आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस (एआई) आज के युग में तकनीकी प्रगति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका
है। यह न केवल हमारे दैनिक जीवन को सरल बना रहा है, बल्कि
विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, डिजाइन, साहित्य
और उद्योग में भी क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है। हालांकि, इसके
साथ ही एआई के जिम्मेदार उपयोग और इसके परिणामों को नियंत्रित करने के लिए कानूनी
प्रणाली की आवश्यकता भी उभर रही है। हाल ही में, सुप्रीम
कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस मनमोहन ने ‘इंटरनेशनल लीगल कांफ्रेंस 2025’ में इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने देश की कानूनी प्रणाली को
एआई, डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा जैसे उभरते क्षेत्रों
के लिए तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया। इस ब्लॉग पोस्ट में हम जस्टिस मनमोहन
के विचारों की विस्तृत व्याख्या करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि क्यों और
कैसे कानूनी प्रणाली को विकसित करना आज की आवश्यकता है।
जस्टिस
मनमोहन का दृष्टिकोण
जस्टिस
मनमोहन ने अपने संबोधन में एआई को एक “प्रतिभाशाली लेकिन अप्रत्याशित किशोर” के
रूप में चित्रित किया। यह तुलना न केवल रोचक है, बल्कि
एआई की प्रकृति को भी सटीक रूप से दर्शाती है। एआई में अपार संभावनाएं हैं—यह
संगीत रच सकता है, उत्पाद डिजाइन कर सकता है, किताबें लिख सकता है, और यहां तक कि जटिल समस्याओं
का समाधान भी कर सकता है। लेकिन, इसके साथ ही यह कई सवाल भी
खड़े करता है, जैसे:
- बौद्धिक संपदा का स्वामित्व:
जब एआई कोई रचना करता है, तो उसका मालिक
कौन होता है? क्या यह रचना करने वाला एआई, उसे विकसित करने वाला प्रोग्रामर, या वह कंपनी
जिसने एआई को प्रशिक्षित किया?
- जिम्मेदारी का निर्धारण:
यदि एआई कोई गलत निर्णय लेता है या नुकसान पहुंचाता है,
तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?
- डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा:
एआई सिस्टम बड़े पैमाने पर डेटा पर निर्भर करते हैं। इस डेटा
की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है।
जस्टिस
मनमोहन ने स्पष्ट किया कि इन सवालों के जवाब देने और एआई के जिम्मेदार उपयोग को
सुनिश्चित करने के लिए देश की कानूनी प्रणाली को समय के साथ कदम मिलाकर चलना होगा।
एआई
और कानूनी प्रणाली: चुनौतियां
एआई
के संचालन से संबंधित कई कानूनी चुनौतियां हैं, जिन्हें
समझना और समाधान करना जरूरी है। कुछ प्रमुख चुनौतियां निम्नलिखित हैं:
1. बौद्धिक
संपदा अधिकार (IPR):
एआई द्वारा निर्मित रचनाओं का स्वामित्व एक जटिल मुद्दा है। उदाहरण
के लिए, यदि एक एआई सॉफ्टवेयर एक नया गाना बनाता है, तो क्या उस गाने का कॉपीराइट एआई को मिलेगा, या उस
सॉफ्टवेयर के डेवलपर को? वर्तमान कानून इस तरह के सवालों के
लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। बौद्धिक संपदा कानूनों को अपडेट करने की आवश्यकता है
ताकि वे एआई-जनित रचनाओं को समायोजित कर सकें।
2. जवाबदेही
और दायित्व:
एआई सिस्टम स्वायत्त निर्णय लेने में सक्षम हैं, लेकिन यदि इन निर्णयों से कोई नुकसान होता है, तो
जिम्मेदारी किसकी होगी? उदाहरण के लिए, यदि एक स्वचालित वाहन दुर्घटना का कारण बनता है, तो
क्या वाहन निर्माता, सॉफ्टवेयर डेवलपर, या मालिक को जिम्मेदार ठहराया जाएगा? इस तरह के
मामलों के लिए स्पष्ट कानूनी ढांचे की आवश्यकता है।
3. डेटा
गोपनीयता:
एआई सिस्टम को प्रशिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर डेटा की
आवश्यकता होती है, जिसमें व्यक्तिगत जानकारी भी शामिल हो
सकती है। इस डेटा की गोपनीयता सुनिश्चित करना और डेटा उल्लंघनों को रोकना एक बड़ी
चुनौती है। भारत में डेटा संरक्षण कानून (जैसे डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन
एक्ट) को और मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि एआई के उपयोग से उत्पन्न होने वाली
गोपनीयता संबंधी चिंताओं का समाधान हो सके।
4. साइबर
सुरक्षा:
एआई सिस्टम साइबर हमलों का लक्ष्य बन सकते हैं। यदि कोई हैकर एआई
सिस्टम को नियंत्रित कर लेता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो
सकते हैं। साइबर सुरक्षा कानूनों को इस तरह से विकसित करना होगा कि वे एआई से
संबंधित जोखिमों को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकें।
कानूनी
प्रणाली के विकास के लिए सुझाव
जस्टिस
मनमोहन की अपील को अमल में लाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं:
1. विशेषज्ञ
समितियों का गठन:
एआई और कानून के क्षेत्र में विशेषज्ञों की एक समिति गठित की जा
सकती है, जो एआई से संबंधित कानूनी चुनौतियों का अध्ययन करे
और उपयुक्त नीतियों का सुझाव दे।
2. कानूनों
का आधुनिकीकरण:
मौजूदा बौद्धिक संपदा, डेटा गोपनीयता और साइबर
सुरक्षा कानूनों को एआई की जरूरतों के अनुरूप अपडेट किया जाना चाहिए। इसके लिए
अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन उपयोगी हो सकता है।
3. जागरूकता
और प्रशिक्षण:
कानूनी पेशेवरों, जजों और नीति निर्माताओं को
एआई की तकनीकी और नैतिक चुनौतियों के बारे में प्रशिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
इससे वे एआई से संबंधित मामलों को बेहतर ढंग से समझ और संभाल सकेंगे।
4. अंतरराष्ट्रीय
सहयोग:
एआई एक वैश्विक तकनीक है, और इसके नियमन के
लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। भारत को वैश्विक मंचों पर सक्रिय रूप से भाग
लेना चाहिए ताकि एआई के लिए एक समन्वित कानूनी ढांचा विकसित हो सके।
निष्कर्ष
जस्टिस
मनमोहन का यह कथन कि “कानूनी प्रणाली को एआई के जिम्मेदार संचालन के लिए विकसित
होना चाहिए” न केवल समय की मांग है, बल्कि
तकनीकी प्रगति और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को भी
रेखांकित करता है। एआई के लाभों को अपनाने के साथ-साथ इसके जोखिमों को नियंत्रित
करने के लिए एक मजबूत और दूरदर्शी कानूनी प्रणाली की आवश्यकता है। भारत, जो तकनीकी नवाचार में अग्रणी बनने की दिशा में अग्रसर है, को इस दिशा में त्वरित और प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
एआई
के इस युग में, कानूनी प्रणाली को न केवल नियमों का
पालन कराने वाला, बल्कि नवाचार को प्रोत्साहित करने वाला और
समाज के हितों की रक्षा करने वाला भी होना चाहिए। जस्टिस मनमोहन की यह अपील हमें
इस दिशा में सोचने और कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।