों, की संपत्ति
विवादों में हस्तक्षेप कर सकती हैं। यह मामला मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 363
से संबंधित है, जो पूर्व-संवैधानिक समझौतों से
उत्पन्न विवादों में अदालतों की अधिकारिता को सीमित करता है।
केस विवरण
यह
मामला जयपुर राजघराने से जुड़ा है, जहां राजमाता
पद्मिनी देवी, उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी, और सवाई पद्मनाभ सिंह ने राजस्थान हाईकोर्ट के 17 अप्रैल 2025 के फैसले को चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने
कहा था कि अनुच्छेद 363 के तहत नागरिक अदालतें इन विवादों की
सुनवाई नहीं कर सकतीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की और सरकार को नोटिस जारी
किया, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले पर अभी तक कोई रोक नहीं लगाई
गई है।
कानूनी संदर्भ
अनुच्छेद
363
स्पष्ट रूप से कहता है कि सुप्रीम कोर्ट या अन्य कोई अदालत, संविधान लागू होने से पहले रियासतों के शासकों और सरकार के बीच हुए
समझौतों से उत्पन्न विवादों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। यह प्रावधान जयपुर टाउन
हॉल और अन्य संपत्तियों जैसे मामलों में महत्वपूर्ण है, जहां
राजघराने का दावा है कि ये संपत्तियां उनकी हैं, जबकि सरकार
इन्हें सरकारी संपत्ति मानती है।
परिचय
सुप्रीम
कोर्ट भारत के राज परिवारों, विशेष रूप से पूर्व
रियासतों, की संपत्ति विवादों में अदालतों के हस्तक्षेप पर
विचार कर रहा है। यह मामला संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत
जटिल कानूनी प्रावधानों से जुड़ा है, जो पूर्व-संवैधानिक
समझौतों से उत्पन्न विवादों में अदालतों की अधिकारिता को सीमित करता है। हम इस
मुद्दे के सभी पहलुओं, संबंधित मामले, कानूनी
संदर्भ, और हालिया विकासों का विश्लेषण करेंगे।
मामले की पृष्ठभूमि
यह
मामला जयपुर राजघराने से संबंधित है, जहां राजमाता
पद्मिनी देवी, उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी, और सवाई पद्मनाभ सिंह ने राजस्थान हाईकोर्ट के 17 अप्रैल 2025 के फैसले को चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने
फैसला दिया था कि अनुच्छेद 363 के तहत नागरिक अदालतें राज
परिवारों की संपत्ति विवादों की सुनवाई नहीं कर सकतीं, क्योंकि
ये विवाद पूर्व-संवैधानिक समझौतों से उत्पन्न होते हैं।
सुप्रीम
कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 2 जून 2025 को हुई, जिसमें न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा
और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सुनवाई की। वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे
ने याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया, जबकि अतिरिक्त महाधिवक्ता
शिव मंगल शर्मा ने राजस्थान सरकार की ओर से पैरवी की।
विशिष्ट विवाद: जयपुर टाउन हॉल और अन्य संपत्तियां
विवाद
मुख्य रूप से जयपुर के टाउन हॉल (पुरानी विधान सभा) और अन्य चार मुख्य इमारतों से
संबंधित है। राजघराने का दावा है कि ये संपत्तियां उनकी हैं,
जबकि राजस्थान हाईकोर्ट ने इन्हें सरकारी संपत्ति माना है। यह विवाद
अनुच्छेद 363 के तहत आता है, क्योंकि
ये संपत्तियां संभवतः पूर्व-संवैधानिक समझौतों से जुड़ी हैं।
कानूनी ढांचा: अनुच्छेद 363
अनुच्छेद
363
संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो
कहता है:
- "इस संविधान में कुछ भी लिखा हो,
लेकिन अनुच्छेद 143 के प्रावधानों के
अधीन, न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही कोई अन्य अदालत,
किसी ऐसे विवाद में अधिकारिता रखेगी जो किसी संधि, समझौते, वचन, संलग्नक,
सनद या अन्य समान लिखत से उत्पन्न हो, जो
संविधान लागू होने से पहले किसी भारतीय रियासत के शासक और सरकार के बीच हुआ
हो और जो लागू होने के बाद भी जारी रहा हो।"
इसका
मतलब है कि यदि कोई संपत्ति विवाद पूर्व-संवैधानिक समझौतों से जुड़ा है,
तो अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। यह प्रावधान राज परिवारों की
संपत्ति विवादों में अदालतों की भूमिका को सीमित करता है, जिससे
यह मामला कानूनी रूप से जटिल हो जाता है।
नव गतिविधि
2
जून 2025 को हुई सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया, लेकिन
हाईकोर्ट के 17 अप्रैल 2025 के आदेश पर
कोई रोक नहीं लगाई। इसका मतलब है कि फिलहाल हाईकोर्ट का फैसला ही लागू रहेगा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि स्थिति को पहले जैसा बनाए रखने या रोक लगाने की
याचिका को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
समाचार रिपोर्टों का विश्लेषण
विभिन्न
समाचार स्रोतों, जैसे जागरण, अमर उजाला, और लाइव लॉ, ने इस विकास की
पुष्टि की है। इन रिपोर्टों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट यह तय
करने पर राजी हो गया है कि क्या अनुच्छेद 363 अदालतों को इन
विवादों की सुनवाई करने से रोकता है।
तालिका: मामले का मुख्य विवरण
विवरण |
जानकारी |
मामला |
जयपुर
राजघराने की संपत्ति विवाद (टाउन हॉल आदि) |
याचिकाकर्ता |
राजमाता
पद्मिनी देवी, डीया कुमारी, सवाई पद्मनाभ सिंह |
प्रतिवादी |
राजस्थान
सरकार |
हाईकोर्ट
का फैसला |
17
अप्रैल 2025, नागरिक अदालतें सुनवाई नहीं कर
सकतीं |
सुप्रीम
कोर्ट सुनवाई |
2
जून 2025 |
बेंच |
न्यायमूर्ति
प्रशांत कुमार मिश्रा, ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह |
वरिष्ठ
अधिवक्ता |
हरीश
साल्वे (याचिकाकर्ता) |
अतिरिक्त
महाधिवक्ता |
शिव
मंगल शर्मा (राजस्थान सरकार) |
सार्वजनिक और कानूनी निहितार्थ
यह
मामला न केवल जयपुर राजघराने बल्कि अन्य पूर्व रियासतों के लिए भी महत्वपूर्ण है,
क्योंकि कई राज परिवार अपनी संपत्तियों पर दावे कर रहे हैं। यदि
सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 363 की व्याख्या में ढील देता है,
तो यह भविष्य में ऐसे विवादों की सुनवाई के लिए नया रास्ता खोल सकता
है। हालांकि, यदि कोर्ट हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखता है,
तो राज परिवारों के लिए अपनी संपत्तियों पर दावे करना और अधिक कठिन
हो सकता है।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट का यह विचारण राज परिवारों की संपत्ति विवादों में अदालतों की भूमिका को
परिभाषित करेगा। वर्तमान में, यह मामला जयपुर
राजघराने से संबंधित है, लेकिन इसका प्रभाव व्यापक हो सकता
है। अनुच्छेद 363 की जटिलता और पूर्व-संवैधानिक समझौतों का
ऐतिहासिक संदर्भ इस मुद्दे को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाता है।
Key
Citations
- Jagran article on Supreme Court investigating royal
property disputes
- Amar Ujala article on Supreme Court examining Article 363
- Live Law article on Supreme Court considering
pre-constitutional agreements