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मई 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में नए
अधिवक्ता कक्षों और बहु-स्तरीय पार्किंग सुविधा के उद्घाटन के अवसर पर आयोजित एक
समारोह में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बी.आर. गवई ने संविधान की
महत्वपूर्ण भूमिका पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान देश
को शांति और संकट दोनों समय में एकजुट और मजबूत रखने में कामयाब रहा है। इस लेख
में हम उनके इस कथन को सरल और विस्तृत रूप से समझेगे।
संविधान की ताकत और एकता
सीजेआई
गवई ने अपने भाषण में बताया कि जब भारत का संविधान बनाया जा रहा था,
तब कई लोग इसकी संरचना को लेकर आलोचना करते थे। कुछ लोगों का मानना
था कि संविधान बहुत अधिक संघीय (फेडरल) है, यानी यह राज्यों को ज्यादा शक्ति देता है। वहीं, कुछ
लोग इसे बहुत अधिक एकात्मक (यूनिटरी) मानते थे,
यानी केंद्र सरकार को ज्यादा शक्ति देता है। इन आलोचनाओं का जवाब
देते हुए संविधान सभा के प्रमुख सदस्य डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा था कि
संविधान न तो पूरी तरह संघीय है और न ही पूरी तरह एकात्मक। यह दोनों का संतुलन
बनाता है। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि यह भारत को शांति और युद्ध दोनों
परिस्थितियों में एकजुट और मजबूत रखे।
सीजेआई
गवई ने इस बात पर जोर दिया कि आजादी के बाद से भारत ने कई चुनौतियों का सामना किया
है,
जैसे सामाजिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक संकट।
फिर भी, भारत एकजुट और प्रगतिशील रहा है। उन्होंने पड़ोसी
देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि कई देश आजादी के बाद अस्थिरता का शिकार हुए,
लेकिन भारत ने संविधान की बदौलत स्थिरता और विकास की राह चुनी। इसका
श्रेय संविधान के मजबूत ढांचे को जाता है, जो देश को एकसूत्र
में बांधे रखता है।
संविधान का संतुलित ढांचा
भारत
का संविधान एक अनूठा दस्तावेज है। यह केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन
बनाता है। उदाहरण के लिए:
- केंद्र की शक्तियां:
राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, और राष्ट्रीय महत्व के मामलों में केंद्र सरकार को मजबूत अधिकार दिए
गए हैं, ताकि देश एकजुट रहे।
- राज्यों की स्वायत्तता:
शिक्षा, स्वास्थ्य, और स्थानीय प्रशासन जैसे मामलों में राज्यों को स्वतंत्रता दी गई है,
ताकि वे अपनी जरूरतों के अनुसार काम कर सकें।
यह
संतुलन भारत को शांति के समय में लचीलापन और संकट के समय में एकता प्रदान करता है।
उदाहरण के लिए, जब देश में आपातकाल या प्राकृतिक आपदा
जैसी स्थिति आती है, तो संविधान केंद्र को विशेष शक्तियां
देता है ताकि वह तेजी से कार्रवाई कर सके। वहीं, सामान्य समय
में राज्य अपने स्तर पर विकास और प्रशासन का काम करते हैं।
संकट में भारत की एकता
सीजेआई
गवई ने कहा कि जब भी भारत में कोई बड़ा संकट आया, जैसे
प्राकृतिक आपदा, युद्ध, या सामाजिक
अशांति, देश ने एकजुट होकर उसका सामना किया। इसका कारण
संविधान की वह विशेषता है जो सभी नागरिकों को समान अधिकार देती है और देश को एकजुट
रखने के लिए मजबूत संस्थानों (जैसे संसद, न्यायपालिका,
और कार्यपालिका) का निर्माण करती है। उदाहरण के लिए:
- 1962 का भारत-चीन युद्ध,
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, या
कोविड-19 महामारी जैसे
संकटों में भारत ने एकजुट होकर चुनौतियों का सामना किया।
- संविधान ने सुनिश्चित किया कि इन
संकटों के दौरान केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें,
जिससे देश की एकता और स्थिरता बनी रहे।
न्याय तक पहुंच: सभी की जिम्मेदारी
सीजेआई
गवई ने यह भी कहा कि संविधान सिर्फ एक दस्तावेज नहीं है,
बल्कि यह देश के हर नागरिक को न्याय और समानता का अधिकार देता है।
उन्होंने जोर दिया कि:
- न्यायपालिका
(कोर्ट), कार्यपालिका (सरकारी प्रशासन), और विधायिका (संसद और विधानसभाएं) की यह जिम्मेदारी है कि वे देश के हर नागरिक तक
न्याय पहुंचाएं।
- खासकर समाज के सबसे कमजोर और
जरूरतमंद लोगों तक न्याय पहुंचाना सभी का मौलिक कर्तव्य है।
उदाहरण
के लिए,
अगर कोई गरीब व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए कोर्ट में जाता है,
तो न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसे समय पर और
निष्पक्ष न्याय मिले। इसी तरह, सरकार को ऐसी नीतियां बनानी
होंगी जो हर नागरिक को समान अवसर प्रदान करें।
संविधान की प्रासंगिकता आज
सीजेआई
गवई का यह बयान आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है। भारत आज भी कई चुनौतियों का
सामना कर रहा है, जैसे सामाजिक असमानता,
आर्थिक संकट, और भू-राजनीतिक तनाव। संविधान इन
सभी चुनौतियों से निपटने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। यह:
- नागरिकों के अधिकारों की रक्षा
करता है, जैसे बोलने की आजादी, समानता, और शिक्षा का अधिकार।
- संस्थाओं को मजबूत
करता है, ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप
से काम कर सकें।
- विविधता में एकता
को बढ़ावा देता है, जिससे भारत की
सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता बनी रहे।
निष्कर्ष
सीजेआई
जस्टिस बी.आर. गवई ने अपने भाषण में संविधान की ताकत को रेखांकित किया और बताया कि
यह भारत को शांति और संकट दोनों समय में एकजुट और मजबूत बनाए रखता है। संविधान का
संतुलित ढांचा, केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का
बंटवारा, और सभी नागरिकों को न्याय देने की प्रतिबद्धता इसे
एक अनूठा दस्तावेज बनाती है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका की साझा जिम्मेदारी है
कि वे देश के हर नागरिक तक न्याय और समानता पहुंचाएं। इस तरह, संविधान न केवल भारत की एकता का प्रतीक है, बल्कि यह
देश के विकास और स्थिरता का आधार भी है
FAQs
Q.
1: भारत के संविधान को शांति और संकट दोनों समय में एकजुट रखने वाला
दस्तावेज क्यों कहा गया है?
भारत
का संविधान केवल कानूनों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह
एक ऐसा दस्तावेज है जो देश को हर परिस्थिति—चाहे वह सामान्य हो या संकटपूर्ण—में
एकजुट और स्थिर बनाए रखता है। सीजेआई जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि जब संविधान
बनाया जा रहा था, तब इस पर कई तरह की आलोचनाएँ हुईं। कुछ
लोगों ने इसे बहुत अधिक केंद्रित (Unitary) कहा तो कुछ ने
बहुत अधिक संघीय (Federal)। लेकिन डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने
स्पष्ट किया था कि यह संविधान दोनों के बीच संतुलन बनाता है।
इस
संतुलन के कारण:
- केंद्र सरकार
को राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, और आपातकाल जैसी परिस्थितियों में विशेष शक्तियाँ मिलती हैं।
- राज्य सरकारों
को शिक्षा, स्वास्थ्य, और
स्थानीय प्रशासन जैसे क्षेत्रों में स्वायत्तता दी गई है।
इस
संरचना ने यह सुनिश्चित किया कि चाहे युद्ध हो, प्राकृतिक
आपदा हो या महामारी, केंद्र और राज्य मिलकर काम करें। उदाहरण
के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान
पूरे देश ने एकजुट होकर इसका सामना किया—यह संविधान की ही देन है। इसीलिए इसे संकट
और शांति दोनों समय में देश को जोड़े रखने वाला शक्तिशाली दस्तावेज माना जाता है।
Q.
2: संविधान सभी नागरिकों तक न्याय और समानता कैसे सुनिश्चित करता है?
सीजेआई
गवई ने अपने भाषण में ज़ोर दिया कि भारत का संविधान सिर्फ सत्ता के संतुलन तक
सीमित नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक को न्याय, समानता और गरिमा का जीवन जीने का अधिकार देता है। संविधान का मूल उद्देश्य
है कि कोई भी नागरिक—चाहे वह अमीर हो या गरीब, किसी भी धर्म
या जाति से हो—उसके साथ समान व्यवहार किया जाए और उसे न्याय तक सुलभ पहुँच मिले।
संविधान
के कुछ प्रमुख प्रावधान जो इसे सुनिश्चित करते हैं:
- अनुच्छेद 14–18:
समानता का अधिकार देता है, जिसमें कानून
के सामने समानता और भेदभाव का निषेध शामिल है।
- अनुच्छेद 21:
प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
देता है।
- न्यायपालिका की भूमिका:
कोर्ट यह सुनिश्चित करती है कि किसी के साथ अन्याय न हो। अगर
कोई व्यक्ति न्याय के लिए कोर्ट में जाता है, तो
न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि उसे निष्पक्ष और समय पर न्याय मिले।
- सरकार की जिम्मेदारी:
सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी होती हैं, जो
समाज के हर वर्ग तक लाभ पहुँचाएँ, खासकर कमजोर और वंचित
वर्गों तक।
संविधान
की यह विशेषता ही भारत को लोकतांत्रिक और समावेशी राष्ट्र बनाती है,
जहाँ हर व्यक्ति की आवाज़ सुनी जाती है और उसके अधिकारों की रक्षा
की जाती है।