संघीय व्यवस्था (Federal System) एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शक्ति को केंद्र सरकार और राज्यों या प्रांतों की सरकारों के बीच बांटा जाता है। यह व्यवस्था कई देशों, जैसे भारत, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में अपनाई गई है। इस जवाब में, हम पहले यह समझेंगे कि संघीय व्यवस्था कहां से आई, और फिर भारत में यह कैसे लागू है,
संघीय व्यवस्था कहां से आई?
संघीय व्यवस्था का विचार प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय
तक विभिन्न सभ्यताओं, दार्शनिकों और राजनीतिक जरूरतों से विकसित हुआ है। इसे निम्नलिखित बिंदुओं
से समझते हैं:
1. प्राचीन सभ्यताओं में शुरुआत:
o प्राचीन ग्रीस: ग्रीस में छोटे-छोटे शहर-राज्य (जैसे एथेंस,
स्पार्टा) स्वतंत्र रूप से शासन करते थे,
लेकिन युद्ध या व्यापार जैसे बड़े मुद्दों के लिए एक साथ
मिलकर काम करते थे। इसे 'लीग' कहा
जाता था,
जैसे डेलियन लीग। यह संघीय व्यवस्था का शुरुआती रूप था।
o प्राचीन भारत: भारत में भी वैदिक काल में गणराज्य (जैसे लिच्छवि,
वज्जि) थे, जहां कई समुदाय मिलकर शासन चलाते थे। हालांकि यह पूरी
तरह संघीय व्यवस्था नहीं थी, लेकिन इसमें शक्ति का बंटवारा देखा जा सकता है।
o इन प्राचीन व्यवस्थाओं में स्थानीय स्वायत्तता और
सामूहिक सहयोग का विचार बाद में संघीय व्यवस्था का आधार बना।
2. आधुनिक संघीय व्यवस्था का जन्म:
o आधुनिक संघीय व्यवस्था का सबसे स्पष्ट उदाहरण
अमेरिका
से मिलता है। 18वीं शताब्दी में, जब 13 अमेरिकी कॉलोनियां ब्रिटिश शासन से आजाद हुईं,
तो वे एकजुट होना चाहती थीं,
लेकिन अपनी स्वतंत्रता भी बनाए रखना चाहती थीं। इसलिए,
1787 में अमेरिकी
संविधान बनाया गया, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा किया गया। यह दुनिया
की पहली औपचारिक संघीय व्यवस्था थी।
o इस मॉडल ने अन्य देशों, जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और भारत, को अपनी संघीय व्यवस्था बनाने के लिए प्रेरित किया।
3. दार्शनिक विचारों का योगदान:
o यूरोपीय दार्शनिकों ने संघीय व्यवस्था के विचार को मजबूत
किया। जैसे:
§ जॉन लॉक: उन्होंने शक्ति के बंटवारे और सरकार की सीमित शक्ति की
वकालत की।
§ मॉन्टेस्क्यू: उन्होंने शक्ति के विकेंद्रीकरण और अलग-अलग संस्थानों
में बंटवारे का विचार दिया।
§ जीन-जैक्स रूसो: उनके सामाजिक अनुबंध (Social Contract) के विचार ने यह बताया कि सरकार और लोगों के बीच एक
समझौता होना चाहिए, जो संघीय व्यवस्था का आधार बना।
o इन विचारों ने यह सुनिश्चित किया कि शक्ति एक जगह
केंद्रित न हो, ताकि
तानाशाही से बचा जा सके।
4. औपनिवेशिक अनुभव:
o कई देशों में औपनिवेशिक शासन के बाद स्वतंत्रता मिलने पर
विभिन्न क्षेत्रों को एकजुट करने की जरूरत पड़ी। संघीय व्यवस्था इस जरूरत को पूरा
करने का एक तरीका थी, क्योंकि यह स्थानीय स्वायत्तता और राष्ट्रीय एकता दोनों को बनाए रखती है।
o उदाहरण के लिए, कनाडा में ब्रिटिश उपनिवेशों को एकजुट करने के लिए 1867
में संघीय व्यवस्था अपनाई गई।
भारत में संघीय व्यवस्था कहां से आई?
भारत में संघीय व्यवस्था का विकास ऐतिहासिक,
सामाजिक और राजनीतिक कारकों का परिणाम है। इसे
निम्नलिखित बिंदुओं में समझते हैं:
1. ब्रिटिश शासन का प्रभाव:
o ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कई रियासतें और क्षेत्र
थे,
जिनका प्रशासन अलग-अलग था। 1935
का भारत सरकार
अधिनियम (Government of India Act) पहला दस्तावेज था, जिसमें केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का बंटवारा
प्रस्तावित किया गया। हालांकि यह पूरी तरह लागू नहीं हुआ,
लेकिन इसने भारत में संघीय व्यवस्था की नींव रखी।
o इस अधिनियम ने भारतीय नेताओं को यह विचार दिया कि एक
विशाल और विविध देश को चलाने के लिए संघीय ढांचा उपयुक्त हो सकता है।
2. भारत की विविधता:
o भारत में अलग-अलग भाषाएं (हिंदी,
तमिल, बंगाली आदि), धर्म, संस्कृतियां और परंपराएं हैं। स्वतंत्रता के समय,
यह जरूरी था कि सभी क्षेत्रों को उनकी पहचान और
स्वायत्तता मिले, लेकिन देश एकजुट रहे। इसलिए, संविधान निर्माताओं ने संघीय व्यवस्था को चुना।
o डॉ. बी.आर. आंबेडकर और संविधान सभा के अन्य सदस्यों ने अमेरिका,
कनाडा, और अन्य देशों की संघीय व्यवस्थाओं का अध्ययन किया और
भारत की जरूरतों के हिसाब से इसे ढाला।
3. भारतीय संविधान:
o 26
जनवरी 1950 को लागू हुए भारतीय संविधान ने औपचारिक रूप से संघीय व्यवस्था को अपनाया। संविधान की
सातवीं अनुसूची
में केंद्र, राज्य और समवर्ती सूची के जरिए शक्तियों का बंटवारा किया
गया:
§ केंद्र सूची: रक्षा, विदेश नीति, रेलवे, मुद्रा आदि।
§ राज्य सूची: पुलिस, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि।
§ समवर्ती सूची: आपराधिक कानून, विवाह, तलाक आदि, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों काम करते हैं।
o भारत की संघीय व्यवस्था को "संघीय ढांचे के साथ
एकात्मक विशेषताओं" वाला कहा जाता है, क्योंकि केंद्र सरकार को कुछ मामलों में ज्यादा शक्तियां
दी गई हैं।
4. अन्य देशों से प्रेरणा:
o भारत ने अपनी संघीय व्यवस्था को मुख्य रूप से
अमेरिका
(लिखित संविधान और शक्तियों का
बंटवारा) और कनाडा (केंद्र की मजबूत भूमिका) से प्रेरणा ली।
o इसके अलावा, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया के संविधानों का भी अध्ययन किया
गया।
भारत में संघीय व्यवस्था कैसी है?
भारत की संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच
शक्तियों का बंटवारा तो है, लेकिन यह पूरी तरह समान नहीं है। इसे "संघीय ढांचे के साथ एकात्मक
विशेषताएं" कहा जाता है, क्योंकि केंद्र सरकार को कुछ ज्यादा शक्तियां दी गई हैं।
इसे सरल भाषा में निम्नलिखित बिंदुओं से समझते हैं:
1. शक्तियों का बंटवारा:
o केंद्र सरकार: राष्ट्रीय स्तर के बड़े मुद्दों को संभालती है,
जैसे:
§ रक्षा (सेना, नौसेना, वायुसेना)
§ विदेश नीति (अन्य देशों के साथ संबंध)
§ रेलवे, डाक, बैंकिंग, मुद्रा आदि।
o राज्य सरकारें: स्थानीय स्तर के मुद्दों को देखती हैं,
जैसे:
§ पुलिस और कानून-व्यवस्था
§ शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि
§ स्थानीय प्रशासन।
o समवर्ती सूची: कुछ मुद्दों पर केंद्र और राज्य दोनों मिलकर काम करते
हैं,
जैसे आपराधिक कानून, विवाह, तलाक।
2. केंद्र की मजबूत भूमिका:
o भारत की संघीय व्यवस्था में केंद्र सरकार को कुछ ज्यादा
शक्तियां दी गई हैं, जो इसे एकात्मक (Unitary) विशेषताएं देती हैं। उदाहरण:
§ आपातकाल: आपातकाल के दौरान केंद्र सरकार राज्यों पर पूरा नियंत्रण
ले सकती है।
§ राज्यपाल की नियुक्ति: राज्यपाल को केंद्र सरकार नियुक्त करती है,
और वह कई बार केंद्र के हितों को लागू करता है।
§ वित्तीय नियंत्रण: केंद्र सरकार वित्त आयोग के जरिए राज्यों को धन देती है,
जिससे कई राज्य केंद्र पर निर्भर रहते हैं।
§ कानून बनाने की शक्ति: अगर केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव हो,
तो केंद्र का कानून मान्य होता है।
3. स्वतंत्र न्यायपालिका:
o भारत में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय केंद्र और
राज्यों के बीच विवादों को सुलझाते हैं। ये संविधान की रक्षा करते हैं और
सुनिश्चित करते हैं कि दोनों अपने अधिकार क्षेत्र में रहें।
4. द्विसदनीय व्यवस्था:
o भारत की संसद में दो सदन हैं:
§ लोकसभा: यह राष्ट्रीय हितों का प्रतिनिधित्व करती है।
§ राज्यसभा: यह राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है,
जिससे राज्यों की आवाज केंद्र तक पहुंचती है।
5. विविधता का सम्मान:
o भारत की संघीय व्यवस्था इस तरह बनाई गई है कि यह देश की
विविधता (भाषा, संस्कृति,
धर्म) को सम्मान देती है। उदाहरण के लिए,
तमिलनाडु अपनी भाषा और संस्कृति के हिसाब से शिक्षा नीति बना सकता है,
जबकि पंजाब अपनी जरूरतों के हिसाब से कृषि नीति बना सकता
है।
उदाहरण से समझें
- अमेरिका
से प्रेरणा: भारत ने अमेरिका से यह विचार लिया कि केंद्र और
राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा होना चाहिए। जैसे,
अमेरिका में रक्षा केंद्र
के पास है, और शिक्षा राज्यों के पास। भारत में भी ऐसा ही है।
- भारत में व्यवहारिक उदाहरण: मान लीजिए, केंद्र सरकार एक नई शिक्षा नीति (जैसे NEP 2020) बनाती है। यह समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए राज्य इसे लागू कर सकते हैं, लेकिन अपनी जरूरतों के हिसाब से बदलाव भी कर सकते हैं। लेकिन अगर केंद्र कोई रक्षा नीति बनाता है, तो राज्य इसमें दखल नहीं दे सकते।
भारत में संघीय व्यवस्था की विशेषताएं
1. लिखित संविधान: भारत का संविधान केंद्र और राज्यों के अधिकारों को
स्पष्ट करता है।
2. शक्ति का बंटवारा: सातवीं अनुसूची के जरिए केंद्र,
राज्य और समवर्ती सूची बनाई गई है।
3. केंद्र का दबदबा: आपातकाल, वित्तीय नियंत्रण और कानून बनाने में केंद्र की
प्राथमिकता इसे एकात्मक बनाती है।
4. स्वायत्तता और एकता का संतुलन:
राज्यों को अपनी नीतियां बनाने की आजादी है,
लेकिन राष्ट्रीय एकता के लिए केंद्र मजबूत है।
निष्कर्ष
संघीय व्यवस्था की उत्पत्ति प्राचीन सभ्यताओं के सामूहिक
शासन,
यूरोपीय दार्शनिकों के विचारों और आधुनिक देशों (विशेष
रूप से अमेरिका) के अनुभवों से हुई। भारत में यह व्यवस्था ब्रिटिश शासन (1935
का अधिनियम), देश की विविधता और संविधान सभा के प्रयासों से अपनाई गई।
भारत की संघीय व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बंटवारा है,
लेकिन केंद्र को कुछ ज्यादा शक्तियां दी गई हैं,
जिससे इसे "संघीय ढांचे के साथ एकात्मक
विशेषताओं" वाला कहा जाता है। यह व्यवस्था भारत जैसे विविध देश को एकजुट रखने
और स्थानीय जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
FAQs
Q
1: भारत में संघीय व्यवस्था की प्रेरणा किन स्रोतों से मिली और यह
व्यवस्था क्यों अपनाई गई?
उत्तर:
भारत में संघीय व्यवस्था की प्रेरणा मुख्य रूप से तीन स्रोतों से
मिली:
1. ब्रिटिश
शासनकाल का अनुभव – विशेष रूप से 1935
का भारत सरकार अधिनियम, जिसमें केंद्र और
प्रांतों के बीच शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा प्रस्तावित किया गया था।
2. अंतरराष्ट्रीय
मॉडल
– जैसे अमेरिका (स्पष्ट शक्तिविभाजन, लिखित
संविधान) और कनाडा (मजबूत केंद्र, विविधता में एकता)।
संविधान सभा ने इन मॉडलों का अध्ययन कर भारतीय जरूरतों के अनुसार संघीय ढांचा
अपनाया।
3. भारत
की सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता – देश की
विभिन्न भाषाएं, धर्म, क्षेत्रीय पहचान
और परंपराएं ऐसी शासन व्यवस्था की मांग करती थीं जिसमें राज्यों को पर्याप्त
स्वायत्तता मिले, लेकिन देश एकजुट भी रहे।
इसलिए,
संविधान निर्माताओं ने एक ऐसा संघीय ढांचा बनाया, जो स्थानीय स्वायत्तता और राष्ट्रीय एकता के बीच संतुलन
बनाए रख सके।
Q
2: भारत की संघीय व्यवस्था को “संघीय ढांचे के साथ एकात्मक
विशेषताओं” वाला क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
भारत को "संघीय ढांचे के साथ एकात्मक विशेषताओं" (Federal
system with Unitary Features) वाला इसलिए कहा जाता है क्योंकि:
- शक्तियों का बंटवारा
तो केंद्र और राज्यों के बीच है, लेकिन
कई मामलों में केंद्र सरकार को अधिक शक्तियां दी गई हैं।
- आपातकाल की स्थिति में
केंद्र राज्य की सभी शक्तियाँ अपने हाथ में ले सकता है।
- राज्यपालों की नियुक्ति केंद्र
द्वारा होती है, और वे कभी-कभी केंद्र
की इच्छाओं के अनुसार कार्य करते हैं।
- संविधान में संशोधन और कानून
निर्माण में भी केंद्र को वरीयता प्राप्त है,
विशेषकर समवर्ती सूची के मामलों में।
- वित्तीय नियंत्रण
में भी केंद्र का प्रभुत्व है, जैसे
राज्यों को मिलने वाला धन केंद्र सरकार तय करती है।
इसलिए,
यद्यपि भारत में संघीय तत्व हैं, परंतु राजनीतिक
और प्रशासनिक रूप से केंद्र को एक मजबूत स्थिति दी गई है, जो इसे संघीय और एकात्मक दोनों का संयोजन बनाती है।