केंद्र और राज्य के बीच संबंध भारत के संविधान में बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि भारत एक संघीय देश है। इसका मतलब है कि शासन की शक्तियाँ केंद्र (केंद्रीय सरकार) और राज्यों (राज्य सरकारों) के बीच बँटी हुई हैं। ये संबंध दो मुख्य प्रकार के होते हैं: विधायी संबंध (कानून बनाने से संबंधित) और प्रशासकीय संबंध (प्रशासन से संबंधित)।
विधायी संबंध (Legislative
Relations)
विधायी संबंध का मतलब है कि केंद्र और राज्य सरकारें किन-किन विषयों
पर कानून बना सकती हैं। भारत का संविधान शक्तियों को तीन सूचियों में बाँटता है,
जो सातवीं अनुसूची में दी गई हैं। ये सूचियाँ हैं:
- इस सूची
में वे विषय हैं, जिन पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है।
- उदाहरण:
रक्षा, विदेशी मामले, रेलवे, डाक, टेलीफोन, मुद्रा, परमाणु ऊर्जा आदि।
- इसमें
कुल 100 विषय (मूल संविधान में 97 थे, संशोधनों के बाद बढ़े) शामिल हैं।
- कारण: ये
विषय राष्ट्रीय महत्व के हैं, इसलिए इन्हें केंद्र नियंत्रित करता है ताकि पूरे
देश में एकरूपता रहे।
- इस सूची
में वे विषय हैं, जिन पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं।
- उदाहरण:
पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, स्थानीय स्वशासन, सिंचाई, भूमि सुधार आदि।
- इसमें
कुल 61 विषय (मूल में 66 थे) शामिल हैं।
- कारण: ये
विषय स्थानीय महत्व के हैं, और राज्यों को इन पर स्वायत्तता दी गई है ताकि वे
अपनी जरूरतों के अनुसार कानून बना सकें।
(iii)
समवर्ती सूची (Concurrent
List):
- इस सूची
में वे विषय हैं, जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
- उदाहरण:
शिक्षा, विवाह-तलाक, आपराधिक कानून, वन, श्रम कल्याण, बिजली आदि।
- इसमें
कुल 52 विषय (मूल में 47 थे) शामिल हैं।
- अगर
केंद्र और राज्य के कानून में टकराव होता है, तो केंद्र का कानून मान्य
होगा।
विशेष परिस्थितियाँ:
- आपातकाल
(Emergency): राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 356)
के दौरान केंद्र,
राज्य सूची के विषयों पर
भी कानून बना सकता है।
- राज्य की
सहमति: कुछ मामलों में, अगर राज्य सभा में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव
पारित हो, तो केंद्र राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकता है (अनुच्छेद 249)।
- अंतरराष्ट्रीय
समझौते: अगर कोई अंतरराष्ट्रीय संधि लागू करनी हो,
तो केंद्र राज्य सूची के
विषयों पर भी कानून बना सकता है (अनुच्छेद 253)।
- राज्य
विधानमंडल की सहमति: अगर दो या अधिक राज्य चाहें,
तो वे केंद्र को अपने लिए
कानून बनाने की अनुमति दे सकते हैं (अनुच्छेद 252)।
महत्वपूर्ण बिंदु:
संविधान में केंद्र को राज्यों की तुलना में अधिक
शक्तियाँ दी गई हैं, जिसे केंद्र-प्रधान संघीय व्यवस्था कहा जाता है। इसका कारण भारत की एकता और अखंडता को बनाए
रखना है।
प्रशासकीय संबंध (Administrative
Relations)
प्रशासकीय संबंध का मतलब है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने प्रशासनिक
कार्यों को कैसे चलाती हैं और एक-दूसरे के साथ कैसे सहयोग करती हैं। संविधान में
इसके लिए कई प्रावधान हैं:
(i)
शक्तियों का
बंटवारा:
- केंद्र
और राज्य अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। केंद्र,
संघ सूची के विषयों पर और
राज्य, राज्य सूची के विषयों पर प्रशासन चलाते हैं।
- समवर्ती
सूची के विषयों पर दोनों मिलकर काम करते हैं, लेकिन केंद्र का निर्देश मानना जरूरी हो सकता है।
(ii)
केंद्र का
नियंत्रण:
- केंद्र,
राज्यों को कुछ मामलों में
निर्देश दे सकता है। उदाहरण:
- राष्ट्रीय
महत्व के मामलों में, जैसे कि रेलवे या राष्ट्रीय राजमार्गों की सुरक्षा
(अनुच्छेद 257)।
- केंद्र
यह सुनिश्चित कर सकता है कि राज्य के कानून केंद्र के कानूनों के खिलाफ न
हों।
- अखिल
भारतीय सेवाएँ (All India Services):
IAS, IPS और IFS
जैसी सेवाएँ केंद्र और
राज्यों दोनों के लिए काम करती हैं। इनका नियंत्रण केंद्र के पास होता है,
लेकिन ये राज्यों में भी
सेवा देते हैं।
(iii)
आपातकाल में
प्रशासकीय नियंत्रण:
- राष्ट्रीय
आपातकाल (अनुच्छेद 356) में केंद्र, राज्य सरकार के प्रशासन को अपने नियंत्रण में ले
सकता है। इसे राष्ट्रपति शासन
कहा जाता है।
- आपातकाल
में केंद्र, राज्यों को विशेष निर्देश दे सकता है।
(iv)
सहकारी संघवाद (Cooperative
Federalism):
- केंद्र
और राज्य मिलकर कई योजनाओं और नीतियों पर काम करते हैं। उदाहरण: जीएसटी परिषद,
नीति आयोग।
- केंद्र,
राज्यों को योजनाओं (जैसे
मनरेगा, आयुष्मान भारत) के लिए वित्तीय सहायता देता है।
- राज्यों
को केंद्र की नीतियों को लागू करने में सहयोग करना होता है।
(v)
विवादों का समाधान:
- अगर
केंद्र और राज्य के बीच कोई प्रशासकीय विवाद होता है,
तो उसे सुलझाने के लिए
अंतर-राज्य
परिषद (Inter-State Council, अनुच्छेद 263) का गठन किया गया है।
- इसके
अलावा, सुप्रीम कोर्ट (उच्चतम न्यायालय) भी केंद्र-राज्य विवादों का निपटारा
करता है।
(vi)
वित्तीय प्रशासन:
- केंद्र,
राज्यों को करों का हिस्सा
देता है (जैसे GST, आयकर)। वित्त आयोग
हर पाँच साल में यह तय
करता है कि केंद्र का कितना राजस्व राज्यों को मिलेगा।
- केंद्र,
राज्यों को अनुदान (Grants)
भी देता है,
खासकर गरीब या कम विकसित
राज्यों को।
केंद्र-राज्य संबंधों की विशेषताएँ:
1. केंद्र-प्रधान व्यवस्था: भारत का संघवाद कनाडा की तरह केंद्र-प्रधान है,
न कि अमेरिका की तरह समान शक्ति वाला।
2. लचीलापन: संविधान में लचीलापन है, जिससे आपातकाल या विशेष परिस्थितियों में केंद्र को
अतिरिक्त शक्तियाँ मिल सकती हैं।
3. सहकारी संघवाद: केंद्र और राज्य एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं,
खासकर समवर्ती सूची और राष्ट्रीय योजनाओं में।
4. न्यायिक समीक्षा: अगर केंद्र या राज्य संविधान के खिलाफ कोई कदम उठाते हैं,
तो सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।
उदाहरण (Examples):
- विधायी:
केंद्र ने
GST
कानून
बनाया,
जो समवर्ती सूची के तहत
आता है। सभी राज्यों को इसे लागू करना पड़ा।
- प्रशासकीय:
केंद्र ने
कोविड-19
महामारी
के दौरान राज्यों को
टीकाकरण और लॉकडाउन के लिए निर्देश दिए।
चुनौतियाँ (Challenges):
1. केंद्र का हस्तक्षेप: कई बार राज्य केंद्र के ज्यादा हस्तक्षेप से असंतुष्ट
होते हैं,
जैसे अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का दुरुपयोग।
2. वित्तीय निर्भरता: कई राज्य केंद्र के अनुदान पर निर्भर हैं,
जिससे उनकी स्वायत्तता कम होती है।
3. विवाद: केंद्र और राज्यों के बीच नीतियों (जैसे कृषि कानून,
2020) पर मतभेद हो सकते हैं।
निष्कर्ष:
भारत का संविधान केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए
रखने की कोशिश करता है। विधायी और प्रशासकीय संबंधों के जरिए केंद्र,
राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा सुनिश्चित करता है,
जबकि राज्यों को स्थानीय जरूरतों के लिए स्वायत्तता दी
गई है। सहकारी
संघवाद और संवैधानिक प्रावधानों के जरिए दोनों मिलकर देश के विकास के लिए काम करते हैं।
FAQs: भारत में केंद्र और राज्य के बीच संबंध
प्रश्न
1:
भारत में केंद्र और राज्य के बीच विधायी संबंध क्या होते हैं?
उत्तर:
विधायी संबंध का मतलब है कि केंद्र और राज्य सरकारें किन विषयों पर कानून बना सकती
हैं। भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ दी गई हैं —
1. संघ
सूची:
जिन विषयों पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है (जैसे- रक्षा,
विदेश नीति)।
2. राज्य
सूची:
जिन विषयों पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं (जैसे- पुलिस,
कृषि)।
3. समवर्ती
सूची:
जिन विषयों पर दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं (जैसे- शिक्षा,
विवाह)।
अगर किसी विषय पर दोनों के कानून में टकराव हो, तो केंद्र का कानून मान्य होता है।
प्रश्न
2:
भारत में केंद्र और राज्य के बीच प्रशासकीय संबंध क्या होते हैं?
उत्तर:
प्रशासकीय संबंध का मतलब है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने प्रशासनिक काम
कैसे करती हैं और एक-दूसरे से कैसे सहयोग करती हैं।
- दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में
स्वतंत्र हैं, लेकिन कुछ मामलों में
केंद्र राज्यों को निर्देश दे सकता है।
- आपातकाल (अनुच्छेद 356)
में केंद्र राज्य का प्रशासन अपने हाथ में ले सकता है।
- अखिल भारतीय सेवाएँ
(IAS, IPS) दोनों के लिए काम करती हैं।
- इंटर-स्टेट काउंसिल
और सुप्रीम कोर्ट विवाद सुलझाने का माध्यम हैं।
- केंद्र-राज्य मिलकर योजनाएँ चलाते
हैं (जैसे- GST, मनरेगा) और वित्तीय
मदद साझा करते हैं।