मुख्य बिन्दु
- सुप्रीम कोर्ट ने 29
अप्रैल 2025 को पंजाब के नौ
पुलिसकर्मियों की याचिका खारिज की, जिसमें उन्होंने 2015
के फर्जी मुठभेड़ मामले में हत्या के आरोप रद्द करने की मांग
की थी।
- कोर्ट ने कहा कि सादे
कपड़ों में नागरिक वाहन पर गोली चलाना पुलिस के आधिकारिक कर्तव्यों से
संबंधित नहीं है।
- डीसीपी परमपाल सिंह
पर साक्ष्य नष्ट करने का आरोप भी बहाल किया गया,
क्योंकि उन्होंने कार की नंबर प्लेट हटाने का आदेश दिया था।
इस
मामले में, 16 जून 2015 को
अमृतसर में पुलिसकर्मियों ने एक सफेद ह्यूंडई i-20 कार को
घेरा और उसमें सवार मुखजीत सिंह उर्फ मुखा की गोली मारकर हत्या कर दी। पुलिस ने
आत्मरक्षा का दावा किया, लेकिन विशेष जांच दल (SIT) ने इसे झूठा पाया और हत्या का मामला चलाने की सिफारिश की।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने या वैध
गिरफ्तारी से संबंधित नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की
धारा 197 के तहत पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 20 मई 2019 के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें आरोप रद्द करने से
इनकार किया गया था।
घटना की पृष्ठभूमि
16
जून 2015 को शाम 6:30 बजे,
अमृतसर के वेरका-बटाला रोड पर एक पुलिस दल, जिसमें
एक बोलेरो (SUV), एक इनोवा, और एक वरना
(कार) शामिल थी, ने एक सफेद ह्यूंडई i-20 को रोका। इस दल में नौ पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में थे, और उन्होंने थोड़ी देर की चेतावनी के बाद पिस्तौल और राइफलों से नजदीक से
गोलियां चलाईं, जिससे कार चालक मुखजीत सिंह उर्फ मुखा की मौत
हो गई। शिकायतकर्ता, प्रिंसपाल सिंह, जो
पास में बाइक पर सवार था, और एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने इस
गोलीबारी को देखा और शोर मचाया, जिससे आस-पास के लोग मौके पर
इकट्ठा हो गए।
इसके
बाद,
डीसीपी परमपाल सिंह अतिरिक्त बल के साथ पहुंचे और कथित तौर पर कार
की नंबर प्लेट हटाने का निर्देश दिया, जिसे साक्ष्य नष्ट
करने के रूप में देखा गया। विशेष जांच दल (SIT) ने वरिष्ठ
पुलिस अधिकारियों के कहने पर जांच की और पाया कि पुलिस की आत्मरक्षा की कहानी,
जो बाद में FIR में दी गई थी, झूठी थी। SIT ने आठ पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का
मामला चलाने की सिफारिश की।
कानूनी प्रक्रिया
पुलिसकर्मियों
ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की,
जिसमें उनके खिलाफ लगे आरोपों को रद्द करने की मांग की। उच्च
न्यायालय ने 20 मई 2019 को इस याचिका
को खारिज कर दिया, जिसके बाद पुलिसकर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट
में अपील की। सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस विक्रम
नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे, ने 29 अप्रैल 2025 को यह आदेश पारित किया, जो हाल ही में कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
सुप्रीम
कोर्ट का फैसला
कोर्ट
ने पुलिसकर्मियों की अपील को खारिज करते हुए कहा कि सादे कपड़ों में नागरिक वाहन
को घेरना और उसमें सवार लोगों पर गोली चलाना, सार्वजनिक
व्यवस्था बनाए रखने या वैध गिरफ्तारी करने के कर्तव्यों से कोई वाजिब संबंध नहीं
रखता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधिकारिक कर्तव्य की आड़ में न्याय को निष्फल
करने के इरादे से किए गए कार्यों को पुलिस कर्तव्य से जुड़ा नहीं माना जा सकता।
विशेष
रूप से,
डीसीपी परमपाल सिंह के मामले में, कोर्ट ने
साक्ष्य नष्ट करने के आरोप को बहाल किया, क्योंकि उन्होंने
घटना के बाद कार की नंबर प्लेट हटाने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई
कृत्य संभावित साक्ष्य को मिटाने के लिए किया गया हो, तो उसे
पुलिस के वास्तविक कर्तव्यों से जुड़ा नहीं माना जा सकता, और
ऐसी स्थिति में सीआरपीसी की धारा 197 लागू नहीं होती।
साक्ष्य और गवाही
कोर्ट
ने रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री का अवलोकन किया, जिसमें दो
प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही और SIT की रिपोर्ट शामिल थी। CCTV
फुटेज में दिखाया गया कि तीन पुलिस वाहन ह्यूंडई i-20 पर कन्वर्ज कर रहे थे, जैसा कि आरोप लगाया गया था। SIT
की रिपोर्ट में पाया गया कि FIR में दी गई
आत्मरक्षा की कहानी झूठी थी, और यह सिफारिश की गई कि आठ
पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मामला चलाया जाए।
कानूनी
तर्क और धारा 197 CrPC
पुलिसकर्मियों
ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ शिकायत का संज्ञान नहीं लिया जा सकता,
क्योंकि सीआरपीसी की धारा 197 के तहत लोक
सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है। हालांकि,
कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया, यह कहते
हुए कि इस तरह का आचरण, अपनी प्रकृति के अनुसार, लोक व्यवस्था बनाए रखने या वैध गिरफ्तारी करने के कर्तव्यों से कोई उचित
संबंध नहीं रखता।
निष्कर्ष
सुप्रीम
कोर्ट का यह फैसला फर्जी मुठभेड़ मामलों में पुलिस जवाबदेही को मजबूत करता है,
यह स्पष्ट करते हुए कि सादे कपड़ों में नागरिकों पर गोली चलाना और
साक्ष्य नष्ट करना पुलिस के आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं है। यह निर्णय
कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक
महत्वपूर्ण कदम है।
मुख्य संदर्भ
- SC upholds murder charges on Punjab cops in 2015 fake
encounter case
- Cops in civvies firing on car can't be considered official
duty
- Cops In Plain Clothes Firing Upon Car Driver Not Part Of
Official Duty
- No Immunity Under Section 197 CrPC for Fake Encounter
Rules Supreme Court
- Killing civilian with official guns in plain clothes not
part of police duty
- Killing civilian in plain clothes not official duty, SC
rules in fake encounter case