संसदीय
व्यवस्था (Parliamentary System) एक ऐसी शासन
प्रणाली है जिसमें सरकार का गठन और संचालन संसद (Parliament) के प्रति जवाबदेह होता है। इसे सरल भाषा में समझने के लिए, यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि (सांसद) मिलकर
सरकार बनाते हैं और देश के कानून बनाते हैं। भारत जैसे देश में यह व्यवस्था लागू
है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
संसदीय व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ:
1. संसद
की सर्वोच्चता:
o संसद
देश का सर्वोच्च विधायी निकाय होती है, जो कानून
बनाती है।
o यह
जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से मिलकर बनती है, जैसे
भारत में लोकसभा और राज्यसभा।
o सरकार
संसद के प्रति जवाबदेह होती है, यानी उसे संसद के
सामने अपने कामों का हिसाब देना पड़ता है।
2. कार्यपालिका
और विधायिका का घनिष्ठ संबंध:
o संसदीय
व्यवस्था में कार्यपालिका (सरकार) और विधायिका (संसद) एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
o सरकार
का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति (प्रधानमंत्री) संसद का सदस्य होता है और उसे संसद
में बहुमत का समर्थन चाहिए।
o उदाहरण:
भारत में प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य होता है और उसे लोकसभा में बहुमत का
विश्वास हासिल करना होता है।
3. नाममात्र
और वास्तविक कार्यपालिका:
o संसदीय
व्यवस्था में दो प्रकार के कार्यकारी प्रमुख होते हैं:
§ नाममात्र
प्रमुख: जैसे भारत में राष्ट्रपति, जो औपचारिक रूप से देश का प्रमुख होता है, लेकिन
वास्तविक शक्ति का प्रयोग नहीं करता।
§ वास्तविक
प्रमुख: जैसे प्रधानमंत्री, जो सरकार का नेतृत्व करता है और वास्तविक शक्ति का उपयोग करता है।
o राष्ट्रपति
प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करता है।
4. मंत्रिपरिषद
की सामूहिक जिम्मेदारी:
o सरकार
में मंत्रिपरिषद (कैबिनेट) होती है, जिसमें
विभिन्न मंत्री शामिल होते हैं।
o यह
मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से संसद के प्रति जवाबदेह होती है।
o अगर
संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए,
तो पूरी सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है।
5. दोहरी
सदस्यता:
o संसदीय
व्यवस्था में सरकार के मंत्री संसद के सदस्य भी होते हैं।
o वे
संसद में कानून बनाने में हिस्सा लेते हैं और साथ ही सरकार के प्रशासनिक काम भी
देखते हैं।
6. विपक्ष
की भूमिका:
o संसदीय
व्यवस्था में विपक्ष (जो सरकार में शामिल नहीं है) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता
है।
o विपक्ष
सरकार के कामकाज पर नजर रखता है, उसकी आलोचना करता है
और जनता के हितों की रक्षा करता है।
o उदाहरण:
भारत में विपक्ष का नेता (Leader of Opposition) लोकसभा
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
7. लचीलापन:
o संसदीय
व्यवस्था में सरकार बदलना आसान होता है। अगर सरकार बहुमत खो दे,
तो नई सरकार बन सकती है या नए चुनाव हो सकते हैं।
o यह
व्यवस्था बदलती परिस्थितियों के अनुसार लचीली होती है।
भारत में संसदीय व्यवस्था का उदाहरण:
- भारत में संसद दो सदनों से मिलकर
बनती है: लोकसभा (जनता द्वारा चुने
गए प्रतिनिधि) और राज्यसभा (राज्यों और
केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधि)।
- लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल या
गठबंधन सरकार बनाता है, और उसका नेता
प्रधानमंत्री बनता है।
- सरकार को संसद में अपने फैसलों और
नीतियों का समर्थन प्राप्त करना होता है।
- अगर लोकसभा में सरकार के खिलाफ
अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए, तो
सरकार को सत्ता छोड़नी पड़ सकती है।
संसदीय व्यवस्था के फायदे:
1. जवाबदेही:
सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है, जिससे
जनता की आवाज सुनी जाती है।
2. लचीलापन:
सरकार को आसानी से बदला जा सकता है अगर वह जनता का विश्वास खो दे।
3. विपक्ष
की भूमिका: विपक्ष सरकार को गलत निर्णयों से रोकने
में मदद करता है।
4. स्थिरता:
अगर बहुमत मजबूत हो, तो सरकार स्थिर रहती है।
संसदीय व्यवस्था के नुकसान:
1. अस्थिरता:
अगर कोई दल पूर्ण बहुमत न पाए, तो गठबंधन
सरकार बनती है, जो कभी-कभी अस्थिर हो सकती है।
2. कार्यपालिका
का विधायिका पर प्रभाव: सरकार के पास बहुमत होने पर
वह संसद पर हावी हो सकती है।
3. जल्दबाजी
में निर्णय: सरकार को संसद का समर्थन बनाए रखने के
लिए जल्दबाजी में निर्णय लेने पड़ सकते हैं।
निष्कर्ष:
संसदीय
व्यवस्था एक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है, जिसमें
जनता के चुने हुए प्रतिनिधि देश के कानून बनाते हैं और सरकार का संचालन करते हैं।
यह व्यवस्था भारत जैसे देशों में प्रभावी है, क्योंकि यह
जनता की आवाज को सरकार तक पहुँचाने का एक मजबूत तरीका है। हालांकि, इसके कुछ नुकसान भी हैं, जैसे गठबंधन सरकारों की
अस्थिरता। फिर भी, यह व्यवस्था लोकतंत्र को मजबूत करने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।